फागुनी रंग को और गाढ़ा करनें के लिए आज आपके सामनें एक बहुत पुराना फाग गीत प्रस्तुत कर रहा
हूँ,प्रश्न-उत्तर के रूप में वर्णित पूरी रचना शुद्ध अवधी में है ,जिसमें तत्कालीन पर्यावरण का भी कितना सुंदर चित्रण दीखता है..गांव की मिट्टी की महक लिए ऐसे गीत और उसके बोल अब कहीं सुनायी नहीं पड़ते ,लगभग विलुप्त हो चले है.
तो आइये पहले इस गीत के बोल देखिये फिर मेरी आवाज में इसका पाठ...
तरसे जियरा मोर-बालम मोर गदेलवा
कहवाँ बोले कोयलिया हो ,कहवाँ बोले मोर
कहवाँ बोले पपीहरा ,कहवाँ पिया मोर ,
बालम मोर गदेलवा.....
अमवाँ बोले कोयलिया हो , बनवा बोले मोर ,
नदी किनारे पपीहरा ,सेजिया पिया मोर
बालम मोर गदेलवा...
कहवाँ कुआँ खनैबे हो ,केथुआ लागी डोर ,
कैसेक पनिया भरबय,देखबय पिया मोर ,
बालम मोर गदेलवा.....
आँगन कुआँ खनाईब हो रेशम लागी डोर ,
झमक के पनिया भरबय, देखबय पिया मोर ,
बालम मोर गदेलवा....
और अब सुनिए गुनगुनी ढोल के संग यह गीत, मेरी आवाज़ में......
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010
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मोर , कोयल, पपीहा और पीया --- वाह मिस्र जी , आज तो फाग का मज़ा आ गया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
Arre wah!! manmohak faguni rachana aur us par aapka gayan dhol ke sath sone par suhaga ...bahut bahut dhanywad!
जवाब देंहटाएंइस बार घर में यही गीत होली पर बजेगा. कहाँ से लाते हैं सर ऐसे विलुप्त फागुनी गीत,मन मोह लिया गीत और आपके गुनगुनी गायन नें.
जवाब देंहटाएंइस बार घर में यही गीत होली पर बजेगा. कहाँ से लाते हैं सर ऐसे विलुप्त फागुनी गीत,मन मोह लिया गीत और आपके गुनगुनी गायन नें.
जवाब देंहटाएंमिश्रजी, आपका प्रयास बहुत अच्छा है, कि लोकगीतों का डिजिटाईजेशन हो रहा है, और अपनी आवाज में आप हमें सुनवा भी रहे हैं।
जवाब देंहटाएंवाकई मजा आ गया आपकी आवाज मे
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब गीत, आनंद आगया.
जवाब देंहटाएंरामराम.
लोकगीत में एक मनमोहकता छिपी होती है जिसे पढ़ना अच्छा लगता है..सुंदर प्रस्तुति...बधाई मनोज जी
जवाब देंहटाएंसमाँ बाँध दिया डॉ साहब. बहुत-बहुत शुक्रिया. मैंने यह गीत भी सेव कर लिया है.
जवाब देंहटाएंयह "गदेलवा" का अर्थ भी बताते चलिए गैर-अवधियों के लिए.
वाह ! .इतनी खूबसूरत विधाएं जिनसे आज के बच्चे परिचित भी नही शायद
जवाब देंहटाएं,जो धीरे धीरे गुम हो जाने की कगार पे हैं ..
ब्लॉगिंग के ज़रिये सामने आ रहीं हैं ..खुशी की बात है ....
बहुत सुरीली प्रस्तुति
धोली की आहट है आपके गीतों मे लगता है होली आज ही आ गयी। धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंछा गये छा गये...अब तो होली के दिन इसी पर नाचा जायेग...वाह वाह...सुन कर आनन्द विभोर हो गये!!
जवाब देंहटाएंक्या बात है मनोज जी इतना सुन्दर और मीठा लोक गीत !
जवाब देंहटाएंढोलक तो बहुत ही बढ़िया बजी है जिसने बजायी उसे भी बधाई दिजीये.... और अंत में ताली की थाप वाह!
....बहुत ही बढ़िया गाया है आप ने..बेहद खूबसूरत!
[कृपया download का लिंक भी दिया करें ..डाउनलोड लिख कर उसे हाइपरलिंक कर दिजीये..[जहाँ यह फाइल है wahan ke link se].]
आभार..
dobara suna ...bahut hi sundar geet!
जवाब देंहटाएंभाई मनोज जी आपके इस लोक गीत का लिंक मुझे मेरे एक प्रिय ने मुझे भेजा !
जवाब देंहटाएंगीत सुनकर बहुत ही अच्छा लगा !
दिल खुश कर दिया आपने !
कहाँ सुनने को मिलते हैं अब ऐसे गीत !
इन लोक गीतों में जीवन समरसता के कितने ही रंग छुपे होते हैं
मैंने सेव कर लिया है ....औरों को भी सुनाऊंगा !
शुभ कामनाएं
is lokgit ko sunane ke niye dhanyawad.
जवाब देंहटाएंhli ki shubhkamnaye
@ भाई जी ,हम लोंगों के यहाँ गदेला -बच्चे को कहा जाता है.
जवाब देंहटाएंदस से कम बार नहीं सुना , मिसिर जी !
जवाब देंहटाएंमजा आय गवा ! अब तौ अवधी कै रंग चढ़ा अहै तौ
नीमन - नीमन पोस्टन कै दरकारि है !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंक्या बात है कमाल कर दिया
जवाब देंहटाएंआप जाने रहिये कि फिर से सुन कर टिप्पणी कर रहे हैं..:)
जवाब देंहटाएंaap logon ki wajah se hi hamari sanskritik virasat aaj bhi kayam hai .....
जवाब देंहटाएंaur aap ka gayan ka kya kahan .....
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सरहनीय है।
@ धन्यवाद समीर भाई साहब,मैं कोशिश में हूँ कि कम से कम दो और पोस्ट इस प्राचीन और विलुप्त हो रहे विरासत पर प्रस्तुत करूं.
जवाब देंहटाएंवाह! क्या आवाज है। जबरदस्त पॉडकास्ट। संग्रहणीय पोस्ट!
जवाब देंहटाएंउस नायिका की सोच रहा हूं - जिसका बालम गदेला हो!
maza aa gaya sir. Bahut din baad aapki awaz sunne ko mili.
जवाब देंहटाएंबारम्बार सुना मिश्रजी; बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंबालम मोर गदेलवा
जवाब देंहटाएंहम तो एक शब्द पर ही कुर्बान हो गए।
बहुत सुंदर फ़ाग मनो्ज जी।
अब होली तक यही चले तो आनंद आए।
करेजवा ठंडाय्। आभार
दिल को छू गई।
जवाब देंहटाएंबेहद पसंद आई।
मन भावन आवाज,ओर उस पर देसी ढोलक की थाप. बहुत मधुर लगा पढने मै थोडी कठिनाई आ रही थी, लेकिन सुन कर सब समझ आ ग्या.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
यह पॉडकास्ट कहां गायब हो गया? पण्डिज्जी, मेरी पत्नीजी कह रही हैं कि इसकी फाइल ई-मेल में मिल जाती तो सुखद होता!
जवाब देंहटाएं...बहुत सुन्दर !!
जवाब देंहटाएं@पाण्डेय सर ,आपको भेज दिया हमने.
जवाब देंहटाएंवाह मिस्रा जी .. फाग का मज़ा आ रहा है आज तो ब्लॉग पर .... ग़ज़ब है भई ...
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुन्दर और यादगार
जवाब देंहटाएंइसे सुना! आनन्दित हुये। जय हो!
जवाब देंहटाएंबहुत ही मनमोहक !!!
जवाब देंहटाएंवाह! क्या झन्नाटेदार खींच कर गया है आपने मन तृप्त हो गया. इसमें तो जौनपुर की बोली का असर दिख रहा है.
जवाब देंहटाएंवाह संस्कृति को आप जैसे लोग ही संभाल के रख रहे हैं
जवाब देंहटाएंबधाई
मुद्दत बाद ऐसा सुन्दर फाग-राग गुंजित हुआ !
जवाब देंहटाएंअनुपस्थिति की कसक केवल इस एक पोस्ट को पढ़कर-सुनकर खत्म हो गयी है ।
आभार ।
बाद की प्रविष्टियाँ सुनकर डाउनलोड कर ली हैं । पर यहाँ डाउनलोड लिंक नहीं दिख रहा । लिंक की जरूरत है । आभार ।
जवाब देंहटाएंaccha ham to bekaare mein Arvind ji ko dosh diye jaa rahe the...ab ihaan aisa 'FAGUNARIYA' jab chala hua hai to bechare Arvind ji bhi ka karte ...haan nahi to...!!
जवाब देंहटाएंवाह! वाह! क्या बात है! फ़िर से सुन लिये!
जवाब देंहटाएंसब पुराना हो रहा है मगर १ साल से उपर भी यह नया बना हुआ है..जब सुनते हैं..झूम जाते हैं...जरा फाईल हमें भी भेज दिजियेगा जब समय मिले...
जवाब देंहटाएं