मंगलवार, 12 जुलाई 2011

महामहोपाध्याय प्रो.वाचस्पति उपाध्याय :अश्रुपूरित श्रद्धांजलि .


कल अचानक फोन पर जैसे ही पता चला कि श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्या पीठ के कुलपति महामहोपाध्याय प्रो.वाचस्पति उपाध्याय जी नहीं रहे,मानो वज्रपात हो गया.सहसा विश्वास नहीं हुआ ,लगा जैसे उनके किसी शुभचिंतक नें मृत्यु की झूठी खबर अंधविश्वास के चलते उड़ाई है.(पूर्वांचल में एक अंधविश्वास है कि यदि कौवा सिर पर चोंच मार दे तो आसन्न मृत्यु से बचने के लिए शुभचिंतकों में मृत्यु की खबर फैलाई जाती है ताकि संबन्धित के मृत्यु का संकट टल सके.) लेकिन यह सत्य था-अमिट सत्य जिसे कोई गलत नहीं कह पाया . काल के क्रूर हाथों नें उन्हें हमसे छीन लिया था,अचानक हृदयाघात के चलते उनकी मृत्यु हो चुकी थी.पता चला कि बीती रात एक वैवाहिक कार्यक्रम से वे बिलकुल स्वस्थ-प्रसन्न लौटे थे .रात सोये तो चिर लीन हो गये.-संभवतः नियति को यही मंज़ूर था.उपाध्याय जी सरीखे व्यक्तित्व को सहज़ विस्मृत कर पाना मेरे लिए संभव नही है .सुसौम्य व्यक्तित्व के स्वामी प्रो.उपाध्याय भारतीय दर्शन ,वेद-वेदांग,धर्मसूत्र और संस्कृत साहित्य के प्रकांड विद्वान थे,ऐसा सहज तथा सुसौम्य व्यक्तित्व दुर्लभ है .स्वभाव से अति मृदुभाषी प्रो.उपाध्याय, हास-परिहास में भी बहुत रूचि लेते थे.उनके साथ हम सब का पारिवारिक सम्बन्ध था.मेरे प्रातः स्मरणीय पिता जी के निधन को सुन कर उन्होंने हमें ढाढस दिया और अगले साल स्व.पिता जी के श्रद्धांजलि गोष्ठी में भाग लेने नई दिल्ली से यहाँ आये. आपका मुझ पर बड़ा स्नेह रहता था.

अभी पिछले महीने ही उनसे मेरी मुलाकात विश्वविद्यालय में हुई थी .एकदम स्वस्थ और प्रसन्न .बहुत सारी बातें हुई साथ ही साथ दोपहर का भोजन भी किया गया .कौन जानता था यह हम सब की आख़री मुलाकात है ?
एक जुलाई १९४३ को सुल्तानपुर (उ.प्र.)में एक कुलीन आचार्य कुल में पैदा हुए प्रो.उपाध्याय से हमारे गाँव से बहुत मधुर रिश्ता था.उनका विवाह यहीं सीमावर्ती गांव सुजियामऊ में एक कुलीन ब्राहमण परिवार में सन १९६१ में बक्शा के पूर्व प्रमुख पंडित श्री पति उपाध्याय की बहन शारदा उपाध्याय के साथ हुआ था.विगत २० मई को ही आपनें अपनेँ वैवाहिक जीवन की स्वर्ण-जयन्ती वर्षगांठ को मनाया था.
आपका व्यक्तित्व और कृतित्व बहुत विराट था.१९६२ में कोलकाता विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम्.ए तथा वहीं से पी एच डी प्रो.वाचस्पति जी नें सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से १९६७ में डी.लिट की उपाधि प्राप्त की थी.उन्हें संस्कृत शिक्षा परिषद ,कोलकाता और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी द्वारा महामहोपाध्याय की उपाधि से भी अलंकृत किया गया था.उनकी विद्वता पर वर्ष २००१ में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के.आर .नारायणन द्वारा राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित किया था.संस्कृत भाषा के उन्नयन के लिए आप के द्वारा कई अंतर राष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन किया गया .आपके नेतृत्व में वर्ष २००1 में विज्ञान भवन , नई दिल्ली में आयोजित विश्व संस्कृत सम्मलेन की याद आज भी लोगों में ताज़ा है.समय -समय पर आपके द्वारा महत्वपूर्ण पदों को भी सुशोभित किया गया.दिल्ली विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष,सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के रजिस्ट्रार,गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के प्रति -कुललिंकपति और वर्ष १९९४ से लगातार श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्या पीठ के कुलपति के रूप में आप सदैव याद किये जाते रहेंगे.वर्ष २००५ से ही आप लगातार भारतीय विश्वविद्यालय संघ के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य कर रहे थे.
अभी विगत ०५ मई को आपके व्यक्तित्व और कृतित्व की बांकी-झांकी प्रस्तुत करता हुआ अभिनन्दन ग्रन्थ "वाचस्पति वैभवम " का लोकार्पण भी नई दिल्ली में एक भव्य समारोह में किया गया था.इस ग्रन्थ में देश के चारो शंकराचार्य महोदय,महामहिम राष्ट्रपति,विभिन्न प्रदेशों के महामहिम श्री राज्यपाल ,देश के प्रतिष्ठित माननीय और राजनेतागण,देश के शिक्षाविद समेत बहुत लोंगों नें प्रो.वाचस्पति जी के साथ अपनेँ संस्मरणों को साझा किया है और शुभकामनायें दी हैं .लगभग १३०० पृष्ठों में संकलित "वाचस्पति वैभवम "अपने आप में अद्वितीय कृति है.

जहाँ एक ओर उनके व्याख्यान कर्ण प्रिय और सम्मोहित करनें वाले होते थे तो उनका हास-परिहास हम सबको कभी नही भूलेगा.अभी पिछले महीने जून में ही जब वे एक कार्यक्रम में भाग लेने पूर्वांचल विश्वविद्यालय आये थे तो आयोजक उनसे बार-बार चाय पीने का आग्रह कर रहे थे और उपाध्याय जी उनसे विनम्रता पूर्वक मना कर रहे थे अंततः आयोजक नें कहा कि यह चाय नहीं चाह है ,उनका तपाक से जबाब था कि ज्यादा चाह लेंगे तो जल्दी ही हमारा स्वास्थ आह करने लगेगा.इसी वार्तालाप के क्रम में उनसे एक निकटवर्ती नें अपनी कुछ पारिवारिक कष्ट के बारे में बताया तो उन्होंने उनसे अवधी में ही कहा कि भइया आज -कल परिवार की परिभाषा बदल गयी है ,परि=चारो ओर और वार=युद्ध अर्थात जहाँ चारो ओर युद्ध का वातावरण हो आज-कल वही परिवार हो गया है.
महामहोपाध्याय प्रो.वाचस्पति उपाध्याय से जुड़े लोग,उनके शुभ चिन्तक और जो भी कभी न कभी उनसे मिले थे , निधन के समाचार से आज हतप्रभ है,सहसा विश्वास नहीं कर पा रहे ,लेकिन उनके आत्मा का प्रदीप अभी बुझा नहीं है .आपका कृतित्व हम सभी के लिए सदैव प्रेरणा का कार्य करेगा .आत्मा अजर है-अमर है. उस दिव्यात्मा को मेरा शत-शत नमन......






28 टिप्‍पणियां:

  1. श्रद्धांजलि. उनकी कुछ व्याख्यान/रचनाएँ भी प्रस्तुत करें.

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  2. विनम्र श्रद्धांजलि...प्रो. वाचस्पति उपाध्याय जी से मेरे महर्षि महेश योगी के काल से व्यक्तिगत संपर्क थे. आपके माध्यम से यह दुखद समाचार प्राप्त हुआ.

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  3. उन्हें हमारा नमन और विनम्र श्रद्धांजलि.

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  4. ओह बहुत दुखद ....मेरा सौभाग्य है कि उनसे मैं मिला था -ऐसा प्रकांड विद्वान् और सहज निश्छल व्यक्तित्व के लोग विरले ही होते हैं ...
    श्रद्धांजलि !

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  5. उन्हें हमारा नमन और विनम्र श्रद्धांजलि.

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  6. विनम्र श्रद्धांजलि ...नमन

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  7. महामहोपाध्याय जी को नमन और श्रद्धांजलि! जानकारी के लिये आपका आभार!

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  8. महामहोपाध्याय जी को मेरा शत शत नमन और विनम्र श्रधांजलि !

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  9. हार्दिक नमन उनके दिव्यात्मा को.उनके द्वारा दिया गया परिवार की परिभाषा सटीक है. आपको आभार सुन्दर व्यक्तित्व से मिलवाने के लिए.

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  10. महामहोपाध्याय प्रो.वाचस्पति उपाध्याय जी को हमारी भी विनम्र श्रद्धाँजली। ाइसे व्यक्तित्व का जाना साहित्यजगत के लिये बहुत भारी क्षति होती है।

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  11. आपको हरियाली अमावस्या की ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं .

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  12. महामहोपाध्याय प्रो.वाचस्पति उपाध्याय जीको निनम्र श्रद्धांजलि.

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  13. ऐसी विलक्षण प्रतिभा के धनि संस्कृति समर्पित प्रतिभा को मेरा कोटि कोटि नमन ,वीरुभाई .Super food :Beetroots are known to enhance physical strength,say cheers to Beet root juice.Experts suggests that consuming this humble juice could help people enjoy a more active life .(Source: Bombay Times ,Variety).

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  14. Once we had published interview of Sh. Vachaspati Upadhyay in Samkaleen Abhivyakti. He was obviously a genius. My hearty tribute to him.
    Hari Shanker Rarhi

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  15. सर
    विनम्र श्रद्धांजलि उन्हें . ये आपने सही कहा कि उनके बताए हुए मार्ग और बातो पर ही चल कर उन्हें याद रखा सकता है .. बहुत अच्छी पोस्ट.

    आभार
    विजय
    -----------
    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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  16. आदरणीय पंडितजी,
    सादर नमन। तबियत की नासाज़ी के चलते बहुत दिनों से ब्लॉगिंग विधिवत हो नहीं पा रही है, सो आप तलक भी आ न सके। प्रात: स्मरणीय व्यक्तित्व वाचस्पति जी को हमारी जानिब से भी श्रद्धांजली। एक प्रकांड विद्वान और साहित्य के विराट हस्ताक्षर से रूबरू कराने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। स्नेह बनाए रखिएगा।

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  17. दुखद! वाचस्पतिजी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि!

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आपकी टिप्पणियाँ मेरे ब्लॉग जीवन लिए प्राण वायु से कमतर नहीं ,आपका अग्रिम आभार एवं स्वागत !