मंगलवार, 5 मई 2009
भारतीय शिक्षा ब्यवस्था :अतीत से वर्तमान का सफ़र
प्राचीन भारतीय मनीषियों नें शिक्षा को सर्वाधिक महत्व प्रदान करते हुए इसे आध्यात्मिक तथा भौतिक उत्थान हेतु एक महत्त्वपूर्ण कारक माना है .प्राचीन शिक्षा ब्यवस्था के शैशव कलेवर से ही यह ध्वनित है की बगैर विद्या और ज्ञान से सम्पन्न हुआ ब्यक्ति ऋषि ऋण से मुक्त नहीं हो सकता था .प्राचीन शिक्षा ब्यवस्था का पथ ,पाथेय तथा पथ की दिशा स्पष्ट थी .ऋग्वैदिक समाज में भौतिक उपलब्धियों की अपेक्षा बौद्धिक ज्ञान की महत्ता अधिक थी .उपनिष्दों में विद्या का तादात्म्य देवलोक से स्थापित किया गया है .वृह्दारण्यक उपनिषद के १.५.१६ में वर्णित है कि देव लोक केवल विद्या द्वारा ही जीता जा सकता है .महाभारत १२.३३९.६ में कहा गया है कि विद्या के समान नेत्र तथा सत्य के समान तप कोई दूसरा नहीं है "नास्ति विद्यासमम चक्षु नास्ति सत्य समम तपः".इसे मोक्ष का साधन माना गया -"साविद्या या विमुक्तये ".चरित्र निर्माण ,ब्यक्तित्व विकास ,सामाजिक कर्तब्यों का ज्ञान एवं समाज तथा राष्ट्र के उत्थान के लिए शिक्षा एक महती आवश्यकता मानी गयी .प्राचीन विचारकों नें शिक्षा के ब्यवसायिक करण का घोर विरोध किया है .कालिदास ने अपनें महाग्रंथ मालविकाग्निमित्रम १.१७ में लिखा है कि शिक्षा के द्वारा मनुष्य आजीविका का साधन प्राप्त करता है किन्तु इसे मात्र आजीविका का साधन बनाना अभीष्ट नहीं है .तैत्तरीय उपनिषद् १.११ में वर्णित है कि आचार्य देवता होता है तथा एक आचार्य की कामना होती है की संयमी ,शीलवान और शांत स्वभाव वाले शिष्य आचार्य के पास शिक्षा ग्रहण करें ताकि आचार्य यशस्वी बनें .कालिदास नें रघुवंश ३.२९ में गुरु शिष्य सम्बन्ध को परिभाषित करते हुए "गुरुवो गुरुप्रियम "कहा है .
पूर्व वैदिक काल में शिक्षा का मुख्य पाठ्यक्रम वैदिक साहित्य का अध्ययन ही था .पवित्र वैदिक ऋचाओं के अलावा पुराण -इतिहास ,गाथा नाराशंसी ,खगोल विद्या ,ज्यामिती तथा छंद शास्त्र आदि अध्ययन के प्रिय विषय थे .इस युग में शिक्षा प्रायः मौखिक हुआ करती थी ,जिसमें पवित्र मंत्रों को कंठस्थ करनें का आग्रह हुआ करता था .प्राचीन इतिहास के प्रायः सभी समय में शिक्षा प्राप्ति के लिए "गुरुकुल पद्धति "का प्रचलन था .केवल उपनिषदों में गुरुकुल के स्थान पर आचार्य कुल का प्रयोग किया गया है ."कुल" का अर्थ बहुत सारगर्भित था ,जिससे एक परम्परा का बोध होता था .आचार्य कुल में रहकर शिक्षा ग्रहण करनें वाले छात्र को "अन्तेवासी " कहा जाता था .छान्दोग्य उपनिषद् २.२३ में गुरुकुल में रहकर विद्या ग्रहण करनें वाले छात्रों को आचार्य कुलवासी,अन्तेवासी तथा ब्रहमचर्यवास जैसे संबोधनों से संबोधित किया जाता था .
वैदिक कालीन समाज में शिक्षा की सबसे महान उपलब्धि नारी -शिक्षा थी ।लोपामुद्रा ,विश्ववारा .आत्रेयी और अपाला जैसी विदुषी नारियों नें उस युग में अपनी विद्वता के झंडे गाड़ रखे थे . यह परम्परा उत्तरवैदिक काल से होते हुए महाकाब्यकाल तक कायम रही फिर उत्तरोत्तर उसमें गिरावट के संकेत दृष्टिगोचर होतें हैं .हालाँकि बौद्ध एवं जैन साहित्य ,राजशेखर की काब्यमीमांसा तथा गाथा सप्तशती आदि में अनेक विदुषी एवं कवि स्त्रियों का उल्लेख किया गया है ,जिन्होनें अनेक गाथाओं की रचना की थी परन्तु परवर्ती साहित्य से आभास मिलता है कि तत्कालीन भारत में नारी शिक्षा पर प्रतिबन्ध लगनें लगा था .यह प्रतिबन्ध शनैः -शनैः परवर्ती युगों में इतना कठोर हो गया की राजपूत काल आते -आते स्त्री शिक्षा बिलकुल बंद होने के कगार पर पहुंच गयी थी .
जारी .........
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दक्षिण में हालात शायद बेहतर रहे हों। उत्तर में नारी शोषण की तो अति होगयी थी/है। शिक्षा क्या बेसिक नीड्स भी पूरी न होती थीं उनकी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर ज्ञानवर्धक आलेख!
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक आलेख. आभार
जवाब देंहटाएंहमारे देश में जहाँ नारी को देवी का अवतार मन जाता है ,वही कुछ लोग इसे अबला बनाने से भी बाज़ नही आते शायद इसे वजह से नारी शिछा पर इतनी पाबंदियां लगी । जानकारी देने का शुक्रिया क्योंकि कौन आज के युग में इतिहास के धूल साफ करता है ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी .. शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ज्ञानवर्धक आलेख. आगे इन्तजार है.
जवाब देंहटाएंअच्छी श्रृंखला प्रारंभ की आपने. जहाँ तक मुझे पता है गुरु-शिष्य परंपरा, ब्रह्मचर्य और त्याग विद्यार्थी जीवन के स्तम्भ थे. शुद्ध उच्चारण और ऋचाओं को कंठस्थ करना बहुत मायने रखता था. बाकी आप तो विस्तार से बता ही रहे हैं.
जवाब देंहटाएंअगली श्रृंख्ला का इन्तेजार रहेगा !!
जवाब देंहटाएंप्राइमरी का मास्टर फतेहपुर
आपकी कलम से ऐसे लेखों का स्वागत है
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
- स्त्री के लिए गुरुकुल का वर्नन कहाँ मिलता है?
जवाब देंहटाएं- राजप्रिवारों या धनाढ़य या उच्चपद प्राप्त परिवारों में स्त्री शिक्षा हुई?
- या आम स्त्री के लिए/ हर वर्ग और हर परिवार में स्त्री की शिक्षा को महत्त्वपूर्ण समझा?
कृपया शीर्षक में ब्यवस्था को व्यवस्था कर लें।
जवाब देंहटाएंकृपया मेरी टिप्पणी को यूँ पढ़ें-
जवाब देंहटाएं- स्त्री के लिए गुरुकुल का वर्णन कहाँ मिलता है?
- राजपरिवारों या धनाढ़य या उच्चपद प्राप्त परिवारों में स्त्री शिक्षा हुई?
- या आम स्त्री के लिए/ हर वर्ग और हर परिवार में स्त्री की शिक्षा को महत्त्वपूर्ण समझा?
निहायत ही ज्ञान बढाने वाला आलेख है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
यह तो आपने बडा गम्भीर दायित्व संभाला है। इस विवेचन के लिए हार्दिक शुभकामनाऍ।
जवाब देंहटाएं-----------
SBAI TSALIIM
जानकारी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! आपकी लेख तो काबिल ऐ तारीफ है !
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर ऐसे गंभीर लेखों का स्वागत है पर यह बड़ी जिम्मेदारी और जोखिम भरा भी है !
जवाब देंहटाएंअच्छा है।
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