शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

क्या ऐसे ही हम 2020 तक महाशक्ति बनेंगे ? (३)

गतांक से आगे....
21 सितम्बर 1995 को देव प्रतिमाओं ने अपने भक्तजनों के हाथों दुग्धपान किया , पूरे देश की तत्कालीन मीडिया ने उसे खूब प्रचारित किया। कन्याकुमारी से काश्मीर तक केवल यही खबर तैर रही थी। देश में हाई एलर्ट की स्थिति थी,तब राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग,भारत सरकार, के वैज्ञानिक दल ने जिसमें डॉ मनोज पटैरिया भी शामिल थे, इस चमत्कार के सच को जनता के सामने रखा था। वैज्ञानिक दल का मानना था कि वास्तव में प्रत्येक द्रव का अपना पृष्ठ तनाव होता है,जो कि द्रव के भीतर अणुओं के आपसी आकर्षण बल पर निर्भर करता है और इसका आकर्षण बल उस ओर भी होता है, जिस पदार्थ के सम्पर्क में आता है। देव प्रतिमाओं के दूध पीने में भी ऐसा ही हुआ है। जैसे ही दूध संगमरमर पर सीमेंट या अन्य चीजों से बनी मूर्तियों के सम्पर्क में आया वह तुरन्त मूर्तियों के सतह पर विसरित हो गया,जिससे श्रद्धालुओं को लगता है कि चम्मच से मूर्ति ने दूध खींच लिया है जबकि हकीकत में दूध की पतली सी धार नीचे से निकलती रहती है जो कि लोग विश्वास के कारण देख नहीं पाते। जब दूध में रंग,रोली मिलाकर देखा जाय तो रंगीन धार स्पष्ट रूप से दिखाई देगी। इस में कोई वास्तविकता नहीं है यह वैज्ञानिक नियमों के अन्तर्गत सामान्य प्रक्रिया है जिसे अज्ञानता के चलते लोग चमत्कार का नाम दे रहे हैं।इसमें सबसे दःखद पहलू यह है कि इस बात को हम अभी भी भारतीय जनता तक नहीं पहुंचा पाये हैं। आश्चर्य है कि अभी भी हमारी भोली-भाली जनता अज्ञानता के मोहपाश में जकड़ी है। वह अपनी कुंभकर्णी निद्रा का त्याग ही नहीं कर पा रही है या फिर हम वास्तव में अपने वैज्ञानिक संदेशों एवं उपलब्धियों को उन तक पहुंचा नहीं पा रहे हैं।
इसके साथ ही एक और चमत्कार ने तो कुछ वर्ष पूर्व देश को और भी शर्मसार किया था। पेयजल का मुद्दा जन स्वास्थ से जुड़ा है। मुम्बई म्युनिसपल कारपोरेशन एवं अन्य सरकारी संगठनों द्वारा की गयी घोषणा के बाद कि माहिम के तट पर तथाकथित मीठा जल स्वास्थ के लिए हानिकारक है एवं उसे पीने से तबियत खराब हो सकती है,लेकिन लोग थे कि मानते ही नहीं थे, पिये ही जा रहे थे। निश्चित रूप से यह चमत्कार नहीं है वैज्ञानिकों ने इसकी पुष्टि कर दी कि यह बारिश का पानी हैं। संचार माध्यमों ने इसको अपनें तरीके से खूब प्रसारित भी किया . ऐसी अज्ञानता से देश अँधेरे में ही जायेगा. सवाल यह है कि हम दुनिया में अगली पंक्ति के नायक इसी अज्ञानता के बदौलत होगें। हमारी शिक्षा प्रणाली या फिर नेतृत्व देने वाले लोग , कौन इसका जवाब दे। महामहिम पूर्व राष्ट्रपति जी के 2020 तक महाशक्ति बनने के ख्वाब को हम क्या ऐसे ही पूरा करेंगे? जब तक विशाल आबादी वाले इस महान देश के जन-जन में वैज्ञानिक चेतना का समावेश नहीं होगा तब तक महाशक्ति बनने का दावा करना कितना बेमानी लगता है और जब हम 64 वर्ष बीतने के बाद भी तथाकथित जागरूकता और प्रगति की आकडे़बाजी में फॅसे है,भौतिक धरातल पर जागरूकता की यह हालत है तो कैसे भविष्य में त्वरित सुधार की उम्मीद कर सकते हैं। आजादी के वर्षो को गिनने से तो रिटायर होने का समय आता दिखता है,ज्ञान सीखने का नहीं। भविष्य की आहट बहुत भयावह है। यदि हमें दुनिया के देशों की कतार में आगे बैठना है तो ज्ञान की शक्ति चाहिए,वैज्ञानिक जागरूकता चाहिए न कि अन्ध विश्वास ।दुष्यंत कुमार जी की ये पंक्तिया सम्भवतःसटीक हैं कि-
कहाँ तो तय था चिरांगा हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।।

समाप्त.









27 टिप्‍पणियां:

  1. तरह तरह के बाँध बने हैं,
    ठहरा पानी सड़ जायेगा।

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  2. बढ़िया आलेख तैयार हो गया है। इसे प्रिंट मीडिया में प्रकाशित करवाने की आवश्यकता है। उम्मीद है कि इस विषय में और पढ़ने को मिलेगा।

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  3. मनोज भाई मिश्र जी १३-१६ सितम्बर तक विस्तारित इस श्रृंखला "क्या ऐसे ही हम महा -शक्ति बनेंगें "पढ़ी .आपकी चिंता वाजिब है दरअसल इस धर्म भीरु देश में वैज्ञानिकता का प्रसार भी मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे से ही होगा .वहीँ विज्ञान संचार को पहुंचना होगा .भारत सरकार ,विज्ञान और प्रोद्योगिकी मंत्रालय ऐसा एक चैनल क्यों नहीं स्थापित कर सकता ,गैर -सरकारी प्रयास से भी यह काम हो सकता है मुझे और कोई कामयाब रास्ता फिलवक्त नहीं दिखता .इस घटा टॉप से निकलने का जहां हर घंटे शिव का धनुष ,रावण की लंका मिलती है ,हनूमान का लंगोट और सारे दिन आदमी का आध्यात्मीकरण हमारे चैनालिये करते रहतें हैं .ध्यान आकर्षण की मुहीम आपकी स्तुत्य है .

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  4. कहाँ तो तय था चिरांगा हरेक घर के लिए,
    कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।।
    .
    बढ़िया लेख़ मनोज जी. जौनपुर में भी लाइट नहीं रहती.

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  5. यहाँ लोगों को अंध विश्वास ही फायदेमंद लगता है । कईयों के स्वार्थ पूरे हो जाते हैं ।
    अच्छा जागरूक करने वाला लेख ।

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  6. डॉ. मनोज पटैरिया का योगदान सचमुच बहुत सराहनीय था ....

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  7. बहुत ही सटीक और सामयिक आलेख, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  8. अज्ञान के अंधकार को छाँटने के लिए इस मुहिम को चलाए रखना जरूरी है। आप का प्रयास इस में बहुत योगदान कर रहा है।

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  9. पता नहीं लोग कब तक इन चमत्कारी ढपोरशंखी वर्ग से निजात पायेंगे, निजात पाना चाहते भी हैं या नहीं इस पर भी शक है।

    जिस समाचार चैनल पर शाम के समय बताया जाता है कि फलां बाबा पर लड़की छेड़ने, जमीन कब्जाने का आरोप है पता चला अगली सुबह उसी समाचार चैनल पर बाबा प्रवचन दे रहा है।

    दुग्ध प्रकरण तो पूरे भारत के लिये एक तरह से शर्मिंदगी वाला अध्याय रहा जिसमें कि आला दर्जे के पढ़े लिखे लोग भी लग लिये थे लाइन में और कई मुख्यमंत्रीयों को देखा जो बड़े शौक से बता रहे थे कि भगवान गणेश ने मेरे हाथों से दुग्धपान किया।

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  10. चेतना फैलाते रहिये। आँखें खुली रखे बिना ज्ञान का प्रसार कैसे होगा।

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  11. बढ़िया आलेख, बहुत सटीक और सामयिक आलेख, अज्ञान दूर करने का अभियान सुंदर प्रयास है. बधाई.

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  12. मनोज जी, सोचने के लिए विवश कर दिया आपने। सचमुच, स्थितियों में सुधार करने की आवश्‍यकता है।

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    कभी देखा है ऐसा साँप?
    उन्‍मुक्‍त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..

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  13. मनोज जी ,
    दरअसल कुछ लोगों को बेवकूफ बनाने में जितना मजा आता है , उतना ही मजा बहुत से लोगों को बेवकूफ बनने में आता है। इसीलिए ऐसी बातें हमारे समाज में होती रहती है। यह बेवकूफी हमें भा चुकी है और हम तो हर पाँचवे ंसाल अनेक मूर्तियों को दूध पिलाने के आदती हो गए हैं। बिना दूध पिलाए हमसे रहा ही नहीं जाता। इसमें उनका क्या दोष?

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  14. अच्छा लेख है। मूर्ती के दूध पीने का किस्सा तो तूफ़ान की तरफ़ फ़ैला था। लेकिन बाद में हुआ उसका वैज्ञानिक विश्लेषण जनता ने ग्रहण ही नहीं किया।

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  15. तीनों अंक देखा, पहले ही। संदर्भ याद आये। जानने-बूझने लायक बड़्हिया लेखन।

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  16. मनोज जी नमस्कार्। सत्य को दर्शाता समसामयिक आलेख्।

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  17. समसामयिक विषय पर आपने बहुत अच्छा चिंतन प्रस्तुत किया है .....

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  18. मुझे भी याद है २१ सितंबर ..मैंने भी पिलाया था दूध . अब हंसी आती है उस लहर को याद करके. शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.और पूज्य पिताजी को विनम्र नमन .

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  19. बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! बेहतरीन प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

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  20. मैं दूध वाली घटना वाले दिन गौहाटी में, एक मित्र के यहाँ रुका था ! गृहस्वामिनी बेहद उदास थीं मेरे लिए कि यह विलक्षण घटना मैंने नहीं देखी और न रूचि ली !अंध विश्वास भयावह लगता है !
    शुभकामनायें !

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  21. बहुत सटीक समसामयिक लेख प्रस्तुत किया है आपने मनोज जी....पर जनचेतना जागे तो कुछ बात बने ...वरना पड़ोस में आग लगी है तो भी लोग हवन का आयोजन करते हैं

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  22. वैज्ञानिक जागरूकता चाहिए न कि अन्ध विश्वास ।दुष्यंत कुमार जी की ये पंक्तिया सम्भवतःसटीक हैं कि-
    कहाँ तो तय था चिरांगा हरेक घर के लिए,
    कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।।

    चिंतनीय है ..

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  23. डॉ. साहब,
    आपको, परिजनों तथा मित्रों को दीपावली पर मंगलकामनायें! ईश्वर की कृपा आपपर बनी रहे।

    ********************
    साल की सबसे अंधेरी रात में*
    दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
    लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी

    बन्द कर खाते बुरी बातों के हम
    भूल कर के घाव उन घातों के हम
    समझें सभी तकरार को बीती हुई

    कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
    अपना-पराया भूल कर झगडे सभी
    प्रेम की गढ लें इमारत इक नई
    ********************

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