बचपन से ,जौनपुर जाते -आते एक वीरान इमारत को देखता-समझने की कोशिश करता लेकिन बात भूतों -प्रेतों पर आकर टिक जाती. सन १३६१ इस्वी के बाद जौनपुर में शर्की वंश के राज काल में बनी इमारतों में "बारादुअरिया " भी है लेकिन इतिहास के पन्नो में वास्तुकला के इस धरोहर को क्यों स्थान नहीं मिला मुझे समझ में नहीं आ रहा.जौनपुर -लखनऊ राज मार्ग पर जौनपुर शहर के पूरब सड़क से लगभग ३०० मीटर पर यह " बारादुअरिया " स्थित है. कहते हैं यह राजवंश की रानियों का स्नानागार था या फिर सदानीरा गोमती से सटा होने के कारण रनिवास की रानियाँ यहाँ प्राकृतिक छटा का अवलोकन करने आती थी .जो भी हो लेकिन आश्चर्य है कि जौनपुर के इतिहास लेखन में भी इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
दन्त कथाओं में कहा जाता है कि इस भवन के अन्दर बीचो -बीच एक बहुत गहरा कुआँ हुआ करता था और भवन के गुम्बज के बीचो-बीच सोनें का एक घंटा बंधा था, जिसे निकालने के चक्कर में एक चोर मगरगोह की मदत से घंटे तक पहुच गया था लेकिन घंट का वजन मगर गोह नहीं सभाल सका और घंट समेत कुएं में जा गिरा था,कुएंको इसके बाद समाप्त कर दिया गया। इस भवन में नाप-जोख कर कुल बारह दरवाजे हैं शायद इसीलिये इसे बारादुअरिया कहा गया.दंतकथाओं में भूत-प्रेतों से जुडी इतनी कहानियाँ इस कारण लोग इस तरफ आनें से कतराते रहे ,यहाँ अब केवल सांपो और मगर गोह का ही राज है। इस बारे में फिर कभी विस्तृत रपट प्रस्तुत करूंगा अभी तो इसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का अध्ययन मैंने शुरू ही किया है.जो भी हो लेकिन वास्तु कला का बेजोड़ नमूना यह भी है जिसका अवलोकन आप चित्रों में भी कर सकते हैं- '
(सभी चित्र -जावेद अहमद )
दन्त कथाओं में कहा जाता है कि इस भवन के अन्दर बीचो -बीच एक बहुत गहरा कुआँ हुआ करता था और भवन के गुम्बज के बीचो-बीच सोनें का एक घंटा बंधा था, जिसे निकालने के चक्कर में एक चोर मगरगोह की मदत से घंटे तक पहुच गया था लेकिन घंट का वजन मगर गोह नहीं सभाल सका और घंट समेत कुएं में जा गिरा था,कुएंको इसके बाद समाप्त कर दिया गया। इस भवन में नाप-जोख कर कुल बारह दरवाजे हैं शायद इसीलिये इसे बारादुअरिया कहा गया.दंतकथाओं में भूत-प्रेतों से जुडी इतनी कहानियाँ इस कारण लोग इस तरफ आनें से कतराते रहे ,यहाँ अब केवल सांपो और मगर गोह का ही राज है। इस बारे में फिर कभी विस्तृत रपट प्रस्तुत करूंगा अभी तो इसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का अध्ययन मैंने शुरू ही किया है.जो भी हो लेकिन वास्तु कला का बेजोड़ नमूना यह भी है जिसका अवलोकन आप चित्रों में भी कर सकते हैं- '
(सभी चित्र -जावेद अहमद )
बहुत सुंदर विवरण, ओर अति मन मोहक चित्र,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वाह, इस पर तो कभी ध्यान ही नहीं गया था।
जवाब देंहटाएंबढिया जानकारी।
मिश्रा जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर आलेख और उतने ही मोहक चित्र.
"मगर गोह" के बारे में भी सचित्र जानकारी दे सकें तो आभार! धन्यवाद!
चित्र सुंदर हैं। नदी किनारे के भवन हमेशा आकर्षक होते हैं। शायद भूतों के भय ने ही इसे अब तक बचा रखा है।
जवाब देंहटाएंफोटो तो जोरदार हैं
जवाब देंहटाएंPost to sundar haihi..tasveeren,ek pur kashish gudhta liye nazar aati hain...bahut der tak dekhti rahi..
जवाब देंहटाएंinke bare me bahut suna hai par kabhee jana naheen ho paya .dr .sahab ummeed hai jab milenge to sab janenge .
जवाब देंहटाएंमनोज जी पूर्वांचल में ऐसे बहुत से ऐतिहासिक धरोहर आज भी वास्तुकला के बेहतरीन नमूने प्रस्तुत करते है....आपकी कड़ी बहुत अच्छी लगी..राजा-महाराजा से जुड़े ऐसे ऐतिहासिक जगह पर भूत-प्रेत का वास होता ही है ऐसा लोगो की मान्यताएँ है..
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति..बधाई
सर्वप्रथम तो जन्म दिन की ढेरों शुभकामनाएँ....
जवाब देंहटाएं"बारादुअरिया " के चित्र इसकी विशालता और दुर्दशा की कहानी स्वतः कहते हैं...
..इस पोस्ट को देखकर एक बात यह भी समझ में आती है कि हमारे आसपास कितना कुछ है देखने, समझने और बताने के लिए..!
..आभार.
ये घड़ी का क्या चक्कर है..? इस समय मेरी घड़ी में १६ मई प्रातः ६.३० हुआ है...देखे कमेन्ट के बाद क्या समय दिखाता है..!
जवाब देंहटाएंसुन्दर विवरण .. सुन्दर चित्र
जवाब देंहटाएंजन्मदिन पर बधाइयाँ। मुझे तो यह जगह और इसका परिचय एक बहुत बढ़िया कथा का विषय लग रहा है।
जवाब देंहटाएंक्या पता उस चोर की प्रेमिका ने घंटा उतारने की शर्त लगाई हो ? जिस समय घंटा उतारा जा रहा हो प्रेमिका ने ही गोह को कुछ कर दिया हो!
आपने गोमती के दर्शन भी करा दिए और बारादुअरिया के भी , सुन्दर चित्रों सहित । ईमारत का अन्दर का भाग तो बड़ा खूबसूरत लगता है , नक्काशी वाला । आभार ।
जवाब देंहटाएंइसमें भूत-वूत नहीं हैं, नहीं तो फोटू खिंचवाने आ जाते।
जवाब देंहटाएंनई जानकारी मिली।
बहुत ही रोचक स्थल लगा.
जवाब देंहटाएंचित्र देख कर लग रहा है कि काफी चहल पहल वाली जगह रही होगी कभी.
क्या अब भी कहीं वो गहरा कुआं इस में है?
सोने के घंटे की क्या किसी ने तलाश नहीं की उस कुएं में जा कर ?जैसे जयगढ़ किले में छुपे खजाने को तलाशा गया था!
अब तो बहुत सारी आधुनिक सुविधाएँ हैं.
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पानी में पोसिटिव उर्जा होती है इसलिए पानी के पास की जगह में भूत [मतलब नेगटिव उर्जा ]नहीं टिक सकते.
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इस स्थान का अध्ययन आप ने शुरू किया है.शुभकामनाये.
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दन्त कथाये सब झूटी नहीं होतीं..गुम्बज पर घंटा था या नहीं इस के भी चित्र देख कर अनुमान लगाया जा सकेगा.
सबसे पहले जन्मदिन की हार्दिक शुभ-कामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विवरण, ओर अति मन मोहक चित्र,
धन्यवाद
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
इसे दिखाने के लिये बुलवाइये.. तभी मानेंगें.....
जवाब देंहटाएंआदरणीय पंडितजी, आप हमें अत्यंत प्रिय इसीलिए हैं कि आपके ब्लॉग पर जब भी आना होता है दिल खुश ही होकर और दिमाग बहुत कुछ पाकर ही जाता है। सच पंडितजी इस ऊब और झगड़े-टंटों से भरे गर्म रेगिस्तानी जंगल में आपका सुंदर ब्लॉग और लेख शीतल फ़ुहारें लेकर आते हैं।
जवाब देंहटाएंतमसा तट, कनक भवन, रामजी और उनके ५ हज़ार सैनिक, गौरैया और मक्के के दाने, प्यारे मित्र से बरसों बाद मिलन,परशुराम कथा, कुमारियों की कमी, बारादुअरिया की बेजोड़ वास्तुकला और उसकी सुन्दर तस्वीरें। आज सब पढ़ा। अहा!
आपका आभार कैसे चुकाएँगे हम पंडितजी ?
आज अक्षय तृतीया महापर्व पर आपको और आपके प्रियजनों को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं प्रणाम।
जन्मदिवस की हार्दिक बधाई मिस्र जी ।
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें स्वीकारें।
जन्मदिन और भगवान परशुराम जयंती अवसर पर हार्दिक शुभकामनाये .
जवाब देंहटाएंभुतहा इमारत में इतनी खोयी कि जन्मदिवस की बधाई देना भूल गयी थी.
जवाब देंहटाएंआप को जन्मदिवस की ढेरों शुभकामनाएं .
डॉ मनोज मिश्र जी आप को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई और ढेरो शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंजौनपुर देखना होगा!
जवाब देंहटाएंचित्र देख भूतों से ईर्ष्या होती है।
बधाई जन्म दिन की मनोज जी।
देर से सही, जन्म दिन मुबारक हो. बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंपोस्ट के माध्यम से अच्छी जानकारी मिली. आगे विस्तार का इन्तजार रहेगा.
फोटो बहुत बढ़िया हैं.
जनमदिन की ढेरो बधाई और शुभकामनाये!
जवाब देंहटाएंचलिए आपने इतिहास लिख दिया !
जवाब देंहटाएंअब इतिहास वाले भी नोटिस कर लेंगे !
.......
चित्र बड़े मोहक हैं ! आभार !
बढ़िया रिपोर्टिंग डाक्टर साहब .........आगे की जानकारी कब दे रहे है " बारादुअरिया " के बारे में ??
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक आलेख
जवाब देंहटाएंजनमदिन की ढेरो बधाई और शुभकामनाये!
regards
सुंदर विवरण ओर सुंदर चित्र
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी मिली
शुभकामनाये
आप तो फोटो खिंच लाये, आपको डर नहीं लगा... ?
जवाब देंहटाएंब्लॉग्गिंग जो ना करवाए :)
देखिये गिरिजेश भैया को कहानी भी दिख गयी... बढ़िया.
मुझे नहीं पता था की जौनपुर में ये सब भी है । आपकी पोस्ट से मुझे मालूम हुआ । सुन्दर पोस्ट और साथ ही जावेद सर की फोटोग्राफी के क्या कहने अदभुत......
जवाब देंहटाएंदेश में ऐसे अनेक स्थल हैं जो ऐतिहासिक महत्त्व के हैं, लेकिन उपेक्षित हैं.एक ऐसे ही स्थल की जानकारी आपने दी है.
जवाब देंहटाएंआपको कोई भूत मिला कि नहीं?
जवाब देंहटाएं--------
क्या हमें ब्लॉग संरक्षक की ज़रूरत है?
नारीवाद के विरोध में खाप पंचायतों का वैज्ञानिक अस्त्र।
bahut dilchasp baat batai..photoes bhi bahut achche lage.
जवाब देंहटाएंnice fotu
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रविष्टि ! बहुत कुछ जानने को मिला !
जवाब देंहटाएंphoto ko dekh kar darr sa laga !!!
जवाब देंहटाएंhttp://liberalflorence.blogspot.com/
http://sparkledaroma.blogspot.com/
apne to utsukta badha di. Jaunpur ko kafi samay se janta hoon par iske baare me kabhi suna nahi tha. Achcha laga.
जवाब देंहटाएंab to mujhe bhi baraduariya dekhana hi padega
जवाब देंहटाएंpls is subject par aur jayada batane ki kripa kare (amit jayswal)
topic padke hi hum to dar hi gaye
जवाब देंहटाएंसुन्दर विवरण और आकर्शक तस्वीरें। आपको जन्म दिन की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमुझे ऐसे रहस्यमय स्थल ...खंडहर जिनमें पुराना इतिहास छिपा ही बहुत अच्छे लगते हैं ! बचपन में ऐसी जगह जाकर बारीकी से देखने का प्रयत्न करता था ...मन करता था की काश मैं भी पुरातत्ववेत्ता होता !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया आपने और विवरण भी रोचक, आभार ।
जवाब देंहटाएंकहाँ खोए-खोए से हैं?
जवाब देंहटाएंbahut achchhi post lagayi aapne isake baare aur kuchh bataaayen ... saaree photo tilism ki ek duniya dikha rahin hain .jis samay ko hamane nahin deklha vah tilismee hi to lagataa hai ..
जवाब देंहटाएंThe post is very interesting but I want to know where have you been lost for so many months ?
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इस जानकारी के लिए !
जवाब देंहटाएंमनोज मिश्र जी आपका ब्लॉग मैंने पढ़ा बहुत बहुत अच्छा लगा. आपकी फोटो का संग्रह भी बहुत पसंद आया. बहुत बहुत सुभकामना मिश्र जी. मेरे ब्लॉग को भी देखिएगा. देवकी नंदन मिश्र
जवाब देंहटाएंwww.mishradeoki.blogspot.com
ham chahate hai ki shighrat shighra is visay ki vistrit vyakhya karein
जवाब देंहटाएंham chahate hai ki shighrat shighra is visay ki vistrit vyakhya karein
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