शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

मन होनें लगा महुआ -महुआ...........

हमारी तरफ तो फागुन का धमाल शुरू है ,क्या बच्चे -क्या बूढ़े.ब्लॉग जगत भी फागुन-फागुन हो रहा है .ऐसे मेंमन कसमसा रहा था,आपको कुछ फागुनी सवैये सुनाने को.यह फागुनी रचना मैनें बचपन में हमारे यहाँ पूर्वांचल के विख्यात कवि पंडित रूपनारायण त्रिपाठी जी (अब स्वर्गीय ) द्वारा सुंदर गेय पदों में सुनी थी ,उसे आपके लिए लिख भी रहा हूँ और नीचे कोशिश की है अपनी आवाज़ में उनके तरह के गायन की भी----

-वह जीवित लोक कला जिसके
तन में कजली मन में फगुआ
अपनी मुसकान की वारुणी से
उसनें मुझको कुछ ऐसे छुआ
रगों में महसूस हुई बिजली
कुछ और से मैं कुछ और हुआ
मेरी रूह गुलाब -गुलाब हुई
मन होनें लगा महुआ -महुआ||
-कल देखा तो आज लगे वह ज्यों
नवयौवन की यमुना रही हो
बिधना की सजीव कला अथवा
मनु के मन की करुणा रही हो
उसनें इस भांति निहारा मुझे
अपनी छवि जैसे भुना रही हो
कुछ बोली तो ऐसा लगा वह ज्यों
मेरा गीत मुझे ही सुना रही हो ||
-कहीं तेरी खुशी के लिए तुझको
किसी साधु ने दी है दुआ तो नहीं
सहसा तुझको नवयौवन की
मधुपाई हवा ने छुआ तो नहीं
नशा मौसम का सबके लिए है
तुझको कुछ और हुआ तो नहीं
तन में फगुआ न समां गया हो
मन में टपका महुआ तो नहीं ||
-लगता है सुहासिनी मेनका सी
सुरलोक से भू पर आयी है तू
जिसमें रसकेली है फागुन की
वह यौवन की अमराई है तू
तन जैसे रचा गया कंचन से
कहूँ क्या कितनी सुखदाई है तू
बस एक शिकायत है तुझसे
खलता है यही कि पराई है तू ||
और अब इसका सस्वर पाठ सुनिए मेरी आवाज़ में -------


27 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, वाह!
    जैसा सुन्दर गीत वैसा ही गायन. लगा जैसे भारत में वापस किसी बैठक में फाग सुन रहे हों. ऐसे प्रयोग चलते रहें. अति सुन्दर!

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  2. ---सर ,आज तो आपनें मंत्र-मुग्ध कर दिया ,
    -इन-दिनों में बहुत ही व्यस्त हूँ ,ब्लॉग पर बिलकुल समय नहीं दे पा रही हूँ .
    -मैं इधर बीच आपकी कई पोस्ट नहीं देख पाई.
    -आज अभी आफिस में ही थी,चलते-चलते आप की पोस्ट दिख गयी.
    -आज ब्लाग-जगत पर पहली बार आपकी आवाज आयी है,वैसे आवाज में खनक पहले वाली ही है.बधाई -----

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  3. कहीं तेरी खुशी के लिए तुझको
    किसी साधु ने दी है दुआ तो नहीं
    सहसा तुझको नवयौवन की
    मधुपाई हवा ने छुआ तो नहीं
    waah! bahut hi sundar manmohak rachana....aapka bahut bahut aabhar!
    Saadar

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  4. फागुन की दस्तक पढ़ी गयी आपकी इस पोस्ट से बहुत बढ़िया

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  5. जिसमें रसकेली है फागुन की
    वह यौवन की अमराई है तू

    वाह हम तो फ़ागुन में रंग गये।

    बहुत ही अच्छी प्रस्तुती आपकी आवाज में

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  6. बहुत बढियां मनोज -क्या कहने !

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  7. वाह फगुनाहट आ ही गई आखिर।

    जोगीरा सारा रा..........

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  8. अरे वाह, क्या बात है मिस्र जी। बहुत मजेदार फाग गायन ।

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  9. वाह !
    भाव - सांद्रण और ध्वनि का कमाल गजब का है !
    उम्मीद है कि आपकी वाणी को आगे भी सुनने को मिलेगा ! आभार !

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  10. 'उसनें इस भांति निहारा मुझे
    अपनी छवि जैसे भुना रही हो
    कुछ बोली तो ऐसा लगा वह ज्यों
    मेरा गीत मुझे ही सुना रही हो |'
    -वाह!कितना सुन्दर है यह गीत !

    -आप के स्वर में इस गीत को सुना ,बहुत ही अच्छा लगा.
    आभार.
    [क्या फागुन ..क्या महुआ !इस देश में तो इनकी न आहट है ,न सुगंध है !]

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  11. बहुत सुंदर गीत, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  12. आप तो बहुत बढ़िया गा लेते हैं ! बहुत बढ़िया !

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  13. बहुत सुंदर कविता लिखी आप ने धन्यवाद

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  14. फाल्गुनी बहार जैसा गीत और उपर से इतनी मधुर आवाज । क्या बात है बहुत अच्छा लगा शुभकामनायें

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  15. फागुन की मस्ती की बीच से निकली एक सुंदर रचना..मनोज जी ऐसी रचनाएँ बहुत अच्छी लगती है.. आप का बहुत बहुत धन्यवाद पूर्वांचल का होने के बावजूद मैं ऐसी दुर्लभ रचनाओं से वंचित हो आप के माध्यम से जो कुछ भी यहा पढ़ने कॉमिलता है बहुत अच्छा लगता है...धन्यवाद मनोज जी

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  16. बहुत ख़ूबसूरत रचना! आपकी जितनी भी तारीफ़ की जाये कम है! आपकी लेखनी को सलाम! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!

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  17. अतिसुन्दर ...फगुनाहट की आहट दे गई यह पोस्ट..बधाई.

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  18. वाह! क्या गायन है - महुआ!
    बहुत मधुर पॉडाकास्ट!

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  19. का गुरु आप तो छ गए लगे रहिये

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  20. तन जैसे रचा गया कंचन से
    कहूँ क्या कितनी सुखदाई है तू
    बस एक शिकायत है तुझसे
    खलता है यही कि पराई है तू ..

    वाह क्या मधुर आवाज़ में गाया है ... मज़ा ले रहा हूँ मनोज जी ....

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  21. 'उसनें इस भांति निहारा मुझे
    अपनी छवि जैसे भुना रही हो
    कुछ बोली तो ऐसा लगा वह ज्यों
    मेरा गीत मुझे ही सुना रही हो |'
    sswar aanand uthaya hamne is sundar rachna ka ,shukriyaan holi ke is rang ke liye .

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  22. are waah bahut hi sundar kavita aur aapka gayan bhi laajwaab hai..bahut sundar...hamko to pata hi nahi tha...

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  23. इसे पहली बार सुना। बहुत अच्छा लगा। बहुत सुन्दर!

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