फागुनी रंग में सरोबार अपनी पिछली पोस्ट बालम मोर गदेलवा और मोहे नीको न लागे नैहरवा के क्रम में आज फाग राग की एक और विधा उलारा प्रस्तुत है.फगुआ गायन में विशेष कर चौताल ( अर्द्ध तीनताल,दादरा,कहरवाऔर फिरअर्द्ध तीनताल ) के बाद चरमोत्कर्ष पर गए जानें वाले पद को ही उलारा कहते है ,यह गायन इतना उमंग भरा होता है कि गायन-वादन के समय अक्सर चरमोत्कर्ष पर ढोलक फट जाया करती है.आज प्रस्तुत है उलारा.......
१-देबैय ना देबैय -ना देबैय ना देबैय ना देबैय
हाँ हाँ रे कजरवा तोहके ,
तैं लेबे केहू का जान
तनी आनों के छैला निहारा कजरवा तोहके न देबय हाँ-हाँ
अरे सेनुरा -कजरा दोनों सोहे ला दुई अंगूरी के बीच ,
सेनुरा सोहई बीच लिलरवा ,
कजरा पलंकियां के तीर -
हाँ हाँ रे कजरवा तोहके.......
अब सस्वर सुनिए मेरी आवाज़ में-----
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२-सांवरिया जुलुम गुजारा हो हमरी सेजरिया
बहर जंजीर खटा-खट बोले उचटल नींद हमारो हो
बड़े प्रेम से मैं उठ भागी पायों प्रेम तिहारो हो
सांवरिया जुलुम गुजारा हो हमरी सेजरिया .........
इसको भी सस्वर सुनिए मेरी आवाज़ में---
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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010
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आदरणीय,
जवाब देंहटाएंक्या समां बंधा बस मुग्ध हो गए ........बेहद लाजवाब !
आभार
बहुत बढ़िया मनोज जी ऐसी रचनाओं की खोज रहती है और आपकी प्रस्तुति बेहतरीन ऐसे लोकगीत का मौसम ही चल रहा है जहाँ थोड़ा प्रेम हो और कुछ तकरार....बढ़िया प्रस्तुति..बधाई
जवाब देंहटाएंवाह बहुत चकाचक होली कार्यक्रम चला रखा है आपने. मजा आगया.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आप गायक भी स्तरीय हैं। नियमित रियाज़ करें तो कमाल कर सकते हैं।
जवाब देंहटाएंअह्ह्ह!!!!!वाह वाह!! आनन्द आ गया इस बार होली का.....छा गये..जमाये रहिये माहौल...लग रहा है होली आई है...बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब आवाज़ मे जादू है। अब तो आप और गीत भी सुनाया करें। धन्यवाद
जवाब देंहटाएं----आज की पोस्ट भी एक दम नायाब-अनोखी न देखी न सुनी-----
जवाब देंहटाएं-- सर,एक बात और हमारा पूरे आफिस आपके गीत को सुन मस्त है.
जवाब देंहटाएं-------प्रोड्कशन वाले कह रहे हैं क्यों न इन विलुप्त गीतों का संकलन प्रस्तुत कर दिया जाय--
यदि आप सहमत हों-
विचार कर के मेल करियेगा----
मिश्रा जी आपने तो गजब का समा बाँधा है , मजा आ गया आपकी आवाज सुनकर ।
जवाब देंहटाएंहोली आई रे सही में खूब रंग जमा रहे हैं आप शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक रचना है।
जवाब देंहटाएंइस लोक परम्परा को फिर से जिलाने के लिए बधाई स्वीकारें।
'संवाद सम्मान-2009'
वाह मिस्र जी , इस बार तो फागुन में बहार ही बहार है। आनंद आ गया आपके गीत सुनकर ।
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनायें।
वाह वाह मंडली तो छा गयी
जवाब देंहटाएंतैं मरले हमरो जान सुनाई के ई तान
जवाब देंहटाएंसबके सुनाइब हाँ हाँ ...
लेबै सबकर जान..हाँ हाँ
बड़े प्रेम से मैं उठ धाई पायों प्रेम तिहारो हो
...होली जगाने के लिए आभार.
वाह !वाह!!वाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब!
खूबसूरत,मनमोहक लोकगीत सुनकर आनंद आ गया!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है
जवाब देंहटाएंआज के समय में लोक गीत लुप्त होते जारहे है आइसे में ब्लॉग पर लोगो को उससे जोड़ना बहुत ही अदभुत है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मिश्रा जी, मजा आ गया फ़ागुनी का,
जवाब देंहटाएंभइया गिरिजेश राव जी द्वारा प्रेषित टिप्पणी यथावत प्रस्तुत-
जवाब देंहटाएं""आप का ब्लॉग मेरी टिप्पणी नहीं ले रहा - फागुन में प्राणवायु की अधिकता जो हो गई है :)
इसे छाप दीजिए:
मेल से प्राप्त गीत सुने। मन मत्त हो गया और साथ ही आप का आभारी भी। लोक परम्परा को आप ने हमेशा के लिए सँजो दिया है। क्या मालूम अगली पीढ़ी गाने के बजाय इन पर केवल शोध ही करे ? वैसे मुझे निराश नहीं होना चाहिए। मनोज मिश्र हर पीढ़ी में होते रहेंगे।
आप को होली की बधाइयाँ।""
अनूठा ब्लाग ! मज़ा आगया , आपने पुरानी यादें ताज़ा कर दी !
जवाब देंहटाएंउलारा कहते हैं इसे, अपरिचित था ! बहुत कुछ खुल रहा है यहाँ ।
जवाब देंहटाएंयह क्रम और भी चलता रहे !
आभार ।
अह्ह्ह!!!!!वाह वाह!! आनन्द आ गया इस बार होली का.....छा गये..जमाये रहिये माहौल...लग रहा है होली आई है...बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंhaan nahi to...!!
जै हो! होली में तो खूब गीत लगाये वाह!
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