रविवार, 13 मार्च 2011

मैं तरुणी, हरि छोट जतन करिहों का....... (फाग गीत-उलारा)

फाग-रंग में रंगी मेरी पिछली पोस्ट और गत वर्ष की अपनी पोस्ट में मैंने फाग-गीत के विविध विधाओं पर चर्चा की थी.आज की पोस्ट फाग-गीत -उलारा से सम्बंधित है.इस आंचलिक फाग गीत में एक तरुणी की गहन पीड़ा की मार्मिक अभिव्यक्ति को चित्रित किया गया है.वह कह रही है कि मैं तरुणी हूँ और मेरा हरि (पति) अभी बालक है.उस पर उसकी ननद उसे चिढ़ा रही है तथा उससे कह रही है कि कटोरी में तेल और उबटन के साथ मालिश कर के जल्द अपने पति को बड़ा करे.ननद-भौजाई की नोक-झोक आंचलिक लोक गीतों में प्रमुखता से दृष्टब्य है.उसी का निदर्शन प्रस्तुत गीत में भी किया गया है.अवधी में रची-बसी इस रचना को हमारे जनपद के लोक गायक प्रज्ञा-चक्षु बाबू बजरंगी सिंह बहुत मन से गाते हैं .अब गांवों में भी इस प्रकार की गायकी-बोल कम ही सुनायी पड़ते हैं क्योंकि आधुनिकता की बयार अब वहाँ भी पहुँच चुकी है ।
अब पहले बाबू बजरंगी सिंह के स्वर में सुनिए अवधी का परम्परागत आंचलिक फाग-गीत -उलारा --------



इस फाग गीत के बोल हैं------
करिहौं का का यार -मैं तरुणी, हरि छोट जतन करिहों का
गऊँवा गोयाड्वा आयल बरतिया हे रामा हो हुलसे मन मोर ,
सैंया के देखल गदेलवा -जिया जरि मोर ......
मैं तरुणी, हरि छोट जतन करिहों का......
लहुरी ननदिया ताना मारे हे भौजी तोहरौ हरि छोट ,
हाथे में लईला बुकौवा -कोसिया भर तेल ,
चढ़ी जा बालम सेजरिया -मलि करिदै सयान-
मैं तरुणी, हरि छोट जतन करिहों का.....
बड़े बाग़ में पड़ा बिछौना हे रामा हो ,
तकिया मखमौल ,ता पर पिय मोरा सोवै -अंखिया रतनार -
मैं तरुणी, हरि छोट जतन करिहों का....
......................................................................................................
अब अगली सामयिक पोस्ट में फिर फागुनी चौताल के साथ भेंट होगी...






26 टिप्‍पणियां:

  1. यह आंचलिक सौगात अमूल्य है ....शुभकामनायें आपको !!

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  2. मैं कभी भी होली के समय गाँव में नहीं रहा हूं...लेकिन इन गीतों के माध्यम से वह माहौल और मस्ती अच्छी तरह से महसूस कर रहा हूं।

    बहुत बहुत आभार इस गीत को यहां प्रस्तुत करने के लिए।

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  3. हम समझत रहे कि सब बुढ़ाय गयेन ब्लॉग जगत मा। केहू नाहीं बचा जे मनावे फागुन झकझोर के। जय हो...ई पोस्ट पढ़ि के हमहूं के ताव आई रहा है बकिया का करि आज तs मस्त हमहीं फागुन हुई जात हैं।

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  4. Dharohar bachane ke is prayas ke liye aapka dhanyavad. Bahut ras mila.

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  5. बहुत ही अच्छी और अनूठी प्रस्तुति .
    अच्छा लगा ये फाग गीत .
    आप के ब्लॉग पर इस तरह के गीतों का एक अच्छा संकलन हो गया है जो शायद नेट पर कहीं उपलब्ध नहीं है .

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  6. बहुत सुंदर और अनूठी पोस्ट..... आंचलिक पुट वाले गीत सच में मनभावन होते हैं......

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  7. फाग गीतों की श्रंखला जबरदस्त है. गीत सुनकर तो जितना आनंद आया वह एक जगह पर आपकी प्रस्तावना से गीत समझ भी आया जिससे आनंद दुगना हो गया.

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  8. गीत को आपकी भूमिका पढ़कर बेहतर समझा ...
    सौंधी मिट्टी - सी गंध होती है इन गीतों में ...

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  9. बहुत सुन्दर आनन्द आ गया। धन्यवाद।

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  10. बहुत खूब ...सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  11. बहुत ही सुंदर फ़ाग गीत, शुभकामनाएं.

    रामराम

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  12. कटोरी में तेल और उबटन के साथ मालिश कर के जल्द अपने पति को बड़ा करे--
    इस फाग गीत में देश की मिटटी की सोंधी सोंधी सी खुशबू आ रही है ।
    अत्यंत मनोरम ।

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  13. बहुत बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती!

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  14. यह आंचलिक सौगात अमूल्य है| धन्यवाद|

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  15. आदरणीय डॉ. मनोज मिश्र जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    पिछली पोस्ट की तरह बहुत अच्छी पोस्ट है …साधुवाद !
    बाबू बजरंगी सिंह जी को सुनना अभी शेष है


    हार्दिक बधाई !

    समय मिले तो आइएगा होली के रंगों में रंगने


    होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार !
    मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!


    ♥होली की शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !♥


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  16. बढिया पोस्ट.
    होली की शुभकामनाएँ.
    घुघूती बासूती

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  17. होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
    आइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।

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  18. alpana ki baaton se main bhi sahmat hoon ,sundar geet ,holi parv ki badhai sweekare .

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  19. मनोज जी इस अनुपम प्रस्तुति के लिए साधुवाद !
    जोगीरा सररररर!

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