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आदरणीय श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी के निर्देश के क्रम में पिछले 3 दिनों से मैं दरोगा -दरोगा हो रहा था ,अर्थात मैं महाकवि हास्यावतार चच्चा जी बनारसी के बारे में यत्र -तत्र -सर्वत्र खोज कर रहा था .आज बाटी -चोखा की ऐसी महक आयी कि मैंने सोचा कि इस महक में हमरे चच्चा की सुधि पुरानी नहो जाये इसलिए चारो ओर न सुनने के बाद जब मैंने अपनी पैत्रिक लाइब्रेरी "अरविन्द ज्ञान सोपान "को आज पुनः टटोला तो महाकवि की कोई रचना तो नहीं मिली परन्तु आज अखबार बनारस के वरिष्ठ सम्पादक रहे प्रख्यात साहित्यकार श्री लक्ष्मी शंकर ब्यास जी का संस्मरण हाथ लग गया जिसमे उन्होंने बनारस के हास्यावतार अन्नपूर्णा जी ( महाकवि चच्चा) का उल्लेख किया है .उन्होंने लिखा है कि हास्यावतार अन्नपूर्णा जी से उनकी मुलाकात १९४३ में आज अखबार के आफिस में हुई थी . हास्यावतार अन्नपूर्णा जी आज अखबार के संस्थापक रहे राष्ट्र रत्न स्व.शिवप्रसाद गुप्त जी के निजी सचिव थे .खादी की धोती ,सफ़ेद खद्दर का कुरता तथा खद्दर की बनारसी दुपलिया टोपी उनके ब्यक्तित्व को आकर्षक बनाती थी .उन्होंने महाकवि के बारे में लिखा है कि-
इनकी कवितायेँ ब्रज भाषा में हैं और तत्कालीन समाज की प्रवित्तियों का यथार्थ चित्रण उपस्थित करतीं हैं . हास्यावतार चच्चा जी
ने भूत नामक एक हास्य रस का पत्र भी निकाला था जो कि अपने आप में अनोखा और चर्चित था .इनके जीवन और मृत्यु के बारे में इस संस्मरण में कुछ नहीं लिखा है लेकिन श्री लक्ष्मी शंकर ब्यास जी ने लिखा है कि मगन रहु चोला ,मेरी हजामत और मिसिर जी शीर्षक हास्य-ब्यंग पूर्ण गद्य -पद्य कृतियाँ ,श्री अन्नपूर्णा जी को हास्य-ब्यंग के क्षेत्र में ऊँचे स्थान पर रखती हैं .आपने सैकडो हिन्दी पत्र -पत्रिकाओं के प्रथम अंकों का अद्भुत संग्रह किया था जो कि आज भी कोलकाता के नेशनल लाइब्रेरी
में सुरक्षित है .हास्यावतार चच्चा जी की की पत्नी नहीं चाहती थीं कि वे कविता करें , इन्हें नून -तेल ,लकडी की चिंता नहीं रहती थी .ये बस रोज नयी कविता की रचना कर मुदित रहते थे .घर बार की चिंता में ब्यस्त इनकी पत्नी ने अच्छी तरीके से जीवन यापन हेतु ,अपने परिवार और रिश्तेदारों की मदत से इनकी नौकरी की ब्यवस्था पुलिस विभाग में करनें की पूरी स्थिति बना दी थी ,लेकिन राष्ट्र -निर्माण में लगे कवि को यह नौकरी नहीं भाई , नौकरी को ताक पर रख वे कविता में ही रम गए लेकिन अपनी पत्नी के बात को उन्होंने कविता के माध्यम से यूँ रखा है तथा जिसका वर्णन उन्होंने खुद किया है -
वैद हकीम मुनीम महाजन साधु पुरोहित पंडित पोंगा ,
लेखक लाख मरे बिनु अन्न,चचा कविता करी का सुख भोगा|
पाप को पुण्य भलो की बुरो ,सुरलोक की रौरव कौन जमोगा,
देश बरे की बुताय पिया हरखाय हिया तुम होहु दरोगा ||
देश की तत्कालीन दशा पर महाकवि की एक रचना देखिये -
बीर रहे बलवान रहे वर बुद्धि रही बहु युद्ध सम्हारे |
पूरण पुंज प्रताप रहे सदग्रन्थ रचे शुभ पंथ सवारे||
धाक रही धरती तल पे नर पुंगव थे पुरुषारथ धारे|
बापके बापके बापके बापके बापके बाप हमारे ||
एक और रचना जो तत्कालीन समाज को प्रतिबिंबित करती है -
पेट पुरातन पाटत हो ,कछु झोकत हौ नहीं अंध कुँआ में |
जेई चले जगदीश मनाई ,करों बकसीस असीस दुआ में ||
बूढ भयो बल थाकि गए ,कछु खात रहे जजमान युवा में |
पूरे पचहत्तर मॉलपुआ ,अरु सेर सवा हलुआ घेलुआ में ||
आदरणीय श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी के निर्देश के क्रम में पिछले 3 दिनों से मैं दरोगा -दरोगा हो रहा था ,अर्थात मैं महाकवि हास्यावतार चच्चा जी बनारसी के बारे में यत्र -तत्र -सर्वत्र खोज कर रहा था .आज बाटी -चोखा की ऐसी महक आयी कि मैंने सोचा कि इस महक में हमरे चच्चा की सुधि पुरानी नहो जाये इसलिए चारो ओर न सुनने के बाद जब मैंने अपनी पैत्रिक लाइब्रेरी "अरविन्द ज्ञान सोपान "को आज पुनः टटोला तो महाकवि की कोई रचना तो नहीं मिली परन्तु आज अखबार बनारस के वरिष्ठ सम्पादक रहे प्रख्यात साहित्यकार श्री लक्ष्मी शंकर ब्यास जी का संस्मरण हाथ लग गया जिसमे उन्होंने बनारस के हास्यावतार अन्नपूर्णा जी ( महाकवि चच्चा) का उल्लेख किया है .उन्होंने लिखा है कि हास्यावतार अन्नपूर्णा जी से उनकी मुलाकात १९४३ में आज अखबार के आफिस में हुई थी . हास्यावतार अन्नपूर्णा जी आज अखबार के संस्थापक रहे राष्ट्र रत्न स्व.शिवप्रसाद गुप्त जी के निजी सचिव थे .खादी की धोती ,सफ़ेद खद्दर का कुरता तथा खद्दर की बनारसी दुपलिया टोपी उनके ब्यक्तित्व को आकर्षक बनाती थी .उन्होंने महाकवि के बारे में लिखा है कि-
इनकी कवितायेँ ब्रज भाषा में हैं और तत्कालीन समाज की प्रवित्तियों का यथार्थ चित्रण उपस्थित करतीं हैं . हास्यावतार चच्चा जी
ने भूत नामक एक हास्य रस का पत्र भी निकाला था जो कि अपने आप में अनोखा और चर्चित था .इनके जीवन और मृत्यु के बारे में इस संस्मरण में कुछ नहीं लिखा है लेकिन श्री लक्ष्मी शंकर ब्यास जी ने लिखा है कि मगन रहु चोला ,मेरी हजामत और मिसिर जी शीर्षक हास्य-ब्यंग पूर्ण गद्य -पद्य कृतियाँ ,श्री अन्नपूर्णा जी को हास्य-ब्यंग के क्षेत्र में ऊँचे स्थान पर रखती हैं .आपने सैकडो हिन्दी पत्र -पत्रिकाओं के प्रथम अंकों का अद्भुत संग्रह किया था जो कि आज भी कोलकाता के नेशनल लाइब्रेरी
में सुरक्षित है .हास्यावतार चच्चा जी की की पत्नी नहीं चाहती थीं कि वे कविता करें , इन्हें नून -तेल ,लकडी की चिंता नहीं रहती थी .ये बस रोज नयी कविता की रचना कर मुदित रहते थे .घर बार की चिंता में ब्यस्त इनकी पत्नी ने अच्छी तरीके से जीवन यापन हेतु ,अपने परिवार और रिश्तेदारों की मदत से इनकी नौकरी की ब्यवस्था पुलिस विभाग में करनें की पूरी स्थिति बना दी थी ,लेकिन राष्ट्र -निर्माण में लगे कवि को यह नौकरी नहीं भाई , नौकरी को ताक पर रख वे कविता में ही रम गए लेकिन अपनी पत्नी के बात को उन्होंने कविता के माध्यम से यूँ रखा है तथा जिसका वर्णन उन्होंने खुद किया है -
वैद हकीम मुनीम महाजन साधु पुरोहित पंडित पोंगा ,
लेखक लाख मरे बिनु अन्न,चचा कविता करी का सुख भोगा|
पाप को पुण्य भलो की बुरो ,सुरलोक की रौरव कौन जमोगा,
देश बरे की बुताय पिया हरखाय हिया तुम होहु दरोगा ||
देश की तत्कालीन दशा पर महाकवि की एक रचना देखिये -
बीर रहे बलवान रहे वर बुद्धि रही बहु युद्ध सम्हारे |
पूरण पुंज प्रताप रहे सदग्रन्थ रचे शुभ पंथ सवारे||
धाक रही धरती तल पे नर पुंगव थे पुरुषारथ धारे|
बापके बापके बापके बापके बापके बाप हमारे ||
एक और रचना जो तत्कालीन समाज को प्रतिबिंबित करती है -
पेट पुरातन पाटत हो ,कछु झोकत हौ नहीं अंध कुँआ में |
जेई चले जगदीश मनाई ,करों बकसीस असीस दुआ में ||
बूढ भयो बल थाकि गए ,कछु खात रहे जजमान युवा में |
पूरे पचहत्तर मॉलपुआ ,अरु सेर सवा हलुआ घेलुआ में ||
बेहतरीन प्रस्तुति .अब ऐसे कवि नहीं मिलेंगे .ऐसे भूले -बिसरे लोंगों को आप ने प्रस्तुत किया ,आपको कोटि-कोटि बधाई .
जवाब देंहटाएंआपने तो सही मे लाजवाब परिचय पूरे खोजबीन के साथ करवा दिया चच्चा जी का. बहुत धन्यवाद झी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह !! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंसचमुच ऐसे समर्पित रचनाकार अब विरले ही मिलते हैं...अद्वितीय काव्य...
प्रकाश में लाने और इतने सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करने के लिए आभार.
कवि चच्चा के सामने आज के कवि बच्चा ही हैं -इनका काव्य संग्रह ढूंढ़वाता हूँ बनारस में !
जवाब देंहटाएंयह हुई ब्लॉगिंग सिनर्जी। आपने पूरे हिन्दी ब्लॉगजगत को हास्यावतार चच्चा जी का परिचय और उनकी रचनायें दे दीं जो शायद हम कभी न जान पाते।
जवाब देंहटाएंवही काम आप जौनपुर के विषय में कर रहे हैं। हर ब्लॉगर अपने आस-पास को खंगाल कर प्रस्तुत करता रहे तो कितना ग्लोकल (global+local) हो जाये हिन्दीजगत!
बहुत बधाई आप को।
बहुत रोचक और बढ़िया लगी यह पोस्ट ...शुक्रिया इसको पढ़वाने का
जवाब देंहटाएंवाकई ऐसे कवि विरले ही होते है....
जवाब देंहटाएंश्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी ने उचित ही कहा है. चच्चा जी का परिचय देकर आपने हम सब को अभुभूत कर दिया. वैसे आजकल के ब्लागरों की भी वही स्थिति है.
जवाब देंहटाएंen mahan rachanakaar se rubaru karane ka shukran,bahut sunder rachanae hai.
जवाब देंहटाएंऐसे लोग बहुत मुश्किल से धरती पर जन्म लेते है । जो इतनी गहरी समस्याओं को हास्य-व्यंग के माध्यम से कह देते है । इनके बारे में हम सब को बताने के लिए आप का बहुत बहुत शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी के निर्देश के क्रम में पिछले 3 दिनों से मैं दरोगा -दरोगा हो रहा था ,अर्थात मैं महाकवि हास्यावतार चच्चा जी बनारसी के बारे में यत्र -तत्र -सर्वत्र खोज कर रहा था .आज बाटी -चोखा की ऐसी महक आयी कि मैंने सोचा कि इस महक में हमरे चच्चा की सुधि पुरानी नहो जाये ...
जवाब देंहटाएंवाह क्या शब्दावली है आपकी ....!!
महाकवि अन्नपूर्णा जी के बारे में जान कर यह बात पुष्ट हो गयी की महाकवि यूँ ही नहीं बन जाते, लेखन में पूरा समर्पण जरुरी है.उनकी रचनाओ के अंश आप ने पढ़वाए.धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंचच्चा जी के बारे में जान कर और उनकी रचना को पढ़ कर बड़ा आनंद आया . बहुत अच्छी जानकरी आप अपने पिटारे में से लेके आये .
जवाब देंहटाएंदेश बरे की बुताय पिया हरखाय हिया तुम होहु दरोगा
जवाब देंहटाएंvery interesting line!!!
bahut sundar post lagi.... yah
जवाब देंहटाएंpeople like me are so unlucky who could not get through much of any (especially Hindi) literature and people like you are bliss for people like me to have some cool breeze of such mastery. Thanks a lot.
जवाब देंहटाएंमध्यकालीन भारतीय इतिहास के श्रोतों नें जौनपुर की स्थापना का श्रेय फिरोजशाह तुगलक को दिया है ,जिसने अपने भाई मुहम्मद बिन तुगलक (जूना खां ) की स्मृति में इस नगर को बसाया और इसका नामकरण भी उसके नाम पर किया .लेकिन एक खास बात यह है कि जौनपुर राज्य का संस्थापक मालिक सरदार (सरवर ) फिरोज़ शाह तुगलक के पुत्र सुलतान मुहम्मद का दास था जो अपनी योग्यता से १३८९ इस्वी में वजीर बना ....
जवाब देंहटाएंआज एक नयी जानकारी मिली आपकी पोस्ट से .....!!
ये परिचय तो हमारे लिए बिलकुल नया पर रोचक रहा ! आभार.
जवाब देंहटाएंaadrniy sir vakai aap ne kamal ki jankari/kamal ke sabdo me di h/khair mera pranam swikar kare-aphi ka dhirendra pratap singh
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
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