शनिवार, 11 अप्रैल 2009

एपार जौनपुर - ओपार जौनपुर .....5


गतांक से आगे .......
मौखरियों की शासन सत्ता के बाद जौनपुर निश्चित रूप से सम्राट हर्ष के अधीन रहा होगा ,क्योंकि हर्ष की विरुद "सकलोत्तर नाथ पथकर " की थी .हर्ष के बाद जौनपुर भी पूर्व -मध्यकालीन भारत के अन्य नगरों की भांति ही सामंतवादी शासन के अंतर्गत सामंतों के अधीन ही रहा होगा एवं सामंतों तथा राजाओं के सत्ता संघर्ष का साक्षी भी अवश्य हुआ रहा होगा परन्तु निश्चित रूप से अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व स्थापित न कर सका होगा .जयचंद्र के शासन काल में जौनपुर को विशेष राजनीतिक महत्व प्राप्त था जिसकी अभिब्यक्ति तत्कालीन साक्ष्य करतें हैं .ऐसे प्रमाण मिलें हैं कि जयचंद्र ने जौनपुर में एक स्थाई सैनिक शिविर स्थापित किया था तथा जफराबाद में एक उच्च अधिष्ठान पर प्राप्त स्तम्भावशेष से इस सम्भावना को बढ़त मिली है कि यहाँ कभी जयचंद्र का बैठका रहा होगा .जयचंद्र के उत्तराधिकारी हरिश्चन्द्र का एक लेख जनपद के मछलीशहर से प्राप्त हुआ है ,जिसमें उसको अनेकानेक विभूतियों से अलंकृत किया गया है .



मध्यकालीन भारतीय इतिहास के श्रोतों नें जौनपुर की स्थापना का श्रेय फिरोजशाह तुगलक को दिया है ,जिसने अपने भाई मुहम्मद बिन तुगलक (जूना खां ) की स्मृति में इस नगर को बसाया और इसका नामकरण भी उसके नाम पर किया .लेकिन एक खास बात यह है कि जौनपुर राज्य का संस्थापक मालिक
सरदार (सरवर ) फिरोज़ शाह तुगलक के पुत्र सुलतान मुहम्मद का दास था जो अपनी योग्यता से १३८९ इस्वी में वजीर बना .सुलतान महमूद ने उसे मलिक -उस -शर्क की उपाधि से नवाजा था .१३९९ इसवी में उसकी मृत्यु हो गयी .उसके पद के कारण ही उसका वंश शर्की -वंश कहलाया .
ध्यातब्य है कि उसको कोई सन्तान नही थी ,उसके मौत के बाद उसका गोद लिया हुआ पुत्र मुबारक शाह गद्दी पर बैठा था .
जारी .................

29 टिप्‍पणियां:

  1. एपार जौनपुर - ओपार जौनपुर की अपार जानकारी आप से मिल रही जो हमें कभी किसी के द्वारा कभी नहीं मिली .
    ऐसी अमूल्य जानकारी के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद .
    जय जौनपुर

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  2. इतनी महत्वपुर्ण जौनपुर के बारे मे पहली बार मिल रही है.

    रामराम

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  3. जौनपुर को जान रहे हैं, आप के सौजन्य से!

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  4. कभी मौका मिला तो जरुर आउंगी इस तरफ.. चित्र और विवरण दोनों ही सुन्दर है

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  5. इतनी विस्तार से ये ऐतिहासिक जानकारी बताने के लिये आभार
    - लावण्या

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  6. बढियां जानकारी है मगर ज्यादा अकादमीय और इतिहास की पाठ्य पुस्तक के लहजे सा होता लग रहा है -जो केवल इतिहासप्रेमियों को ज्यादा आकर्षित करेगा ! कुछ ट्रांसलिटेरेशन टूल भी अपना कमाल दिखा रहा है -स्रोत है न कि श्रोत ! क्या जयचंद्र और देश द्रोही जयचंद एक ही है ? मैं यह इतिहास के ले मैन की हैसियत से पूंछ रहा हूँ !

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  7. आप तो लिखते जाईये. भैय्या जयचंद्र और जयचंद पर दे ही दें. आपके भ्राता भी बोल रहे हैं.

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  8. @ जयचंद अथवा जयचंद्र (११७०-११९४ ईस्वी )गहडवाल वंश का अंतिम ,कन्नौज तथा बनारस का शासक था . लोक साहित्य तथा कथाओं में राजा जयचंद्र के नाम से विख्यात है .यह दिल्ली तथा अजमेर के चौहान नरेश पृथ्वीराज तृतीय का सम कालीन था .चंदवरदाई के पृथ्वीराज रासो से दोनों -जयचंद्र तथा पृथ्वीराज तृतीय की पारस्परिक दुश्मनी का पता चलता है .पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वी राज ने जयचंद्र की पुत्री संयोगिता का अपहरण कर लिया था . दोनों के मतभेद का यह मुख्य कारण था . इसी कारण कुपित होकर बदला लेने के लिए उसने मोहम्मद गोरी की मदत की थी . कुछ विद्वानों के अनुसार स्वयं जयचंद्र ने ही मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज के राज्य पर आक्रमण करनें के लिए आमंत्रित किया था .गोरी नें तराइन की दूसरी लडाई (११९२ इसवी) में पृथ्वीराज को हरा दिया और उसे मार डाला था . परन्तु ११९४ ईस्वी में ही गोरी के सेना नें जयचंद्र पर भी हमला बोल दिया था और गोरी के सिपह्सालाकार कुतुबुद्दीन से युध्ध में चन्दावर ( फिरोजाबाद ) में यमुना तट पर मारा गया . इसके बाद गोरी नें बनारस और कन्नौज को खूब लूटा .अतः अब स्पष्ट है कि जयचंद अथवा जयचंद्र एक ही शासक के नाम हैं .
    संदर्भ - १-भारतीय इतिहास कोश-सच्चिदा नन्द भट्टाचार्य -पृष्ठ १६२
    २-प्राचीन भारत का इतिहास -के .सी .श्रीवास्तव - पृष्ठ ६१२

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  9. जौनपुर राज्य का संस्थापक मालिक सरदार (सरवर ) फिरोज़ शाह तुगलक के पुत्र सुलतान मुहम्मद का दास था । यह बात कभी नही सुनी थी आपने मेरे ज्ञान कोष में एक नई जानकारी बढ़ा दी है जिसक लिए मै आप का आभारी हूँ ।

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  10. जौनपुर नाम से यह एक छोटा शहर मात्र लगता है. शासन सत्ता के बारे में जाना.
    राजमहल का चित्र बहुत भाया.
    ' अब स्पष्ट है कि जयचंद अथवा जयचंद्र एक ही शासक के नाम हैं '
    यहीं दी गयी आप की टिपण्णी पढ़ कर भी जानकारी बढ़ी.

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  11. आपकी कृपा से जौनपुर के राजमहल के दर्शन हुए। आभार। हो सकता है कि जौनपुर का दाना-पानी हमारे भी नसीब में हो।

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  12. दैनिक हिंदुस्तान अख़बार में ब्लॉग वार्ता के अंतर्गत "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा की गई है। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया है. इसे मेरे ब्लॉग पर जाकर देखें !!

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  13. जौनपुर के बारे में पढकर बहुत ही अच्‍छा लगा बहुत बहुत धन्‍यवाद अवगत कराने के लिए

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  14. अमूल्य जानकारी के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद

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  15. अमूल्य जानकारी के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद !!
    जौनपुर के बारे में पढकर बहुत ही अच्‍छा लगा!!!!!

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  16. मध्यकालीन भारतीय इतिहास के श्रोतों नें जौनपुर की स्थापना का श्रेय फिरोजशाह तुगलक को दिया है ,जिसने अपने भाई मुहम्मद बिन तुगलक (जूना खां ) की स्मृति में इस नगर को बसाया और इसका नामकरण भी उसके नाम पर किया .लेकिन एक खास बात यह है कि जौनपुर राज्य का संस्थापक मालिक सरदार (सरवर ) फिरोज़ शाह तुगलक के पुत्र सुलतान मुहम्मद का दास था जो अपनी योग्यता से १३८९ इस्वी में वजीर बना ....

    आज एक नयी जानकारी मिली आपकी पोस्ट से .....!!

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  17. आज ही पढा आपका ये लेख जौनपुर के बारे मे सोचा नहीं था की इतना महत्वपूर्ण इतिहास है इस जगह का.....राजमहल के भव्य दर्शन मंत्रमुग्ध कर गये.....आभार

    Regards

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  18. जौनपुर का एतिहासिक महत्‍व जानकर प्रसन्‍नता हो रही है।

    -----------
    तस्‍लीम
    साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

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  19. आप बहुत उम्दा जानकारी दे रहें है .

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  20. आप बहुत उम्दा जानकारी दे रहें है .

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  21. एपार जौनपुर - ओपार जौनपुर की अपार जानकारी आप से मिल रही जो हमें कभी किसी के द्वारा कभी नहीं मिली .चित्र और विवरण दोनों ही सुन्दर है

    ऐसी अमूल्य जानकारी के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद .

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  22. आपने जौनपुर की जो जानकारी दी है वो अमूल्य है....सुन्दर चित्र और शोधपूर्ण सामग्री से भरपूर ये पूरी श्रृखला संग्रहनीय है... बहुत बहुत बधाई आपको...
    नीरज

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  23. जौनपुर के बारे में इतनी शोध भरी जानकारी ! भाई वाह !

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  24. जौनपुर जैसे छोटे शहर के बारे में आपने माहत्वपूर्ण विस्तृत ऐतिहासिक जानकारी दे कर जौनपुर में रूचि रखने वालों के प्रति उपकार किया है.

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  25. पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
    बहुत बढिया!! इसी तरह से लिखते रहिए !

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