मा पलायनम क्यों ?जीवन की विभीषिकाओं से जूझने का संकल्प इसके पीछे तो है ही मगर मेरे लिए आकर्षण का शब्द है मा -यानी संस्कृत साहित्य का एक आदि शब्द जो सहसा नकारात्मकता का बोध तो देता है पर इस शब्द के महात्म्य में गहरे जाने पर इसमे छिपी कारुणिकता और जिजीविषा का भी साक्षात्कार होता है ।
मा निषाद प्रतिष्टाम त्वमगमः शाश्वती समा
यत्क्रौंच मिथुनादेकं काम मोहितं
अनुष्टुप छंद का पहला ही शब्द मा है जो प्राणिमात्र की रक्षा के लिए उदबोधित हुआ और जिसमें आदि कवि की करुणा भी आप्लावित है .यह शब्द मानव जीजिविषा को भी इस अर्थ में प्रेरित करता है कि किन्ही भी विपरीत परिस्थितियों से हार मान कर हम अपने कर्तव्य पथ से च्युत नही होंगे -मा पलायनम बोले तो हार मत मानों संघर्षरत रहो .गीता का वह उदघोष तो आपको याद होगा ना -न दैन्यम न पलायनम ! जिसने अर्जुन को रणभूमि में टिके रहने का संबल दिया .
न पलायनम को थोडा परिमार्जित कर मैंने मा पलायनम कर दिया है और आमजन की पीडा के प्रति भी मैंने संवेदित करने की चेष्टा की हैं -भाषाविद और वैयाकरणीय आचार्यो से किंचित संकोच और क्षमा याचना के साथ !
इस चिट्ठे की विषयवस्तु स्वयम इसे परिभाषित करेगी -हिन्दी ब्लागजगत मेरे इस ब्लॉग को भी स्नेह देगी इसी आशा के साथ यह नामकरण पोस्ट ब्लॉगर मित्रों आपको ही समर्पित है -
मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008
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आ. मनोज मिश्रा जी आपका तहे-दिल से स्वागत है इस आभास जगत में ! आपको बहुत बधाई और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
आपका इस दुनिया में स्वागत है .नामकरण उत्तम है पूत के पावं पालने में दिख ही गए है
जवाब देंहटाएंस्वागतम !
जवाब देंहटाएं( दूसरा चरण शायद यह है:
यत्क्रौंच मिथुनादेकं वधी: काममोहितं
)
adhbut
जवाब देंहटाएंadhbhut lekin aap ke lekhan mai nirantarta ka abhav dikh raha hai isko adat banayen shubhkamnayen
जवाब देंहटाएंअब यहां तक भी आ गये भाई सो स्वागत है।
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