शनिवार, 13 अगस्त 2011

रक्षा बंधन पर विशेष-- लोक-गीत कजरी में व्यक्त, भाई-बहन का प्यार...

सावन जहाँ भक्तिभावना,पर्यावरण उल्लास और हर-हर महादेव की विशेष उपासना के लिए जाना जाता है वंही यह माह भाई -बहन के अटूट प्यार और विश्वास के लिए भी हमारे समाज में जाना पहचाना जाता रहा है.आज भले ही हम यंत्रवत हो गये हों,संवेदनाएं हममें सो गईं हो लेकिन ज्यादा दिन नहीं हुए जब हम डिज़िटल युग में नहीं थे,गांव-गांव-शहर-शहर में भाई- बहन इस महीने की बेसब्री से प्रतीक्षा करते थे
आज सावन का आख़री दिन है,पिछले दो दशक से लगातार मद्धिम होते कजरी के लोकगीतों में यह मेरे लिए पहला अवसर है जब पूरा सावन बीत गया और कानों में कजरी के गीत नहीं सुनाई दिए.मैं हैरान हूँ और दुखी भी कि हमारी लोक संस्कृति कहाँ चली गयी.जब गांव में यह हाल है तो शहरों में किसे फुर्सत है.
उत्तर-प्रदेश में ,मिर्ज़ापुर की कजली बहुत मशहूर हुआ करती थी,हमारा जिला जौनपुर भी इससे सटा होने (और जौनपुर-मिर्ज़ापुर के वैवाहिक रिश्तों में जुडा होने के) कारण पूरा सावन कजरी मय होता था. इस लोक-गीत में जहाँ एक ओर विरह की वेदना के स्वर रात में दस्तक देते थे तो वहीं दूसरी ओर यह हमारे अतीत के ऐतिहासिक पन्नों को भी अपनेँ साथ लिए चलती थी.यह कजरी की बानी हमारी लोकसंस्कृति की पुरातन गाथा भी थी और दिग्दर्शिका भी.यह सब आज अतीत में लीन हो चली है.
आज रक्षा बंधन के दिन मुझे बचपन में सुनी गयी और आज भी मेरे अंतर्मन में रची-बसी लोक गीत कजरी के बोल याद हो आये जिसमें भाई-बहन के प्यार को गूंथा गया है.इस कजरी के बोल संभवतः उन दिनों में लिखे गये जब देश में टेलीफोन -मोबाईल तो छोड़िये ,यातायात के भी साधन नहीं थे.
बहन ससुराल में हैं,राखी वाले दिन आँगन की सफाई करते झाड़ू टूट जाती है और फिर शुरू होता है सास का तांडव
कई बहनों में भाई एकलौता था,सास भाई का नाम लेकर गाली देना शुरू कर देती है-बहन गुहार लगाती है क़ी मुझे चाहे जो कह लीजिये मेरे भाई को कुछ मत कहिये. इसी बीच भाई जाता है,उसके भोजन में खाने के लिए बहन की सास सड़ा हुआ कोंदों का चावल और गन्दा चकवड़ का साग परोस देती है. भाई बहन की यह दुर्दशा देख रोने लगता है और अगले ही दिन घर जाकर एक बैलगाड़ी झाड़ू बहन के घर लाता है ताकि उसकी बहन को फिर कोई कष्ट दे
कजरी की लोकधुन वैसे भी बहुत मार्मिक होती है .बचपन में जब हम लोग यह गीत रात के सन्नाटे में सुनते थे,आंसू जाते थे.आज उसी गीत के बोल आप तक पहुंचा रहा हूँ,मुझे लगता है कि अब इस गीत के बोल भी लगभग लुप्त हो चुके हैं।॥

अंगना बटोरत तुटली बढानियाँ अरे तुटली बढानियाँ,
सासु गरियावाई बीरन भइया रे सांवरिया,
जिन गारियावा सासु मोर बीरन भइया ,अरे माई के दुलरुआ ,मोर भइया माई अकेले रे सांवरिया,
मचियहीं बैठे सासु बढैतीं ,
अरे भइया भोजन कुछ चाहे रे सांवरिया ,
कोठिला में बाटे कुछ सरली कोदैया,
घुरवा-चकवड़ साग रे सांवरिया,
जेवन बैठे हैं सार बहनोइया

सरवा के गिरे लाग आँस रे सांवरिया,
कि तुम समझे भइया माई कलेउआ ,
कि समझी भौजी सेजरिया रे सांवरिया,
नांही हम समझे बहिनी माई कलेउआ ,
नाहीं समझे धन सेजरिया रे सांवरिया ,
हम तो समझे बहिनी तोहरी बिपतिया ,
नैनं से गिरे लागे आँस रे सांवरिया,
जब हम जाबे बहिनी माई घरवा ,
बरधा लदैबय बढानियाँ से सांवरिया,
घोड़ हिन्-हिनाये गये ,सासु भहराय गये ,
आई गयले बिरना हमार रे सांवरिया.....

कजरी की लोक धुन से परिचित कराने के लिए इस गीत की दो लाइनों को मैंने अपना स्वर दे दिया है,शेष पूरा गीत ,फिर कभी...


35 टिप्‍पणियां:

  1. मिश्र जी रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. लौट के आये तो लिख्खा रक्षा बंधन पर विशेष..!
    आगे...? विशेष क्या-क्या था..?
    ..ढेर सारी शुभकामनायें।

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  3. यह विशेष शुभकामनायें आपको !

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  4. रक्षा बंधन पर विशेष--सिर्फ शीर्षक??..............

    हार्दिक शुभकामनाएं!

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  5. Maza aa gaya!
    Rakshbandhan tatha Swatantrata Diwas kee hardik badhayee!

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  6. इस कजरी के बारे में थोड़ा बहुत सुना तो जरूर था लेकिन पहली बार इतने विस्तृत ढंग से जाना।

    अब शायद ये पंक्तियां धीरे धीरे लुप्त हो जांय। या एक राह हो सकती है कि किसी फिल्म में इसे साट लिया जाय और गुणग्राहक फिल्म निर्माता इसे और कुछ काल तक जीवित रख सकें।

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  7. बहुत बढ़िया..... अच्छा लगा आपकी आवाज़ में कुछ पंक्तियाँ सुनकर .....

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  8. मिश्र जी,
    ये तो शिकायत वाली पोस्ट है। पूरा क्यों नहीं गाया?

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  9. बहुत मार्मिक -पूरा गाना था !

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  10. @ डॉ मनोज मिश्र,

    बड़ी प्यारी आवाज है आपकी, अनुवाद देकर आपने बहुत अच्छा किया !

    यह कटु सत्य है कि शहरों में रहने वाले हम लोग, वाकई अपनी संस्कृति से कट चुके हैं !भारत की आत्मा गाँव में बस्ती है और गाँव हमीं लोग त्याग चुके हैं जिनका जन्म और लालन पालन गाँव में हुआ तो नयी पीढ़ी से क्या उम्मीद रखी जाए ! आप भ्राताद्वय इस टीस को महसूस करते हैं तो बच्चे भी कहीं न कहीं इस दर्द को महसूस करते रहेंगे !

    बहिन भाई का नैसर्गिक प्यार भी, दिखावे का बन कर रह गया है ! आजकल पुरुषों में संवेदनशीलता का लगभग अभाव सा हो गया है जिसमें अपनी बहन के प्रति ममत्व और करुणा कहीं नज़र नहीं आती ! अक्सर बहिन मायके को याद करते मुंह छिपा कर आंसूं पोंछते देखी जाती हैं ...यह बेचारी किससे कहे और किसे दिखाए कि वह अपने भाई को कितना प्यार करती है ??

    संवेदनशीलता और ममत्व की अवहेलना समय के साथ हमें और समाज को बहुत महंगी पड़ेगी....

    हार्दिक शुभकामनायें आपको !

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  11. लोकगीतों के अनगढ़ बोलों का सौन्दर्य ही निराला है !
    आपकी आवाज़ में सुनना अच्छा लगा !

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  12. आपकी आवाज में हमें यह गीत पूरा सुनना है।

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  13. आपका कहना बहुत सही है आज कजली ही नही बल्कि संपूर्ण देश की लोक संस्कॄति के यही हाल हैं. जो लोक गीत घर घर गूंजते थे वो अब शायद किन्ही लोक समारोहों में ही सुने जाने लगे हैं.

    आपकी आवाज में ये कजली सुनना बहुत सुंदर लगा, आपकी आवाज तो बहुत सधी हुई लगती है, कभी समय निकालकर इसे पूरा का पूरा ही लगा दिजिये. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  14. बहुत सुन्दर, गीत, गायन, जानकारी, सभी। शुभकामनायें!

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  15. अत्यंत मार्मिक कजरी पढ़वाई आपने....सुन नहीं पाया।
    मौके-मौके पर अपनी संस्कृति और परंपरा से सभी को अवगत कराते रहने का आपका प्रयास वंदनीय है। वाकई पूरा सावन बीत गया और कजरी नहीं सुनी। यदा कदा अस्सी में चाय पान की दुकानों पर बैठकी के दौरान लोग बाग तराने छेड़ देते हैं वरना सब विस्मृति के सागर में डूब चुका है। चर्चायें भी अब राजनैतिक..क्रिकेटी...हो कर रह गईं हैं। साहित्य और संस्कृति की नगरी में यह हाल है तो शेष से क्या उम्मीद की जाय!
    ..रक्षा बंधन में आजकल शहरी परंपरा यह बनती जा रही है कि पत्नी को लेकर पती महोदय जाते हैं साले साहब के पास राखी बंधवाने। आज और कल में कितना सामाजिक परिवर्तन आ गया है ! त्योहार वही हैं लेकिन उसको मनाने के ढंग अपने सुविधानुकूल होते जा रहे हैं।
    यह नहीं कहता कि गलत हो रहा है मगर यह जरूर है कि हम कुछ भूलते जा रहे हैं। समाज शास्त्री इसका चिंतन करें हम तो बस मूक हो महसूस कर सकते हैं।

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  16. रक्षाबंधन के सुअवसर पर यह कजली बड़ी सार्थक लगी ।
    काश कि हमारी परम्पराएँ यूँ ही बनी रहें ताकि आपसी प्यार और सम्मान में कोई कमी ना आये ।

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  17. सावन में कजरी पढ़ना और उसके बाद उसे सुनना मज़ा आ गया. आपकी आवाज तो बहुत ही सुंदर है. दाद तो देनी ही पड़ेगी.

    रक्षाबंधन और स्वंतत्रता दिवस पर ढेर सारी शुभकामनायें.

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  18. रक्षाबंधन और स्वंतत्रता दिवस पर ढेर सारी शुभकामनायें!!

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  19. कजरी गीत के बारे में पहले जाना-सुना है ..और बहुत पहले कभी आकाशवाणी पर सुनी थीं.आप की आवाज़ में इन पंक्तियों को सुना ..बेहद भावपूर्ण हैं .मेरा अपना अनुभव है कि ऐसे भावपूर्ण गीत गाते समय मन भर आता है/गला रुंध जाता है..इन्हें पूरा गा सकना मुश्किल होता है ..शायद इसी वजह से [मेरे अनुमान से]..आप इसे पूरा नहीं गा सके होंगे.
    ..........
    फिर भी ,कभी संभव हो तो पूरा गीत सुनाएँ.

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  20. श्री सतीश भाई साहब,श्री ताऊ जी ,श्री देवेन्द्र भाई साहब,
    आप के विचारों से पूर्ण सहमत हूँ.
    उत्साह वर्धन के लिए बहुत धन्यवाद.

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  21. आदरणीय श्री द्विवेदी जी , श्री विवेक जी ,आपको पसंद आया,बहुत-बहुत धन्यवाद .
    यह इतना भावुक गीत है कि कल मैं इसे पूरा गा न पाया,फिर कभी कोशिश करते है.
    पुनः धन्यववाद.

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  22. @अल्पना जी ,बहुत धन्यवाद.
    आप तो संगीत की असल पारखी हैं.आपनें सही पहचाना ,आपका अनुमान सही है.यह गीत और धुन दोनों बहुत ही भावपूर्ण है.कल कोशिश कर के भी पूरा न गा पाया.

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  23. मेरी नयी पोस्ट पर आपकी पोस्ट इस पोस्ट से प्रेरित है ...

    http://satish-saxena.blogspot.com/2011/08/blog-post_16.html

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  24. मैंने भी ऐसा कई दृश्य गाँव में देखा है.पोस्ट पढ़ते-पढ़ते वही याद आ गयी बहन की लाचारी भाई की बेबसी.मेरी आँखे नम हो गयी. कजरी बहुत ही मार्मिक है.

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  25. वाह सर...आपकी आवाज़ में कजरी सुनकर आनंद आ गया...रक्षाबंधन पर भाई-बहन के प्यार के ऊपर ये कजरी अंतर्मन को झकझोरती है...एक बात तो बिलकुल सही है कि ऐसे पारंपरिक लोकगीत अब सुनाई नहीं देते...जिससे लगता है कि कहीं न कहीं हम अपनी लोक संस्कृति से दूर हो रहे हैं...पर इसको लुप्त नहीं होने देना चाहिए...क्योंकि असली सुकून इन्हीं लोक संगीतों को सुनकर ही मिलता है...

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  26. बचपन के सावन की तरस बढा दी आपने। सावनमें नीम पर के झूले शाम को कजरी गीत क्या आनंद था। उसके बारे में बस यही लाइन याद रही है. बस सपनों में देख रहें हैं तरू के फुनगी पर के झूले।

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  27. अच्छी जानकारी...पूरा गाईये!!!

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  28. नमस्कार....
    बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें

    मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में........

    आपका ब्लागर मित्र
    नीलकमल वैष्णव "अनिश"

    इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
    वहा से मेरे अन्य ब्लाग लिखा है वह क्लिक करके दुसरे ब्लागों पर भी जा सकते है धन्यवाद्

    MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......

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  29. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  30. वास्तव में ही मर्म को छू लेने वाली है. आपकी आवाज़ सुनने में बहुत समय लग गया. यहाँ वहां भटका रहा था. आभार.

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  31. Bhai Saheb! aap to hamesha hi desi swaad lekar aaten hain. kajri aur chautal ka kya kehna. Very nice !!

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  32. वाह सर बहुत ही अच्छा लिखा है आपने....
    मन खुश हो गया ये लाइन पढ़कर अरे माई के दुलरुआ ,मोर भइया माई क अकेले रे सांवरिया,
    बहुत ही सुन्दर !!!

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  33. बहुत खूब! सुनकर आनन्दित हुये! शुक्रिया!

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