सोमवार, 15 फ़रवरी 2010
जौ भरि जाई कुठिला अंगनवा ना ??
खेती -किसानी से जुड़े लोग ,मौसम का हर दिन बदलता हाल देख हैरान हैं .उनके सपने -उनकी आशा सब कुछ फसल ही तो है.अच्छी फसल मतलब साल भर सुकून का जीवन नहीं तो फिर---कहाँ जायेंगे किससे मांगेंगे.माई की दवाई ,बच्चो की पढाई,बिटिया का विवाह,साल भर का रिश्तेदारी और छोटे-मोटे खर्च,कौन देगा ....?उनके लिए कोई वेतनमान तो फिक्स है नहीं .उनका वेतनमान बढ़ाने वाली प्रकृति तो उनसे रूठती जा रही है ,अच्छी फसल ही तो उनका प्रोन्नत वेतनमान है ,फसल चौपट तो बिना अग्रिम पगार के बाहर. इस बार सरसों की फसल पूरे पूर्वांचल में गजब की है......
पर मौसम के करवट से किसानों के माथे पर बल पड़ गये हैं पता नहीं सुरक्षित घर के अंदर आ पायेगी .अरहर की दाल की समस्या को देखते इस बार किसानों नें व्यापक तौर पर अच्छे क्षेत्रफल में अरहर की बुआई की थी ।
मौसम बार-बार ऐसा ठंडा-गर्म हुआ कि दो बार अरहर के फूल आकर झड़ गये ,अब तीसरी बार फिर आ रहे हैं , लेकिन मौसम गर्म हो रहा है ऐसे में फली और उसके अंदर के दानों का सूख जाने का डर है ,अच्छी फसल की उम्मीद खत्म हो रही है, लगता है अभी दाल गरीबों के लिए इस वर्ष भी सपना ही रहेगी.यही हाल गेहूं का भी है- बार -बार बढ़ जा रहे तापमान से इसके उत्पादन में निश्चित फर्क पड़ेगा ।
आज सुबह सबेरे खेत में आये हुए हमारे गांव के सफल किसान राकेश तिवारी अवधी के एक पुरानें लोकगीत को जोरदार आवाज दे रहे हैं --
गेहुआं की बलिया में मोतिया के दनवा,
कतौ घुन-घुनवा बजाय रहे चनवा ,
खेतवा के मेड़वा पे बिहसे किसनवा ,
धरती हमार उगलत अहै सोनवा ,
गंगा माई तोहरा करब दर्शनवाँ,
जौ भरि जाई कुठिला अंगनवा ना ...
.......अब इनको कौन समझाये कि अपनी गंगा माई का हाल भी अब बेहाल हो चला है ,किसानों की तरह ही .......
तो आप भी अपना आशीर्वाद दीजिये और ऊपर वाले से दुआ कीजिये कि इस साल -सालों साल ,किसानों की झोली भरी रहे ........आमीन...
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सुमामिन !!
जवाब देंहटाएंये तो हमेशा से किसानो की परेशानी रही है !! कई बार तो हाथ को आया और मूह को न लगा .....पहले तो प्रकृति ही तरह तरह के खेल खेलती है लाचार किसानो के साथ ! और अगर माँ प्रकृति की कृपा रही तो मंडी के भावो का उतार चड़ाव धोखा दे जाता है और अगर वहा भी कुछ बात बन गई तो महाजन के महापाश से कोन बचाए गरीब किसानो को ??
आजादी के इअताने साल बाद भी किसानो की दशा में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ ये हमारी बहुत बड़ी हार ही तो है!!
सादर
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
अब इनको कौन समझाये कि अपनी गंगा माई का हाल भी अब बेहाल हो चला है ,किसानों की तरह ही
जवाब देंहटाएंसही बात है अब लोक गीत भी अपने मायने खोते से लग रहे हैं धन्यवाद्
दुखद स्थिति है.
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद है यह सब. बहुत सही लिखा आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सचमुच दुखद है की आज भी खेती किसानी बहुत कुछ कुदरत की कोप और मेहरबानी पर ही निर्भर है .
जवाब देंहटाएंवास्तव में यह समस्या गंभीर है और विचारणीय भी.
जवाब देंहटाएंभारतकोकृषि के विकास में और आधुनिक तकनीकी संसाधनो का प्रयोग करना होगा ताकि प्रकृति पर पूरी तरह से निर्भर होने से बचा जा सके.
बहुत से विकसित देश इस का उदाहरण हैं.
कृषि प्रधान देश में कृषकों के साथ कुदरत भी न्याय नही करती .... पर अगर आधुनिक तकनीक उपलब्ध हो तो शायद समस्या का हाल निकल जाए कुछ हद तक ...
जवाब देंहटाएंआपका लोक गीत झूमा गया ...
kas eh bat ek mudda banta . thanku
जवाब देंहटाएंसही बात है , मिस्र जी। हमारे देश में किसान अभी भी प्राकर्तिक विपदाओं से त्रस्त रहता है।
जवाब देंहटाएंअगर मौसम ठीक रहा तो ठीक वर्ना सब बर्बाद हो जाता है।
लोक गीत बड़ा प्यारा है।
kisanon ki durdasha chintneeya hai
जवाब देंहटाएंजी हां मनोज जी, हमारे यहां का किसान हमेशा ही प्रकृति की मार झेलता है. कभी पानी की अधिकता से दुखी तो कभी कमी से. दोनों स्थियों में मार उसी को झेलनी पडती है.
जवाब देंहटाएंभारत मै किसान अब भी मोसम के ऊपर ही निर्भर करता है, ओर क्रे भी क्या जब छोटे छोटे खेत है ओर फ़िर वो इन आधुनिक तकनीकी संसाधनो का प्रयोग करे भी तो केसे... क्यो नही सारे मिल कर सांझा खेती करे, ओर मिल कर आधुनिक तकनीकी संसाधनो को खरीद कर इस का उपयोग करे, सभी खुश रह सकते है, ओर सब को भर पेट मिलने के अलाबा वचत भी होगी, क्यो कि विदेशो मै एक किसान के पास बहुत ज्यादा जमीन होती है उअतनी जमीन जितनी हमारे भारत मै २० किसानो के पास, क्योकि युरोप मे खेती की जमीन का बटवारा नही होता, ओर सरकार भी आधुनिक तकनीकी संसाधनो को खरीदने मै मदद करती है,क्या यह सब भारत मै सम्भाव है अगर हा तो सभी खुशहाल हो सकते है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट.
जवाब देंहटाएंइस साल -सालों साल ,किसानों की झोली भरी रहे ........आमीन...
चित्र बड़े अच्छे लग रहे हैं। पर अरहर में दिक्कत है? हमरे कैती त कहत हयें कि मजे क होई जाये रहर!
जवाब देंहटाएंहे गंगा माता ! तुम्हारा ये हाल है हमारा क्या होगा !!!!
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद लोक गीत सुना है | धन्यवाद
अफसोसजनक स्थितियाँ.
जवाब देंहटाएंकिसानों की झोली भरी रहे, आमीन, सुम्मा आमीन।
जवाब देंहटाएं--------
संवाद सम्मान 2009
जाकिर भाई को स्वाईन फ्लू हो गया?
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर फोटो! अच्छी प्रस्तुति!
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