मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

बालम मोर गदेलवा....

फागुनी रंग को और गाढ़ा करनें के लिए आज आपके सामनें एक बहुत पुराना फाग गीत प्रस्तुत कर रहा
हूँ,
प्रश्न-उत्तर के रूप में वर्णित पूरी रचना शुद्ध अवधी में है ,जिसमें तत्कालीन पर्यावरण का भी कितना सुंदर चित्रण दीखता है..गांव की मिट्टी की महक लिए ऐसे गीत और उसके बोल अब कहीं सुनायी नहीं पड़ते ,लगभग विलुप्त हो चले है.
तो आइये पहले इस गीत के बोल देखिये फिर मेरी आवाज में इसका पाठ...

तरसे जियरा मोर-बालम मोर गदेलवा

कहवाँ बोले कोयलिया हो ,कहवाँ बोले मोर

कहवाँ बोले पपीहरा ,कहवाँ पिया मोर ,

बालम मोर गदेलवा.....

अमवाँ बोले कोयलिया हो , बनवा बोले मोर ,

नदी किनारे पपीहरा ,सेजिया पिया मोर
बालम मोर गदेलवा...
कहवाँ कुआँ खनैबे हो ,केथुआ लागी डोर ,

कैसेक पनिया भरबय,देखबय पिया मोर ,

बालम मोर गदेलवा.....

आँगन कुआँ खनाईब हो रेशम लागी डोर ,

झमक के पनिया भरबय, देखबय पिया मोर ,

बालम मोर गदेलवा....

और अब सुनिए गुनगुनी ढोल के संग यह गीत, मेरी आवाज़ में......

44 टिप्‍पणियां:

  1. मोर , कोयल, पपीहा और पीया --- वाह मिस्र जी , आज तो फाग का मज़ा आ गया।
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. Arre wah!! manmohak faguni rachana aur us par aapka gayan dhol ke sath sone par suhaga ...bahut bahut dhanywad!

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  3. इस बार घर में यही गीत होली पर बजेगा. कहाँ से लाते हैं सर ऐसे विलुप्त फागुनी गीत,मन मोह लिया गीत और आपके गुनगुनी गायन नें.

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  4. इस बार घर में यही गीत होली पर बजेगा. कहाँ से लाते हैं सर ऐसे विलुप्त फागुनी गीत,मन मोह लिया गीत और आपके गुनगुनी गायन नें.

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  5. मिश्रजी, आपका प्रयास बहुत अच्छा है, कि लोकगीतों का डिजिटाईजेशन हो रहा है, और अपनी आवाज में आप हमें सुनवा भी रहे हैं।

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  6. बहुत लाजवाब गीत, आनंद आगया.

    रामराम.

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  7. लोकगीत में एक मनमोहकता छिपी होती है जिसे पढ़ना अच्छा लगता है..सुंदर प्रस्तुति...बधाई मनोज जी

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  8. समाँ बाँध दिया डॉ साहब. बहुत-बहुत शुक्रिया. मैंने यह गीत भी सेव कर लिया है.
    यह "गदेलवा" का अर्थ भी बताते चलिए गैर-अवधियों के लिए.

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  9. वाह ! .इतनी खूबसूरत विधाएं जिनसे आज के बच्चे परिचित भी नही शायद
    ,जो धीरे धीरे गुम हो जाने की कगार पे हैं ..
    ब्लॉगिंग के ज़रिये सामने आ रहीं हैं ..खुशी की बात है ....

    बहुत सुरीली प्रस्तुति

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  10. धोली की आहट है आपके गीतों मे लगता है होली आज ही आ गयी। धन्यवाद्

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  11. छा गये छा गये...अब तो होली के दिन इसी पर नाचा जायेग...वाह वाह...सुन कर आनन्द विभोर हो गये!!

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  12. क्या बात है मनोज जी इतना सुन्दर और मीठा लोक गीत !
    ढोलक तो बहुत ही बढ़िया बजी है जिसने बजायी उसे भी बधाई दिजीये.... और अंत में ताली की थाप वाह!
    ....बहुत ही बढ़िया गाया है आप ने..बेहद खूबसूरत!
    [कृपया download का लिंक भी दिया करें ..डाउनलोड लिख कर उसे हाइपरलिंक कर दिजीये..[जहाँ यह फाइल है wahan ke link se].]
    आभार..

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  13. भाई मनोज जी आपके इस लोक गीत का लिंक मुझे मेरे एक प्रिय ने मुझे भेजा !
    गीत सुनकर बहुत ही अच्छा लगा !
    दिल खुश कर दिया आपने !
    कहाँ सुनने को मिलते हैं अब ऐसे गीत !
    इन लोक गीतों में जीवन समरसता के कितने ही रंग छुपे होते हैं
    मैंने सेव कर लिया है ....औरों को भी सुनाऊंगा !

    शुभ कामनाएं

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  14. @ भाई जी ,हम लोंगों के यहाँ गदेला -बच्चे को कहा जाता है.

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  15. दस से कम बार नहीं सुना , मिसिर जी !
    मजा आय गवा ! अब तौ अवधी कै रंग चढ़ा अहै तौ
    नीमन - नीमन पोस्टन कै दरकारि है !

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  16. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  17. आप जाने रहिये कि फिर से सुन कर टिप्पणी कर रहे हैं..:)

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  18. aap logon ki wajah se hi hamari sanskritik virasat aaj bhi kayam hai .....
    aur aap ka gayan ka kya kahan .....

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  19. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सरहनीय है।

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  20. @ धन्यवाद समीर भाई साहब,मैं कोशिश में हूँ कि कम से कम दो और पोस्ट इस प्राचीन और विलुप्त हो रहे विरासत पर प्रस्तुत करूं.

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  21. वाह! क्या आवाज है। जबरदस्त पॉडकास्ट। संग्रहणीय पोस्ट!
    उस नायिका की सोच रहा हूं - जिसका बालम गदेला हो!

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  22. बारम्बार सुना मिश्रजी; बहुत बढ़िया!

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  23. बालम मोर गदेलवा

    हम तो एक शब्द पर ही कुर्बान हो गए।
    बहुत सुंदर फ़ाग मनो्ज जी।
    अब होली तक यही चले तो आनंद आए।
    करेजवा ठंडाय्। आभार

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  24. मन भावन आवाज,ओर उस पर देसी ढोलक की थाप. बहुत मधुर लगा पढने मै थोडी कठिनाई आ रही थी, लेकिन सुन कर सब समझ आ ग्या.
    धन्यवाद

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  25. यह पॉडकास्ट कहां गायब हो गया? पण्डिज्जी, मेरी पत्नीजी कह रही हैं कि इसकी फाइल ई-मेल में मिल जाती तो सुखद होता!

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  26. वाह मिस्रा जी .. फाग का मज़ा आ रहा है आज तो ब्लॉग पर .... ग़ज़ब है भई ...

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  27. वाह बहुत ही सुन्दर और यादगार

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  28. वाह! क्या झन्नाटेदार खींच कर गया है आपने मन तृप्त हो गया. इसमें तो जौनपुर की बोली का असर दिख रहा है.

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  29. वाह संस्कृति को आप जैसे लोग ही संभाल के रख रहे हैं
    बधाई

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  30. मुद्दत बाद ऐसा सुन्दर फाग-राग गुंजित हुआ !
    अनुपस्थिति की कसक केवल इस एक पोस्ट को पढ़कर-सुनकर खत्म हो गयी है ।
    आभार ।

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  31. बाद की प्रविष्टियाँ सुनकर डाउनलोड कर ली हैं । पर यहाँ डाउनलोड लिंक नहीं दिख रहा । लिंक की जरूरत है । आभार ।

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  32. accha ham to bekaare mein Arvind ji ko dosh diye jaa rahe the...ab ihaan aisa 'FAGUNARIYA' jab chala hua hai to bechare Arvind ji bhi ka karte ...haan nahi to...!!

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  33. वाह! वाह! क्या बात है! फ़िर से सुन लिये!

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  34. सब पुराना हो रहा है मगर १ साल से उपर भी यह नया बना हुआ है..जब सुनते हैं..झूम जाते हैं...जरा फाईल हमें भी भेज दिजियेगा जब समय मिले...

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