tag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post4217315271374144437..comments2023-10-17T04:40:05.017-07:00Comments on मा पलायनम !: कांवर रथी :एक धार्मिक लोक परम्परा जो कि अब अवसान पर है .......डॉ. मनोज मिश्रhttp://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-24832031221456773562010-04-17T20:19:41.298-07:002010-04-17T20:19:41.298-07:00बहुत अच्छा लगा यह पोस्ट पढ़कर। बहुत सुन्दर!बहुत अच्छा लगा यह पोस्ट पढ़कर। बहुत सुन्दर!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-72668340526885970052010-01-12T23:21:52.707-08:002010-01-12T23:21:52.707-08:00क्या बात है पंडित जी, वाह वाह !
आप हमेशा ही इसी तर...क्या बात है पंडित जी, वाह वाह !<br />आप हमेशा ही इसी तरह कुछ बहुत ही सुन्दर, बहुत ही प्रेरक, बहुत ही मनभावन मगर इस सब से बढ़कर बहुत ही चिंतन और मनन योग्य प्रसंग प्रस्तुत करते हैं। <br />पंडित पारस नाथ पैन्युली जी से मिलकर बड़ी प्रसन्नता हुई जीवन की चरैवेती के लिए प्रेरणा भी और आपके प्यारे छोटू के साथ में उनकी सुन्दर तस्वीर यही याद दिला रही है कि-<br />बूढ़े बारे एक बिरोबर।<br />आपका सवाल जायज़ है कि आधुनिकता के दौर में यह परम्पराएँ कब तक चल पाएंगी?मुझे तो ऐसा लगता है कि अवसान की ओर उन्मुख ये लोकाचार, अगले कुछ वर्षों में हम सब को विस्मृत हो जायेंगे?<br /><br />बहुत बहुत आभार आपका इस सुन्दर लेख के लिए। <br />सच कहें पंडितजी,<br />आज मन बड़ा खिन्न था मगर आपको पढ़कर प्रसन्न हो गया।बवालhttps://www.blogger.com/profile/11131413539138594941noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-50737761261514294532010-01-12T22:46:04.374-08:002010-01-12T22:46:04.374-08:00अब सवाल यह है कि आधुनिकता के दौर में यह परम्पराएँ ...अब सवाल यह है कि आधुनिकता के दौर में यह परम्पराएँ कब तक चल पाएंगी?मुझे तो ऐसा लगता है कि अवसान की ओर उन्मुख ये लोकाचार, अगले कुछ वर्षों में हम सब को विस्मृत हो जायेंगे?<br /><br />Sawaal chintneey hai...aapne chitr diye,ye bada achha laga..shamahttps://www.blogger.com/profile/10349457755551725245noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-91742720491117417992010-01-12T21:02:07.833-08:002010-01-12T21:02:07.833-08:00क्या आप की गंगा जल की "शीशी " "प्ला...क्या आप की गंगा जल की "शीशी " "प्लास्टिक" की है ???????Saiyed Faiz Hasnainhttps://www.blogger.com/profile/11475873328296499990noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-53490425756133210722010-01-11T02:58:22.853-08:002010-01-11T02:58:22.853-08:00Aise log bahut kam rah gaye hain.Aise log bahut kam rah gaye hain.Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-55723222971156531002010-01-10T22:41:22.188-08:002010-01-10T22:41:22.188-08:00मनोज जी
बहुत ही अच्छी पोस्ट......पुरानी परम्पराओं...मनोज जी<br /> बहुत ही अच्छी पोस्ट......पुरानी परम्पराओं पर आधुनिकता का ग्रहण लगने के कारण जीवन में न वो निश्चलता रही न वो सहज लगाव......!<br />इन विरोधाभाषों के बीच आपकी पोस्ट सुकून देने वाली लगी.<br />बहुत बहुत बधाई...Pawan Kumarhttps://www.blogger.com/profile/08513723264371221324noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-3419212223048623382010-01-10T22:19:03.472-08:002010-01-10T22:19:03.472-08:00प्रणाम है पांडीज जी को हमारा ........... इतने लंबे...प्रणाम है पांडीज जी को हमारा ........... इतने लंबे समय तक किसी परंपरा को निभाना बहुत बड़ी तपस्या है ........ ऐसे लोग युगपुरुष की श्रेणी में आते हैं ...........दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-16424221636208563962010-01-10T21:04:59.064-08:002010-01-10T21:04:59.064-08:00बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर ।बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर ।सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-23491868549441834412010-01-10T09:57:56.262-08:002010-01-10T09:57:56.262-08:00बडे भाई मुझे भी पंडित पारस नाथ जी के सम्बन्ध मे पढ...बडे भाई मुझे भी पंडित पारस नाथ जी के सम्बन्ध मे पढ कर अच्छा लगा. यहा छत्तीसगढ मे भी उत्तरकाशी से एसे पंडित जी हर साल आते रहे है. बचपन मे इनसे गांव मे पवित्र जल की पुजा कर आशिर्वाद लेते थे और यह परम्परा पीढियो से आज तक जारी है. हम आज शहरो मे रहने लगे है किंतु आज भी हमारे घरो को खोज कर सुदुर उत्तरकाशी के यहा इनका आना मुझे अच्छा लगता है.36solutionshttps://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-77090456817279075062010-01-10T09:29:59.058-08:002010-01-10T09:29:59.058-08:00पंडित पारस नाथ जी के बारे में पढ़कर अच्छा लगा।
आज...पंडित पारस नाथ जी के बारे में पढ़कर अच्छा लगा। <br />आजकल इतने श्रद्धालु लोग कम ही बचे हैं।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-2153457279560486252010-01-10T05:46:43.329-08:002010-01-10T05:46:43.329-08:00भई वाह स्वागत है आपका मनोज जी पोस्ट भी बढ़िया और प...भई वाह स्वागत है आपका मनोज जी पोस्ट भी बढ़िया और पंडितजी के साथ-साथ बेटे से परिचय भी आयुष को ढेर सारा प्यारयोगेन्द्र मौदगिलhttps://www.blogger.com/profile/14778289379036332242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-39321045044790493592010-01-10T03:06:42.762-08:002010-01-10T03:06:42.762-08:00भारत देश परम्पराओ का देश है. ये सारी परंपराए हमें ...भारत देश परम्पराओ का देश है. ये सारी परंपराए हमें बहुत कुछ सोचने को समय समय पर विवश करती है कि हमने इस युग में क्या खोया और क्या पाया. पुरुखो कि परंपरा को अपनी अगली पीढ़ी में प्रवाहित करने के लिए धन्यवाद्.Digvijay Singh Rathor Azamgarhhttps://www.blogger.com/profile/08935197555643722060noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-18352929174831104692010-01-09T23:02:10.849-08:002010-01-09T23:02:10.849-08:00बहुत कुछ बदल चुका है और बदल रहा है । बहुत अच्छआलेख...बहुत कुछ बदल चुका है और बदल रहा है । बहुत अच्छआलेख है धन्यवाद्निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-7521912800789739882010-01-09T22:20:44.730-08:002010-01-09T22:20:44.730-08:00आपके इस लेख जैसे लेख ब्लॉगजगत को सार्थकता देते हैं...आपके इस लेख जैसे लेख ब्लॉगजगत को सार्थकता देते हैं..पारसनाथ जी के बहाने समाज की लुप्त होती जा रही प्रवृत्तियों पर रोशनी डालने के लिये आभारअपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-2928024551567720192010-01-09T21:28:14.303-08:002010-01-09T21:28:14.303-08:00वाह ऐसी परंपराओं के बारे में सुनकर अच्छा लगता है।वाह ऐसी परंपराओं के बारे में सुनकर अच्छा लगता है।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-36995925652440495582010-01-09T21:18:00.807-08:002010-01-09T21:18:00.807-08:00आज कल हिंदुओं में धर्म के प्रति ऐसी आस्था और समर...आज कल हिंदुओं में धर्म के प्रति ऐसी आस्था और समर्पण कहाँ देखने को मिलता है?<br />-पंडित जी ८१ साल की आयु में भी अपने इस धर्म को निभा रहे हैं उन्हें मेरे प्रणाम .<br />-यह बात सही है कि महत्व ना देने के कारण हमारी बहुत सी परंपराएँ लुप्त हो रही हैं.<br />--'बही 'वाली बात मैं ने भी सुनी है,सच है ऐसा भारत में ही देखा जा सकता है अन्य कहीं नहीं.<br />-यह जानकार बेहद खुशी हुई कि आयुष्मान ने सभी के लिए इस परम्परा की जीवंतता की रस्म निभायी , क्योंकि आज कल बच्चे पूजा में बैठने से भी कतराते हैं.<br />चिरंजीव आयुष्मान को मेरा शुभाषीश.<br />आभार .Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-17614608987475073962010-01-09T14:37:22.451-08:002010-01-09T14:37:22.451-08:00दुःख तो होता है पर परिवर्तन कब रुका है? शाश्वत क्य...दुःख तो होता है पर परिवर्तन कब रुका है? शाश्वत क्या है? पंडित जी को प्रणाम और आयुष्मान को आशिष!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-72979993293510784192010-01-09T10:18:57.779-08:002010-01-09T10:18:57.779-08:00बहूत अच्छा लगा यह आलेख पढ़कर अपने बचपन कि यादे ताज...बहूत अच्छा लगा यह आलेख पढ़कर अपने बचपन कि यादे ताजा हो गई हम भी छोटे थे तब बद्रीनारायण से पन्दाजी आते थे जब वहां के पट बद होते थे तब उनकी खूब आव भगत होती थी हमको अच्छा नहीं लगता था हमारे दादाजी द्वारा दक्षिणा देना| पर हमने जब आज के करीब २० साल पहले चार धाम कि यात्राकी और वहां उन्ही पंडो के वंशज ने हमारी सारी व्यवस्था सुचारू रूप से कि और हमने पञ्च पीढ़ी तक के पूर्वजो कि हस्तलिपि देखि और हमारे नाम और उम्र देखि तो हम उनकी इस मेनेजमेंट के आगे नतमस्तक हो गये| कहाँ मध्य प्रदेश के छोटेसे गाँव ?और कहाँ उतराखंड ?<br />हाँ पर ये भी सच है कि अब कोई पन्दाजी नहीं आते |आपका कहना बिलकुल सही है तथाकथित आधुनिक ता ने शायद हमारी आस्थाओ पर पर्दा डाल दिया है |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-86470852552840973172010-01-09T10:11:24.338-08:002010-01-09T10:11:24.338-08:00दिलचस्प संस्मरणात्मक विवरणदिलचस्प संस्मरणात्मक विवरणमनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-18890546845465976692010-01-09T09:58:20.122-08:002010-01-09T09:58:20.122-08:00पंडित पारस नाथ पैन्युली जी को प्रणाम कहिये, कही तो...पंडित पारस नाथ पैन्युली जी को प्रणाम कहिये, कही तो आज भी अस्था जिन्दा है, पंडित जी कॊ ओर उन की उम्र को देख कर श्राद्धा से सर झुक गया, आप का धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-89082638049830679612010-01-09T09:51:02.616-08:002010-01-09T09:51:02.616-08:00बहुत बढिया लगा पढकर ..बहुत बढिया लगा पढकर ..स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-75308338212531239112010-01-09T09:36:35.459-08:002010-01-09T09:36:35.459-08:00आज आधुनिकता की होड़ में बहुत सी चीज़ें पीछे छूट जा...आज आधुनिकता की होड़ में बहुत सी चीज़ें पीछे छूट जाती है ..आज यह सब परंपरा जो हमारे पूर्वज श्रद्धा से मानते थे थोड़ा-तोड़ा विलुप्त सा होता जा रहा है....बहुत बढ़िया बात याद दिलाई आपने ...विनोद कुमार पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/17755015886999311114noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-48842897806001252292010-01-09T09:26:44.034-08:002010-01-09T09:26:44.034-08:00समय रहते 'युग-गाथा' को लिपिबद्ध कर लें आर्...समय रहते 'युग-गाथा' को लिपिबद्ध कर लें आर्य ! <br />शायद कोई महाकथा निकल आए।<br />स्वार्थी लग रहा हूँ ? नहीं, आप की अनासक्ति पर दु:खी हो रहा हूँ। एक बार बैठिए तो सही रथी के साथ - ग्राम-मिथकों की भावभूमि संघनित हो ठोस हो जाएगी।<br />कुछ तो लुप्त होने से बच जाएगा।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-52108683171131148862010-01-09T09:01:00.940-08:002010-01-09T09:01:00.940-08:00आयुष्मान के हाँथ में गंगाजल जारी आगे की
परंपरा की...आयुष्मान के हाँथ में गंगाजल जारी आगे की <br />परंपरा की सूचना है ..<br />लेकिन ब्रह्मानंद कैसे लेते हैं इसको , यह महत्वपूर्ण है ..<br />ललचाता हूँ और सोचता हूँ कि कभी ऐसा होता कि <br />कोई '' पारस '' मुझे भी मिलते और मेरे परिवार की पोथी बांच देते , थई हो जाती ..<br />ऐसी चीजों पर मन भावुक हो जाता है ..<br />आपका अनुसरण कर रहा हूँ , सुन्दर पढ़ने को मिलता रहेगा भविष्य में ..<br />......... आभार ,,,Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7498896836438070792.post-53455253112183872812010-01-09T08:51:15.575-08:002010-01-09T08:51:15.575-08:00बहुत बढिया लगा पढकर , आपका भी आभार इस प्रस्तुति के...बहुत बढिया लगा पढकर , आपका भी आभार इस प्रस्तुति के लिए ।हिन्दी साहित्य मंचhttps://www.blogger.com/profile/13856049051608731691noreply@blogger.com