सोमवार, 30 मार्च 2009

एपार जौनपुर - ओपार जौनपुर (जौनपुर :क्या कहतें हैं ऐतिहासिक साक्ष्य )


जौनपुर से आप परिचित होंगें ,नहीं हैं तो चलिए आज हम आपको परिचित करातें हैं .इस को कभी सिराज - -हिंद की खिताब से नवाजा गया था .अतीत ही नहीं वर्तमान में भी देश का ऐसा कोई प्रदेश या शहर नहीं होंगा जहाँ यहाँ के निवासी रह रहें हों .उत्तर प्रदेश से प्रशासनिक सेवाओं में सबसे ज्यादा लोग इसी जनपद से हैं और तो और यहाँ के जन्मे लोंगों ने विज्ञान अनुसन्धान के क्षेत्र में पूरी दुनिया में नाम कमाया है .यह सब मैं इस लिए नहीं कह रहा हूँ कि यह मेरा गृह जनपद है बल्कि इस लिए कि यह एक ऐतिहासिक तथ्य है . अपने आप में एक अनूठा शहर ,जिसके बीचों -बीच सदानीरा गोमती बहती है .दूसरे शब्दों में यह गोमती नदी पूरे शहर को दो बराबर भागो में बांटती है .



इसशहर
का अतीत बहुत स्वर्णिम रहा है .वेब पेज पर आप गूगल सर्च पर इस प्राचीन जनपद के मध्यकालीन इतिहास और अन्य ऐतिहासिक स्थलों को देख सकतें हैं . लेकिन आज मैं ,आपको इसके एकदम प्राचीन अतीत की ओर ले जाना चाहता हूँ ,जिसका कहीं अन्यत्र उल्लेख नहीं है .यह दुर्भाग्य की बात है कि जब हम जौनपुर की बात करतें हैं तो भारत की ऐतिहासिक मानचित्रावली पर इसका अंकन 1389 AD से
दिखाई पड़ता है , जबकि विभिन्न संस्कृतियों की बाँकी -झांकी का साक्षी रहा यह जनपद अपनी ऐतिहासिकता को बहुत अतीत तक समेटे हुए है . प्रस्तुत लेख मेरी मौलिक रचना है जिसे मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान बहुत मेहनत से शोध करके लिखा था और समकालीन दौर में यह लेख समाचार पत्रों और जर्नल्स में प्रकाशित और चर्चित हुआ था . .
एक परम्परा के अनुसार जौनपुर महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली था जिस कारण इसका प्रारंभिक नाम यमदग्निपुर पडा था तथा कालान्तर में यमदग्निपुर ही जौनपुर के रूप में परिवर्तित हो गया .कतिपय विद्वानों ने इस धारणा पर भी बल दिया है कि यहाँ प्राचीन भारत में यवनों का आधिपत्य रहा है जिस कारण इसका नाम प्रारम्भिक दौर में यवनपुर था जो कि कालान्तर में जौनपुर हो गया .ज्ञातब्य है कि महाभारत में यवनों का उल्लेख प्राप्त होता है -
यवना चीन काम्बोजा दारुण म्लेच्छ जातयः |
सक्रिदग्रहा: कुलात्थाश्च हूणा: पारसिकै :सह ||
(भीष्म पर्व ,9,65-66)
पतंजलि के महाभाष्य में अनद्यतन लन्ग के एक उदाहरण के प्रसंग में यह उल्लिखित है कि -यवनों नें साकेत पर आक्रमण किया ,यवनों नें माध्यमिका पर आक्रमण किया -
अरुनद यवन: साकेतम- अरुनद यवनों माध्यमिकाम| स्मरणीय है कि भागवत,विष्णु एवं वायु आदि पुराणों में भी यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है गार्गी संहिता के युग पुराण खंड में वर्णित है कि-दुष्ट एवं वीर यवनों ने साकेत ,मथुरा तथा पांचाल पर आक्रमण किया ,इसके पश्चात वे कुसुमध्वज पहुच गए वहन चारो ओर बने मिट्टी के परकोटे पर उनके वहाँ पहुचनें पर सभी लोग ब्याकुल हो गए .-
ततः साकेत -माक्रम्य पंचालानमथुरास्त्था ,
यवन दुष्ट विक्रान्ता प्राप्स्यन्ति कुसुमाध्व्जा |
ततः पुष्पपुरे प्राप्ते कर्दमें प्रथिते हिते ,
आकुला विषया सर्वे भविष्यन्ति संशयः ||
.. इस सम्भावना को मानने में कोई विसंगति नहीं है कि पाटिल पुत्र और साकेत के बीच में यवन कुछ समय तक जिस क्षेत्र विशेष में रहें हों वह क्षेत्र कालान्तर में यवनपुर के नाम से जाना गया रहा हो ? आज तक के नवीनतम शोधो में भी इतिहासकारों के बीच इस प्रश्न पर आम राय स्थापित नहीं हो पाई है कि पुष्यमित्र शुंग के समय में हुए यवन आक्रमण का नेता कौन था एवं तत्कालीन भारत में हुए उस युद्द का स्थल कहाँ था ? पुराणों में भी यवनों के गंगा घाटी में शासन करनें की बात कही गयी है . हाथी गुम्फा और नासिक लेख में इसवी सन के प्रारम्भ में यवनों के गंगा घाटी में रुकने का समर्थन मिलता है .इन साक्ष्यों के आलोक में यह सम्भावना बलवती दिखाई देती है कि साकेत और पाटिलपुत्र तक पहुचने वाले यवन इस जनपद की सीमा को अपना कार्यक्षेत्र अवश्य बनाये रहे होंगें .
जारी ..............................
...

30 टिप्‍पणियां:

  1. जौनपुर के स्वर्णिम इतिहास और सिराज -ए -हिंद की खिताब से नवाजे जाने वाले इस शहर से रूबरू करने का आभार.....इस शहर का सिर्फ नाम ही सुना था इसकी सुन्दरता और अन्य विसेश्ताओ का तो पता ही नहीं था ...बहुत रोचक लगी जानकारी..
    Regards

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  2. इस खोज पूर्ण और जानकारीपरक श्रृंखला शुरू करने के लिए साधुवाद ! आप इतिहास के अधिकारी विद्वान हैं मगर आम लोगों के लिए कृपया धयान दें -
    १-सिराजे हिंद नामकरण क्यों हुआ ? मुख्य आलेख में ही समाविष्ट करें !
    २-प्रदेश और देश ही नहीं विदेश में भी जौनपुर वासियों का खास कर विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उल्लेखनीय योगदान है उसे भी किसी अंक में समेटें !
    ३-य कैसे ज उच्चारित हुआ और कब से इसके उदाहरण दें ! यह तो सबको पता है यमुना को जमुना भी कहते है और हमारी संस्कृति गंगा जमुनी कही जाती है !
    ४-संस्कृत के उद्धरणों का अनुवाद भी साथ प्रस्तुत करें !
    अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी !

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  3. बहुत ग्यान वर्धक और विस्तृत जानकारी दी है। आभार।

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  4. हम तो गद गद हो गए. चित्र लगाने में बड़ी कंजूसी बरतते है. कितने सुन्दर हैं दोनों ही लेकिन एकदम छोटे. जौनपुर की भौगोलिक स्थिति दर्शाया गया होता तो locate करने में आसानी होती. अगली कड़ी का इंतजार रहेगा.

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  5. @.jaunpur up को गूगल सर्च पर जा कर locate कर सकतें है .वहां कुछ चित्र भी मिल जायेंगे ,लेकिन यह चित्र जो मैंने लगाया है ,वह मेरे मित्र आशीष श्रीवास्तव द्वारा लिया गया है .अगली कड़ी में चित्रों में कोई कंजूसी नहीं होंगी .

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  6. जौनपुर के बारे में जानकारी देता यह आलेख अच्‍छा लगा ... अगले अंक का इंतजार रहेगा ... जिसमें डा अरविंद जी के प्रश्‍नों का आप जवाब देंगे ... शुभकामनाएं।

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  7. बहुत ही सुन्दर वर्णन किया आपने शहर जौनपुर के बारे मे आशा है कि यात्रा लम्बी चलेगी !
    Regards,
    Pankaj Mishra

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  8. अद्भुत जानकारी दी है आपने...जो पहले न कभी सुनी या पढ़ी....शुक्रिया....
    नीरज

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  9. बहुत ही बेहतरीन लेख पण्डितजी, जौन है तौन।
    सिराज-ए-हिन्द जौनपुर को हमारा भी सलाम। यवनपुर का रहस्य अब समझ में आया और आप क्या इंगित करना चाह रहे हैं यह भी समझ में आया। इस लेख को हमने फ़ैवरेट में डाल लिया है। आपका बहुत बहुत आभार इसके लिए।

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. जौनपुर का ऐतिहासिक महत्‍व जानकर प्रसन्‍नता हुई, इसलिए भी कि मैं भी वहॉं एक बार जा चुका हूं, आप ही के प्रोग्राम में, दूसरा यह कि इण्‍टरमीडिएट की जिस कोचिंग में पढने जाया करता था, वहॉं एक एक टीचर भी जौनपुर के ही रहने वाले थे और अक्‍सर वहॉं की विशेषताओं को बताया करते थे।
    इस श्रृंखला को शुरू करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। और हॉं, अरविंद जी की बातों पर जरूर गौर फरमाऍं।
    -----------
    तस्‍लीम
    साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

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  12. रोचक और उपयोगी जानकारी दी है आपने इस लेख के माध्यम से .शुक्रिया

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  13. तीन म (मक्का , मुली और मक्कारी ) का सबसे बड़ा उत्पादक. जौनपुर के किसी भी चौराहे पर मुहं में दोहरा ( शंकर दोहरा / सुपारी-लौंग से बना मसाला ) दबाये शहर से लेके अमेरिका की राजनीती के बात करने वाले लोग शुमार में मिल जायेगे . आधा शहर गोमती नदी के इधर , आधा गोमती के उधर बसा हुआ है जिसे जोड़ता है शाही पुल , नया पुल , सदभावाना पुल . बाकि जानकारी आप से मिल रही है जो ज्ञानवर्धक है .
    धन्यवाद

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  14. सुन्दर! अगले लेख का इंतजार है।

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  15. जौनपुर के स्वर्णिम इतिहास और सिराज -ए -हिंद की खिताब से नवाजे जाने वाले इस शहर से रूबरू करने का आभार.....

    अगले लेख का इंतजार है।

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  16. बहुतही सुंदर ओर अच्छी जानकारी दी आप ने, जॊन पुर के बारे विस्तार से पता चला .गली कडी का इन्तजार... धन्यवाद

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  17. @आलोक जी मकार पांच होते हैं तीन नहीं -'मेहनती' को तो आपने जोड़ा ही नही बस मक्कार (ई ) पर आ गए !

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  18. नगर-परिचय की प्रथम कड़ी कमाल की है... वाह.. बधाई मनोज जी.

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  19. जौनपुर का अब तक सिर्फ नाम ही सुना था आज आपके लेख से जौनपुर के बारे में जानकारी पाकर बहुत ख़ुशी हुई

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  20. jaunpur ke baare mai hame kuch bhi jankaari nahi thi. apane bahut itni acchi jankaari di hai ki ab to mulaqaat karni padegi iss jaunpur ki.

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  21. Very Informative. It's clear that you have done a lot of effort for all these studies. Thanks for spacing n larging fonts, I think it made it more comfortable to read.

    In addition, your post gave joy as well as pain hidden inside. Joy ofcourse cause of the rich hertitage & culture of ancient India and pain that we as Indians have totally failed to preserve, nourish and promote this heritage. This information is MUST for our young generation which is looking East for every big n small inspiration. So such efforts by people like you are really so important. Please keep it up.

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  22. @ मैं ऊपर डॉ अरविन्द मिश्र जी द्वारा किये गए एक महत्वपूर्ण प्रश्न के बारे में बताना चाहता हूँ कि जौनपुर को शिराज़े हिंद क्यों कहा गया -
    शिराज का तात्पर्य श्रेष्ठता से होता है .दरअसल मध्यकालीन भारत में जौनपुर शिक्षा का बहुत बडा केंद्र था . इब्राहिमशाह शर्की (1402 AD- 1440 AD) के समय में जौनपुर सांस्कृतिक दृष्टी से बहुत उपलब्धि हासिल कर चुका था .उसके दरबार में बहुत सारे विद्वान थे जिन पर उसकी राजकृपा रहती थी .तत्कालीन समय में उसके राज -काल में अनेक ग्रंथों की रचना की गयी .उसी के समय में जौनपुर में कला -स्थापत्य में एक नयी शैली का जनम हुआ जिसे जौनपुर अथवा शर्की शैली कहा गया . कहा जाता है कि शेरशाह सूरी की सारी शिक्षा -दीक्षा जौनपुर में ही हुई थी .जौनपुर राज 75 वर्षों तक स्वंतंत्र राज किया बाद में 1479 AD के बाद दिल्ली सल्तनत का भाग बना . कहा जाता है कि जौनपुर में इब्राहिमशाह शर्की के समय में इरान से 1000 के लगभग आलिम (विद्वान् ) आये थे जिन्होंने पूरे भारत में जौनपुर को शिक्षा का बहुत बडा केंद्र बना दिया था .

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  23. शहरी करण या वैश्वीकरण के जमाने में ऐतहासिक धरोहरोंको भूलने-भुलाने के जमाने में आप का सुलिखित जौनपुर हमे अच्छा लगा और
    कभी वहां जाने की इच्छा मन में अंकुरित हुई
    श्याम सखा‘श्याम’

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  24. मनोज जी नमस्कार! जौनपुर पर प्रमाणिक जानकारी जुटाने के लिए बधाई!आप के ब्लॉग से काफी उम्मीदें है,ज्ञान-विज्ञानं की यह सरिता निरंतर बहती रहे....यही कामना है!पुनश्च :साधुवाद !

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  25. JAUNPUR BAHUT HI SUNDAR SHAHAR HAI YHA BAHUT HI ACHHE ACHHE SHASKO NE SHASAN KIYA HAI YAHA PAR SHAHI PUL HAI JO KI AKBAR KE SAMAY KA HI HAI YHA PAR BAHUT HI MAHAN LOG PAIDA HUYE HAIN MAI YEK YAISE HI MAHAN SAKSIYAT KE BARE ME APKO BATANE JA RAHA HUN

    JAUNPUR JILE KE HI SINGHRAMAU SHAHAR KE RAJA THE UNKA NAM KUVR SHRIPAL SINGH THA UNKO SITARE HIND KI UPADHI MILI THI YE BHART KE NO.1 PAHALWAN THE YEK BAR (AATHARTAN)YEK VIDESHI PAHALWAN KI BHART ME KUSHTI KA MATCH THA USKI JISKE SHATH KUSHTI THI USKO USNE HARA DIYA AUR USNE KAHA KI MAI PURE BHART DESH KO CHUNAUTI DETA HUN AGAR KOI BHI MUJHSE LANANA CHAHE TO LAN SAKTA HAI KUVAR SHRIPAL(RAJA SAHAB)USH SAMAY DARSHK DIRGHA MEN BAITHE HUYE THE AUR UNSHE BARDAST NAHI HUA AUR VO DARSHAK DIRGHA SE UTH KHANE HUYE AUR USASE LADNE KE LIYE AKHANE PAR AA GAY 6 MINUT KI KUSHTI THI RAJA SAHAB (KUVAR SHRIPAL JI) NE USE 4 MINUT ME HI USE DONO HATHO SE UPAR UTH LIYA AUR BOLE BOLO BHARATVASIYO ISKO KAHA PHEKUN USH SAMAY PURE BHART DESH KA SAR GARV SE UCHA HO GAYA THA MUJHE BHI GARV HAI KI MAI BHI SINHRAMU(JAUNPUR) JASI PAVITRA DHARTI KA RAHANE WALA HUN JAHAN YESE MAHAN LOG PAIDA HUYE HAIN

    SANDEEP MISHRA SINGRAMU JAUNPUR (BHOOLA)

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  26. ये देख चुके थे। आज फ़िर देखा अच्छा लगा।

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  27. Log Makkari word kyu use karte h Juanpur ke liye (Muli-Makka-Makkari)

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आपकी टिप्पणियाँ मेरे ब्लॉग जीवन लिए प्राण वायु से कमतर नहीं ,आपका अग्रिम आभार एवं स्वागत !