शनिवार, 9 मई 2009

भारतीय शिक्षा व्यवस्था :अतीत से वर्तमान का सफ़र..2


गतांक से आगे ....
गुप्तकालीन भारत तक शिक्षा की प्रगति अबाध गति तक चलती रही .लौकिक साहित्य की सर्जना के लिए गुप्त काल स्मरणीय माना जाता है .शूद्रक का मृच्छ कटिक,कालिदास का अभिज्ञान शाकुंतलम ,अमर सिंह का अमरकोश इस काल की वे सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ थी ,जो की तत्कालीन भारत की समृद्ध शिक्षा व्यवस्था की ओर संकेत करती हैं हर्ष के बाद , सातवीं सदी से हिन्दी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ का प्रादुर्भाव तत्कालीन भारत की अनोखी घटना थी परन्तु शिक्षा के प्राचीन उद्देश्य एवं आदर्श तब तक बदलनें लगे थे .पूर्व मध्यकालीन भारत से होते हुए पूर्व मुग़ल कालीन भारत तक शिक्षा का पूर्व स्थापित स्वरुप लगभग कमजोर पड़ चुका था .मुगलकाल में शिक्षा का कोई पृथक विभाग नहीं था और न ही शिक्षा की कोई व्यवस्थित योजना ही तत्कालीन साक्ष्यों से परिलक्षित होती है . इस विचार को मानने में कोई विसंगति नहीं है की मुग़ल बादशाहों ने शिक्षा के महत्व को समझते हुए अपनें आपको शिक्षा से जोड़े रखा तथा अनेक विद्वानों को राजकीय संरक्षण भी प्रदान किया .परन्तु इस शासन सत्ता नें जन -सामान्य की शिक्षा की ओर कोई गंभीर पहल नहीं की फलतः शिक्षा का सम्बन्ध राजकीय शासन सत्ता धारकों से ज्यादा हो गया था .इस काल में जहाँ दिल्ली ,आगरा ,फतेहपुर सीकरी,लखनऊ ,अम्बाला ,ग्वालियर ,कश्मीर ,इलाहाबाद ,लाहौर ,स्यालकोट एवं जौनपुर मुस्लिम शिक्षा के महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित हुए वहीं बनारस ,मथुरा ,प्रयाग ,अयोध्या ,मिथिला ,श्रीनगर आदि हिन्दुओं के प्रमुख शिक्षा केंद्र के रूप में .
मुगलकालीन शिक्षा में स्त्रियों को उच्च शिक्षा की सुविधा सुलभ न थी ,केवल अपवाद स्वरुप उच्च घरानों की लड़कियों को ही उच्च शिक्षा प्राप्त थी .तकनीकी व ओद्योगिक शिक्षा के आभाव में कालान्तर में यह शिक्षा समय व समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति में प्रायः असफल ही साबित हुई .अठारहवीं से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी के बीच में भारतीय शिक्षा प्रणाली हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए ही निराशा जनक रही .ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रादुर्भाव नें भारतीय शिक्षा की प्राचीन पद्धति के उत्थान व प्रसार को व्यापक पैमानें पर प्रभावित किया .२ फरवरी १८३५ को तत्कालीन लोक शिक्षा समिति के कार्य परिषद के एक सदस्य लार्ड मैकाले नें भारतीय पारम्परिक शिक्षा को हतोत्साहित करते हुए कहा की "यूरोप के अच्छे पुस्तकालय की एक आलमारी का तख्ता भारत और अरब के समस्त साहित्य से अधिक मूल्यवान है ."यह भारत में अंगरेजी शिक्षा के प्रति पहला आधिकारिक प्रदर्शन था ,जिसे लार्ड विलियेम बैंटिंग की सरकार नें ७ मार्च ,१८३५ को अपनी मंजूरी देते हुए लागू कर दिया था .वस्तुतः मैकाले पद्धति भारत में उच्च वर्ग को अंगरेजी माध्यम से जोडनें का प्रयास था ,जिसमें निः संदेह जन साधारण को शिक्षा से वंचित करनें का आग्रह छिपा था .समय -समय पर पारित होते नियमों -उप नियमों की जंजीर में जकड़ी भारतीय शिक्षा प्रणाली अपनें मूल उद्देश्यों एवं आदर्शों से भटकती रही .
जारी ....................

18 टिप्‍पणियां:

  1. शिक्षा के विकास चरण के बारे में आपके आ रहे अंक ज्ञानप्रद हैं

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  2. बहुत सटीक और सुंदर जानकारी दी आपने.

    रामराम.

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  3. इस शैक्षणिक विकास यात्रा का हम अनुगमन कर रहे हैं.

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  4. शैक्षिक इतिहास की अगली कड़ियों का बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं हम!!

    प्राइमरी का मास्टरफतेहपुर

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  5. एक अच्छी और ज्ञानप्रद जानकारी देने का शुक्रिया । अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा .....

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  6. बहुत सुंदर जानकारी मिली .. धन्‍यवाद।

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  7. बेहद रोचक व ज्ञान से परिपूर्ण पोस्‍ट। बधाई। ऐसे चिट़ठों का स्‍वागत किया जाना चाहिए।

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  8. बेहतरीन जानकारी के लिये आपको बधाई

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  9. जानकारी पूर्ण लेख.
    अंग्रेजों ने भारत में जन साधारण को शिक्षा से वंचित करनें का पूरा प्रयास किया और एक हद्द तक सफल भी हुए थे.

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  10. यूरोप में बड़े-स्तर-पर-शिक्षा अर्थात 'यूनिवर्सिटी' का काम बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में शुरू हुआ जबकि भारत में यह समय अन्य भारतीय व्य्वस्थाओं के साथ-साथ शिक्षा-व्यवस्था के क्षरण के आरम्भ का समय था। इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि बुद्ध के समय या उनसे भी पहले भारत में वृहद पैमाने पर शिक्षा की परम्परा की नींव कायम हो चुकी थी।

    मुझे तो ऐसा लगता है कि मध्यकाल में एक तरफ जहाँ पश्चिम शिक्षा और आधुनिक सोच की ओर लगातार बढ़ रहा था, मुसलमानों के प्रभाव में भारत पीछे की ओर जा रहा था। पाँच-छ: सौ वर्षों में इसके कारण पूरब और पश्चिम के बौद्धिक स्तर में जमीनासमान का अन्तर आ गया। और जो आगे हुआ वह गुलामी के उपर गुलामी...

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  11. सुंदर,रोचक और ज्ञानप्रद जानकारी ....!!

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  12. समय -समय पर पारित होते नियमों -उप नियमों की जंजीर में जकड़ी भारतीय शिक्षा प्रणाली अपनें मूल उद्देश्यों एवं आदर्शों से भटकती रही.
    सत्य वचन, आगे ज्यादा मैं और टिप्पणी नहीं करना चाहता क्योंकि जो मेरे मन में हैं शायद वही आप भी अगली कड़ियों में लेकर आना चाह रहे हों.

    एक अच्छी और ज्ञानप्रद जानकारी देने का शुक्रिया । अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा .....

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  13. शैक्षणिक विकास यात्रा की जानकारी मेरे लिए बिलकुल नई है। पढकर अच्छा लगा।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary- TSALIIM / SBAI }

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  14. बढ़िया जानकारी. थोडी तेजी से आगे बढ़ रही है. ऐसा लगा की थोडा और विस्तार से लिख सकते थे आप.

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  15. आपकी सुंदर टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    धन्यवाद मनोज जी बेहतरीन जानकारी देने के लिए! लिखते रहिये इसी तरह!

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  16. अभिषेक ओझा से सहमत। शिक्षा वाले सभी लेखों में एक दूसरे से जुड़े लिंक लगा लें ताकि इधर-उधर जाने में आसानी रहे।

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