गुरुवार, 25 अगस्त 2011

साहित्य वाचस्पति डॉ .श्रीपाल सिंह क्षेम : विनम्र श्रद्धांजलि


(चित्र साभार -श्री आशीष श्रीवास्तव )



डॉ.श्रीपाल सिंह 'क्षेम' का निधन हमारे जनपद ही नहीं अपितु पूरे साहित्य जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है.कल जनपद से हिन्दी जगत का सूर्य अस्त हो गया. डॉ क्षेम की उम्र नब्बे वर्ष थी लेकिन आज भी आपका जज्बा और हौसला कम नहीं था.अभी भी आप सक्रिय जीवन बिता रहे थे. अंतिम संस्कार नम आँखों से आज सुबह आदि गंगागोमती के रामघाट पर किया गया.जनपद के साहित्य प्रेमियों के लिए डॉ .श्रीपाल सिंह क्षेम को भुला पाना सहजनहीं है.गीतों के इस राजकुमार को हिन्दी साहित्य का शब्दकोश कहा जाता था.उनके गीत-मुक्तक,गद्य -पद्य इतनेंसहज और विद्वतापूर्ण होते थे कि उस पर निरंतर चिंतन-मनन भी होता रहता था. आपकी इसी विलक्षण प्रतिभाका निदर्शन इससे भी होता है कि आप की रचनाओं को पूर्वांचल विश्वविद्यालय समेत कई विश्वविद्यालयों ने अपनेपाठ्यक्रम में शामिल किया था.

डॉ.क्षेम का जन्म दो सितम्बर 1922 को हमारे पड़ोसी गांव बशारतपुर में हुआथा। समूचे देश में आपकी पहचानछायावादी काव्यधारा के सशक्त कवि के रूप में हुई थी. 1948 में प्रयाग विश्वविद्यालय से हिन्दी में आपनेंस्नातकोत्तर उपाधि धारण किया था. डा. क्षेम इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अपनें अध्ययन के दौरान ही साहित्य कीसर्वोच्च संस्था परिमल से जुड़ गये थे. उसी दौर में आपका संपर्क डा. धर्मवीर भारती, डा. जगदीश गुप्त, डा. रघुवंश,प्रो. विजय देव नारायण,सुमित्रा नंदन पंत,महादेवी वर्मा, कथाकार पहाड़ी, नरेंद्र शर्मा, डा. हरिवंशराय बच्चन, गंगाप्रसाद पांडेय, प्रभात शास्त्री से हुआ .कालांतर में जनपद केप्रमुख और प्रतिष्ठित तिलक धारी महाविद्यालय में हिंदीप्रवक्ता पद पर आपकी नियुक्ति हुई और विभागाध्यक्ष के पद से १९८३ को आपनें अवकाश ग्रहण किया. उन्हें हिंदीसेवा संस्थान प्रयाग से साहित्य महारथी, हिंदी साहित्य हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश से साहित्य भूषण,मध्य प्रदेश नईगढ़ी से ठाकुर गोपाल शरण सिंह काव्य पुरस्कार ,सम्मेलन प्रयाग से साहित्य वाचस्पति, वीर बहादुर पूर्वांचलविश्वविद्यालय सेपूर्वांचल रत्न की उपाधि मिली थी. डॉ.क्षेम नें अनेक कृतियों का सृजन और सम्पादन किया था .आपकी प्रमुख कृतियों में नीलम तरी, ज्योति तरी, जीवन तरी, संघर्ष तरी, रूप तुम्हारा :प्रीत हमारा, रूपगंधा :गीत गंगा, अंतर ज्वाला, राख और पाटल, मुक्त कुंतला,मुक्त गीतिका, गीत जन के, रूप गंगा, प्रेरणा कलश, पराशरकी सत्यवती। कृष्णद्वैपायन महाकाव्य का संपादन। गद्य रचना में आपकी सशक्त कृतियाँ थी- छायावाद की काव्यसाधना, छायावाद के गौरवचिन्ह,छायावादी काव्य की लोकतांत्रिक पृष्ठिभूमि. प्रतिवर्ष 2 सितम्बर को क्षेमस्विनी संस्था द्वारा समारोह आयोजित कर आपका जन्मदिन मनाया जाता था। जन्मदिन समारोह में जहाँ एक ओर देश के प्रतिष्ठित कवि गण आते थेवहीं दूसरीओर देश की जानी-मानी हस्तियां भी उपस्थित होतीं थी.
मेरे प्रातः स्मरणीय पिता जी से डॉ क्षेम जी का बहुत स्नेह रहता था. पहले घर पर होने वाली काव्य गोष्ठी में डॉ क्षेमजरूर रहते थे.उनके साथ मैंने भी एक-दो बार उनकी और महाकवि पंडित रूपनारायण त्रिपाठी जी की रचनाओं कासस्वर पाठ कर किया था.मेरी रचनाओं से वे बहुत खुश होतेऔर पिता जी कहते कि इसका गला बहुत बढ़िया हैइसको अपनी प्रतिभा को दबाना नहीं चाहिएपिता जी के निधन के बाद उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर वर्ष २००० मेंपिता जी के स्मृति ग्रन्थ के सम्पादन का दायित्व आपनें स्वयं लिया था.उन दिनों मेरी आपसे नियमित मुलाकातहोती और मेरा खूब ज्ञानार्जन होता.आपसे मैंने भी बहुत कुछ सीखा -समझा.मुझे मेरे पिता जी डॉ राजेंद्र प्रसादमिश्र,,पितामह वैद्यप्रवर पंडित उदरेश मिश्र ही नहीं वरन प्रपितामह वैद्य शिरोमणि पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र सेजुड़े अपनेँ संस्मरण बताते थे जिनको आपनें अपनेँ बालपन में देखा था.मेरे परिवार की कई पीढ़ियों से आप परिचित थे.
डॉ .श्रीपाल सिंह क्षेम के चर्चित मुक्तकों में से कुछ एक को मैंने अपनी एक पोस्ट में प्रकाशित भी किया .था.साहित्य के इस महारथी को चलते-चलते उनकी एक रचना से ही अपनें स्वर में नमन कर रहा हूँ...

अश्रु में हास फेरे मिलेंगे ,
आँधियों में बसेरे मिलेंगे,
डूबता सूर्य यह कह गया है,
फिर सबेरे-सबेरे मिलेंगे.
चार दिन का है मेहमा अँधेरा ,
किसके रोके रूकेगा सबेरा,
डूबता सूर्य यह कह गया है ,
फिर सबेरे -सबेरे मिलेंगे..............
हमारे लिए ,आपकी साहित्य धर्मिता सदैव जीवित रहेगी. ...विनम्र श्रद्धान्जलि..

22 टिप्‍पणियां:

  1. डॉ क्षेम के बारे में इतना सब पहली बार जाना ...वे हिंदी के प्रख्यात कवियों में से एक थे ! हिंदी जगत की बड़ी क्षति है यह !
    उनको हार्दिक श्रद्धांजलि !
    एक अजीब सा संयोग है कि डॉ अरविन्द मिश्र ने मेरी पिछली पोस्ट पर कमेन्ट में, क्षेम जी की एक रचना की कुछ पंक्तियाँ उद्धृत की थीं जबकि अधिकतर अरविन्द जी अपने कमेंट्स में अन्य कवियों को कम ही उद्धरित करते हैं !
    प्रकृति का विधान और रहस्य अबूझे है...इसे भावी का एक अहसास कहा जाए अथवा मात्र संयोग ...??

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  2. आपके लेख से एक बड़े साहित्यकार और कवि के बारे में जाना । निसंदेह उनके जाने के बाद उनकी रचनाएँ हमेशा हमें उनकी साहित्य धर्मिता का आभास दिलाती रहेंगी ।

    डॉ ।श्रीपाल सिंह क्षेम को विनम्र श्रधांजलि ।

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  3. डॉ.श्रीपाल सिंह 'क्षेम' का जाना हिंदी साहित्य की अपूर्णनीय क्षति है। पूर्वांचल के हिंदी प्रेमियों के लिए तो यह गहरा आघात है । पहली बार श्री कृष्ण कल्कि(वरिष्ठ पत्रकार) के साथ उनके आवास रासमंडल गया था। संभवतः 90-91 की बात होगी। कुछ हिंदी प्रेमी उनको बड़े ध्यान से सुन रहे थे । हम भी सावधानी से बैठ गये। कविता की समाप्ति पर जब कल्कि जी ने मेरा परिचय कराया तो उन्होने मुझे अपनी कविता सुनाने का आदेश दिया। सुनने के बाद उन्होने जमकर तारीफ करी और खूब प्रोत्साहित किया। मैं खुशी से गदगद हो घर लौटा। वे नए लेखकों में इतनी उर्जा भर देते थे कि वह कुछ न होते हुए भी कुछ लिखने लग जाता था। इसके बाद मंच पर उनको सुनने का अवसर मिला लेकिन आशीर्वाद दुबारा नहीं मिल पाया। उनके दिवंगत होने का समाचार वाकई कष्टकारी है।
    ...विनम्र श्रद्धांजलि।

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  5. यह सचमुच एक अद्भुत संयोग ही है कि अभी कुछ दिनों ही पहले सतीश सक्सेना जी की पोस्ट में मैंने इस यशस्वी कवि की उक्त पंक्तियाँ सहज ही उद्धृत कर दी थी जबकि दुनियावी चोचलों में काफी अरसे से उनके गीत विस्मृत से हो गए थे ...यह प्रेरणा संवेग अचानक और उनके अवसान के बस कुछ घंटों पूर्व मुझे भी अचम्भित कर रहा है -इस प्रशस्त काया , वाणी और व्यक्तित्व के धनी कवि शिरोमणि के गीतों की अनुगूंज में हमने अपना बचपन गुजारा ..उनके गीत आशा और ओज से ओतप्रोत होते थे.....
    मुझे भी इस कवि के सन्निकट कुछ पल गुजारने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है -क्षेम जी सटीक अर्थों में 'सुबरन' प्रेमी थे -एक बार मुझसे उन्होंने चिकित्सा शास्त्र के शब्द एनाटामी का सविस्तार अर्थ पूछा था -और कहा कि 'अकेलेपन की अनाटामी' सही अभिव्यक्ति हो सकती है क्या ?
    सचमुच जौनपुर के साहित्याकाश में एक महाशून्यता तिर आयी है -इस महाकवि को श्रद्धासुमन ,नमन !

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  6. ये तो अटल सत्य है सर...सुनकर बड़ा दुःख हुआ..
    विनम्र श्रद्धांजलि !!!

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  7. डॉ क्षेम के बारे में आपके माध्यम से रूबरू होने का मौका मिला, विनम्र श्रद्धांजलि.

    रामराम

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  8. हार्दिक श्रद्धांजलि, हर रात की सुबह आयेगी।

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  9. मनोज जी, डा क्षेम की इस सुन्दर श्रद्धाँजलि के लिए धन्यवाद

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  10. डा क्षेम जी के अद्भुत व्यक्तित्व से परिचय हुआ.उनकी रचनाएँ प्रभावशाली हैं.
    उनके निधन के दुखद समाचार से अवगत हुई.
    डॉ.क्षेम जी को हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि.

    [आप ने पॉडकास्ट लगाया है अभी सुविधा नहीं है,सुन नहीं पा रही हूँ.]

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  12. Swargiya dr 'Kshem'ji ko vinamra shraddhanjali.
    Bahut bhavbhini jankari di aapne.

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  13. .
    बस यादें कविताओं के साथ रह जाती हैं कवियों की ..!

    जयंति ते सुकृतिनो....!!

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  15. @आज ही काव्यपाठ सुन सकी.कविता काव्य -पाठ एवं स्वर उत्तम लगा.श्रद्धांजलि पुष्प पुनः अर्पित हैं.

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  16. समय पर न आने के लिए क्षमा चाहती हूँ . महाकवि को जानने का सुअवसर भी मिला तो ऐसे . उनको नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि

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  17. सुनकर बहुत ही आघात लगा। मैंने तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय से हिंदी में एम ए किया था और उनके बारे में प्रायः सुनता रहता था। उनकी प्रसिद्ध कविता - एक पल ही जियो फूल बन कर जियो शूल बनकर ठहरना नहीं जिंदगी- अक्सर याद आती रहती है। उनकी रचनाओं को कविताकोश में जोडने हेतु मैंने मेल किया था परंतु उनका जवाब आया कि उनके पास पर्याप्त सामग्री नहीं है उन्होंने मांग की थी कि यदि मेरे पास उनका चित्र और 8-10 रचनाएं हों तो मैं उन्हें भेज दूं परंतु मैं असमर्थ रहा। यदि आप यह शुभ कार्य कर सकें तो उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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  18. फ़िर सबेरे-सबेरे मिलेंगे। अद्भुत।

    क्षेमजी के जाने का दुख है।

    उनको हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।

    उनकी और रचनायें अपनी आवाज में सुनवायें। अच्छा लगेगा। आपको भी और हमको भी। इसी बहाने वे और ज्यादा रहेंगे हमारे बीच!

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