शुक्रवार, 12 जून 2009
एटम बम और सई नदी की पीड़ा .
अरे चौकिये नहीं ,मैं किसी आण्विक अस्त्र के बारे में बात नहीं कर रहा हूँ .हमारे जिला मुख्यालय से ५० किलोमीटर दूर एक बाज़ार है नाम है सुजानगंज .वहां की एक मिठाई बहुत प्रसिद्द है उसका नाम है एटम-बम .जो इस मिठाई के बारे में नही जानता वह बाज़ार में इस मिठाई का नाम सुन कर चौक जाता है .किसी भी मिठाई की दुकान पर जाइये तो वहाँ एटम बम -एटमबम ही सुनायी पड़ता है .एटम बम खायेंगे या कितने कीलो एटम बम दूँ यही आवाजें आती -जाती रहती हैं .इस मिठाई को देखने से यह राज - भोग का भ्रम पैदा करता है लेकिन यह राजभोग से थोड़ा अलग किस्म की मिठाई है औरशुद्ध गाय के छेने से बनने वाली इस मिठाई का वजन है लगभग १७० ग्राम प्रति .अच्छे -अच्छे लोग इसे एक बार में नहीं खा सकते . हालाँकि हम लोग तो बचपन से ही इसके बारे में परिचित हैं लेकिन दो दिन पहले यहीं एक बारात में मैं शामिल हुआ तो सोचा क्यों न आप सब को भी इससे परिचित कराता चलूं .
ताज़ा -ताज़ा एटम बम
सभी दुकानें एटम बम की
यह सज्जन कितना मगन हैं एटम बम खाने में
और अब दूसरी खबर देखिये - जो कि पर्यावरण प्रेमियों के लिए काफी दुखद है वह यह कि सई नदी की पीड़ा देखी नहीं जाती .इसी बाज़ार के पास से ही प्राचीन नदी "सई" गुजरती है जो कि पूरे क्षेत्र के लिए वरदान से कम नहीं है ,लेकिन वह वरदान अब अभिशाप होने जा रहा है .पूरी की पूरी नदी का पानी काला पड़ गया है .इंसानों की बात तो दूर जानवर भी आस-पास नहीं फटकते .मछलियाँ ही नहीं , नदी में कोई भी जलीय जीव नहीं दिखाई पड़ता है.यह नदी काफी प्राचीन है इसका उल्लेख गोस्वामी तुलसी दास जी नें अपने श्री राम चरित मानस में भी किया है ,जब भरत जी चित्रकूट से वापस आ रहे थे -
सई उतरि गोमती नहाए ,चौथे दिवस अवधपुर आये |
जनकु रहे पुर बासर चारी ,राज काज सब साज सम्भारी ||
(अयोध्या कांड, दोहा संख्या ३२१)
कई सामाजिक संगठन इस नदी में व्याप्त प्रदूषण के निवारण लिए संघर्ष कर रहें हैं पर कोई नहीं सुन रहा है .मुझे लगता है यह हालात तो वाकई चिंता जनक है लेकिन सरकारी महकमें को और जल प्रदूषण विभाग को यह भयावह हालात क्यों नहीं दिख रहा है .
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ये नदियाँ हमारी जिंदगानी हैं ,इनके बगैर हमारा भी कोई अस्तित्व न रहेगा .कौन हरेगा सई की पीडा को ? क्या इस दौर में फिर कोई भागीरथ पैदा होगा ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो कि मुझे कल से ही बेचैन किये हैं . गंगा के लिए तो आवाज़ उठाने वाले कई हैं ,इन नदियों के लिए आवाज़ कौन उठाएगा ?
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मैंने भी सई नदी के इस रूप को परसों ही बनारस जाते समय पुल पर से देखा था। आज ब्लॉग पर देख रहा हूं।
जवाब देंहटाएंसचमुच काफी दुखद स्थिति बनती जा रही है।
एटम बम के बारे में तो लगता है ये छेना ही है.....शायद कन्टेंट कुछ अलग हो।
एटम बम के देख कर मुंह जितना मीठा हो गया था ...साईं नदी के पानी को देख कर मन और तन दोनों ही जहरीला हो गया...लगता है की नदियों के प्रति हम बिलकुल संवेदनहीन हो गए हैं..
जवाब देंहटाएंएटम बम के बारे में जाना . लगता है कि ये छेना के रसगुल्ले ही है जिसे लोग बाग़ एटम बम के नाम से पुकारते होंगे. जल प्रदूषण के बारे इस पोस्ट के माध्यम से सबके सामने रखने के लिए आभारी हूँ . हम सभी ब्लागरो का का दायित्व है कि समय समय पर इन मुद्दों की ओर सबका ध्यानाकर्षित कराते रहे यह भी हमारी नैतिक जिम्मेदारी है .
जवाब देंहटाएंदोनों के प्रभाव मारक हैं !
जवाब देंहटाएंएटम बम भी सूगर की बीमारी वालों के लिये एटमबम ही है और सई नदी का हाल सुनकर तो एटमबम से जितनी मिठास घुली थी मन मे वो सब कडुआहट मे तब्दील हो गई.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपने बहुत अच्छा वर्णन किया है, यह सई नही ठीक मेरे गाँव बड़ारी प्रतापगढ़ से होकर बहती है, प्रतापगढ में इसका इतना विस्तार है कि इस पर करीब एक दर्जन पुल बने हुये या प्रस्तावित है। कभी मौका मिला तो जरूर लिखूँगा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, नयी जानकारी मिली आप से,
जवाब देंहटाएंपहले पहल तो डरा ही दिया,
एटम बम दिखा करे के,
उसके बाद मुँह मधुर कराया,
एटम बम खिला कर के,
आज कल नदियों की हालत शोचनीय है,सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए,बहुत सुंदर प्रयास आपका,धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंकल तक नदियों की शोभा थी,
आज जूझती है, अस्तित्व,
राम राज मे राज था जिसका,
ख़त्म हुआ है आज महत्व.
काश की सारे युद्धों में इसी एटम बम का प्रयोग हो ..
जवाब देंहटाएंumda post
जवाब देंहटाएंआपने सुजानगंज यात्रा का बढ़िया उपयोग कर लिया .बहुत ही बेहतरीन खबर .काश सई नदी के लिए कुछ हो पाता .
जवाब देंहटाएंजिस नदी में मैं बचपन में स्नान करने जाता था। वह तो गायब ही हो गई। बस वहाँ एक नाला बहता है।
जवाब देंहटाएंअरे यह एटम बम्ब तो अभुत सुंदर ओर स्वाद लग रहा है, लेकिन यह नदी का पानी हम सब की गलती से ऎसा हुआ है, अगर सरकार चाहे तो कारण ढुढ कर इस का इलाज कर सकती है
जवाब देंहटाएंमुँह में पानी आ गया...अब क्या करें...।जाने दीजीए मुँह कसैला भी हो गया.....
जवाब देंहटाएंएटम बंम को देख कर जो मुँह मे पानी आया था वो सी नदी को देख कर सूख गया ये बात हमे अच्छी नहिँ लगी कम स कम एटम बम का ज़ायका तो लेने देते शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंइस एटम बम के खाने का जुगाड़ क्या हो सकता है...? सोच कर बताइये.... और नदियों का पूरे देश में कमोबेश यही हाल है.. चिंतनीय...
जवाब देंहटाएंaisa atam bamb mithaa mithaa.........achchhaa hai .....bhai
जवाब देंहटाएंये छेना ही है....jo majedar hota hai :)
जवाब देंहटाएंसई नदी के नाला में रूपान्तरण से बहुत कष्ट हुआ। इस अपराध में हम सब भागी हैं। भविष्य के साथ किया अपराध है यह।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट है! मिठाई देखकर तो मुह में पानी आ गया! देखा जाए तो नदी की बुरी हालत सभी जगह पर है!शानदार पोस्ट के लिए बधाई! लिखते रहिये!
जवाब देंहटाएंsahi me atom bam hai sab ko aisa bam khane ka man karega
जवाब देंहटाएंऐसे एटम बम पर हजारों जिन्दगियां कुर्बान हैं।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
एटम बोम्ब को देख कर मुंह मैं पानी आ गया जनाब............... पर बहूत ही दुःख हवा............ साईं नदी के बारे में जान कर...... हम भारतवासी शायद सबके बाद जागेंगे.........
जवाब देंहटाएंsir.
जवाब देंहटाएंmithayi dekhkar moonh me paani aa gaya
aur nadi ko dekh kar dil udaas ho gaya .. deshwaasiyon ko specially adhikaariyon ko is baare me kuch karna chahiye...
dhanyawad.
vijay
pls read my new suif poem
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/06/blog-post.html
uff itna laalach aa raha tha mithayee dekhkar...abhi mann kar raha hai kahin jaake khaa loon!!
जवाब देंहटाएंआपने जो मुद्दा उठाया है उसपर एक लम्बी बह्स हो सकती है । आज हमारी नदियों का जो हाल है ,उससे तो यही जान पड़ता है की आने वाले समय में भारत में सबसे पहले जल संकट की शुरआत होगी ।आप से गुजारिश है की एक पोस्ट गोमती के प्रदूषद के बारे में भी लिखे ताकि सामाज को ये पता चल सके की हिंदुस्तान के अकेले ऐसे शहर जिसको नदी दो भागों में बाटती है, यानी जौनपुर हिन्दुस्तान का अकेला ऐसा शहर है ,जिसके बीच से नदी बहती है, वो नदी भी प्रदूषद के अभिशाप से मुक्त नही है । .....रही बात एटम बम की तो फोटो में इतना अच्छा जान पड़ता है तो मुँह में जाने के बाद क्या हाल होगा ।
जवाब देंहटाएंहमें परिवर्तन के बारे में सोचना होगा और सार्थक कदम भी उठाने होंगे। लेख प्रेरक है।
जवाब देंहटाएं---
चर्चा । Discuss INDIA
"इन नदियों के लिए आवाज़ कौन उठाएगा?"
जवाब देंहटाएंअच्छा सवाल उठाया है आपन. मगर ऐसा लगता है कि आवाज़ उठाने वाली स्थिति से आगे निकल आये हैं हम - अब तो कुदाल (और शायद जल सुधारक संयंत्र भी) उठाने का समय है.
Uncle! achhe bachhe mithai nahin khate.Par ap denge to mana nahin karungi.
जवाब देंहटाएंरसीला एटमबम भा गया। लेकिन, सई की दुर्दशा देखकर मन खट्टा हो गया।
जवाब देंहटाएंडा. साहब हम भी ऎटम बम भोग चुके हैं . और सई नदी का दर्द भी हमारा अपना है.हमारे जिले प्रतापगढ़ में तो खूब घूम के बही है. बहुत नहाये हैं , पर अब उसे देख मन भर जाता है दर्द से .
जवाब देंहटाएंsir, apne to jaunpur ki tasir khich di hai.
जवाब देंहटाएंjai se ek hi ghar me garib parivar aur amir parivar sath-sath rah rahe ho. HAPPY KRISHNA JANM ASTAMI.SANTOSH PANDEY .
Priya Bandhu,
जवाब देंहटाएंaapney bahut purani yadey taaza kar dee, merey mama ji kabhi ,jeevit rahtey isi atom bomb ka swad chakhaya kartey they, ab na mama ji rahe na wo swad hi, aaj aapney mun ke puraney dwar khol diye, hardik dhanyavaad,aabhar.
aapka hi
dr.bhoopendra
दो बम एक साथ दिखा दिये।
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