धर्म से ओत-प्रोत हमारे इस महान देश की अजब परम्पराएँ और चलन हैं.साल भर हर मुद्दे पर जिनका निरादरकरो -उसी का एक दिन विधिवत पूजन-अर्चन और नमन. आज का दिन हम लोंगो की तरफ कुमारी कन्याओं कादिन होता है.श्री राम नवमी के दिन सुबह-सबेरे हमारी तरफ ही नहीं, मैं समझता हूँ पूरे हिन्दी भाषी राज्यों मेंकुमारी कन्याओं का विधिवत पूजन-अर्चन के साथ भोजन कराया जाता होगा .इधर साल दर साल मैं महसूस कररहा हूँ कि बालक -बालिका अनुपात स्पष्टतया दृष्टिगोचर भी होने लगा है.कई लोंगो से पूछनें पर पता चला कि ९ कीसंख्या में हर जगह कुमारियाँ नहीं मिल पायीं.घर-घर पूजन -भोजन होना है ,मुहल्ले -बस्तियों में कई घर ऐसेमिल जायेंगे जहाँ कुमारी कन्याएं ही नहीं है ,तो ऐसे में कैसे हो घर-घर पूजन ।
ऐसा लगता है कि समाज की विकृत सोच- कन्या भ्रूण हत्या और पुत्रवान भव की परम्परा नें अब अपना रंगदिखाना शुरू कर दिया है .इस सोच नें सामाजिक ताने-बाने का कितना नुकसान किया इसका आकलन सहज नहींहै .काश आज के दिन जितना सम्मान व पूजन हर घर इन कन्याओं का होता है वह साल के सभी दिनों में कायमरह जाए? यह सदविचार हर-एक के मन में हर दिन बना रह जाय?? आज के दिन शक्ति की अधिष्ठात्री से यही मेरी विनम्र प्रार्थना है........
बुधवार, 24 मार्च 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
यह तो होना ही था..
जवाब देंहटाएंरामनवमीं की अनेक मंगलकामनाएँ.
-
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
सही कहा मिस्र जी । बस एक दिन ही ढूंढते हैं कन्याओं को ।
जवाब देंहटाएंरामनवमी की शुभकामनायें।
Satya kathan.....Ramnavami ki sapariwaar shubhkaamnaae swikaare!!
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं आप ! काश हर दिन यह भाव अक्षुण्ण रहे मन में !
जवाब देंहटाएंरामनवमी की शुभकामनाएं ! आभार ।
आप की चिंता जायज है। हम भी उस में साथ हैं।
जवाब देंहटाएंएकदम सही मुद्दा उठाया आपने , हमें भेई आज सुबह इस बाबत बहुत मस्स्क्कत कानी पडी !
जवाब देंहटाएंचलिए कन्याओं का महत्व तो पता चला। रामनवमी की ढेर सारी शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंjo boya so kaato
जवाब देंहटाएंkaahe ko chinta karte hai log
सच कह रहे है आप हम ही है जो इसे रोक सकते है, उन परिवारो से रिश्ता ही तोड दो जो भुर्ण ह्त्या जेसा गंदा काम करते है, एक तरफ़ तो पेदा होने से पहले ही क्न्या को मार देते है ओर फ़िर साल मै एक दिन उसे ही पुजते है.... केसा है यह ढोंग क्या देवी मां यह सब नही देखती??
जवाब देंहटाएंआप को भी रामनवमी पर्व की शुभकामनाएँ!
रामनवमी की शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंसही मुद्दे को रखा है आपने..हतप्रभ करने वाली बात है कि यह उस समाज की सत्यता है जहाँ बालिका शिशु को देवी का प्रतीक मानते हैं हम..और देवी की ९ दिन आराधना करते हैं..
जवाब देंहटाएंहालाँकि इसी बहाने बची हुई देवि-कन्याओं को खूब घरों मे जीमने को मिलता है:-) ...इस दिन की प्रतीक्षा भी रहती है उन्हे..
रामनवमी व नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
वाकई सही मुद्दे के बारे में लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंराम नवमी की शुभकामनाएं
स स्नेह,
लावण्या
बहुत सटीक मुद्दा उठाया है। अब यह दिखने भी लगा है कि भोजन के लिये कन्याएं खोजने पर भी नहीं मिलती।
जवाब देंहटाएंहम सुबह-शाम जिसे धर्म कहकर पूजते है लेकिन उसका पालन नहीं करते। जबकि धर्म का अर्थ होता है उस गुणों को अपने अन्दर धारण करना। समाज से ज्ञान की कमी होती जा रही है, बस ढकोसले बढ़ते जा रहे हैं। अच्छी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंकाश आज के दिन जितना सम्मान व पूजन हर घर इन कन्याओं का होता है वह साल के सभी दिनों में कायम रह जाए?...
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा ...कन्याओं का सम्मान पूरे वर्ष ही हो तो क्या बात ...!!
हर वर्ष मुझे भी दिक्कत आती रही ९ कन्यायें जुटाने में ...मगर इस बार कच्ची बस्ती की ओर चले गए ...इतनी कन्याएं जुट गयी कि खाना कम पड़ गया ...
एक चिंतनीय लेख...कन्या के प्रति पुरे समाज को सोचना होगा....
जवाब देंहटाएंbahut sahi baat kahi hai apne...
जवाब देंहटाएंवह भी अपने स्वार्थ में, अपने परलोक को सुधारने की कामना में. अन्यथा ये कोई हृदय परिवर्तन जैसी कोई बात नहीं.
जवाब देंहटाएंसच कहा है आपने ... पूजन को कोरी परंपरा न मान कर मन से आदर का भाव रहना चाहिए कन्याओं के प्रति ... तभी सार्थकता है .. राम नवमी की बधाई ...
जवाब देंहटाएंsach kaha aapne ye parampara lagbhag desh ke har kone me nibhayi jaati hai aur hum bhi iska palan karte hai .
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रयास सार्थक है,बढियां
बहुत सही बात कही आप ने .आप की प्रार्थना में हमारे भी स्वर हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी प्रार्थना में मेरा भी स्वर है ..
जवाब देंहटाएंविरोधाभास तो अपने भारतीय समाज में पदे-पदे मिलता है ..
भ्रूण - ह्त्या होना मध्यकालीन संस्कारों का सूचक है , आधुनिकता के नाम पर
हम आज भी चेतना की जड़ता को ढो रहे हैं ...
डॉ. साहेब, स्थिति बहुत दुखद है. धार्मिक आचार तो आज पिछड़ों की परम्परा कहलाता है. आश्चर्य नहीं कि कल को भ्रूण-ह्त्या और दहेज़-ह्त्या करने वाले कन्या-पूजन पर भी प्रतिबन्ध लगाने की बात करें.
जवाब देंहटाएंचिंतनीय
जवाब देंहटाएंएक दिन विधिवत पूजन-अर्चन और नमन..!
जवाब देंहटाएं....शुक्र है कि ये परंपराएँ अभी तक जिंदा हैं वरना यह चिंतन भी मिट जाता जो इस पोस्ट के माध्यम से आपने हमारे समक्ष रखा।
....आभार।
aapki praathanaaon men hamaari aatmaa bhi saath hai....sach......
जवाब देंहटाएंapani bhee shubhakamanayen
जवाब देंहटाएंदहेज क्या क्या हाल है - रेट गिरे या पहले जैसे हैं?
जवाब देंहटाएंbahut sahi kaha hai aapne .bilkul aise hi vicharo ki ak post maine bhi dali hai .krapya pdhe
जवाब देंहटाएंhttp://shobhanaonline.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
सामयिक चिंता!
जवाब देंहटाएं