गतांक से आगे ...
इस जनपद के बक्सा थाना के अंतर्गत ग्राम चुरामनिपुर में गोमती नदी से सटे एक बड़े नाले के समीप ही एक अति प्राचीन मूर्ति है ,जो कि चतुर्मुखी शिवलिंग अथवा अर्धनारीश्वर प्रतिमा प्रतीत होती है .इस मूर्ति की पहचान जनसामान्य में चम्मुख्बीर बाबा के नाम से एक ग्राम देवता के रूप में की जाती है .मूर्ति कला कि दृष्टी से यह मूर्ति अपने आप में एक बेजोड़ प्रस्तुति है एवं सामान्यतया ऐसी मूर्ति का निदर्शन उत्तर -भारत में कम है .इतिहास कारों ने प्रथम दृष्टी में इसे गुप्तकालीन कृति माना परन्तु यदि संदर्भित क्षेत्र विशेष में बड़े पैमाने पर पुरातात्त्विक उत्खनन सम्पादित कराएँ जाएँ तो निश्चित रूप से जौनपुर और भारत के प्रारंभिक इतिहास लेखन में कुछ और महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ संलग्न हो सकती हैं .इसी क्रम में खुटहन थानान्तर्गत के गावं गढागोपालापुर का उल्लेख किया जा सकता है ,जो कि आज भी एक गढ़ सदृश्य दीखता है ,तथा लोक कथाओं एवं जनश्रुतियों में यह मान्यता बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है कि संदर्भित स्थल प्राचीन भारत में कभी किसी राजा की राजधानी था तथा गोमती उस गढ़ से सट कर बहती थी जिसे तत्कालीन राजा ने नदी की धारा को दूसरी ओर मोड़ दिया था . मौके पर आज भी ऐसा लगता भी है कि नदी की धारा मोड़ी गयी है ,वर्तमान में वह राजधानी नष्ट हो चुकी है तथा वहां
उपरी तौर से कुछ भी नहीं दीखता परन्तु दंत कथाओं में वह आज भी जीवित है .जिसे की आज भी उत्खनन की प्रतीक्षा है .इस सन्दर्भ में इस तथ्य का प्रगटीकरण करना समीचीन है कि समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति की २१ वीं लाइन में आटविक राजस्य शब्द मिलता है जिसे इतिहासकारों ने आटविक राज्य माना है .इतिहासकार फ्लीट और हेमचन्द्र राय चौधरी ने इन्हें जंगली राज्य मानते हुए इसकी सीमा उत्तर में गाजीपुर (आलवक) से लेकर जबलपुर (दभाल) तक माना है .संक्षोभ में खोह ताम्रलेख (गुप्त संवत २०९ -५२९ AD ) से भी ज्ञात होता है कि उसके पूर्वज दभाल ( जबलपुर ) के महाराज हस्तिन के अधिकार-क्षेत्र में १८ जंगली राज्य सम्मिलित थे .ऐसा प्रतीत होता है कि प्रयाग प्रशस्ति में इन्ही जंगली राज्यों की ओर संकेत किया गया है ,जिसे समुद्रगुप्त ने विजित किया था .इस सम्भावना को माना जा सकता है कि जौनपुर भी कभी इन जंगली राज्यों के अधीन रहा हो तथा संभव है कि यह भी तत्कालीन समय में भरों या अन्य जंगल में रहने वाली बनवासी जातियों के भोग का साधन बना हो तथा तथा केरारेबीर ,चम्मुख्बीर और बन्वारेबीर जैसे शासक (जिनका मंदिर वर्तमान में शाहीपुल और जनपद के आस-पास स्थित है ).इस क्षेत्र विशेष में इन जंगल में रहने वाली जातियों के नायक एवं सेनानी के रूप में चर्चित रहें हों .इन ऐतिहासिक स्थलों के गर्भ में छिपे इतिहास को प्रकाशित करने के लिए ब्यापक पैमाने पर उत्खनन की आवश्यकता है .इसके अलावा जनपद के मछलीशहर ,जफराबाद ,केराकत एवं शहर के पूर्वी ,पश्चमी एवं उत्तरी छोरों पर कुछ चुनिन्दा स्थल भी पुरातात्त्विक उत्खननों की प्रतीक्षा में हैं , इसके उद्घाटन से जौनपुर ही नहीं ,अपितु प्राचीन भारतीय इतिहास की कई अनसुलझी एवं अबूझ पहेलियों को सुलझाया जा सकेगा .
जारी ..............................
जौनपुर के विषय पर लिखा यह लेख मुझे बहुत पसन्द आया है। इसके आसपास के इलाके से ही मेरे पति के परिवार के पूर्वजों का सम्बन्ध रहा है सो यह लेख मेरे लिए वैसे भी रोचक है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
aap k is prayas se mujhe jaunpur ke itehaas ki jankari hue....jo mai itne kam samaye me kabhi nahi kar sakta tha.
जवाब देंहटाएंiske liye dhanywad
बीर लोग कौन थे -क्या ये शैव थे ? चम्मुखबीर बाबा को शिवलिंग के रूप में दिखाया गया है -तो बीर शैव ही हुए ! दरअसल यह पूरा क्षेत्र ही शैवों से अटा पटा रहा है -वाराणसी शहर में भी ऐसे ही लहुराबीर ,भोजूबीर आदि जगहें हैं और कौन नहीं जानता बनारस शैवों का गढ़ रहा है -यह तो तुलसीदास का राम महात्म्य ऐसा छाया की यहाँ वैष्णव और सहिवों का भेद मिटता गया !
जवाब देंहटाएंयह चित्र तो मुझे मन्दसौर की पंचमुखी विशाल शिव प्रतिमा की याद दिलाता है।
जवाब देंहटाएंआपने गढागोपालापुर का उल्लेख किया. क्या इस गढ़ सदृश दिखने वाली जगह के चारों तरफ खंदक है? या कभी खंदक के रहने का आभास होता है? यदि है तो बारिश के मौसम में वहां पुरा प्रमाण ढूंढे जा सकते हैं. जब गढ़ के लिए चारों तरफ खंदक बना होगा तो नीचे की मिटटी ऊपर गयी होगी. बारिश में ऊपर से नीचे बहने वाली पानी मिटटी को काटती है. उन पोले जगहों से मिटटी के ढेलों को बीना जाए और उन ढेलों को रख लिया जाए जो अपेक्षाकृत वजनी लगते हो. उनकी सफाई से प्राचीन सिक्के मिलेंगे जिनपर या तो कुछ लिखा होगा या फिर आकृतियाँ बनी होंगी.
जवाब देंहटाएंरोचक श्रंखला है. हम तो पहली बार जौनपुर के बारे में जान रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर जानकारी दे रहे है आप अपनी इस श्रंखला मै, कभी समय मिला तो एक बार पुरा देश जरुर देखेगए,ओर आप का जोन पुर भी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
Bahut sunder aalekh -
जवाब देंहटाएंIntezaar rahega aage bhee likhiye
मुझे चम्मुखबीर बाबा से जुडी बचपन की एक घटना याद आ गयी ! मगर पहले राग दरबारी के नायक रंगनाथ के बारे में -वे जब विश्विद्यालय से प्राचीन इतिहास की पढ़ाई कर के घर लौटे तो गाँव के मंदिर को फिर देखने गए और पाया कि जिसे लोग देवी मन कर पूज रहे थे वह तो १२ वीं सदी के सैनिक का शिरस्त्राण था -कैसा अद्भुत संयोग है यही घटना मेरे साथ भी घटी थी -यद्यपि मैं इतिहास का विद्यार्थी नहीं था मगर प्राणिशास्त्र में स्नातकोत्तर के बाद ऐसे ही बैठे ठाले लिंग पूजा पर अध्ययन करने लग गया ( क्वचिदन्य्तोअपि पर वही लेख है ) -उसी दौरान चम्मुखबीर बाबा के दर्शन को पहुंचा और बार बार पूर्व में देखे इस मूर्ति को देखते ही पहचाना -अरे यह तो शिवलिंग है ! चतुर्मुखी शिवलिंग ! और बाबा फिर नए नाम से पुनरोदघातित हो गए थे -गाँव वाले वैसे अब भी उन्हें चम्मुखबीर बाबा कहते हैं !
जवाब देंहटाएंसोचा यह संस्मरण यहाँ प्रासंगिक है इसलिए टिपिया दिया !
मनोज जी
जवाब देंहटाएंजौनपुर में कई वर्ष रहने के बाद भी मैं जौनपुर को इस नज़र से नहीं देख पाया जैसा आप दिखा रहें हैं आप का लेख पढ़ते वक्त मैंने कई युगों को जीया बधाई
http://www.uparchaeology.org/contact_us.htm
जवाब देंहटाएंI never been to this side of Bharat. Would like to read more.
जवाब देंहटाएंbahut hi rochak jaankari hai.
जवाब देंहटाएंis sthan ki itihaasik mahtta ko jaan kar ashchrya hua ki kyon puratatv shastri is or poora dhyan nahin de rahey.
aagey ki kadiyon ka intzaar rahega.
बहुत उम्दा....
जवाब देंहटाएंआपका जोनपुर पर लिखी जानकारी पसंद आई...
इसी तरह जौनपुर घूमना हो रहा है. बहुत सुंदर प्रयास है आपका.
जवाब देंहटाएंरामराम.
जोनपुर पर लिखी जानकारी बेहद रोचक रही....सोमवार को सुबह सुबह .चतुर्मुखी शिवलिंग के दर्शन कर मन प्रसन्न हो गया...आभार
जवाब देंहटाएंRegards
jaunpur ke baare me batane ke liye dhanyavadsir
जवाब देंहटाएंJOUNPUR KI BEHTARIN TASVEER DIKHAYI HAI SIR..
जवाब देंहटाएंaaj somwar ko aap k blog per adbhut shivling k darshan pakar dhanyay ho.aap ko is k liye dhanyawad
जवाब देंहटाएंभाई मनोज जी,
जवाब देंहटाएंहमारा गृह नगर इलाहबाद है और जौनपुर इलाहबाद के अत्यधिक समीप है फिर भी कभी जौनपुर जाना न हो सका. अब आपके लेखों से उसके ऐतिहासिक महत्त्व को जान कर अफ़सोस करना पड़ रहा है कि जौनपुर मैं गया क्यों नहीं.
खैर..अब आपके लेखों से ही इस ऐतिहासिक शहर की रोचक जानकारी से स्वयं को अपडेट कर लेते है. अब जयपुर में बस जाने के कारण इलाहबाद आना-जाना कभी-कभी ही हो पता है, सो श्रंखला विशेष पसंद आ रही है.
आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
sir aapke blog se jaunpur ke bare me jo jankaree mil rhi hai vah bhut hee mahatvpuran hai.hmara aap se anurodh haiki kripya ise jaree rakhe.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी श्रंखला चल रही है। मनोज जी, हार्दिक बधाई।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
ये भी गुड है जी!
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