आज ही अभी मेरी एक बुजुर्ग लेकिन सक्रिय साहित्यकार से दिवाली की शुभ कामना को लेकर वार्ता हुई .उन्होंने कहा कि मै कोई ब्यवसायी तो हू नही कि यह गुणा भाग कर सकू कि मेरी दिवाली पर क्या आय हुई .हाँ इतना जरुर है की एक त्यौहार के रूप में आनंद लिया गया.उन्होंने लगे हाथ अपनी पीड़ा भी बता दी की हम साहित्यकारों को कौन पूछ ही रहा है .उन्होंने मुझे बनारस के महाकवि स्वर्गीय चच्चा की कविता का भी स्मरण दिलाया जो कि आप सब के अवलोकनार्थ लिख दे रहा हूँ -
वैद्य ,हकीम , मुनीम ,महाजन ,साधु ,पुरोहित, पंडित पोंन्गा ।
लेखक लाख मरे बिनु अन्न चचा कविता करि का सुख भोगा .
पाप को पुण्य भलो की बुरो ,सुरलोक की रौरव कौन जमोगा ।
देश बरे कि बुताये पिया हरसाए हिया तुम होहु दरोगा !!
यह रचना आजादी के पहले की है .इतने सालो बाद भी हालात वहीं है.कैसी दिवाली और किसकी दिवाली .
आपकी प्रतिक्रिया के इन्तजार में सादर,
देश बरे कि बुताये पिया हरसाए हिया तुम होहु दरोगा !!
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने ! आज भी वही हालत हैं ! कविता
पढ़वाने के लिए बहुत आभार आपका ! शुभकामनाएं !
लाज़बाब आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है . निरंतरता की चाहत है . मेरे ब्लॉग पर पधारें मेरा आमंत्रण स्वीकारें
जवाब देंहटाएंस्वागत है चिट्ठाजगत में। यूं ही लिखते रहें,
जवाब देंहटाएंhalat to tab badlanege jab hamari soch badlegi, kalyan ho naradmuni
जवाब देंहटाएंसत्य वचन!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत स्वागत है आपका. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंब्लॉग परिवार में स्वागत . शुभकामनाएं और स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.
जवाब देंहटाएंइसई का जिक्र फ़िर ज्ञानजी के ब्लॉग पर भी हुआ।
जवाब देंहटाएंTortoise in Hindi
जवाब देंहटाएंSparrow in Hindi
Mars in Hindi
Peacock in Hindi
Horse in Hindi
Tiger in Hindi
Moon in Hindi