बुधवार, 27 जनवरी 2010

अभी तक आदमी बनकर तुम्हे जीना नहीं आया..........

खुशी हद से बढ़ी तो गए मुस्कान को आंसू
कहीं कोई लुटा तो गये ईमान को आंसू
चढ़ाकर लूट की संपत्ति तुमनें जीत माँगी तो
पुजारी मुस्कराया गये भगवान को आंसू

पराई पीर का प्याला तुम्हे पीना नहीं आया
मनुजता का फटा आंचल तुम्हे सीना नहीं आया
भले ही तुम फरिश्तों की तरह बातें करो लेकिन
अभी तक आदमी बनकर तुम्हे जीना नहीं आया

तुम्हारे पास बल है बुद्धि है विद्वान भी हो तुम
इसे हम मान लेतें हैं बहुत धनवान भी हो तुम
विधाता वैभवों के तुम इसे भी मान लेते हम
मगर यह बात कैसे मान लें इंसान भी हो तुम

लगा ली गले से नफरत मुहब्बत तक नहीं पहुंचे
बसाया झूठ को दिल में सदाकत तक नहीं पहुंचे
सितारों तक तुम्हारा यह सफर किस काम का जब तुम
अँधेरे में सिसकती आदमियत तक नहीं पहुंचे
( रचना - स्व.पंडित रूप नारायण त्रिपाठी जी )






बुधवार, 20 जनवरी 2010

क्या अध्ययन समाप्ति के बाद, उपाधि देते समय दिया जाने वाला उपदेश महज़ परिपाटी या औपचारिकता बन कर रह गया हैं???

कल यानि २० जनवरी ,वसंत-पंचमी को हमारे विश्वविद्यालय का १३ वां दीक्षांत समारोह था .वैसे भी वसंत-पंचमीको हमारे विश्वविद्यालय का स्थापना दिवस भी है, उस पर दीक्षांत ,एक विशाल उत्सव का दिन ,विश्वविद्यालय सेजुड़े सभी -छात्र-शिक्षक -कर्मचारी सबके लिए .आपको बताते चलें कि वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालयएशिया के विशालतम विश्वविद्यालयों में पहली पायदान पर है. पूरे मनोयोग से हमारे कुलसचिव डॉ.बी .एल .आर्या जी के निर्देशन में विश्वविद्यालय से जुड़े सभी अधिकारी गण, हमारे सारे फैकेल्टी,कर्मचारी गण इस आयोजन को भव्य,सफल बनानें के लिए तत्पर थे .हमारे विभाग को भी कईजिम्मेदारियां मिली थी , आयोजन सफल रहा ।
दीक्षांत समारोह के अध्यक्ष
कुलाधिपति ,महामहिम राज्यपाल श्री बी .एल .जोशी जी और मुख्य अतिथि संघ लोकसेवा आयोग ,नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो.डी .पी .अग्रवाल थे.
अपनें अध्यक्षीय सम्बोधन में
कुलाधिपति ,महामहिम राज्यपाल श्री बी .एल .जोशी जी नें कुछ सवाल उठाए ।
उन्होंने कहा
कि समस्त विश्वविद्यालयों में दीक्षांत चाहे जिस रूप में हो लेकिन एक समानता हर जगह है और वहकी विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा उपाधि प्रदान करना । उन्होंने कहा कि अध्ययन समाप्ति के बाद उपाधि देतेसमय दिया जाने वाला उपदेश महज़ परिपाटी या औपचारिकता बन कर न रह जाये ,इसके लिए सभी को सोचनाहोगा .यह उपदेश जीवन -मूल्य हैं ,इन्हें जीवन में उतरना होगा।
उपदेश क्या हैं इन्हें विस्तृत देखें---------


दीक्षांत समारोह में मंचस्थ हमारे कुलपति जी, प्रो.रमेश चन्द्र सारस्वत ,
कुलाधिपति ,महामहिम राज्यपाल श्री बी .एल .जोशी जी और मुख्य अतिथि संघ लोक सेवा आयोग ,नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो.डी .पी .अग्रवाल (दायें से बाएं)

स्वागत करते कुलपति जी, प्रो.रमेश चन्द्र सारस्वत

माननीय विद्या परिषद के सदस्यगण
गोल्ड-मेडल प्रदान करते महामहिम जी
उपाधि प्राप्तकर्ता विद्यार्थी गण -
शोभा -यात्रा का एक दृश्य -

परिसर स्थित महात्मा गांधी जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण -

समारोह स्थल की ओर कुलपति जी के साथ आते हुए महामहिम कुलाधिपति जी-
सुरक्षा की जद्दो-जेहद-
सुरक्षा अधिकारियों का मनन-चिंतन-

विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर स्थापित पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर-प्रदेश, स्व .वीर बहादुर सिंह जी की प्रतिमा-


दीक्षांत समारोह में सभी के स्वागत के लिए तैयार विश्वविद्यालय-



शनिवार, 16 जनवरी 2010

डी.एन . ए. के पन्नो पर खिचड़ी : लाई-चूड़ा -कंद-तिलवा और नौपेडवा का पेड़ा.


लखनऊ से प्रकाशित सम्मानित हिन्दी दैनिक डेली न्यूज एक्टिविस्ट के पन्नो पर "ब्लॉग गुरु "कालम में मेरी जल्द की प्रकाशित पोस्ट खिचड़ी : लाई-चूड़ा -कंद-तिलवा और नौपेडवा का पेड़ा..पर आज चर्चा हुई है .मेरे साथ ही सीमा सचदेव जी के ब्लॉग "नन्हा मन " ,डॉ टी एस दराल साहब के ब्लॉग "अंतर्मंथन" और श्री जी केअवधिया जी का उल्लेख भी डी. एन. ए .के पन्नो पर है .

बुधवार, 13 जनवरी 2010

खिचड़ी : लाई-चूड़ा -कंद-तिलवा और नौपेडवा का पेड़ा.

खिचड़ी (मकर-संक्रांति ) की पूर्व संध्या पर आज अभी शाम को विश्वविद्यालय से घर आते समय रास्ते की बाजारोंमें भारी भीड़ को देख कर मुझे बचपन की याद गयी.आज-कल जैसे बच्चे क्रिसमस के दिन सान्ताक्लाज़ की यादगिफ्ट के लिए करते है ,बचपन में हम लोगखिचड़ी (मकर-संक्रांति ) के ठीक पहली वाली रात को उस लोमड़ी कीयाद करते सो जाते थे,जो कि ऊंट की पीठ पर लाद कर- लाई,चूड़ा , गट्टा,तिलवा और पेड़ा,हम लोंगों के लिए लातीथी और रात में हम सब के दरवाजों पर छोड़ जाती थी,लेकिन अफ़सोस यह कि उसे हम लोग कभी देख पाए।
गांव का जीवन और
गांव के लोग भी कितने अजीब हैं और चाहे जो हो,कितनी भी आर्थिक समस्याएं हों पर त्यौहारके उत्सव में कोई कमी नही . शहरों में तो पता ही नहीं चलता कि कब त्यौहार आये और गये.खिचड़ी के त्यौहार पर मंहगाई की हाल तो पूरा देश जान रहा है लेकिन धूम ऐसी कि हर कोई अपने परिवार के लिए यह सब लेना चाहता है.हम लोंगो के यहाँ एक रिवाज है-पुरातन परम्परा चली आ रही है कि खिचड़ी में हर घर वधू के नैहर से खिचडीआती है.यह है सामाजिक सरोकार का अद्भुत नमूना.ऐसे में कोई भी घर नहीं बचता जहाँ से खिचड़ी आती-जातीहो.दो - तीन दिन से देखता हूँ खिचडी पहुचाने वालों से सड़के पटी पडी हैं,हर किसी को जाने की जल्दी है अपने बहनके घर. खिचड़ी वाले दिन सुबह -सबेरे आग के चारो ओर घेर कर खिचड़ी में आए सुस्वादु व्यंजनों के अद्भुत स्वाद सेसभी दो -चार होते हैं
इस व्यावसायिक युग में,भीषण मंहगाई के बावजूद सामाजिक परम्पराएँ हम सब पर भारी हैं. गावं की बाजार मेंसब कुछ ताज़ा उपलब्ध है.हमारे यहाँ का पेड़ा पूरे जनपद में मशहूर है ,ऐसी खोये की मिठाई जो कि लाई चूड़ा केस्वाद को चार -चाँद लगा देती है .हमारे बाज़ार के हरी काका हैं पेड़ा वाले .चीनी का दाम भले ही आसमान छू लेलेकिन यह मिठाई वह उसी गुणवत्ता के साथ पुराने दामों पर ही बेच रहे है और वाकई आज मैंने भी खाया ,वहीस्वाद -वही दाम पुराना.मैंने कहा काका दाम नही बढ़ाया ,उन्होंने कहा भइया क्या हम जमाखोर हैं .अरे,यह सबकात्यौहार है ,कैसे लोंगो को निराश करें. हमे उतना ही चाहिए जितने में चल जाय, क्या करेंगे दाम बढ़ा कर लेकिन हाँअगर चीनी ५० रूपये के ऊपर गयी तब तो इस दाम में खिला पाएंगे .त्योहारों के प्रति यह समर्पण देख मन बाग़बाग हो उठा.हरी काका का ही कमाल है कि इस त्यौहार में भी चीनी हम लोंगों को कडवी नहीं लग रही है.बच्चो कातो उत्साह आज चरम पर है लाई-चूड़ा -गट्टा तो नानी के यहाँ से ही गया है और पतंग तो पिछले १५ दिन सेइकट्ठा की ही जा रही थी ,अब दो-तीन दिन धूम मचेगी।
खिचड़ी के समय हमारे बाज़ार नौपेडवा में आज शाम के बजे की कुछ चित्रमय झांकी देखें- - - -
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(लाई -चूड़ा -गट्टा से सजी दुकानें और खरीददारी करते लोग )
(ताजे गुड का तिलवा)

(नौपेडवा का ताज़ा
पेड़ा,जिसके साथ लाई-चूड़ा खाने का मज़ा ही कुछ और है)
(त्यौहार पर भारी मांग को देखते हुए ,पेड़ा के साथ हरी काका पेड़ा वाले )
(हमें भी कंद लेना है -जल्दी करो भइया , शाम होने को है)

शनिवार, 9 जनवरी 2010

कांवर रथी :एक धार्मिक लोक परम्परा जो कि अब अवसान पर है .......


बचपन से ,जब से जानने-पहचानने की शक्ति विकसित हुई है,तब से देखता रहा हूँ की हर वर्ष जाड़े(माघ ) के महीनें में गंगोत्री (उत्तराखंड) से गंगा जल , छोटी-छोटी मनोहारी शीशियों में भर कर , कांवर में रख कर एक पंडित जी आते रहें है.वे इस परम्परा को आज भी ८१ वर्ष की अवस्था में भी बरकरार रखें हैं .आज और कल में फर्क बस इतना है कि अब कांवर की जगह टोकरी नें और शीशियों की जगह उसी रूप में प्लास्टिक के डिब्बियों नें ले लिया है
८१ वर्ष की उम्र में भी गजब की ताजगी लेकिन अब भविष्य में अपने आगमन के प्रति सशंकित भी.इस लिए अबकी बार पहली दफे वे अपनें नाती को भी ले आयें हैं अपने यजमानों से परिचित कराने.
नाम है पंडित पारस नाथ पैन्युली ,गांव -तिल पड़ ,पोस्ट-महर गांव( पट्टी गमरी) ,जिला-उत्तरकाशी (उत्तराखंड)
पहली बार इसी साल पंडित जी नें भी मोबाइल ले लिया है ९९९७२५६६४१ और ९९९७४७३३६वशिष्ठ गोत्रीय पंडित
जी अपने यजमानों के सुदीर्घ जीवन,धन,सम्पदा एवं ऐश्वर्य के लिए गंगोत्री से गंगा जल लेकर चलते हैं .प्रत्येक यजमान एवं उसके परिवार के लिए अलग-अलग गंगा जल की शीशी होती है.इन शीशीयों में रखे जल को अभिमंत्रित पूजा अपने यजमानों द्वारा करा कर ये महाशिव रात्रि पर्व पर बाबा बैजनाथ धाम (झारखंड)में भगवान भोले नाथ को अर्पित करते हैं.
(हमारे सुपुत्र चि.आयुष्मान ,पूरे परिवार की तरफ से गंगा जल शीशी की पूजा कराते हुए.)

यह परम्परा कब से है ,इसकी कोई ज्ञात तिथि या वर्ष किसी को भी पता नहीं है .संभवतः यह तब से जब से मानव
में धर्म के प्रति आस्था और लोकाचार का भाव विकसित हुआ होगा.इस देश मेंविभिन्न धर्मों,संस्कृतियों ,मतावलम्बियों का आवागमन रहा लेकिन इस धार्मिक लोक परम्परा को कोई तिरोहित कर पाया
इस कड़ाके की ठंड में अब भी परम्परा निर्वहन हेतु पंडित जी (कांवर रथी ) घर से निकल पड़ते हैं और पूरे तीन
माह बाद ही अपनें घर उत्तरकाशी लौट पाते हैं.इस मंहगाई के दौर में प्राप्त दक्षिणा से भी कुछ होने वाला नहीं है परन्तु यजमानों की कुशलता के लिए निष्काम भाव से यह आज भी पहले जैसे ही सक्रिय हैं.

पंडित जी नें बताया कि जब वे १५ साल के थे तभी से यहाँ मेरे घर रहे हैं और आज वे ८१ साल के हैं.उन्होंने
हमारे स्व.दादा जी "वैद्य प्रवर " पंडित उदरेश मिश्र एवं पिता जी स्व.डॉ राजेंद्र प्रसाद मिश्र के साथ बिताये पलों को भी आज ताजा किया.आज इतना लम्बा अनुभव लिए वे हम सब के साथ हैं.ऐसा नहीं है कि ये पुरोहित हर घर जाते हों ,बल्कि हर एक पुरोहित के पीढी दर पीढी एक यजमान है ये केवल उस परिवार तक ही अपने आपको सीमित रखते हैं .पंडित पारस नाथ जी नें बताया कि उनके पिता स्व.महाबीर प्रसाद एवं दादा स्व.हंसराज भी परम्परागत रूप से इस परिवार के पूर्वजों से जुड़े थे
पंडित जी अब वृद्ध हो चले हैं ,८१ की उम्र हो गयी,अब उनको लगता है पता नही आगे पाएंगे कि नहीं इसी लिए
इस धार्मिक परम्परा के अबाध गति से सञ्चालन हेतु इस बार वे अपने साथ अपने नाती पंडित ब्रह्मा नन्द जी को लेकर आयें है ,अपने यजमानों से मिलाने और उनका घर दिखाने.लेकिन नाती की अपनी अलग दुनिया है? पता नहीं इस आधुनिकता के दौर में उसे यह भाएगा?
"जानि शरद ऋतु खंजन आये " की तर्ज पर इन कांवर रथी लोंगो को देखकर हम सब भी बचपन से ही जान जाते थे
कि स्नान-ध्यान ,पुण्य का महीना "माघ " गया है.हमारी धर्म -परम्पराएँ ,हमारे लोकाचार कितनें विलक्षण हैं.
अब सवाल यह है कि आधुनिकता के दौर में यह परम्पराएँ कब तक चल पाएंगी?मुझे तो ऐसा लगता है कि
अवसान की ओर उन्मुख ये लोकाचार, अगले कुछ वर्षों में हम सब को विस्मृत हो जायेंगे?

मंगलवार, 5 जनवरी 2010

सावधान! क्या ब्लागिंग से खतरे भी हैं?????....

गत दिनों विश्वविद्यालय में दूरस्थ प्रदेश के एक प्रोफेसर साहब परीक्षा लेने आये थे.मेरी मुलाकात होने पर कुशल क्षेम के बाद बात शुरू हुई ,उसी समय उनका मोबाइल बजने लगा और फिर वे बात करने लगे.मुझे लगा कि वे कुछ परेशान से हैं .मैंने कहा कि तबियत ठीक है?उन्होंने कहा कि हाँ भी और नहीं भी.मैंने कहा मैं समझा नहीं .उन्होंने कहा कि मेरे पारिवारिक डाक्टर सलाह दे रहे हैं कि आप ब्लागिंग करना छोड़ दो.मैंने पूछा क्यों ? उन्होंने कहा की हमारे डॉ साहब का मानना है कि ब्लागिंग से भी मानसिक तनाव बढ़ता है और परिणामत : ब्लड प्रेशर की बीमारी..मैंने कहा अरे आप भी ,छोडिये इस सलाह को .ऐसा मैंने तो कहीं नही देखा-सुना.उन्होंने कहा कि मैं नई उम्र के लोंगों के लिए यह बात नहीं कर रहा हूँ लेकिन जो लोग 45 के पार के हैं उनकेस्वास्थ्य लिए ब्लागिंग खतरनाक हो सकती है.
उन्होंने बताया कि आजकल ह्रदय रोग विशेषज्ञ जब मानसिक तनावों की बात करतें हैं तो उसमें काम का तनाव , पारिवारिक तनाव ,डिप्रेशन , चिंता के साथ-साथ पढ़े लिखे रोगियों से ब्लागिंग के बारे में भी पूछना शुरू कर दिया है .मैंने पूछा कि ब्लागिंग से हार्ट का क्या सम्बन्ध है,उन्होंने कहा कि जब आप कोई पोस्ट लिखतें हैं तो हो सकता है वह स्वान्त : सुखाय आप लिख रहें हों पर जब उस पर टिप्पड़ियाँ शुरू होतीं है ,जो कि कहीं न कहीं आपको तनाव ग्रस्त बना के ही जातीं हैं .मुझे लगा कि क्या ये सही कह रहे हैं ?मैंने अपने विभाग के कुछ विद्यार्थियों के जिम्मे काम का आवंटन कर दिया और उनसे कहा कि इस विषय पर एक सर्वेक्षण कर यथार्थ का पता किया जाय कि क्या यह वाकई में सही हो सकता है? विभाग के छात्रों नें बहुत मुश्किल से कुछ वरिष्ठ (ब्लॉग जगत पर नहीं, उम्र के हिसाब से ) ब्लागर्स को इस अध्ययन के लिए तैयार किया .सर्वेक्षण आनें पर परिणाम चौकाने वाला रहा-जिन के ब्लाग पर जिस दिन अच्छी टिप्पणी मिली ,ज्यादा की संख्या में मिली ,वे तो दिन भर उमंग में थे एकदम तनाव रहित और उनका ब्लड प्रेशर भी नार्मल रहा लेकिन जिस दिन उनके ब्लॉग पर मन मुताबिक टिप्पणी या यूँ कहिये एक भी टिप्पणी नहीं मिली उसके दूसरे या तीसरे दिन वे कुछ तनाव में और ब्लड प्रेशर कुछ हाई या फिर लो पाया गया .सबसे ज्यादा मानसिक तनाव या हाई ब्लड प्रेशर के शिकार वे लोग पाए गये जिनके ब्लॉग पर अनामी- बेनामी लोंगों नें भद्दे कमेन्ट किये थे . इस सम्बन्ध में हमारे प्रोफ़ेसर साहब की स्पष्ट सलाह है कि ब्लोगिंग छोड़ देने से ही इस तनाव जनित बीमारी का इलाज संभव है, वर्ना कब तक दवा खाई जायेगी.मैंने कहा यह तो हो ही नहीं सकता कोई दूसरा विकल्प बताइए जिससे ब्लागिंग भी की जाय और तनाव-हाई ब्लड प्रेशर से भी बचा जाय. उन्होंने कहा की फिर टिप्पणी बंद कर दें , टिप्पणी आयेगी तनाव होगा.मैंने कहा की इस विकल्प को भी नहीं माना जा सकता क्योंकि जब साधुवाद ही नहीं मिलेगा तो लिखने से फायदा ही क्या? आपकी राय लोग मानेंगे तब तो ब्लाग जगत की रौनक ही चली जायेगी.
परस्पर विरोधी वक्तव्यों के चलते इस सर्वेक्षण का
अंतिम निष्कर्ष हमारे छात्र प्रकाशित नहीं कर प़ा रहे हैं. ,क्या आप सुधी जन इसमें कुछ सलाह दे सकतें है कि ब्लॉग जगत पर सक्रिय रहने के साथ मानसिक तनाव और ब्लड प्रेशर के खतरे से कैसे बचा जाय ??

रविवार, 3 जनवरी 2010

निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा -

अज़ब संयोग है | आज लम्बे अन्तराल के बाद अचानक पोस्ट लिखने को मन हो आया और वह भी श्री गणेशचतुर्थी को| हमारे पूर्वांचल में , हर घर -महिलाएं दिन भर से निरा जल व्रत हैं ,पुत्र के लम्बे और यशस्वी जीवन केलिए , आज निरा जल ,चाँद देखने की ललक है|बिना चाँद देखे तो पूजा होगी और ही पूजा का फल मिलनेवाला | हालाँकि मौसम और घने कुहरे को देखते हुए बुजुर्गों नें चंद्रोदय का समय .२० बता कर व्रत पूरा करनें की सलाह दे डाली है लेकिन मैं पूरे गाँव का चक्कर लगा आया हूँ कोई भी बगैर चाँद देखे यह शार्टकट मारनें के मूड में नहीं है, क्योंकि घर की इन जिम्मेदार महिलाओं को पता है कि गणेश जी हमारी धर्मं एवं संस्कृति में विघ्न विनाशक हैं, शुभता और मंगल के प्रतीक | बिना आपके सुमिरन के घर में कुछ भी मंगल सम्पादित नहीं होता .
इस
व्रत की कथा लिखूंगा तो पोस्ट लम्बी हो जायेगी फिर भी इतना तो समझ ही लीजिये की हमारे धर्मं में अस्सी प्रतिशत व्रत कहीं कहीं भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती से जुड़े हैं सो यह व्रत भी उन्ही से जुड़ा है ,जिसका सम्बन्ध पुत्र की लम्बी आयु से है|
हमारे समाज में पुत्र जन्म से लेकर संपूर्ण जीवन को सुखमय बनाने के लिए कितने उपाय किये गयें हैं| जन्म के समय गाये जाने वाले लोकगीत (सोहर)में कितनी उम्मीदें ,कितने सपने जुड़े होतें हैं | राजा और रंक दोनों के लिये एक ही गीत,एक ही उम्मीद और अभिलाषा | आज कितनें सपनों को पूरा कर पा रहें हैं हम और हमारे समाज के चरित नायक ?आज गणेश चतुर्थी के दिन इस आंचलिक लोक गीत को अवश्य सुनियेगा जिसे मैं बचपन से सुनता रहा हूँ , मुझे यह आज भी पहले जैसा ही लुभावना लगता है -----