शुक्रवार, 27 मार्च 2009
क्या अपनी चमक खो रहें है पहाड़ ?
अभी पिछले महीने हिमांचल प्रदेश की यात्रा पर था .मैंने एक बात बहुत शिद्दत के साथ महसूस की कि पहाडों का नैसर्गिक सौंदर्य खत्म हो रहा है .मैं इस पर बहस नहीं करना चाहता कि इसके क्या और कौन -कौन से कारण हैं परन्तु इतना अवश्य है कि यह मानव जनित तो है ही .
मेरे जीवन की यह पहली हिमांचल यात्रा थी .हालाँकि पहाडों की मैंने कई यात्रायें अपने निजी वाहन से ही कर डाली है , जिसमे सड़क मार्ग से ही पूरा नेपाल ,उत्तराखंड आदि पहले ही दो दशकों में दो -तीन बार हो आया परन्तु शिमला जाते समय पहाड़ की जो दुर्दशा देखी कि पूरा उत्साह ही खत्म हो गया .
हिमांचल यात्रा से पूर्व वे सभी पौराणिक कहानियां जो मेरे दिमाग में थी जो कि हिमांचल राज के बारे में हमारे ग्रंथों में हैं ,वे सभी दंत कथाएं ,शिमला के बारे में साहित्यकारों की डायरी के पन्ने ,रिपोर्ताज ,यात्रा विवरण जो कि बचपन से लेकर आज तक मेरे साथ जुड़े थे -या मैंने किसी न किसी के द्वारा सुने थे सब के सब ,पहाडों पर दृष्टी पड़ते ही तार-तार हो गए .यह सब कुछ ऐसा हुआ जैसे किसी सपने की मौत हो हो गयी हो .वहां शांति कौन कहे -शोर ,प्रदूषण ,वाहनों की चिल्ल-पों और हुआ यूँ कि जल्दी भागने की इच्छा हो आई .शिमला से तो ज्यादा शांत मुझे सोलन तथा सिरमौर लगा ..यात्रा की शुरुआत मैंने ट्वाय ट्रेन से की वही एक मात्र मजेदार संस्मरण है .ट्वाय ट्रेन को अंग्रेजों ने शुरू किया था और आज भी वही एक सुरछित तरीका है शिमला पहुचने का .
पहाडों पर वह रौनक नहीं दिखी,जिसकी खोज में मैं वहाँ गया था .....उदासी और पेडों की कमी के चलते सारे पहाड़ मुझे नंगे से दिख रहे थे .
शिमला में कुफरी का सौंदर्य और मॉल रोड की रौनक मुझे खत्म होते लगी .मुझे लगा कि हम मानवों ने कोई जगह छोड़ी नहीं है जहाँ अभी भी सुकून हो .
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पहाड़ प्रदूषित होने से कैसे बच सकते हैं, जब वहाँ इन्सान रहता हो।
जवाब देंहटाएंपहाडों से चमक तो गायब दिख रही हैं पर तुम्हारे चेहरे की चमक बदस्तूर कायम है -चश्मे बद्दूर !
जवाब देंहटाएंपिछले कुछ वर्षों में हर प्रदेश की प्राकृतिक सुंदरता में कमी आयी है ... और अभी तक न तो सरकार और न ही जनता इसके लिए चिंतित है ... जाने कब कोई सुधार हो पाएगा।
जवाब देंहटाएंशिमला की खुबसूरत वादियाँ ज़रूर आज मानवीय कारणों से प्रभावित तो है , पर इसकी सुन्दरता, आस्था, रूमानियत और लुभावनापन आज भी उतना ही है जितना सदियों से है. प्राकृतिक सुन्दरता को पर्यटन स्थल में बदलने की कुछ तो कीमत चुकानी ही पड़ेगी, प्रदुषण , शोर , भीड़ ने निश्चय ही वादियों और पहाडों को प्रभावित किया है पहाड़राज हिमालय तक को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है । न सिर्फ़ शिमला बल्कि सभी प्राकृतिक स्थानों को आज आने वाली पीढी के लिए सहेजना आवश्यक है। शिमला की रूमानियत के बीच भी प्रकृति के इस दुःख पर आप की नज़र गई इश्के लिए आप बधाई के पात्र हैं।
जवाब देंहटाएंआगे शिमला यात्रा के स्मरण के सहयात्री बनने के इंतज़ार में.......
यह सच है। यदि हमने आज इस सुन्दरता का बचाव नहीं किया तो शायद बहुत देर हो जाय।
जवाब देंहटाएंAdarniya Dr. Manoj Mishra ji artical padhane ke liye dhanyavad. Nishchit roop se varun gandhi koi mudda hi nahi hota yadi siyasi dalon ne usaki CD nahi bheji hoti. Kya jitane atankivadi desh main atank phelate hai ve sab gita ya ramayan padh kar aate hai. unhe jihad ke nam par bargalaya jata hai. lekin samaj main usaki cd nahi dikhai jati hai. bangladesh ki lekhar. taslima par muslim aakaon ne phatva nikal diya uspar to kisi ne in mulla moulviyon ko jahrila jihadi bola aakhir varun ne yahi to kaha tha ki jo hath hinduon par uthege use varoon gandhi kat dega. is main dikkat kya hai.
जवाब देंहटाएंVastav main kisi bhi muslam ki koi bhi aastha ahant nahi hui hai. desh ka koi bhi musalman apane aapako laden nahi kehana chahega.
Shesh shubh Namaskar
अभी का तो पता नहीं दस पंद्रह वर्ष पहले गयी थी शिमला तो मन मोह लिया था सौंदर्य ने...कहीं एक जगह से मै कुछ पेंटिंग्स भी लायी थी जहाँ कुछ चित्रकार सामने बैठे ही पेंटिंग कर रहे थे .....बहोत सी यादें ताजा हो आई आपकी पोस्ट से....!!
जवाब देंहटाएंपनी जन्मभूमी हिमाचल की ऐसी दुर्दशा पर शर्म भी आती है और दुख भी होता है बहुत बडिया विषय छुना है ब्धई
जवाब देंहटाएंUttranchalvasi hone ke karan is dard ko samajh hi nahi raha balki andar tak mehsoos bhi kar raha hoon, Mano pahadon ki kau maryata kisi ne cheen li ho...
जवाब देंहटाएं...lekin main to wahan se "Palayan" kar chuka hoon...
Mujhe kya !!
apki photos dekh ke apne grah nagar ki yaad sehsa hi ho aayi...
...post ke liye badhai...
aur photos dikhane ke liye Dhanyvaad.
Haan... Mujhe kya?
mai aapse poori tarah se sahmat hoo... abhi kuch samay pahle me bhi uttarakhand ki yatra par gaya tha to yah baat maine bhi mehsus ki ki pahad ka saundary ab pahle jaisa nahi hai wah khatam ho gaya hai.. aapse poori tarah se sahmat hooo......
जवाब देंहटाएंसटीक एवं प्रासंगिक संस्मरण की प्रस्तुति के लिये साधुवाद लेकिन पहाड़ नंगे क्यों हो रहे हैं यह प्रश्न अनुत्तरित ही रहेगा
जवाब देंहटाएंशायद इसका कारण है पहाडों में बढता हुआ प्रदूषण।
जवाब देंहटाएं-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
Its not seems after seeing your picture that u face a big trouble in Himanchal pradesh.
जवाब देंहटाएंसबसे पहले माफ़ी चाहूँगा आप के ब्लॉग पर लेट से आने के लिय ब्लॉग पढ़ कर लगा कि मैने आज तक क्या मिस किया.
जवाब देंहटाएंसही कहा बंधु.
जवाब देंहटाएंसटीक एवं प्रासंगिक संस्मरण की प्रस्तुति के लिये साधुवाद लेकिन पहाड़ नंगे क्यों हो रहे हैं शायद इसका कारण है पहाडों में बढता हुआ प्रदूषण।
यदि हमने आज इस सुन्दरता का बचाव नहीं किया तो शायद बहुत देर हो जाय।
आपके दुःख को समझा जा सकता है...धन के लालच ने हमने प्रकृति के साथ बहुत अत्याचार किया है...पहाड़ ही क्या अब आप कहीं भी जाएँ आपको वो बात ही नज़र नहीं आती जो आज से दस बीस साल पहले नज़र आती थी...बहुत सार्थक पोस्ट.
जवाब देंहटाएं"एक नदी बहती कभी जो यहाँ
बस गया इंसां तो नाली हो गयी"
नीरज
This pain is shared by all of us, specially people like me who spent so many years in Himchal (that too in Shimla). I always insist that if you need to tour hills, never go to popular stations rather look for another less visited places near by. I am ashamed to admit that we Indians as tourists are awful.
जवाब देंहटाएंAnyway, all I can say is whenever you miss Himachal you can flip through my pages. I am sure those pics wont make you gloom :)
इसी की चर्चा हुई अखबार में। वाह!
जवाब देंहटाएंपहाड़ हमेशा से मनुष्य के दिल जैसे लगते रहे हैं मुझे। दोनों की बर्बादी, ख़ानाख़राबी - बसने के नाम पर उजड़ने की प्रक्रिया का वह स्वयं ज़िम्मेदार रहा है।
जवाब देंहटाएंआप की पोस्ट से मेरी यह अभिधारणा और बलवती हुई है।
आज पढ़ा - अमरेन्द्र की पोस्ट से आया था यहाँ सो आज ही टिप्पणी की।
धन्यवाद एक अच्छी पोस्ट के लिए।