बुधवार, 1 अप्रैल 2009
गुस्ताखी माफ़ ,मरनें की खबर ने चौपट किया दिन .(माइक्रो-पोस्ट )
आज अल सुबह जैसे ही मैं नेट पर बैठा कि ब्लागवाणी पर एक खबर थी ,मरने के बारे में ,दिल धक से कर गया .शोक संवेदना में किसी तरह उँगलियाँ चलीं ,कुछ लिख कर ऐसे तैसे मैंने पोस्ट किया .बाद में लोंगों ने मुझे बताया कि आज पहली अप्रैल थी आप बन गए मूर्ख .मैं हैरान क्या हमारी मानवीय संवेदनाएं इस कदर मर गयीं हैं कि अब हम मौत को भी मजाक बनाएं या तो हम आज भी उस आदिम युग मैं हैं जहाँ कुछ चिडियों के सर पर से उपर गुजर जाने के बाद ब्यक्ति जीवित रहे इस मोह में अज्ञानी लोग उसके रिश्तेदारों को उसकी मौत की सूचना भिजवाते थे या आज हम इतने ज्ञानी हो गएँ हैं कि मौत की खबर भी हमारे लिए केवल चंद मिनटों की खबर मात्र है .मैं समाज के बदलते इस तेवर से हैरान हूँ .
बचपन से लेकर आज तक मैं भी इस मूर्ख दिवस में शामिल होता रहा हूँ लेकिन आज तक कभी किसी को भी मैंने इस तरह 1 अप्रैल को मनाते नहीं देखा .आज दिन भर मुझे यही सवाल यक्ष प्रश्न की तरह अनुत्तरित होकर कौंधता रहा कि मेरी भावनाओं में या समाज के वर्तमान दौर में कहीं ब्यापक असमानता तो नहीं आ गयी है .
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शोक संवेदना में किसी तरह उँगलियाँ चलीं ,कुछ लिख कर ऐसे तैसे मैंने पोस्ट किया .बाद में लोंगों ने मुझे बताया कि आज पहली अप्रैल थी आप बन गए मूर्ख .
जवाब देंहटाएंक्या कहा जाये? अगर सब कुछ शालीनता के दायरे मे हो तो ज्यादा आनन्द दायक रहेगा.
रामराम.
ओह मिश्र जी क्या बात है .
जवाब देंहटाएंवैराज्ञ और मृत्यु परिहास का पात्र बनते हैं अजीब लगता ही है।
जवाब देंहटाएंपता नहीं आपका सन्दर्भ क्या है; पर समाज में शोक उत्तरोत्तर शौक का पात्र बनता ही जा रहा है।
जुदा-जुदा लोग, जुदा-जुदा भावनाएं, जुदा-जुदा ढंग.
जवाब देंहटाएंजिसका जैसा स्तर, वैसे ही करे तंग.
कोई क्या सोचता है, परिणाम क्या हो सकता है, यदि इसकी चिंता लोग करने लग जायें तो समस्त समस्याओं का अंत हो जायें. खैर ......... आपने जो झेला, ईश्वर से प्रार्थना है कि एनी को न झेलना पड़े.
मेरी अप्रैल प्रथम दिवस प्रस्तुति पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है............
चन्द्र मोहन गुप्त
मैंने आपकी टिप्पणी देखि थी...मुझे भी ठीक नही लगा .इसलिए मैंने टिप्पणी करना ठीक नही समझा
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ आपसे
जवाब देंहटाएंठीक से तहकीकात कर ली जाय कहीं सचमुच ही नारदमुनी टें न बोल गए हों !
जवाब देंहटाएंमैं कहूँ तो मौत इक बहुत बड़ा मजाक ही है....जिन्दगी उससे भी बड़ा मजाक.....!!
जवाब देंहटाएंअखरती है ऐसी बात पण्डितजी।
जवाब देंहटाएंहां ... मुझे भी अच्छा नहीं लगा ।
जवाब देंहटाएंआप की बात से सहमत हूँ .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बुरे दिन आ गये हैं बंधु, और भी बुरे दिनों के लिये कमर कस लीजिये।
जवाब देंहटाएं... न जाने लोग कब तक मूर्ख दिवस मना कर खुद को मूर्ख साबित करते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंनारदमुनि की इससे पहले वाली पोस्ट जिन लोगों ने देखी होगी ! उन्हें शायद इतना आघात न लगा हो ! उन्होंने चेताया तो था !
जवाब देंहटाएंye wahi loog hai jinki sawedanaye mar chuki hai
जवाब देंहटाएंइस तरह की चीजों को बदमाशी की संज्ञा दी जानी चाहिए।
जवाब देंहटाएं-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
अगर ऐसा ही रहेगा तो एअक दिन ग्रामिण और भेडिया कि कहानी हो जयेगी और कोइ सचमुच मरेगा तो भी मजाक लगेगा.
जवाब देंहटाएंIt happens , Atirek mein bina soche vihare hum kuch ka kuck kah jate hain. Agar baad mein bhi pachta le to bhi koi harj nahin.
जवाब देंहटाएंमैं तो प्रायः मूर्ख बनती रहती हूँ सो १ अप्रैल को भी बन जाऊ तो नया या बुरा नहीं लगता। वैसे आपकी बात सही है।
जवाब देंहटाएंमैं तो आपकी जौनपुर.. की पिछली कड़ियाँ ढूँढती हुई यहाँ पहुँच गई।
घुघूती बासूती
ksash roz april fool hota kam se kam murkh bane k bad rata to dete
जवाब देंहटाएंjise joso khabr nahi o joso khrosh hai
जवाब देंहटाएंjo pa gya hai raj o gum hai khamosh hai.
हां यह मैंने भी देखा था। उस समय यह पोस्ट भी देखी थी। देखिये आज तीन-चार घंटे में आपकी पिछली सारी पोस्टें देख ली। आनन्दित हुये।
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