पुरानी फ़िल्मी कहानियों में मिलन के लिए अक्सर कुम्भ मेले का सदुपयोग होता था लेकिन अब ब्लॉग-जगत के महाकुम्भ नें मुझे मेरे मित्र से मिला दिया.मैं बात कर रहा हूँ अपनें सहपाठी मित्र अभय तिवारी की,जो कि मेरे साथइलाहाबाद विश्वविद्यालय के डायमंड जुबिली हास्टल में १९८५ से १९८९ तक साथ रहे थे.हम दोनों का एक ही सत्र में हास्टल में प्रवेश, साथ-साथ नंग-धडंग रैगिंग -साथ ही साथ -पढाई ,-लड़ाई वामपंथ-दक्षिण पंथ के मुद्दों पर बहस आदि-आदि.अभय वामपंथी विचारधारा के सजग प्रहरी थे और मैं दक्षिणपंथी.दोनों के अलग-अलग मत -तर्क लेकिन कई एक मुद्दों पर समानता के चलते मित्रता कायम रही .१९८९ से जो हम बिछड़े तो अब २०१०में पूरे २१ वर्षों बाद ,ब्लॉग पर मिले. हालाँकि मैं अभय के ब्लॉग से परिचित था लेकिन ब्लॉग पर लगी हुई उनकी तस्वीर ऐसी है कि स्पष्ट नही होता था.होली पर हमारे एक हास्टल के सीनियर का शुभकामना फोन आया था ,बात -चीत चल रही थी मैंने कहा क्या कर रहे हैं सर , उन्होंने कहा कि अभय का ब्लाग पढ़ रहा हूँ .मैंने कहा कौन अभय ?फिर उन्होंने जब बताया तो मैं तुरंत अभय से बात करनें को उत्सुक हो गया लेकिन अफ़सोस उस समय उन्हें अभय का फोन नंबर न मिल पाया . होली पर ही हमारे बड़े भइया डॉ अरविन्द मिश्र जी घर पर थे मैंने इसका जिक्र उनसे किया ,उन्होंने हैरानी जताई कि अभय से तुम पूर्व परिचित हो,उन्होंने कहा कि मेरी तो कई बार अभय से बात हुई है. उन्होंने तुरंत अभय का मोबाईल नम्बर डायल कर स्वयं बात की फिर मेरी बात कराई.अभय नाम लेते ही पहचान गये ,भूली बिसरी यादें ताज़ा हुई....और बातों का सिलसिला चल पड़ा.
फिल्म निर्माण से जुडा जान कर मैंने अभय द्वारा निर्देशित कुछ फिल्मों को देखनें की इच्छा प्रकट की जिसे स्वीकार कर अभय नें अपनी लघु फिल्म -'सरपत' पोस्ट से मेरे पास भेज दी ,जिसका आज मेरे विभाग में चल रहे एक कार्यशाला के दौरान प्रदर्शन किया गया.नई दिल्ली से आये हुए मॉस-कम्युनिकेशन और इलेक्ट्रानिक मीडिया के वरिष्ठ प्राध्यापक श्री अभिषेक श्रीवास्तव,प्रतिष्ठित फोटोग्राफर जव्वार हुसैन और हमारे विभाग के सभी प्राध्यापकों और विद्यार्थियों के समक्ष सरपत प्रदर्शित हुई .फिल्म सभी को बेहद पसंद आयी और बाद में इस फिल्म के विविध पहलुओं पर परिचर्चा भी आयोजित हुई .....
(चित्र जावेद अहमद)
शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010
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वाह! यह हुई न बात! मजा आ गया पढ़कर.. कुछ तो दम है ब्लागिंग में।
जवाब देंहटाएंबधाई! अभय तिवारी से मिलने की।
जवाब देंहटाएंहमें तो यहाँ ऐसे बहुत लोग मिले हैं जिन से मिल कर लगा कि हम मिलने के लिए बने थे।
अभय के सरपत की बड़ी चर्चा है वह सरपट दौड़े यही इच्छा है !
जवाब देंहटाएंआइला, ये आप के सहपाठी हैं !
जवाब देंहटाएंअपने भी बड़े खास हैं। इनकी खास फोटुएँ मैंने रखी हैं - जब लखनऊ आए थे तो मुझ नाचीज से मिले थे। 'सर्वहारा' खाना खा कर जिस तरह से तृप्त भए थे, हमको इनके वामपंथी होने में कोई शक्को सुबहा नहीं रहा :)
बेहतरीन प्रस्तुति..बधाई.
जवाब देंहटाएं*********************
"शब्द-शिखर" के एक साथ दो शतक पूरे !!
बधाई बिछड़े हुए दोस्तों के वापिस मिलने पर
जवाब देंहटाएंअब तो सिद्ध हो गया कि ब्लॉगिंग हमारे कितने काम आ सकती है .. आपलोगों को बधाई !!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति...आपका ब्लॉग बेहतरीन है..शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएं************************
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटे रचनाओं को प्रस्तुत करने जा रहे हैं. जो रचनाकार इसमें भागीदारी चाहते हैं,वे अपनी 2 मौलिक रचनाएँ, जीवन वृत्त, फोटोग्राफ hindi.literature@yahoo.com पर मेल कर सकते हैं. रचनाएँ व जीवन वृत्त यूनिकोड फॉण्ट में ही हों.
यह तो बहुत ही सुखद घटना हुई.
जवाब देंहटाएंब्लॉगजगत में ऐसा शायद पहली बार हुआ होगा.'सरपत' फिल्म की समीक्षा का इंतजार रहेगा.
आप दोनों मित्रों को बहुत बहुत बधाई
बहुते बधाई जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सच में, मंजुल से अचानक इस तरह ब्लौग की दुनिया में टकरा जाना एक झटका ही था, एक सुखद झटका। सशरीर मिलना अभी भी शेष है लेकिन मेल और फोन से मिलन तो हो ही गया है। :)
जवाब देंहटाएंआप सभी मित्रों को जो हमारी दोस्ती के इस पुनर्जीवन से प्रसन्न हैं, बहुत बहुत धन्यवाद। विशेषकर भाई गिरिजेश को!
वाह बधाई वाकई ब्लागिंग बहुत काम की चीज है :)
जवाब देंहटाएंयह भी बढ़िया रही मिस्र जी । बधाई।
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग से घटा यह संयोग सुखकर लगा होगा आपको !
जवाब देंहटाएंसरपत देखने की बहुत इच्छा हो गयी है !
इन्टरनेट बहुत सारे बिछड़े मित्रो को मिला रहा है ...यदि मित्रता में ईमानदारी हो तो अच्छा माध्यम है ...वर्ना ...तो ...सब माया का संसार ...!!
जवाब देंहटाएंभई वाह... ये मिलन भी अच्छा रहा..
जवाब देंहटाएंअभय बढ़िया इन्सान हैं। भगवान करें सोच सेकुलरही से नॉर्मल हो जाये! :-)
जवाब देंहटाएंWakai Blog Ek Samudr Ki Tarah Hai Jisame Har Dubi Hui Wastu Ek Na Ek Din Zaroor Upar Ki or Aati Hai........
जवाब देंहटाएंAur Rahi Baat "Sarpat" Ki To Ham Bhi Dekhne ke Ichhuk Hai "Sarpat"
वाह! सचमुच बहुत सुखद है ये.
जवाब देंहटाएंबड़ी अच्छी बात हुई यह..यह भी पता चलता है कि इन्फ़ार्मेशन-बूम का यह ग्लोबल युग कैसे भौतिक दूरियों को खत्म कर रहा है..
जवाब देंहटाएंbehatareen prastuti badhai------------------
जवाब देंहटाएंpoonam
वाह! बहुत बढ़िया! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!
जवाब देंहटाएंखूब रही ये तो...
जवाब देंहटाएंachcha raha sir. Ap logon se milne ka bahut man hai, dekhiye kab tak sambhav ho pata hai.
जवाब देंहटाएंवाह ... ब्लोगिंग तो दिलों को भी मिलाने लगी है !
जवाब देंहटाएंयहाँ JNU में 'सरपत' देखी है , मूवी शो के दौरान , भाषा और
अंतर्वस्तु दोनों ने मन मोह लिया था ..
फिल्म से जुड़े आदमी से आपकी फ़िल्मी मुलाक़ात अच्छी लगी ..
दोस्ती चालू आहे ;;;;;;;;;;;;
बहुत खूब! ज्ञानजी बताओ अभय को अच्छा इन्सान बताते हैं लेकिन उनकी सोच को नार्मल ही नहीं मानते। :)
जवाब देंहटाएंसरपत देखने की हमारी भी बहुत इच्छा है, अब जब भारत आयें तो देखें.
जवाब देंहटाएंaapiseek achha sanyog bhi kah sakte hai blog jagat ke jariye aapko apne bachpan ke mitra mile isase aapko jo khushi mili hogi uskka anuman main lagga sakati hun kyon ki main bhi apni bachpan ki dost se pure satrha saloon baad mili thi. ese hi kahate hai sachchi dosti .aapko apne mitra se punah milne ki bahut bahut badhai.
जवाब देंहटाएंpoonam
अब तो पुराने मित्र खोजने का यही सहारा बनता जा रहा है। आपको बधाई कि आपको आपके मित्र मिले।
जवाब देंहटाएंयह तो बहुत ही सुखद घटना हुई.....दोनों मित्रों को बहुत बहुत बधाई !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेख यादों का कोलाज बनाया आपने ................. देर से आप तक आने की लिए माफ़ करेंगे.
जवाब देंहटाएंआपको बधाई देने का मन कर रहा था इसलिए ब्लॉग के मार्फ़त ही यहाँ चला आया , ब्लॉग रत्न सम्मान पर आपको ढेरो बधाइयां और आप इसके प्रबल हकदार भी थे !
जवाब देंहटाएंयह तो कुछ लम्बा मिलन हो गया अंकल जी...
जवाब देंहटाएं________________
'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर करना न भूलें !!
आज ही मालूम हुआ .
जवाब देंहटाएंसंवाद ब्लॉग रत्न सम्मान पर आपको ढेरो बधाइयां.
... और हम तो आप दोनों के ही पुराने पंखे (fan) हैं. (सहमति-असहमति का कोई ज़िक्र नहीं)
जवाब देंहटाएंहम जैसे आम जन फिल्म "सरपत" कैसे देखें ये बताएं...कहीं दूकान में इसकी सी.डी. तो मिलती नहीं...
जवाब देंहटाएंनीरज
जिनके नाम वही हैं जो सदा थे, वे यहाँ या कहीं भी एक दूसरे से टकरा सकते हैं, टकराते हैं परन्तु नाम बदलने वाली जीव क्या करें? इसीलिए वे स्वनामी हो जाती हैं। ना जन्म का नाम न विवाह के बाद का। ना किसी के पहचानने या न पहचानने की सम्भावना बचती है और न दुख।
जवाब देंहटाएंआप दोनों इस आभासी संसार में ही मिले बहुत खुशी हुई।
घुघूती बासूती
Behad achha laga padhana..puranee yaaden aur punarmilan!
जवाब देंहटाएं************
जवाब देंहटाएं'पाखी की दुनिया में' पुरानी पुस्तकें रद्दी में नहीं बेचें, उनकी जरुरत है किसी को !
aapko pehli baar padha achha laga..
जवाब देंहटाएंyun hi likhte rahein...
regards
http://i555.blogspot.com/
संवाद ब्लॉग रत्न सम्मान पर आपको ढेरो बधाइयां.
जवाब देंहटाएंमनोज जी, ब्लॉग का भी हाल चाल लेते रहें, काफी लोग निराश लौट रहे हैं।
जवाब देंहटाएं--------
गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।
Your technical and live presentation on blog is praiseworthy .I remember well the live FAG on holy.
जवाब देंहटाएं@-- यदि मित्रता में ईमानदारी हो तो अच्छा माध्यम है ...वर्ना ...तो ...सब माया का संसार ...!!
जवाब देंहटाएंVani ji se sehmat
Aapko blogging ke zariye dost mil gaya iski badhayi! Ye to badee khushika awsar hua aapke liye!
जवाब देंहटाएं'Sarpat' jaisi film ham aam log kahan dekh sakte hain,kya aap bata sakenge?