सोमवार, 8 मार्च 2010
चैत मास की अमराई में चैता-चहका और चौताल.....
प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने और सुरुचिपूर्ण संगीत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हमारे घर पीढी दर पीढी से प्रतिवर्ष होली के आठवें दिन आयोजित किये जाने वाले लोक-संगीत समारोह "आठो -चैती " में इस चैत मास की अमराइयों में रविवार की देर रात तक लोक संगीत कारों की स्वर लहरियां गूंजती रहीं,लोग आनंदित होते रहे।
इस संगीत समारोह में लोक संगीत की विलुप्त हो रही विधाओं -फगुआ,चहका,चैता,बेलवैया,उलारा,चौताल ,कहरवा,झूमर और देवी गीत का उत्क्रिस्ट प्रदर्शन दूर -दूर से आये हुए करीब पचासों कलाकारों द्वारा किया गया।
इस विधा में प्रवीण हमारे जनपद के पुराने गवैया प्रज्ञा चक्षु बाबू बजरंगी सिंह और पंडित नागेश्वर चौबे नें अपनी प्रस्तुतियों से श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया।
फागुन के दिन चार की, अब हम लोंगों के यहाँ से विदाई हुई है.पूरे पूर्वांचल में फाग गीतों का आयोजन चैत अष्टमी तक होता है फिर ढोल और ढोलकिया दोनों अगले बरस के इन्तजार में मौन हो जाते हैं ।
बचपन में जब से जानने की समझ विकसित हुई यह आयोजन देखता रहा हूँ,साल दर साल बीतते रहे ,परम्पराएँ अन्य स्थानों पर दम तोडती रहीं,कार्यक्रम समाप्त होते रहे लेकिन इन परम्पराओं को हम सब न छोड़ पाए.हमारे यहाँ स्व. परदादा, स्व.दादा , स्व.पिता जी और फिर हम लोंगो तक यह सिलसिला बदस्तूर कायम है. हर वर्ष हमारे घर के सभी सदस्य और परम्परागत रूप से जितने भी परिवार ,गायक इस आयोजन से जुड़े है सब के सब इस निश्चित तिथि को बिना बुलाये ,बिना किसी निमंत्रण- मनुहार के अपनें आप उपस्थित होतें हैं , चाहे कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो , आयोजन वाले दिन अष्टमी को फिर हमारे घर पर ही, बड़े आम के बगीचे में, दाल-बाटी- चोखा के महाभोज के साथ ,अमराइयों की भीने सुगंध के बीच सभी लोक कलाकार, भारी भीड़ के साथ अपनी स्वर लहरियों से पूरा इलाका गुंजायमान करते है।
इस आयोजन की कुछ झलकियाँ आपके लिए भी---
लोक कलाकारों का सम्मान अंगवस्त्रम के द्वारा ॥
फाग-गीत गायन के सम्राट प्रज्ञा चक्षु बाबू बजरंगी सिंह ,गायन मुद्रा में ।
इन्ही के स्वर में सुनिए एक विलुप्त फाग-गीत ...
और अब फाग-गीत अध्याय का समापन, नहीं- नहीं मध्यांतर हुआ ,अगले बरस फिर मिलेंगे फागुन में...
लिख दिया ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आये ..................
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Manoj ji, kripya aap in fag ka mp3 mujhe mail kar denge to bad me bhi main anand le sakta hun.
जवाब देंहटाएंbahut hi adbhut fag giit hai.
sunvane ke liye abhar
बहुत बढ़िया सचित्र जानकारी।
जवाब देंहटाएंहमारी परम्पराएँ ही हमारी पहचान हैं।
अच्छा लगता है जानकर कि परंपरायें जीवित हैं अभी भी. बहुत सुन्दर फाग गीत..आनन्द आ गया इस बार होली में आपकी इस श्रृंखला के चलते. बहुत साधुवाद!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर फ़ाग गीत, होली का आनंद आपके ब्लाग पर ही आया इस बार. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुंदर लगी आप की यह होली की कोयल, मधुर आवाज,मस्त आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकल हमने भी गंगा किनारे होली मिलन समारोह का खूब आनंद लिया. भांग ठंडाई और संस्कृत जगत के विद्वानों ने चैती का ऐसा समां बांधा की वर्णन नहीं कर सकता...हाँ, न मायिक थी न कैमरा और तो और हम अपना मोबाईल भी घर भूल गए थे ..आपको कुछ सुना नहीं सकते. ..मगर आप जो करते हैं ..सुनते भी हैं और सुनाते भी हैं...इसकी जितनी भी तारीफ़ की जाय कम है. पढ़-सुन कर कल का आनंद आज फिर ताजा हो गया.
जवाब देंहटाएं...आभार.
मज़ा आगया , आप खुशकिस्मत हैं जो अभी अपनी जड़ से जुड़े हैं ! शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंFirst of all, I will apologize for not having hindi tools on my pc.Really , it's amazing to have such a musical post on any blog for the first time. I am sure not to have suitable words for appreciation of this culture. Your dedication to folk treasure is praiseworthy. To Find fag, chaita, ulara, chaheka on 21st century device and in Delhi is a dream. I have a passion for such arts as my roots are in Purvanchal. What if next I join Fag and Baati Chokha with you and other artists !
जवाब देंहटाएंचैता तो रामनवमी तक तो चलेगा न?
जवाब देंहटाएं@ श्री ललित शर्मा जी , जरूर .
जवाब देंहटाएं@श्री हरिशंकर जी ,आपका स्वागत.
@ श्री अभिषेक जी ,सही कह रहे है.
bबहुत अच्छी लगी ये सचित्र जानकारी मेरे लिये तो ये सब नया है। अपनी संस्कृति को जिन्दा रखने के लिये आपका ये प्रयास सराहणीय है धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंखुमारी है कि उतर ही नहीं रही है -भव्य आयोजन !
जवाब देंहटाएंसर बहुत कुछ या यूँ कहें की सब कुछ नया नया और अच्छा लगा बहुत ही ज्ञान वर्धक पोस्ट खास कर वो नाम
जवाब देंहटाएंफगुआ,चहका,चैता,बेलवैया,उलारा,चौताल ,कहरवा,झूमर और देवी गी
'
Wah Bahut Sunder ....Aur Afsos Bhi Kash Ham bHi Hote Wahan ......
जवाब देंहटाएंAgle Baras Hame Bhi Zaroor Bulaiyega Taki Is Kala Ko Karib Sun Aur jan Sake .....
सच है कि फाग इस बार चटक दिखा यहीं !
जवाब देंहटाएंहर एक प्रविष्टि एक से बढ़कर एक ।
संस्कार बचा रखा है आपने लोक का ! यह जीवंतता दुर्लभ है । गीत के तो क्या कहने !
डाउनलोड कड़ी क्यों नहीं लगाते ?
आभार ।
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति, आभार के साथ बधाई ।
जवाब देंहटाएंआयोजन की तस्वीरें अच्छी हैं और बाबु बजरंगी जी कि आवाज़ में फाग सुना.
जवाब देंहटाएंबेहद मनमोहक !
Recording bhi achchhee ki hai.
लोक संगीत की विलुप्त हो रही विधाओं से आप ने परिचय कराया और अद्भुत संकलन भी अंतर्जाल पर दिया .बहुत बहुत आभार.
लोकगीत रक्षा का बीड़ा उठाये रहें , समय आने पर इस कार्य के लिए
जवाब देंहटाएंआप अलग से सराहे जायेंगे !
बिना इन मन हारी पोस्टन के ब्लॉग जगतवा जहर लागेला !
.
'' फगुनवा जाला रे दैया '' !
. ......... काम जारी रहे , सनद रहेगी ही ! आभार !
चहका,बेलवैया, कहरवा..पहली बार सुना इनके बारे मे..कुछ और प्रकाश डालें गुरुवर!!!
जवाब देंहटाएंसंस्कृति और परम्परों को सहेजने के लिए किये जाने वाले प्रयासों की जितनी सराहना की जाये उतनी कम है. आपका प्रयास और लेख दोनों ही उत्तमहैं.
जवाब देंहटाएंफोटो अच्छे हैं। फ़ाग सुनकर मजा आ गया। इत्ते दिन बाद सुना! इसके भी मजे हैं!
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