आज कल एक (कु)प्रथा समाज में चल पड़ी है वह यह कि जो बाप-दादा-पुरखों नें नही किया या सदैव मना किये उसी को हमें करनें में सर्वाधिक सुख या आत्मसंतोष की प्राप्ति हो रही है . समाज में हो रहे बदलाओं को प्रतिविम्बित करती एक चर्चित रचना जिसे आप पढ़ चुके हैं-- नजरिये हो गए छोटे हमारे ... बौने बड़े दिखने लगे हैं! में कवि के विचार कितनें ग्राह्य हैं।
इधर के निरंतर बीतते महीनों-वर्षों में नैतिक अनाचार -दुराचार की जो घटनाये इस सभ्य समाज में निरंतर वृद्धि की ओर अग्रसर है वह देश के लिए बेहद शर्मिंदा करनें वाली घटनाये है.कभी-कभी लगता है नैतिक मूल्यों के मामलों में हमसे भले हम सभी के पूर्वज ही थे जो तुरंत दंड का प्राविधान बनाये रखे थे ,जिस भय से ही लोग अंकुश में रहा करते थे.कम से कम आज के प्रगतिशील-सभ्य और पढ़े लिखों की तरह बेबस तो नहीं थे.
बचपन में एक कहानी सुनी थी कि एक राजा नें अपनें जीवन के अंतिम समय में अपनें चारो पुत्रों को बुलाया और कहा कि मेरे बाद तुम हर दिशा में जाना मगर दक्षिण दिशा में मत जाना .तीन पुत्र तो मान गये पर सबसे छोटे नें वह सलाह नहीं मानी और परिणामतः दुखी हुआ.मतलब यह कि किसी को भी सही राह नहीं भा रही है,लोग जाना चाह रहे हैं-सबसे आगे पहुंचना चाह रहे है लेकिन गति पर नियंत्रण नहीं है -कौन सी दिशा है -पथ सही है या नहीं -पता नहीं है ।मुझे लगता है कि काफी कुछ समस्याएं तो संयुक्त परिवारों के विघटन से भी हो रही है.एकल परिवार वालों को को तो यही नहीं पता कि उनका पड़ोसी कौन है फिर समाज और देश तो बड़ी बात है.
समाज में व्याप्त धूर्तता-मक्कारी -पाखंड-दुराचार-भ्रष्टाचार-शोषण की जब तक पूर्ण तिलांजलि नहीं दी जायेगी तब तक भारत महान नहीं बनने वाला ।
और अब चलते-चलते कवि पंडित अटल बिहारी बाजपेयी जी की एक रचना जो कि मेरी पसंद में से एक है --
यमुना कहती कृष्ण कहाँ है?सरयू कहती राम कहाँ है?
व्यथित गण्डकी पूछ रही है ,चन्द्रगुप्त बलधाम कहाँ हैं?
अर्जुन का गांडीव किधर है,कहाँ भीम की गदा खो गयी?
किस कोनें में पाञ्चजन्य है,कहाँ भीष्म की शक्ति सो गयी?
अगणित सीतायें अपहृत हैं ,महावीर निज को पहिचानों ,
अपमानित द्रुपदायें कितनी,समरधीर शर को सन्धानों|
अलक्षेन्द्र को धूलि चटाने वाले पौरुष फिर से जागो,
क्षत्रियत्व विक्रम के जागो,चणकपुत्र के निश्चय जागो|
कोटि-कोटि पुत्रों की माता अब भी पीड़ित ,अपमानित है ,
जो जननी का दुःख न मिटाए उन पुत्रों पर भी लानत है|
लानत उनकी भरी जवानी पर जो जो सुख की नींद सो रहे,
लानत है, हम कोटि-कोटि हैं,किन्तु किसी के चरण धो रहे|
एक हाथ में सृजन ,दूसरे में हम प्रलय लिए चलतें हैं,
सभी कीर्ति -ज्वाला में जलते ,हम अंधियारे में जलते है|
आँखों में वैभव के सपनें ,पग में तूफानों की गति हो,
राष्ट्र भक्ति का ज्वार न रूकता,आये जिस-जिस की हिम्मत हो||
समाज में बदलाव हज़ारों सालों से यूं ही चलता चला आ रहा है, डरना कैसा...
जवाब देंहटाएंलानत उनकी भरी जवानी पर जो जो सुख की नींद सो रहे,
जवाब देंहटाएंलानत है, हम कोटि-कोटि हैं,किन्तु किसी के चरण धो रहे|
एक हाथ में सृजन ,दूसरे में हम प्रलय लिए चलतें हैं,
सभी कीर्ति -ज्वाला में जलते ,हम अंधियारे में जलते है|
आँखों में वैभव के सपनें ,पग में तूफानों की गति हो,
राष्ट्र भक्ति का ज्वार न रूकता,आये जिस-जिस की हिम्मत हो||
gzb.
लानत उनकी भरी जवानी पर जो जो सुख की नींद सो रहे,
जवाब देंहटाएंलानत है, हम कोटि-कोटि हैं,किन्तु किसी के चरण धो रहे|
Atal ji kee bahut hee sundar rachana se aapne parichit karaya.
जवाब देंहटाएंजोश भर देने वाली कविता है.
जवाब देंहटाएंनालायक ओर लायक हम युग मे पेदा होते हे, लेकिन किसी युग मे लायक ज्यादा होते हे.. तो किसी युग मे नालयक ज्यादा होते हे.....
जवाब देंहटाएंManjul Sir
जवाब देंहटाएंI still remember your captivating way of reciting poems.
Sanjay Tiwari
राष्ट्र भक्ति का ज्वार न रूकता,आये जिस-जिस की हिम्मत हो|
जवाब देंहटाएंअटल जी की यह कविता कितनी प्रासंगिक है -याद दिलाने के लिए आभार !
,- नजरिये हो गए छोटे हमारे ... बौने बड़े दिखने लगे हैं!
जवाब देंहटाएंडॉ अरविन्द मिश्र और कौस्तुभ का गया यह गीत , जितनी बार सुनता हूँ आनंद आ जाता है !आज की सामाजिक बदलाव और गिरते मानव मूल्यों पर सोम ठाकुर का यह गीत आज के सामाज की हकीकत बताने में पूर्ण समर्थ है ! याद दिलाने के लिए आभार आपका !
आँखों में वैभव के सपनें ,पग में तूफानों की गति हो,
जवाब देंहटाएंराष्ट्र भक्ति का ज्वार न रूकता,आये जिस-जिस की हिम्मत हो||
आपका बहुत - बहुत आभार इस बेहतरीन रचना प्रस्तुति के लिये ।
सब से पहले तो कुछ दिन अनुपस्थित रहने के लिये क्षमा चाहती हूँ। सार्थक पोस्ट\ कविता मन मे नया उत्साह जगाती है
जवाब देंहटाएंआँखों में वैभव के सपनें ,पग में तूफानों की गति हो,
राष्ट्र भक्ति का ज्वार न रूकता,आये जिस-जिस की हिम्मत हो||
आज इसी सन्देश की जरूरत है। धन्यवाद।
सुन्दर और सार्थक रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है !
जवाब देंहटाएंभाग कर शादी करनी हो तो सबसे अच्छा महूरत फरबरी माह मे
अटल जी की कविता से सजी यह पोस्ट उर्जा का संचार करती है।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने ...चले जा रहे हैं , ना दिशा का ज्ञान है ना नियंत्रण ...चालाकी ,मक्कारी आदि गुण माने जाने लगे हैं !
जवाब देंहटाएंअटलजी की कविता को यहाँ पढना अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - ठन-ठन गोपाल - क्या हमारे सांसद इतने गरीब हैं - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
बहुत सुंदर वैचारिक प्रस्तुति और बेहतरीन कविता .....
जवाब देंहटाएंअटल जी को पढना हमेशा ही सुखद अनुभूति देता है...... इस ओजपूर्ण कविता को साझा करने के लिए आभार
मनोज जी युग का धर्म है -
जवाब देंहटाएंपत्ती-पत्ती झर जाओगे,
बन के गंध बिखर जाओगे,
यह हवा तुम्हें पी जाएगी,
पर हवा तम्हें नहीं सराहेगी।
achha aalekh.........
जवाब देंहटाएंsheershak se to aapne daraa hi diya tha...