मंगलवार, 25 नवंबर 2008

मेरी पसंद के विविध मुक्तक (२)


नीर ही जब नमी से डरता हो
प्यार अपनी कमी से डरता हो ,
जिन्दगी कैसे मुस्कराए जब
आदमी ही आदमी से डरता हो |

पाप चलता है बन्दगी की तरह
आग चलती है चांदनी की तरह ,
हाय रे आज कल अँधेरा भी
बात करता है रोशनी की तरह |

गीत मिलती है बीन मिलती है
जिंदगी भी हसीन मिलती है,
अंत में हर किसी को मुश्किल से
सिर्फ़ दो गज जमीन मिलती है |

एक रंगीन गम सफर के लिए
लाख मायूसियाँ नजर के लिए ,
एक मुस्कान चंद लमहों की
दे गयी दर्द उम्र भर के लिए |

आँख नम हैं तो क्या हुआ आख़िर
मेरे आंसू तो मुस्कराते हैं ,
गीत मेरे चिराग में जलके
आँधियों में भी जगमगाते हैं |
(स्व.पंडित रूप नारायण त्रिपाठी )

24 टिप्‍पणियां:

  1. एक रंगीन गम सफर के लिए
    लाख मायूसियाँ नजर के लिए ,
    एक मुस्कान चंद लमहों की
    दे गयी दर्द उम्र भर के लिए |

    बहुत ही बढ़िया ..शुक्रिया इनको पढ़वाने के लिए

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  2. बहुत सुन्दर मुक्तक प्रेषित किए हैं।बधाई।

    आँख नम हैं तो क्या हुआ आख़िर
    मेरे आंसू तो मुस्कराते हैं ,
    गीत मेरे चिराग में जलके
    आँधियों में भी जगमगाते हैं |

    जवाब देंहटाएं
  3. पाप चलता है बन्दगी की तरह
    आग चलती है चांदनी की तरह ,
    हाय रे आज कल अँधेरा भी
    बात करता है रोशनी की तरह |
    बहुत लाजवाब रचना ! शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  4. आँख नम हैं तो क्या हुआ आख़िर
    मेरे आंसू तो मुस्कराते हैं

    --------
    आंसू की मुस्कुराहट? हां कभी कभी मैने भी महसूस की है।

    जवाब देंहटाएं
  5. जिन्दगी कैसे मुस्कराए जब
    आदमी ही आदमी से डरता हो |


    -बहुत गंभीर और गहरी बात कह गये आप.

    जबरदस्त, बधाई आपको इस चिन्तन के लिये.

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  6. सारे के सारे मुक्तक बेमिसाल हैं...आप की सोच और लेखन कला को नमन...
    नीरज

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  7. बहुत अच्छे मुक्तक है। आपकी पसंद प्रशंसनीय है

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  8. बहुत खूब ! पंडितजी (त्रिपाठी) के बारे में भी थोड़ा बताइए.

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  9. नीर ही जब नमी से डरता हो
    प्यार अपनी कमी से डरता हो ,
    जिन्दगी कैसे मुस्कराए जब
    आदमी ही आदमी से डरता हो |
    वाह क्या बात है, बहुत ही सुंदर कवि्ता,हमारे तारीफ़ के शव्द भी कम लगते है,
    बहुत बहुत धन्यवाद इस सुंदर ओर भाव पुरण कविता के लिये

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  10. मनोज तुम पंडित रूपनारायण त्रिपाठी जी की इन कविताओं को अपने स्वर में ब्लॉग जगत के मित्रों को सुनाओं -मेरे लिए तो इनके काव्य पाठ को सुनना सच्चिदानद से कुछ भी कम नही रहा है -एक अलौकिक अनुभव से होकर गुजरना ! और तुम्हारे स्वर में तो मानों स्वर्गीय त्रिपाठी जी स्वयं आ विराजते हैं -किसी से पोद्कासटिंग सीख लो -ब्लॉगर मित्रों में से ही कोई सिखा देंगे .अनुरोध कर लो !
    यह आदरणीय त्रिपाठी जी को एक सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी !
    मित्रों यदि मेरे इस अनुरोध से आपकी भी सहमति हो तो कृपा कर मनोज को इसके लिए बाध्य करें -क्योंकि यदि यह प्रस्ताव फलीभूत होता है तब आप स्वयम स्वीकार लेंगें कि मैंने एक सर्वथा उचित प्रस्ताव यहाँ रखा था .
    अभिषेक जी के अनुरोध को भी पूरा करों और लोगों को लालकिले के प्राचीर से पुरवयी तान छेड़ने वाले इस महान कवि के बारे में बताओ .
    शुभस्य शीघ्रम !

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  11. आपकी पसंद अब मेरी भी पसंद बन गई है। आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  12. एक रंगीन गम सफर के लिए
    लाख मायूसियाँ नजर के लिए ,
    एक मुस्कान चंद लमहों की
    दे गयी दर्द उम्र भर के लिए |
    ये पंक्तियाँ खास तोर से पसंद आई , सुंदर रचना
    Regards

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  13. मैं भी अरविंद जी की बात का समर्थन करता हूं। इन शानदार मुक्‍तों को सस्‍वर सुनने का मौका भला क्‍यों छोडा जाए।

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  14. एक रंगीन गम सफर के लिए
    लाख मायूसियाँ नजर के लिए ,
    एक मुस्कान चंद लमहों की
    दे गयी दर्द उम्र भर के लिए |
    बहुत खूब .....ये पंक्तिया लाजवाब लगी

    जवाब देंहटाएं
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  17. पाप चलता है बन्दगी की तरह
    आग चलती है चांदनी की तरह ,
    हाय रे आज कल अँधेरा भी
    बात करता है रोशनी की तरह |

    और मेरे ख्वाब मुझसे
    मिलते हैं अजनबी की तरह

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  18. मनोज जी, सर्वप्रथम एक कुशल कार्यक्रम सम्‍पादित कराने की हार्दिक बधाई। पर आप इतने दिनों तक गायब क्‍यों हैं। माना कि आप आजकर खूब वर्कशॉप और कांफ्रेन्‍स अटेन्‍ट कर रहे हैं, विश्‍वविद्यालय में इम्‍तहान आयोजित करवा रहे हैं, घरेलू कार्यक्रमों में फंसे हुए हैं, पर फिरभी आपको ब्‍लॉग जगत से इतने दिनों तक दूर रहने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। और हॉं, अरविंद जी का आग्रह भी तो अभी तक पेन्डिंग है।

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  19. बहुत सुन्दर रोचक अभिव्यक्ति है सलाम

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  20. आपको परिवार और इष्ट मित्रों सहित होली की शुभकामनाएं और घणी रामराम

    आदर सहित
    ताऊ रामपुरिया

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  21. sir, jindagi kitani beraham si ho chali hai
    raah me kaatein hi kaatein bo chali hai
    chahta hu ek pal aaraam jab main
    ek parchaein darane aa rahi hai ,
    sanjeev

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  22. फ़िर फ़रमाइश। अब तो बहाना भी नहीं रहा कि पॉडकास्टिंग आती नहीं!

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