सोमवार, 24 नवंबर 2008

कुछ मुक्तकें राजनीतिक आयाम पर


याचनाओं का यन्त्र लगता है
कामनाओं का मंत्र लगता है
तेरा वह राजतन्त्र का चेहरा
इन दिनों लोकतंत्र लगता है |

राजनीतिक भंवर में रहतें हैं
देखता हूँ अधर में रहतें हैं
एक दिन जो गगन में उड़ते थे
अब किराये के घर में रहते हैं |

जगमगाए महानगर लेकिन
गाँव घर की अजीब सूरत है
टिम टिमाते हुए चिरान्गों पर
आज भी रात की हुकूमत है |

चैन दूभर है क्या किया जाए
हल बदतर है क्या किया जाए
राजधानी में उनके कंधों पर
उनका बिस्तर है क्या किया जाए |

रात दिन जो तिजोरियां अपनी
आदमी के लहू से भरतें हैं
देवता उनकी वन्दनाओं को
जाने कैसे कबूल करतें हैं |

देखता हूँ मै जो अंधेरे में
लूट का इंतजाम करता है
फूल लेकर वही उजाले में
देवता को प्रणाम करता है |

और अन्तत :-
लोक संगीत का रवानी हूँ
रमता जोगी हूँ बहता पानी हूँ
तुमको सत्ता का रथ मुबारक हो
मैं तो पगडंडियों का प्राणी हूँ |

आज कल चुनावों के मौसम में इस सटीक रचना को मेरे साहित्यिक गुरु ,अवधी एवं हिन्दी के कालजयी लोक कवि स्व .रूपनारायण त्रिपाठी जी ने लिखा है जो आज भी कहीं न कहीं यथार्थ का बोध करातीं हैं उनके द्वारा जीवन के विविध रंगों पर लिखी गयी रचनाओं को ,समय -समय पर ब्लॉग के मित्रों के लिए मै प्रस्तुत करता रहूँगा .उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मालिक मुहम्मद जायसी पुरस्कार से सम्मानित स्व .त्रिपाठी जी अस्सी के दशक तक रास्ट्रीय स्तर पर होने वाले कवि सम्मेलनों में श्रोताओं की सर्वाधिक पसंद वाले कवि हुआ करते थे .

19 टिप्‍पणियां:

  1. मनोज भाई;
    मुक्तक को मुक्तक ही रहने दीजिये न , मुक्तकें क्यों कहते हैं.
    बहरहाल...अभिव्यक्त बहुत ही सशक्त बन पड़ी है.

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  2. राजनीति? यह तो वर्तमान जीवननीति लगती है। आज की सफलता की जीवन पद्धति!

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  3. बहुत बढिया मुक्तक हैं।बधाई।

    देखता हूँ मै जो अंधेरे में
    लूट का इंतजाम करता है
    फूल लेकर वही उजाले में
    देवता को प्रणाम करता है |

    जवाब देंहटाएं
  4. रात दिन जो तिजोरियां अपनी
    आदमी के लहू से भरतें हैं
    देवता उनकी वन्दनाओं को
    जाने कैसे कबूल करतें हैं |

    बहुत लाजवाब रचना ! शुभकामनाएं !

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  5. आपकी प्रस्तुति को नमन
    त्रिपाठी जी दूर गगन में कहीं खुश होकर आशीष रहे होंगें आपको

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  6. लोक संगीत का रवानी हूँ
    रमता जोगी हूँ बहता पानी हूँ
    तुमको सत्ता का रथ मुबारक हो
    मैं तो पगडंडियों का प्राणी हूँ |

    सबसे बढ़िया लगी यह ...

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  7. एक दिन जो गगन में उड़ते थे
    अब किराये के घर में रहते हैं |
    एक से बढ़ कर एक मुक्तक लिखे हैं आपने...मेरी बधाई स्वीकार करें.
    नीरज

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  8. "देखता हूँ मै जो अंधेरे में
    लूट का इंतजाम करता है
    फूल लेकर वही उजाले में
    देवता को प्रणाम करता है |"

    एक सफल नेता का चरित्र चित्रण है !

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  9. बहुत ही सही चित्रण किया है आपने इन आज के नेताओ का.
    धन्यवाद

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  10. आपकी कविता पसँद आई -
    सही चित्रण किया गया है समाज का !

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  11. लोक‍तंत्र का असली चेहरा दिखाते मुक्‍तक। बधाई।

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  12. Maine der kar dee tippanee deneme isliye maafee chahti hun....theek 8 baje jab aapke blogpe aayee tabtak kuchh nahee tha..aur uske baad bijlee gul ho net disconnect ho gaya..
    Beherhaal, gazab prabhawshalee rachna hai, nirbhid aur sachhee..."mai to pagdandiyonka praanee hun"! Jin, jin logon ne tippanee dee unse badhke ya alagse kya kahun?

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  13. याचनाओं का यन्त्र लगता है
    कामनाओं का मंत्र लगता है
    तेरा वह राजतन्त्र का चेहरा
    इन दिनों लोकतंत्र लगता है |


    लोक‍तंत्र का असली चेहरा!!!!!!!!!!!!!!!1

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  14. जबरदस्त एवं समयानुसार सटीक!! आनन्द आ गया.

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  15. हो प्याला गर गरल भरा भी
    तेरे हाथों से पी जाऊं
    या मदिरा का प्याला देना
    मैं उसको भी पी पाऊँ
    प्यार रहे बस अमर हमारा
    मैं क्यों न फ़िर मर जाऊं


    आपकी रचना बेजोड़ है

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  16. सुन्दर! फ़िर से फ़रमाइश- अपनी आवाज में पोस्ट करें!

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आपकी टिप्पणियाँ मेरे ब्लॉग जीवन लिए प्राण वायु से कमतर नहीं ,आपका अग्रिम आभार एवं स्वागत !