गुरुवार, 28 मई 2009
जमैथा का खरबूजा .
गर्मी का मौसम हो ,मौसमी फलों की बात हो और खरबूजे की चर्चा न हो तो बात बेमानी सी लगती है .हमारे यहाँ जब बात खरबूजे की हो और जमैथा की न हो ,यह हो ही नहीं सकता .यानि की जमैथा और खरबूजा एक दूजे से इस तरह सदियों से जुडें हैं कि इनको अलग करना नामुमकिम सा है .इधर बीच हम सभी विश्वविद्यालय में चल रही परीक्षाओं के मद्देनज़र काफी व्यस्त थे .कल थोड़ी फुर्सत हुई तो मेरे विभाग के इलेक्ट्रानिक मीडिया के सहयोगी जावेद जी का मन हुआ कि इस बार हम लोग जमैथा के खेतों में चल कर खरबूजा खायेंगे और तमाम जानकारियां भी एकत्र करेंगें .बतातें चलें कि जमैथा इस जनपद का वह ऐतिहासिक गाँव है जो कि कभी श्री हरि विष्णु जी के दस अवतारों में से एक परशुराम जी की जन्मस्थली और उनके पिता श्री महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली हुआ करता था .यह वही स्थान है जहाँ पर पिता के आज्ञा पालन करनें हेतु श्री परशुराम जी नें अपनी माता (रेणुका ) का सर धड से अलग कर दिया था और बाद में पिता द्वारा इस कृत्य पर वरदान मांगनें पर उन्होंने तीन वर मांगे थे कि माता पुनः जीवित हो ,उन्हें यह याद नहो कि उनको मैंने (पुत्र )नें मारा था और मुझे इसका पाप नलगे .इस गाँव में आज भी माता अखंडो देवी का बहुत प्राचीन मंदिर है जो आज भी अपने चमत्कारों से लोंगों को प्रभावितकर रहा है .इस बारे में कभी विस्तृत रिपोर्ट बाद में दूंगा लेकिन नवीनतम अनुसंधानों से भी लोंगों नें यह साबित करनें का प्रयास किया है कि महर्षि यमदग्नि का आश्रम यहीं था .इस सम्बन्ध में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ आशुतोष उपाध्याय नें विस्तृत शोध प्रस्तुत किया है जिसकी चर्चा फिर कभी .
आज सुबह -सुबह ५ बजे मैं अपने सहयोगी जावेद के साथ जमैथा में खरबूजों के खेतों में था .आपको आश्चर्य होगा कि इस पूरे एरिया में रोज करीब ३०० कुंतल खरबूजा आस-पास के जनपदों में ही नहीं अपितु दूसरे प्रदेशों में भी भेजा जाता है .गाँव से सट कर गोमती नदी बहती है पर खरबूजों की सिचाई नदी के पानी से नहीं होती .
खरबूजों की सिचाई के लिए लोंगों नें अपने निजी नलकूप लगा रखें हैं .मैंने जब इस विषय पर किसानों से पूछा तो उन्होंने बताया कि नदी के पानी से खरबूज खराब हो जातें हैं ,इसलिए हम लोग नदी के पानी से सिचाई नहीं करते .मार्च अंतिम सप्ताह तक बोए जाने वाला यह फल अब अंतिम दौर में है .इस क्षेत्र के किसानों की आमदनी का एक सबसे बडा स्रोत है .
आपको बता दें कि सुबह -सुबह ६ बजे ही गाँव की सड़क पर खरबूजे की मंडी लग जाती है और चारो तरफ से किसान केवल खरबूजा लिए ही आता दिखाई पड़ता है .
खरीद दारों का यह हाल है कि खरबूजा आया नहीं कि थोक व्यवसायी अपनी -अपनी शर्तों के साथ किसानों से औने -पौने दामों पर खरीद कर जल्दी भागने के फिराक में लगे रहतें हैं .ऐसे में किसान बेचारा ही ठगा जाता है .जौनपुर जनपद की तीन ऐसी फसलें हैं जिनकी मिठास देश के किसी अन्य क्षेत्र में नहीं मिलेगी उनमे मक्का ,मूली और खरबूज है .ऐसा नहीं है कि जनपद के अन्य क्षेत्रों में खरबूजे की पैदावार नहीं होती लेकिन लोंगों की नजर जमैथा के खरबूज पर ही रहती है .इसमें वह मिठास है जो अन्य क्षेत्रों के खरबूजों में नहीं है .इस क्षेत्र के लोंगों के लिए यह प्रकृति का वरदान है .इन्हें इस वरदान पर नाज़ भी है और हो भी क्यों न ,वाकई दम तो है ही इस खास खरबूजे में ।
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गोमती का जल प्रदूषित हो गया है शायद। अर्थात हमारे गंगा के कछार में भी कुछ सालों बाद खरबूजा नलकूप के जल से सींचा जायेगा!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट।
Manoj ji, apne to muh me paani aane laga hai isliye mai chala kharbooja khaane ye jametha ka to nahi lekin bahut hi meetha aur swadisht hai.
जवाब देंहटाएंTarun
जानकारी के साथ सुन्दर पोस्ट और खरबूजा खाने की कल्पना सुखद है।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
परशुरामजी के बारे मे जानकर बहुत ही अच्छा लगा और खरबूजा तो देख कर ही हमारा रंग बदल गया.:) बुलवाकर अभी खाने का प्लान है. बहुत सुंदर जानकारीपरक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत ही सुंदर जानकारी दी आप ने परशुरामजी के बारे मै, मै आज ही दो खरबुजे ले कर आया हुं, यहां खरबुजे आसपास के देशो से आते है, ओर इतने मिठ्ठे भी नही होते, ओर दाम करीब १०० रुपये का एक, आप के लेख मे खरबुजे देख कर मुंह मै पानी भर गया.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जमैथा का खरबूज यहाँ शायद न मिलता हो. जो मिलता है, वह मीठा नहीं होता. मंगाना भी उतना आसान नहीं है. ललचाते रहेंगे. आपके पोस्ट की अन्य बातों को भी नोट किया. आभार..
जवाब देंहटाएंकाश हम भी जौनपुर का खरबूजा खा पाते।
जवाब देंहटाएंजितना कुदरत के करीब
जवाब देंहटाएंधरती और हवा पानी बिन प्रदूषण के रहे,
हरेक खान पान की चीज का स्वाद
उतना ही उत्कृष्ट रहेगा -
सुँदर जानकारी और फोटो भी !
अब आप वाला खरबूजा
यहाँ कैसे खायेँ ? :)
उसीका अफसोस रह गया --
- लावण्या
वाकई अब सोचने का वक्त आगया है ,की हम कैसे बचाए अपनी पुरानी सभ्यता को क्योंकि ये भी हमारी सभ्यता का एक अंग है । रही बात किसानो के इस अपार मेहनत के फल को दलाल औने -पौने दामो में खरीद लेते है ,और ये बेचारे जो सिर्फ़ इस पर ही आश्रित है कुछ कह नही पाते ,कुछ तो इस खरबूजे की खेती से मुँह मोड़ने लगे है एक तरफ़ प्रकृति की मार तो दूसरी तरफ़ ये दलाल , अगर यही हाल रहा तो हम सब को बाहर का खरबूजा खाना होगा । रही बात जमैथा के खरबूजे की तो बस इस पोस्ट को पढ़कर मुँह में पानी आ गया ।
जवाब देंहटाएंबहुत ज्ञानवर्द्धक पोस्ट है .. पर इस वर्ष की बेमौसम बरसात से किसानों को कोई नुकसान तो नहीं हुआ।
जवाब देंहटाएंमैं तो खा रहा हूँ :) वो रहे खाँची भर छ्लिके :)
जवाब देंहटाएंअच्छी खुशबूदार पोस्ट ।
जमैथा के खरबूजे देख कर मुंह में पानी आ गया.यहाँ ईरान के खरबूजे १२ महीने मिलते हैं जो कम मीठे होते हैं.
जवाब देंहटाएं'बागपत के खरबूजे भी याद हैं..जो कि बहुत मीठे हुआ करते थे.वह मिठास अब तक यहाँ किन्हीं खरबूजों में नहीं मिली.हाँ ,मिस्र के खरबूजे ईरान वालों से बेहतर लगे.लेकिन भारत के तरबूज.खरबूज और आम का दुनिया में कोई मुकाबला नहीं,यह सच है.
आप हमें उकसा रहे हैं घर जाने को. अब छुट्टी तो मिलेगी नहीं. एक किस्सा याद आ रहा है... हमारे गाँव में एक व्यक्ति फौज में था और उसने घर चिट्ठी लिखी 'माई के मालूम कि फौज में फगुआ के पुआ ना मिलेला' अब माई ने लिख दिया की बेटा बिना पुआ के फगुआ होता है क्या घर आ जा. और वो फौज छोड़कर आ गए. :)
जवाब देंहटाएंअब ऐसी पोस्ट मत किया कीजिये हम भी भाग गए ना तो जिम्मेवारी आपकी होगी ! हा हा !
बहुत बढ़िया पोस्ट !
लालच लगवा दिये भाई.
जवाब देंहटाएंबहुत मीठी और नयनाभिराम पोस्ट -किसी से बनारस एकाध क्विंटल भिजवाओ ! ग्रामीण अर्थव्यवस्था का उज्जवल पक्ष और दलालों की चान्दी का काला पक्ष दोनों यहाँ देखते हैं !
जवाब देंहटाएंकभी गोमती नदी के पानी से ही सीचे जाते रहे होंगे ये खरबूजे -मगर प्रदूषण ने यह बंद करा दिया होगा !
तुम और सुब्रह्ममन्यन साहब जरा यह शोध करे की कहीं जमदग्नि ऋषि ने ही तो खरबूजे की खेती शुरू नहीं कराई थी !
सुन्दर! मीठी पोस्ट!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रिपोर्ट .इस विरासत को अब और मज़बूत करनें की जरूरत है .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रिपोर्ट .इस विरासत को अब और मज़बूत करनें की जरूरत है .
जवाब देंहटाएंवाह यह तो आज ही जाना .. दिल्ली तक भी भेज दीजिये ,शायद यहाँ मिलने वाला खरबूजा मीठा हो जाए इसको देख कर :)
जवाब देंहटाएंखरबूजे के बारे में आपने सचित्र रोचक जानकारी दी है . नर्मदा तट पर होने वाले खरबूजो का स्वाद मीठा स्वादिष्ट होता है . कभी इनका भी आनंद लें . आभार.
जवाब देंहटाएंआप के लेख मे खरबुजे देख कर मुंह मै पानी आ गया!!!!!
जवाब देंहटाएंJankari to achhi di apne...per Khrbuza dekh ki muh mai pani aa gaya...
जवाब देंहटाएंखरबूजों का स्वाद आज के अमर उजाला में छापा है ....बधाई
जवाब देंहटाएंaap ne to jamitha ka kharbhooja puri duniya ko kila diya waha bhai waha ..........jai hoooooooooooooooooooo
जवाब देंहटाएंaap ne to jamitha ka kharbhooja puri duniya ko kila diya waha bhai waha ..........jai hoooooooooooooooooooo
जवाब देंहटाएंaap bina bataye jamitha chale gaye the ye galat hai hume bhi sath le chalna tha na
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा पोस्ट। खरबूजे खाते-खाते ही पढ़ रहा हूं। पता नहीं यहां अहमदाबाद में जो खरबूजे मिलते हैं, वे जमैथी वाले खरबूजे हैं या नहीं। फोटो के जैसे ही हैं, पर अधिक हरे और कुछ छोटे। खूब मीठे हैं ये भी। यहां इसे टेंटी कहा जाता है, जो शायद गुजराती का शब्द है। पता नहीं कि हिंदी में भी टेंटी शब्द खरबूजे के लिए चलता है कि नहीं।
जवाब देंहटाएंगर्मी के मौसम में यह समयानुकूल पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा।
परशुराम की कथा सोने पर सुहागा रहा। इस तरह तो परशुराम जौनपुर और केरल को जोड़नेवाली कड़ी बन जाते हैं। केरल की उत्पत्ति भी परशुराम से जुड़ी है। कहते हैं कि दक्षिण भारत के समुद्र तट पर पहुंचकर परशुराम ने अपने शिष्यों के लिए समुद्र से जमीन मांगी। समु्द्र ने उनसे कहा जितनी जमीन चाहे मैं देने को तैयार हूं। तब परशुराम ने अपनी परशु (कुल्हाड़ी) समुद्र की ओर फेंकी। वह जहां गिरी वहां तक समुद्र पीछे हट गया। इस तरह समुद्र से प्राप्त भूभाग ही केरल बना!
डाक्टर साहब मुझे रात तीन बजे खरबूजे की खुशबू दीवाना बना रही है
जवाब देंहटाएंजमैथा और खरबूज.........वैसे तो लकता भी एक सा ही है..........लाजवाब और रोचक जानकारी दी है आपने....... गुरु परशुराम की नगरी, इतने मीठे खरबूजे.............क्या बात है .....मुंह में पानी आ गया........... हमारे दुबई में तो तरस जाते हैं इस सब के लिए....... सुन्दर चित्रों से सजी आपकी सुन्दर जानकारी के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंhelo sir aapne kharbuje ki pct to badi sunder lagae hai
जवाब देंहटाएंhelo sir aapke blogs pad kar bahut achha laga aapke blog ke bare mai rajeev singh ne btaya hai
जवाब देंहटाएंBHUT LOLOGO NE KHRBUJE MAGAYE HAI ,KHI KHARBUJE KO DEKH KAR KHRBUJA RANG NHI BADAL LE .KHAIR
जवाब देंहटाएंBHUT BADHIYA POST .AKHIR KISANO KA DARD KB MITEGA?
मेरे नथुनों में आ बसी है यह खुश्बू।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
वाह! इसई के फोटो अखबार में छपी। फोटो बहुत साफ़ हैं। विवरण झक्कास!
जवाब देंहटाएं