सोमवार, 6 अप्रैल 2009
एपार जौनपुर - ओपार जौनपुर .....4
गतांक से आगे .......
भारतीय पुरातत्व के अथक अन्वेषक सर अलेक्जेंडर कनिंघम को जौनपुर की बड़ी मस्जिद के प्रस्तर खंड पर इश्वरवर्मन का एक अभिलेख मिला था ,जिससे मौखरियों के इतिहास को प्रकाशित करनें में काफी मदत मिली थी तथा इसी अभिलेख की सातवीं लाइन में धार के राजा,आन्ध्र के राजा और रेवतक (सौरास्त्र ) के राजा के साथ हुए संघर्षों का उल्लेख है .यद्यपि संघर्ष का विवरण संपूर्ण नहीं है ,खंडित है लेकिन इससे इतना अवश्य ध्वनित होता है कि इश्वरवर्मन ने इन आक्रमणों को विफल कर दिया था तथा संभावित है कि यह युद्ध भी जौनपुर या उसके आस-पास ही हुआ होगा .हरहा लेख से यह ज्ञात होता है कि उसके पुत्र ईशानवर्मा ने हजारों हाथियों की सेना वाले आंध्रपति को पराभूत कर विजित किया था .उसने सूलिकों को हराया ,समुद्र तटीय गौडों को दबाया और उन्हें अपनी सीमाओं में रहने को विवश किया .इन विजयों के फलस्वरूप ही ईशानवर्मा अपनें वंश का प्रथम स्वतंत्र महाराजाधिराज . इश्वरवर्मन के जौनपुर पाषान अभिलेख में भी आंध्रों पर विजय का उल्लेख हुआ है . १९०४ में मौखरियों के कुछ सिक्के फैजाबाद के भितौरा नामक गावं से प्राप्त हुए थे .इन साक्ष्यों के अवलोकन से लवलेश मात्र भी शंका की गुंजाईश नहीं है कि जौनपुर पर मौखरियों का आधिपत्य नहीं था ।
इसी परिप्रेक्ष्य में जौनपुर के शाही पुल पर सम्प्रति में विराजमान गज-सिंह मूर्ति का तादात्म्य इश्वरवर्मन या ईशानवर्मा के आंध्रों पर विजय से स्थापित किया जा सकता है ,क्योंकि हरहा लेख में वर्णित है कि ईशानवर्मा नें आंध्रों की सहस्त्रों हस्तियों की विशाल सेना को चूर्ण -विचूर्ण कर डाला था .इतिहासकारों में इस मत पर आम राय है कि ईशानवर्मा नें उत्तरी भारत में अपनी स्वतंत्र संप्रभुता कायम कर ली थी .संभव है कि इस मुर्ति का अंकन आंध्रों पर विजय के प्रतीक के रूप में हुआ रहा हो तथा मध्यकालीन भारत में शाही पुल के निर्माण के समय में स्थानीय कलाकारों ने आकर्षन पैदा करनें के उद्देश्य से आस-पास से ही उसको स्थानांतरित कर शाही पुल के मध्य में स्थापित कर दिया हो .यह तो मेरे द्वारा स्थापित विचार है ,लेकिन यहाँ बुद्धिजीवियों की एक राय और है वह यह है कि यह मुर्ति बौध्ध धर्मं के विकास का प्रतीक है ,उन लोंगों का कहना है कि गज-सिंह मूर्ति वैदिक धर्मं पर , बौध्ध धर्मं के विजय का सूचक है .कुछ वर्ष पूर्व मैं और मेरे बड़े भ्राता डॉ अरविन्द मिश्र जी साथ -साथ एक कार्यक्रम के दौरान खजुराहो में थे ,वहाँ पर भी खजुराहो के मंदिरों पर कई जगह सिंह मूर्ति का अंकन दिखाई पडा .मेरे भाई साहब ने कहा कि यह चंदेलों का राज चिह्न है ,इस सम्भावना के कारण हो सकता है कि चन्देल राजाओं का कोई सम्बन्ध जौनपुर से रहा हो .मैंने इस पर अब तक गहन पड़ताल की परन्तु इस बारे में मुझे अब तक कोई संकेतक साक्ष्य नहीं मिला संभव है कि आगे मिल जाये और किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके .जौनपुर में चंदेल क्षत्रिय तो हैं ,वहाँ के नरेशों का इस जनपद के संभंध के बारे में कोई महत्त्वपूर्ण साक्ष्य अभी तक मेरे हाथ नहीं लग सका है .एक और शंका मन में उपजती है कि खजुराहो के मंदिरों पर अंकित सिंह मूर्ति और शाही -पुल जौनपुर पर स्थापित गज-सिंह मूर्ति की भाव-भंगिमा में काफी असमानता दिखती है .
जारी .................................
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बहुत सुन्दर शोधपरक जानकारी. सिंह का हाथी पर नियंत्रण दर्शाते हमने और भी शिल्प देखे हैं. अब हम भी ढूँढ़ते हैं.
जवाब देंहटाएंआप से बहुत जानकारियाँ मिल रही हैं।
जवाब देंहटाएंये शेर वाली मूर्ति को देख कर मेरे मन भी कई बार विचार उठा है की आखिर इसका मतलब क्या है , लेकिन कभी भी सही जानकरी नहीं मिली. मुझे तो लगता है था की पुल के बीच में आकर्षण पैदा करने के लिए ही इस मूर्ति को लगाया रहा होगा जैसा आप ने भी लिखा है पर इसका सम्बन्ध और भी लोगों और धर्मो से है आज पता चला .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
अच्छी जानकारी दे रही है यह पोस्ट।
जवाब देंहटाएंइतिहास सजीव हो जाता है ऐसे आलेखोँ से आभार आपका !
जवाब देंहटाएं- लावण्या
Sajeev chitran
जवाब देंहटाएंसुन्दर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंइस ब्लाग के माध्यम से आप तो बहुत ही शोधपरक जानकारीयां प्रदान कर रहे हैं.......लेख के अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी.
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब जानकारी देते हैं आप.
जवाब देंहटाएंरामराम.
जौनपुर का इतिहास तो कई किताबो में पढने को मिला लेकिन सभी ने वही बातें दोहराई है । आप ने उस इतिहास की बात लिखी है जिसको शायद किसी लेखक ने आज तक नही लिखा । इस बात के लिए आप बधाई के पात्र है ।
जवाब देंहटाएंजे बात
जवाब देंहटाएंआपने इश्वरवर्मन के अभिलेख (शिलालेख - प्रशस्ति लेख) कि बात कही. साथ में कालखंड (वर्ष) भी दर्शा देते तो अच्छा होता.
जवाब देंहटाएंआपके शोध पात्र से हम भी लाभान्वित हो रहे हैं, जौनपुर के अनजाने इतिहास से शनेः-शनेः परिचित होकर.........
जवाब देंहटाएंआपका आभार इस कड़ी के लिए और इंतजार अगली कड़ी का.
चन्द्र मोहन गुप्त
जौनपुर के इतिहास पर यह श्रृंखला- पोस्ट अभिनव और संग्रहणीय है !
जवाब देंहटाएं@ मौखरियों के इतिहास के बारे में बताने वाला हरहा लेख उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के हरहा नामक स्थान से १९१५ में प्राप्त हुआ था ,इसको उद्घाटित करनें का श्रेय एच .एन .शास्त्री जी को जाता है .यह लेख मौखरि नरेशईशान वर्मा के पुत्र सूर्य वर्मा द्वारा खुदवाया गया था .इस लेख के अध्ययन से हमें मौखरि वंश के प्रथम चार नरेशों -हरिवर्मा,आदित्य वर्मा ,ईश्वर वर्मा तथा ईशान वर्मा के शाशन काल की घटनाओ का पता चलता है .
जवाब देंहटाएं( संदर्भ -प्राचीन भारत का इतिहास ,के .सी श्रीवास्तव पृष्ठ -525 )
जौनपुर के इतिहास के कालखंडों से गुजरना अच्छा लगा। आभार।
जवाब देंहटाएंlagta hai jaunpur par poori p.h d kari hai aapne ... itni ghahri jaankari .... kai bhaago me pad raha hoo... vakayi me bemissal hai...
जवाब देंहटाएं@हर्ष भाई धन्यवाद ,मैंने तो केवल शौक बस यह खोज की है ,मेरी पी -यच डी का विषय तो कुछ और था .
जवाब देंहटाएंकई बार शाही पुल से गुजरते हुए मन में आता रहा कि इसके बारे में कुछ पता चल पाता . शाही पुल के इतिहास के बारे में कुछ परिचय मिल सके तो अच्छा लगेगा
जवाब देंहटाएंजौनपुर के बारे में तमाम जानकारियों के लिए आभार
जौनपुर के इतिहास की अच्छी जानकारी मिल रही है आपके ब्लॉग से............काफी मेहनत के बाद ऐसी पोस्ट तैयार होती है आपके प्रयास को साधुवाद
जवाब देंहटाएंVery thought provoking!
जवाब देंहटाएंSculpture is beautiful and questions in your post made it more interesting but shops around creat panic in my mind, this historic art gonna ruin if not protected.
WAAH !!! Bahut bahut sundar! Sabhi bhaag padhe ek saath...bahut hi rochak aur jaankariparak aalekh hai.
जवाब देंहटाएंयह तो संजो कर रखने वाली शृंखला बनती जा रही है। बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंbahut sundr jankaree dee hai aapne.
जवाब देंहटाएंmujhe uttar -pradesh ke samajik aur rajneetik itihaas kee jaankaaree chahiye is pr aap meree madt kr sakten hai.
जवाब देंहटाएंपतझड़ के इस दौर में गुलाबों की बात करता है
जवाब देंहटाएंकठिन सवाल फेंक कर जवाबों की बात करता है
ऐसे वक्त में जब नींद आना है बहुत मुश्किल
अजीब शखश है वो खवाबों की बात करता है
जौनपुर के इतिहास के कालखंडों से गुजरना अच्छा लगा। कई बार शाही पुल से गुजरते हुए मन में आता रहा कि इसके बारे में कुछ पता चल पाता आप ने उस इतिहास की बात लिखी है जिसको शायद किसी लेखक ने आज तक नही लिखा जौनपुर के इतिहास पर यह पोस्ट संग्रहणीय है बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंye padhkar achchha laga agar aap kuch aur jankari dete to jyada achchha hota mai jaunpur ke purane itihas (1300 ad ke pahle ke itihas ko ) janna chahta hoo.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा इसे भी बांच लिया।
जवाब देंहटाएंyou are working a good job i invite you to play quiz at my blog mishrasarovar.blogspot.com
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