जौनपुर जिला मुख्यालय से करीब ४५ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर -पश्चिम में खुटहन थानान्तर्गत स्थित गांव गढा-गोपालापुर अपने ऐतिहासिक अतीत को लेकर काफी समृद्ध रहा है.३५ एकड़ भूमि में एक विशाल टीले परस्थित यह गांव जनश्रुति के अनुसार कभी भर राजाओं की राजधानी था.स्थानीय लोग बताते हैं कि एक बार नदी इस पार और उस पर के राजाओं में हाथियों के नहलाने के सवाल पर विवाद हो गया,नदी उस पर का राजा ज्यादा शक्तिशाली था सो उसनें पूरी नदी के मुंह को ही मोड़ दिया .जो नदी पहले इस टीले से सट कर उत्तर से बहती थी उसकी धारा को दक्षिण से कर दिया गया जो कि आज भी दृष्टव्य है.बाढ़ के समय ही नदी अपनी पुरानी धारा और डगर पर आ पाती है.
इसी टीले में छुपे है कई ऐतिहासिक रहस्य
गोमती नदी की पुरानी डगर जो कि टीले से सट कर जाती थी
मौके पर आज भी ऐसा लगता भी है कि नदी की धारा मोड़ी गयी है ,वर्तमान में वह राजधानी नष्ट हो कर एक टीले के रूप में है जहाँ करीब पचास-साठ परिवारों का रहन-सहन स्थापित हो चुका है तथा वहां ऊपरी तौर से कुछ भी नहीं दीखता परन्तु दंत कथाओं में वह आज भी जीवित है ,जो आज भी उत्खनन की प्रतीक्षा है .इस सन्दर्भ में इस तथ्य का प्रगटीकरण करना समीचीन है कि समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति की २१ वीं लाइन में आटविक राजस्य शब्द मिलता है जिसे इतिहासकारों ने आटविक राज्य माना है .इतिहासकार फ्लीट और हेमचन्द्र राय चौधरी ने इन्हें जंगली राज्य मानते हुए इसकी सीमा उत्तर में गाजीपुर (आलवक) से लेकर जबलपुर (दभाल) तक माना है .संक्षोभ में खोह ताम्रलेख (गुप्त संवत २०९ -५२९ AD ) से भी ज्ञात होता है कि उसके पूर्वज दभाल ( जबलपुर ) के महाराज हस्तिन के अधिकार-क्षेत्र में १८ जंगली राज्य सम्मिलित थे .ऐसा प्रतीत होता है कि प्रयाग प्रशस्ति में इन्ही जंगली राज्यों की ओर संकेत किया गया है ,जिसे समुद्रगुप्त ने विजित किया था .इस सम्भावना को माना जा सकता है कि जौनपुर भी कभी इन जंगली राज्यों के अधीन रहा हो तथा संभव है कि यह भी तत्कालीन समय में भरों या अन्य जंगल में रहने वाली बनवासी जातियों के भोग का साधन बना हो.इस तथ्य के प्रगटी करण के नजरिये से भी गढ़ा-गोपालापुर में पुरातविक उत्खनन ,जौनपुर के प्राचीन ऐतिहासिक स्वरुप को और भी समृद्ध करेगा.
इसी टीले में छुपे है कई ऐतिहासिक रहस्य
गोमती नदी की पुरानी डगर जो कि टीले से सट कर जाती थी
मौके पर आज भी ऐसा लगता भी है कि नदी की धारा मोड़ी गयी है ,वर्तमान में वह राजधानी नष्ट हो कर एक टीले के रूप में है जहाँ करीब पचास-साठ परिवारों का रहन-सहन स्थापित हो चुका है तथा वहां ऊपरी तौर से कुछ भी नहीं दीखता परन्तु दंत कथाओं में वह आज भी जीवित है ,जो आज भी उत्खनन की प्रतीक्षा है .इस सन्दर्भ में इस तथ्य का प्रगटीकरण करना समीचीन है कि समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति की २१ वीं लाइन में आटविक राजस्य शब्द मिलता है जिसे इतिहासकारों ने आटविक राज्य माना है .इतिहासकार फ्लीट और हेमचन्द्र राय चौधरी ने इन्हें जंगली राज्य मानते हुए इसकी सीमा उत्तर में गाजीपुर (आलवक) से लेकर जबलपुर (दभाल) तक माना है .संक्षोभ में खोह ताम्रलेख (गुप्त संवत २०९ -५२९ AD ) से भी ज्ञात होता है कि उसके पूर्वज दभाल ( जबलपुर ) के महाराज हस्तिन के अधिकार-क्षेत्र में १८ जंगली राज्य सम्मिलित थे .ऐसा प्रतीत होता है कि प्रयाग प्रशस्ति में इन्ही जंगली राज्यों की ओर संकेत किया गया है ,जिसे समुद्रगुप्त ने विजित किया था .इस सम्भावना को माना जा सकता है कि जौनपुर भी कभी इन जंगली राज्यों के अधीन रहा हो तथा संभव है कि यह भी तत्कालीन समय में भरों या अन्य जंगल में रहने वाली बनवासी जातियों के भोग का साधन बना हो.इस तथ्य के प्रगटी करण के नजरिये से भी गढ़ा-गोपालापुर में पुरातविक उत्खनन ,जौनपुर के प्राचीन ऐतिहासिक स्वरुप को और भी समृद्ध करेगा.
इस जानकारी के लिये बहुत आभार, टीले के कुछ चित्र और होते तो पोस्ट पूरी जान पडती।
जवाब देंहटाएंनीरज रोहिल्ला
हो सकता है कि इसका भी जल्दी ही नम्बर आए।
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नदी की धारायें इतिहास का मार्ग मोड़ देती हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया! पुरातत्व विभाग शुरू करने जा रहा है उत्खनन?
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएं@श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय सर जी, उत्खनन प्रस्तावित है.
जवाब देंहटाएं@नीरज जी, सही कह रहे हैं कुछ चित्रों की कमी रह गयी.
बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसमय रहते उत्खनन कर लेना चाहिये वर्ना नेता लोगों के हाथ चढ़ गई ये जगह भी तो यहां भी बहुमंजिला इमारते ही दिखाई देंगी
जवाब देंहटाएंजानकारी पर थोडा और प्रकाश डालने की ज़रुरत है मनोज जी .
जवाब देंहटाएंनदियों का कालान्तरों में अपना मार्ग परिवर्तन करते रहना(meandering) एक कुदरती भौगोलिक सत्य/तथ्य है ...और इसे लेकर किंवदंतियों का बाजार गर्म रहता है ....इतिहास की वस्तुनिष्ठ दृष्टि इन्ही जन श्रुतियों /किंवदंतियों से सत्य का उत्खनन करती है ...हाँ लोकश्रुतियों से कुछ अंतर्साक्ष्य मिल तो सकते हैं मगर उसके लिए प्रशिक्षित सजग दृष्टि भी चाहिए ....
जवाब देंहटाएंहो सकता है गोपालापुर में नदी कभी इंगित भीटे(तत्कालीन गढ़ /गढ़ी ...किले ) के समीप से बहती रही हो कालान्तर में अपना कोर्स बदलकर दूर हट गयी हो ....मगर इससे उस भीटे का ऐतिहासिक महत्व कम नहीं हो जाता ...
नाम से यह भी इंगित होता है कि वहां गायें बड़ी संख्या में पाली जाती रही होंगी -गो (गाय ) पाल पुर! अगर हम मिथकों तक इस क्षेत्र के बारे में अतीत अवगाहन करें तो यह कृष्ण के संरक्षित क्षेत्रों में भी हो सकता है -कृष्ण जो गायों के संवर्धन के बड़े हिमायती थे-उनका एक नाम ही है गोपाल !
एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि उपनिषदीय काल के ऋषियों -मुनियों का भी अपना एक विशाल गो वंश होता था -काऊ शेड ..=गोत्र ....जिसके आधार पर उनकी भी वंश परम्परा चिह्नित होती थी ....गोपालापुर के भूगर्भ से कई तथ्यों का अनावरण हो सकता है ..मेरी भी रूचि इसमें बनी रहगी !
इन चित्रों को देख और स्थानों के बारे में पढ़कर मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। अक्सर जौनपुर का इतिहास लोग सल्तनत काल के आसपास से जोड़ते दिखाई पड़ते हैं, जूना / जौना खाँ से जोड़कर बताते हैं , लाल दरवाजा, अटाला मस्जिद आदि देखने पर उसी काल को ज्यादा इंगित करते दिखते हैं लेकिन इन उत्खननों से उम्मीद है और भी कुछ पता चले।
जवाब देंहटाएंJAUNPURIS AHISTORICAL PLACE IN UP.I HAVE KNOW MORE MORE ABOUT JAUNPUR.BECAUSEIMOSTLY LIVE IN DELHI.VIVEK SINGH 9871764990
हटाएंइस संभावित उत्खनन का नतीजा जानने की उत्कंठा रहेगी...शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी लिए पोस्ट....नदियों ने सभ्यताओं की दिशा भी तय की है ...
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास है, सही जानकारी सामने आये.
जवाब देंहटाएं5,000 वर्ष से अधिक पुरानी सभ्यता के साथ भारत में शायद हर टीले में पुरा-महत्व की सामग्री छिपी हो सकती है। आवश्यकता है तो बस पारखी नज़र और समुचित प्रयास की। इस दिशा में आपके और आलेखों की प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंराजाओं के शक्तिपरीक्षण कि गवाह बनी नदी जिसे अपना रास्ता ही बदलना पड़ा.इतिहास बहुत ही रोचक विषय है.
जवाब देंहटाएंअभी तक की जानकारी और जानने का कौतुहल पैदा करती है.