जैसा कि मेरी पिछली पोस्ट में, मैंने साहित्य वाचस्पति स्व.डॉ श्री पाल सिंह क्षेम की चर्चा की थी .आज उस महाकवि का जन्मदिन है.क्षेमस्वनी आज मौन हैं-सन्नाटा है .प्रतिवर्ष आज के दिन दो सितम्बर को प्रतिष्ठित रचनाकारों,कवियों से जौनपुर गुंजायमान रहता था.उनकी चर्चा -संस्मरण आज जनपद के साहित्यकारों -बुद्धिजीवियों में दिन भर होती रही .आज एक संस्मरण में जनपद के प्रतिष्ठित साहित्यकार ,विधिवेत्ता डॉ प्रेम चन्द्र विश्वकर्मा"प्रेम जौनपुरी" नें बताया कि एक बार, एक निरपराध व्यक्ति को सज़ा होने वाली थी जो क्षेम जी की एक गवाही से बच गया.उन्होंने बताया कि क्षेम जी के बारे में पूरा जनपद जानता था कि वह भोर में चार बजे के आस-पास ही सोते थे और उनकी सुबह दोपहर को होती थी.वह व्यक्ति एक ऐसे मामले में अभियुक्त बनाया गया था जो कि रात सवा दो बजे की घटना थी .क्षेम जी जानते थे कि व्यक्ति एकदम बेकसूर है तो उन्होंने न्यायालय में उपस्थित होकर कहा कि यह व्यक्ति मुजरिम नहीं हो सकता क्योंकि यह रात ढाई बजे तक मेरे साथ था. न्यायमूर्ति महोदय नें स्वयं जब रात के दो-तीन बजे चाय की दुकानों पर क्षेम जी को पाया तो उन्होंने उनकी गवाही का आधार बना कर उस व्यक्ति को बा -इज्जत बरी कर दिया। जब तक मैं स्वयं इस बात को नहीं जानता था तो उनसे मिलने जाने पर काफी परेशान होता उनसे भेंट न होती.दोपहर का उनका भोजन भी अक्सर शाम को ही होता था.लोग बताते हैं कि जब लोग सुबह वाक् पर टहलते होते तो अक्सर डॉ क्षेम जी कवि सम्मलेन से भाग लेकर आ रहे होते.जो नहीं जानते तो उनसे कहते कि बड़ी जल्दी जग गये आप तो वे कहते अरे भाई अभी मैं सोया कहाँ हूँ.
बावजूद इसके उनकी कक्षाओं में विद्यार्थियों की भारी भीड़ हुआ करती थी.देर से कक्षाओं में वे जब भी पहुचते ,छात्र-छात्राएं उनका इन्तजार करते थे और दो-तीन घंटे पढ़ने के बाद भी लोंगों को समय का एहसास न रहता.
इस महाकवि की कुछ मुक्तकों को स्मृति शेष के रूप में , सादर नमन करते हुए , आज उनके जन्म दिवस के अवसर पर प्रस्तुत कर रहा हूँ ...
फूल को शूल घेरे मिलेंगे ,
बावजूद इसके उनकी कक्षाओं में विद्यार्थियों की भारी भीड़ हुआ करती थी.देर से कक्षाओं में वे जब भी पहुचते ,छात्र-छात्राएं उनका इन्तजार करते थे और दो-तीन घंटे पढ़ने के बाद भी लोंगों को समय का एहसास न रहता.
इस महाकवि की कुछ मुक्तकों को स्मृति शेष के रूप में , सादर नमन करते हुए , आज उनके जन्म दिवस के अवसर पर प्रस्तुत कर रहा हूँ ...
रात डूबे उजेरे मिलेंगे ,
नयन में प्यार के दीप रख लो ,
ज्योति में भी अँधेरे मिलेंगे।
कोई संकल्प ऐसा ठने ,
कोई निष्ठा तो ऐसी जगे ,
राम अपने से कब दूर हैं ,
कोई तुलसी तो पहले बने।
मन की गांठे बंधी पहले खोलो ,
प्यार से पहले मन को तो धो लो ,
देश को फूल देना कठिन है,
पहले आँगन में ही फूल बो लो।
भाव मन के जो प्रतिकूल होंगे,
पथ में शूल ही शूल होंगे,
देश को फूल तब दे सकोगे ,
अपनेँ आँगन में जब फूल होंगे।
'नयन में प्यार के दीप रख लो ,
जवाब देंहटाएंज्योति में भी अँधेरे मिलेंगे। '
बहुत अच्छी लगी यह कविता.
आप के स्वर में इस कविता का लयबद्ध पाठ प्रभावी लगा.
दिवंगत महाकवि क्षेम जी अपनी रचनाओं में जीवित हैं ,उन के जन्मदिवस पर एक अत्यंत सुन्दर भेंट .
वाह!
जवाब देंहटाएंक्षेम जी एक अच्छे व्यक्ति - अच्छे कवि रहे हैं, पढ़कर पूर्ण अहसास हुआ!
कविता अच्छी है और सस्वर पाठ भी!
मन की गांठे बंधी पहले खोलो ,
जवाब देंहटाएंप्यार से पहले मन को तो धो लो ,
देश को फूल देना कठिन है,
पहले आँगन में ही फूल बो लो।
बहुत सुंदर प्रस्तुति..... क्षेम जी को नमन
क्षेम जी रचनाओं को पढवाने का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं------
कसौटी पर अल्पना वर्मा..
इसी बहाने बन गया- एक और मील का पत्थर।
बहुत खूब ...आभार आपका !
जवाब देंहटाएंराम का परिचय तो तुलसी सा गुनी ही करा सकता है।
जवाब देंहटाएंकवि और डाकू एक से होते हैं
जवाब देंहटाएंरात में सोते नहीं जगते हैं ..
एक तो माल लूट जाता है
दूसरा दिल लूट लिए जाता है
ऐसे ही दिल लूटने वाले डाकू थे
हमारे नायक कवि क्षेम जी !
साहित्य जगत ऐसी विभूतियों का ऋणी है. श्रद्दांजलि.
जवाब देंहटाएंमन की गांठे बंधी पहले खोलो ,
जवाब देंहटाएंप्यार से पहले मन को तो धो लो ,
देश को फूल देना कठिन है,
पहले आँगन में ही फूल बो लो
आपकी कलम से यह परिचय ...अच्छा लगा,
महाकवि की महान कृति पढ़ना सुखद है.आपको आभार
जवाब देंहटाएं2011/9/3 मो. कमरूद्दीन शेख
जवाब देंहटाएंमो. कमरूद्दीन शेख ने आपकी पोस्ट " साहित्य वाचस्पति डॉ .श्रीपाल सिंह क्षेम : विनम्र ... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
सुनकर बहुत ही आघात लगा। मैंने तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय से हिंदी में एम ए किया था और उनके बारे में प्रायः सुनता रहता था। उनकी प्रसिद्ध कविता - एक पल ही जियो फूल बन कर जियो शूल बनकर ठहरना नहीं जिंदगी- अक्सर याद आती रहती है। उनकी रचनाओं को कविताकोश में जोडने हेतु मैंने मेल किया था परंतु उनका जवाब आया कि उनके पास पर्याप्त सामग्री नहीं है उन्होंने मांग की थी कि यदि मेरे पास उनका चित्र और 8-10 रचनाएं हों तो मैं उन्हें भेज दूं परंतु मैं असमर्थ रहा। यदि आप यह शुभ कार्य कर सकें तो उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
मो. कमरूद्दीन शेख द्वारा मा पलायनम ! के लिए ३ सितम्बर २०११ ७:१७ पूर्वाह्न को पोस्ट किया गया
आपकी आवाज़ दूसरी बार सुन रहा हूँ. पाठ प्रभावी रहा. आभार.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंडाकू लूटे
जवाब देंहटाएंजबरी लूटे
कोई न लुटाये
खुद को
कवि दिल लूटे
हंस के लूटे
ना करे जबरी हो....
क्षेम जी
थे कविता के मोहन
श्रोता
राधा बन नाचें....
डॉ मनोज जी अभिवादन .. जय श्री कृष्ण .. साहित्य वाचस्पति स्व.डॉ श्री पाल सिंह क्षेम की रचनाये पढवाने के लिए और सुन्दर जानकारी के लिए आभार ..
जवाब देंहटाएंमन की गांठे बंधी पहले खोलो ,
प्यार से पहले मन को तो धो लो ,
देश को फूल देना कठिन है,
पहले आँगन में ही फूल बो लो।
सराहनीय प्रयास
धन्यवाद
भ्रमर ५
मन की गांठे बंधी पहले खोलो ,
जवाब देंहटाएंप्यार से पहले मन को तो धो लो ,
देश को फूल देना कठिन है,
पहले आँगन में ही फूल बो लो।
क्षेम जी की कविता पढवाने के लिए आभार
बहुत सुन्दर पोस्ट!
जवाब देंहटाएंआपकी आवाज में क्षेमजी को सुनना बहुत अच्छा लगा। शुक्रिया।
बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंक्षेम जी को नमन..बढ़िया पोस्ट.
जवाब देंहटाएंबहुत आभार इन मुक्तकों को पढ़ाने का....आवाज तो आपने क्या खूब दी है.....क्षेम जी को नमन!!!
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