(चित्र -साभार-गूगल )
आज -कल इन्द्रदेव का स्तुतिगान जगह -जगह पर हो रहा है ,क्या हिन्दू-मुस्लिम ,सिख -इसाई सब के सब इस मुद्दे पर एक हैं .इस मुद्दे पर न तो भाषाई विवाद है और न ही क्षेत्रीय .लेकिन असली बात मुझे समझ में यह नहीं आ रही है वह यह कि आज कल विद्वत समाज बारिश न होने के कारण जो बता रहा है वह है पर्यावरण या ग्लोबल वार्मिंग, लेकिन सवाल यह है कि उसके असली करता -धर्ता तो हम लोग हैं फ़िर स्तुति गान इन्द्र देव का क्यों ?इसके लिए तो फूल -माला -लड्डू प्रसाद से हमारा अभिषेक हो चाहिए ,फ़िर यह सब इन्द्र देव का क्यों।
एक लोकोक्ति हम लोंगों की तरफ है जिसे मैं बचपन से सुनता आ रहा हूँ कि -सबसे भले वे मूढ़ ,जिन्हें न ब्यापहि जगति गति.अर्थात संसार में क्या हो रहा है जिसे उसका पता न हो वह सबसे सुखी है. पर्यावरण की ऐसी तैसी हमने की ,कंक्रीट का जाल हमने बिछाया,असंतुलन पैदा करने वाली गैसों को हमने पर्यावरण में पहुचाया और लड्डू चढे इन्द्र पर .यह कैसा इन्साफ है.
घर -घर ,परिवार ,बाज़ार ,शहर- हर तरफ बारिश न होने से त्राहिमाम की स्थिति है .बारिश के लिए कहीं महिलाएं अपने कंधे पर हल लेकर चला रही है ,कहीं कुमारी कन्याएं बांस को पकड़ कर करुण क्रंदन कर रहीं है ,पूजा -पाठ और यज्ञ हो रहें है .तंत्र-मंत्र -टोटके हो रहें है ,गाँव में काल-कलौटी-उज्जर धोती पर छोटे-छोटे बच्चे जमीन में लोट रहें हैं,हम लोंगो की तरफ सोमवार को शिव -मन्दिरों पर शिवलिंग के अरघे का पानी बंद कर भगवान शिव को डुबो दिया जा रहा है कि जब साँस फूलेगी तब भोले भंडारी हम लोंगो की पीड़ा को समझ पानी बरसाएंगे.यह दुराग्रह,यह हठ है हम मानवों का . लेकिन यह कोई न तो समझ पा रहा है और न कोई ज्ञानी समझा पा रहा है कि हे भइया यह तो समस्या मानव जनित है भला इन्द्र या अन्य देव इसमें क्या करेंगे .यह तो वही हाल हुआ कि पूरे साल भर आप मस्ती करें -कभी न पढे और सवा किलो के लडू की मनौती में ,लालच में ,बजरंग बली आपको पास करने के लिए सक्रिय हो जायें और आप सोते रहें-सोते रहें.
इस समस्या के लिए सबको जगाना होगा-समझाना होगा -यह हम सब के लिए चुनौती है ,पर्यावरण को बनाये रखने की चुनौती ,यह मानव जनित समस्या है -हम मानव ही इसे सुलझाएंगे तो हे महाबाहु -हे धरती के देवताओं ,जागो और जगाओं लोंगों को ताकि हमारी आने वाली पीढी इसके लिए इन्द्र देव की आरती उतार कर फ़िर अपनें कर्तव्य की इतिश्री न कर ले. फ़िर कहीं आने वाले कल में अचानक अँधेरा नहो जाए ,कहीं देर न हो जाए --------- उत्तिष्ठ जागृत .........."
नहीं तो ---------
न संभलोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदोस्ता वालों ,
तुम्हारी दास्ताँ भी न होगी इन दास्तानों में.
सोमवार, 13 जुलाई 2009
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एकदम सही बात समझायी है आपने, जागो हिन्दोस्तान।
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श्री युक्तेश्वर गिरि के चार युग
बेहतरीन प्रस्तुति . वाकई हमे अब जागना होगा . काम हमारा नाहक मेवा इन्द्र पर चढ़ रहा है .बहुत चुटीले अंदाज़ में लिखा है आपने भाई साहेब ,बधाई.
जवाब देंहटाएंइसकी शुरुआत ब्लाग जगत से ही कर दी जाये .यह समस्या तो हर जगह आने वाली है ,बेहतर है इसके लिए लोंगों को जागरूक किया जाये . लेखनी की इस धार को भी नमन .
जवाब देंहटाएंन संभलोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदोस्ता वालों ,
जवाब देंहटाएंतुम्हारी दास्ताँ भी न होगी इन दास्तानों में.
-पूरे विश्व को इस संदेश की जरुरत है.
कुछ कर्मठ लोग
जवाब देंहटाएंकमर कस लेँ बस्स !!
तो क्या नहीँ हो सकता जी ...
सरल शब्दोँ मेँ
गहरी ज्ञान की बातेँ सीखला गये
- लावण्या
न संभलोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदोस्ता वालों ,
जवाब देंहटाएंतुम्हारी दास्ताँ भी न होगी इन दास्तानों में.
बहुत अच्छा संदेश सारे जहान के लिये.
धन्यवाद
जागरण का संदेश अच्छा लगा। समसामयिक आलेख।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मैंने भी इंद्र जी को चाय पीलाकर बारिश करवाने की सोची लेकिन पाबला जी के चाय का हश्र देख वह भी सटक लिये :)
जवाब देंहटाएंयह बात तो सच है कि हर ओर हाहाकार इंसानी कारगुजारीयों के कारण ही मचा है।
अच्छी पोस्ट।
यह कोई न तो समझ पा रहा है और न कोई ज्ञानी समझा पा रहा है कि हे भइया यह तो समस्या मानव जनित है भला इन्द्र या अन्य देव इसमें क्या करेंगे .यह तो वही हाल हुआ कि पूरे साल भर आप मस्ती करें -कभी न पढे और सवा किलो के लडू की मनौती में ,लालच में ,बजरंग बली आपको पास करने के लिए सक्रिय हो जायें और आप सोते रहें-सोते रहें.
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक लिखा है. बहुत धन्यवाद.
रामराम.
न संभलोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदोस्ता वालों ,
जवाब देंहटाएंतुम्हारी दास्ताँ भी न होगी इन दास्तानों में.
बेहतरीन संदेश प्रस्तुति
regards
बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंसंभलने की पुरे विश्व को आवश्यकता !! और ये सही है, होना चाहिए ऐसा प्रकृति के साथ खिलवाड़ हम करते हैं तो, तो नतीजा हमें भुगतना ही पडेगा !! और अच्छा हो जो कोई दुसरे गृह का वासी आकर मनुष्यों की इस घ्रष्टता की सजा दे !!
जवाब देंहटाएंतुम्हारी दास्ताँ भी न होगी इन दास्तानों में.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति बधाई ।
jab bhi bolna waqt par bolna muddton sochna muktsar bolna.aage kya liku sir ....sahi waqt par mudde ki baat uthayi hai wo bhi bilkul rasile andaj me.bahut accha laga .agle lekh ka intejaar hai.
जवाब देंहटाएंहम अपनी ही बात नहीं समझ पा रहे उपर बाला हमारी ज़ुबान कहां समझेगा.
जवाब देंहटाएंचलिए शुरुआत करें .....मैंने कुछ पेड़ लगायें हैं सड़क के किनारे ....आप सब भी लगायें ......!!
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने।
जवाब देंहटाएंपहले धर्म के नाम पर आचरण के नियम मानव को प्रकृति से जोड़ते थे। अब मानव अपने लोभ से काम करता है और शार्टकट के रूप में देवता को प्रसन्न करना चाहता है!
केवल हिन्दोस्तां ही नहीं बन्धु, पूरी दुनिया ही मिटने की ओर बढ़ रही है.
जवाब देंहटाएंइस मानव जनित समस्या के उपाय के लिए जनजागरण की ही आवश्यकता है.
जवाब देंहटाएंइस साल तो इराक में भी सूखे के जबरदस्त मार पड़ी है.
सही समय पर सही बात। और कहने का अंदाज हमेशा की तरह शानदार।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अंधविश्वास भी हमारी ही करनी है
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया लगा! इस शानदार और बेहतरीन पोस्ट के लिए ढेर सारी बधाइयाँ ! लिखते रहिये!
जवाब देंहटाएंसदियों से ऐसा होता आया है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
न संभलोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदोस्ता वालों ,
जवाब देंहटाएंतुम्हारी दास्ताँ भी न होगी इन दास्तानों में
संदेश अच्छा.......बेहतरीन प्रस्तुति......lajawaab
Bahut sundar bat sujhayi apne..yadi ham aj nahin chete to fir kabhi nahin.
जवाब देंहटाएंमिश्राजी ,
जवाब देंहटाएंआप का कबीरा की झोपडी पर आना , इस झोपडी और कबीरा को धन्य कर गया : आभारी हूँ |
रही इन्द्र के स्तुति गान की बात ,अब भाई इसे तो मात्र कोइ गिरधारी ही बंद करा सकता है |
मैं तो यही कह सकता हूँ ,
हमने प्रकृति के अनगढ़ जंगल मेंटे,
सुन्दर सलीकेदार पंक्तिबद्ध बाग लगाये,
रुके क्यों बदरा सरपट जो राह पाये
पहले भिन्न वृक्ष उन्हें लुभाते थे ,
देख प्राकृतिक वनों और मयूर का नृत्य ,
हो मंत्र मुग्ध स्वयं नृत्य करने लग जाते ,
द्रुत लय में बदरा छलक छलक जाता ,
सावन भादो में बदरा यूँ बरखा लाते थे ,
इस नृत्यान्त में देख छीजी गागर ,
शेष जल भी यहीं उडेल देते थे ,
फिर चलती उनकी प्रति-यात्रा ,
पुनः जल लाने को ||
डॉ. मिश्र जी,
जवाब देंहटाएंहमारे पलायनवादी दृष्टीकोण पर कड़ा प्रहार करता हुआ आलेख आँखें खोलने के लिये पर्याप्त है।
काश कि ऐसा हो सके।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बिल्कुल मनुष्य आपनी ही वजह से विनाश की ओर बढ रहा है ......बहुत ही सुन्दर ......सटिक प्रस्तुति है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ! सुन्दर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंमिश्रजी सचमुच आंम्खें खोलने वाला आलेख है मैने अपने आम्म्गन मे एक आम का पेद लगा लिया है वैसे हमारे शहर मे और आसपास पेड ही पेद हैं और ये अभियान चलता ही रहता है आभार्
जवाब देंहटाएंन संभलोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदोस्ता वालों ,
जवाब देंहटाएंतुम्हारी दास्ताँ भी न होगी इन दास्तानों में.
सही कहा आपने लेकिन कुछ करने से अच्छा है कि जब पश्चिम वाले वैतरणी लायेंगे तो हम भी लद लेंगे तड़ से!
भला हो इन्द्र देव का की आप एक ही फोटो चिपका कर मुक्त हो लिए वर्ना किस-किस की तस्वीर लगाते????????????
जवाब देंहटाएंसुन्दर व्यंगात्मक भावों से प्रभावी सन्देश .
बधाई
.चन्द्र मोहन गुप्त
aaj zamana isi ka hai ki .....karni kisi aur ki aur bharni kisi aur ki ......ek shaandaar post ..maza aagaya
जवाब देंहटाएंlast ghajal bahut achchi lagi............
जवाब देंहटाएंजन-जागरण संदेश! पूर्ण सहमति।
जवाब देंहटाएंपर्यावरण असंतुलन, जिसके लिए मानव उत्तरदायी है, से होने वाली हानि से सभी अवगत हैं.लेकिन उसके प्रतिकार के लिए कुछ विशेष नहीं हो पा रहा है. कारण अनेक हैं. .
जवाब देंहटाएंachha sandesh/
जवाब देंहटाएंab sabbhalne ki baari he/
यह झकझोरने वाला लेख है। बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंहम वाकई बहुत ढकोसलों में जी रहे है. आखिर कहीं तो संभलना होगा. बहुत सही लिखा आपने.
जवाब देंहटाएंबात तो सही है आपकी... पर किसे पड़ी है?
जवाब देंहटाएंसही चिंता है। देखिये फ़िर गर्मी आ गयी।
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