कल यानि २० जनवरी ,वसंत-पंचमी को हमारे विश्वविद्यालय का १३ वां दीक्षांत समारोह था .वैसे भी वसंत-पंचमीको हमारे विश्वविद्यालय का स्थापना दिवस भी है, उस पर दीक्षांत ,एक विशाल उत्सव का दिन ,विश्वविद्यालय सेजुड़े सभी -छात्र-शिक्षक -कर्मचारी सबके लिए .आपको बताते चलें कि वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालयएशिया के विशालतम विश्वविद्यालयों में पहली पायदान पर है. पूरे मनोयोग से हमारे कुलसचिव डॉ.बी .एल .आर्या जी के निर्देशन में विश्वविद्यालय से जुड़े सभी अधिकारी गण, हमारे सारे फैकेल्टी,कर्मचारी गण इस आयोजन को भव्य,सफल बनानें के लिए तत्पर थे .हमारे विभाग को भी कईजिम्मेदारियां मिली थी , आयोजन सफल रहा ।
दीक्षांत समारोह के अध्यक्ष कुलाधिपति ,महामहिम राज्यपाल श्री बी .एल .जोशी जी और मुख्य अतिथि संघ लोकसेवा आयोग ,नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो.डी .पी .अग्रवाल थे.
अपनें अध्यक्षीय सम्बोधन में कुलाधिपति ,महामहिम राज्यपाल श्री बी .एल .जोशी जी नें कुछ सवाल उठाए ।
उन्होंने कहा कि समस्त विश्वविद्यालयों में दीक्षांत चाहे जिस रूप में हो लेकिन एक समानता हर जगह है और वहकी विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा उपाधि प्रदान करना । उन्होंने कहा कि अध्ययन समाप्ति के बाद उपाधि देतेसमय दिया जाने वाला उपदेश महज़ परिपाटी या औपचारिकता बन कर न रह जाये ,इसके लिए सभी को सोचनाहोगा .यह उपदेश जीवन -मूल्य हैं ,इन्हें जीवन में उतरना होगा।
उपदेश क्या हैं इन्हें विस्तृत देखें---------
दीक्षांत समारोह में मंचस्थ हमारे कुलपति जी, प्रो.रमेश चन्द्र सारस्वत , कुलाधिपति ,महामहिम राज्यपाल श्री बी .एल .जोशी जी और मुख्य अतिथि संघ लोक सेवा आयोग ,नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो.डी .पी .अग्रवाल (दायें से बाएं)
स्वागत करते कुलपति जी, प्रो.रमेश चन्द्र सारस्वत
माननीय विद्या परिषद के सदस्यगण
गोल्ड-मेडल प्रदान करते महामहिम जी
उपाधि प्राप्तकर्ता विद्यार्थी गण -
शोभा -यात्रा का एक दृश्य -
परिसर स्थित महात्मा गांधी जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण -
समारोह स्थल की ओर कुलपति जी के साथ आते हुए महामहिम कुलाधिपति जी-
सुरक्षा की जद्दो-जेहद-
सुरक्षा अधिकारियों का मनन-चिंतन-
विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर स्थापित पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर-प्रदेश, स्व .वीर बहादुर सिंह जी की प्रतिमा-
दीक्षांत समारोह में सभी के स्वागत के लिए तैयार विश्वविद्यालय-
दीक्षांत समारोह के अध्यक्ष कुलाधिपति ,महामहिम राज्यपाल श्री बी .एल .जोशी जी और मुख्य अतिथि संघ लोकसेवा आयोग ,नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो.डी .पी .अग्रवाल थे.
अपनें अध्यक्षीय सम्बोधन में कुलाधिपति ,महामहिम राज्यपाल श्री बी .एल .जोशी जी नें कुछ सवाल उठाए ।
उन्होंने कहा कि समस्त विश्वविद्यालयों में दीक्षांत चाहे जिस रूप में हो लेकिन एक समानता हर जगह है और वहकी विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा उपाधि प्रदान करना । उन्होंने कहा कि अध्ययन समाप्ति के बाद उपाधि देतेसमय दिया जाने वाला उपदेश महज़ परिपाटी या औपचारिकता बन कर न रह जाये ,इसके लिए सभी को सोचनाहोगा .यह उपदेश जीवन -मूल्य हैं ,इन्हें जीवन में उतरना होगा।
उपदेश क्या हैं इन्हें विस्तृत देखें---------
दीक्षांत समारोह में मंचस्थ हमारे कुलपति जी, प्रो.रमेश चन्द्र सारस्वत , कुलाधिपति ,महामहिम राज्यपाल श्री बी .एल .जोशी जी और मुख्य अतिथि संघ लोक सेवा आयोग ,नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो.डी .पी .अग्रवाल (दायें से बाएं)
स्वागत करते कुलपति जी, प्रो.रमेश चन्द्र सारस्वत
माननीय विद्या परिषद के सदस्यगण
गोल्ड-मेडल प्रदान करते महामहिम जी
उपाधि प्राप्तकर्ता विद्यार्थी गण -
शोभा -यात्रा का एक दृश्य -
परिसर स्थित महात्मा गांधी जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण -
समारोह स्थल की ओर कुलपति जी के साथ आते हुए महामहिम कुलाधिपति जी-
सुरक्षा की जद्दो-जेहद-
सुरक्षा अधिकारियों का मनन-चिंतन-
विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर स्थापित पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर-प्रदेश, स्व .वीर बहादुर सिंह जी की प्रतिमा-
दीक्षांत समारोह में सभी के स्वागत के लिए तैयार विश्वविद्यालय-
दीक्षांत समारोह की विस्तृत रिपोर्ट के लिए हार्दिक शुक्रिया ! आज डिग्रिया ही महज औपचारिकता बन कर रह गई है समारोह की तो बात छोडिये ! अब देखिये न जिन छात्रों ने इन डीम्ड यूनिवर्सिटी से डिग्रियां ली , वे महज ही औपचारिकता मात्र बन गई , हमारे इन देश संचालको की मेहरबानी से , पहले मोटे पैसे खाकर मान्यता दी , अब .....? क्या बोलू ?
जवाब देंहटाएंऔर उसके बाद ये करोडो रूपये डकारेंगे छात्रो द्वारा आत्महत्या रोकने के उपाय करने में :)
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तृत विवरण दिया आपने. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
-------विश्वविद्यालय की तस्वीर देख कर मैं तो मंत्र मुग्ध हो गयी ,और जहाँ तक महामहिम जी की चिंता है वह जायज है----
जवाब देंहटाएंदीक्षांत समारोहों का जिक्र आता है तो मुझे हमेशा ओशो के शब्द याद आते हैं. बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों के दिग्गज किस्म के कर्ता-धर्ता गण ऐसे लिबास में नजर आते हैं जो किसी भी ड्रामाकम्पनी के लिये प्रेरणा का बड़ा स्त्रोत हो सकता है. कुलपति, उपकुलपति हों या नवदीक्षित, सभी ऐसी वेशभूषा बनाते हैं जो किसी सर्कस में भी विदूषकों के अलावा किसी और पर जंच नहीं सकती.
जवाब देंहटाएंशिक्षा के प्रांगण से ये बेवकूफ़ियां अब विदा होनी चाहिये.
हास्यास्पद चित्र और मनोरंजक पोस्ट. :o)
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार ।
जवाब देंहटाएं---मेरे ख्याल से दीक्षांत के बारे में उपरोक्त संदर्भित ओशो का विचार सटीक नहीं है क्योंकि यह परम्परा तो आदि कालीन है ,सभ्य मानव समाज से ,ओशो के बहुत-बहुत पहले से --
जवाब देंहटाएंदीक्षांत समारोह में अपने आचार्य,कुलपति और कुलाधिपति के हाथों उपाधि लेना तो हर पढने-लिखने वाले विद्यार्थी का सपना होता है-----
कल जो कुछ भी कहा महामहिम राज्यपाल महोदय ने वह चिंतनीय है,की हम सिर्फ शपथ लेते समय कहते है की हम प्रतिज्ञा करते है की हम इस का पालन करेंगे , न की आपने सम्पूर्ण जीवन में उसको उतारते है ......
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट काफी अच्छी लगी इसमें हमें वह भी देखने का मौका मिला जिसे हम संगोष्ठी भवन में रहते हुए नहीं देख सकते थे आप का आभार ...
भव्यता और अलंकारिकता से ज्ञान चक्षु चुधियाये !
जवाब देंहटाएंआकर्षक चित्रावली
सुना ,देखा और फिर ज़िन्दगी की जद्दो जेहद जारी हो जाती है ..पर होता है यह ही ..
जवाब देंहटाएंपरिपाटियां कुछ समय बाद शरीर से लटके लोथड़े सी हो जाती है।
जवाब देंहटाएंडॉ मिस्र जी, दीक्षांत समारोह में ली गई शपथ एक औपचारिकता है। निर्भर इस बात पर करता है की आप इसे कितना सीरियसली लेते हैं और कितना पालन करते हैं।
जवाब देंहटाएंआज छात्रों में मानवीय मूल्यों की कमी नज़र आती है।
यह शायद बढती व्यावसायिकता की वज़ह से है, जहाँ पैसे की कीमत , मूल्यों से ज्यादा आंकी जाति है।
हमें तो डिग्री हमारे ऑफिस के क्लर्क ने दी थी।
सर !
जवाब देंहटाएंअब तो औपचारिकताएँ ही ढोई जा रही हैं ...
शिक्षा विभाग हो या न्यायालय , शपथ की हकीकत सबके सामने ही है ...
kya baat hai sir, Ekdam live reporting. Main to yadon men kho gaya. itne dino baad fir se university ko dekhna adbhut anubhav.
जवाब देंहटाएंसभी चित्र बहुत सुंदर लगे, जानकारी भी बहुत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
ांअज के इस युग मे औपचारिकता के सिवा रहा ही क्या है। सरकार जब शपथ लेती है तो एक औपचारिकता मात्र होती है फिर सरकार के बाकी विभाग भी तो औपचारिकता ही निभायेंगे? बहुत सार्थक विषय पर सवाल उठाया है जो आने वाली पीढियों को झूठ बोलने का सन्देश देता है धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबढ़िया सार्थक विचारणीय प्रस्तुति के लिए आभार....
जवाब देंहटाएंकभी-कभी मुझे भी लगता है कि हम औपचारिकता व आडंबर पसंद लोगों के समाज हैं. चाहे चिकित्सक, पुलिस आदि की ’ओथ’ की बात हो या शासकीय, संवैधानिक पद सम्हालने के समय की ’शपथ’ सब औपचारिकता मात्र बन जाता है, थ्योरी और प्रैक्टिकल मे बहुत अंतर है हमारे यहाँ, और सामाजिक रूप से स्वीकार्य भी, क्या इसी समाज मे कभी ’प्राण जाय पर बचन न जाई’ को शब्दशः जीवन मे उतारा जाता था?..याद आती है महाभारत मे युधिष्ठिर की बालशिक्षा का आधा पाठ- मैं सदैव सच बोलूँगा’!
जवाब देंहटाएंसुंदर सचित्र दीक्षांत समारोह की चर्चा.
रस्म अदायगी तो हर जगह है...मगर बहुत कुछ मिल भी जाता है...इन प्रोग्रामों से....सार सार को गहि रहे थोथा देई उडाय....!
जवाब देंहटाएंबहुत विस्त्रात रिपोर्ट है .......... ये बात सच है की आज हर चीज़ में आडंबर बढ़ता जा रहा है ..... ओपचारिकता मात्र रह गयी है ..........
जवाब देंहटाएंGantantr diwas kee dheron badhayee ho!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति के लिये आभार एवं शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं'दीक्षांत समारोह 'भी मात्र एक ओपचारिकता बन कर रह गया है.ये उपदेश को याद भी नहीं रह पाते..
जवाब देंहटाएंउन्हें जीवन में उतारने की बात बहुत दूर है.रस्म अदायगी ही तो रह गये हैं ये आयोजन.
प्रस्तुत लेख में सही चिंतन है.
-विश्वविद्यालय की तस्वीर बहुत सुंदर हैं और पोस्ट की प्रस्तुति भी आकर्षक.
सुन्दर फोटो देख डाले।
जवाब देंहटाएं