मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

नेता तेरे रूप अनेक


कभी हंस दिखे बगुला से लगे ,कभी कोकिल से कभी काग लगे थे |
भा में रट्टू तोता लगे ,कभी बुलबुल से कभी गिद्ध लगे थे ||
सोनपांखी दिखे चरखी से लगे ,कभी मोर दिखे कभी चील्ह लगे थे |
कौन सी माया पढ़े हो लला ,उल्लू से दिखे पर बाज लगे थे ||

कभी गा दिखे पर सांड लगे ,कभी लोमडी तो कभी श्वान रहे थे |
कभी सिंह की भांति दहाड़ रहे ,कभी गीदड़ से छिप भाग रहे थे ||
बैल की भांति जुटे थे कहीं ,बिल्ले सा मलाई उड़ा रहे थे ||
बन मानुस से लगते थे लला ,पर माल पे हाथ लगा रहे थे ||
(राजेंद्र स्मृति ग्रन्थ से साभार ,रचना - स्व . डॉ .राजेंद्र प्रसाद मिश्र)

29 टिप्‍पणियां:

  1. आये कितने रूप में भारत में भगवान।
    नेता न इन्सान है रहते ईश समान।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. सत्य वचन !! आज के नेता ऐसे ही हैँ - लावण्या

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  3. नेताओं के सच को बयां करती स्व . डॉ .राजेंद्र प्रसाद मिश्र की ये रचना अच्‍छी लगी.. आभार प्रस्‍तुतीकरण के लिए।

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  4. नेताओं के क्षण प्रतिक्षण बदलते रूप रंग पर एक चुटीली कविता ! खूब !

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  5. स्व. मिश्रजी की बहुत ही अनुपम और चुटीली रचना पढवाने के लिये आभार आपका.

    रामराम.

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  6. Dr.राजेंद्र मिश्र जी ने यह कविता काफ़ी समय पहले लिखी थी.
    लगता है हर समय नेताओं का यही रूप रहा है.
    abhaar is samyik kavita padhwane ke liye.

    sahi kaha gaya hai..sahity samaaj ka darpan hota hai.

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  7. नेता तेरे रुप अनेक..
    लोग रहे हैं जूता फैंक..

    --जय हो!! आभार इस रचना के लिए.

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  8. Nice lines.

    But I think we being too hard on politicians these days.

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  9. नेता की सुन्दर परिभाषा ..पर नेताओं की तुलना जानवरों से न की जाये ..बेचारे अपमानित होते हैं.

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  10. kya baat hai aaj yakin ho gaya ki sahityakar samay se phle ki chijo ko dekh leta hai.

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  11. मन खुश कर दिय आपने .अब नेता पे और क्या बचा कहने कहाने को . और अब तो जूता चल रहा है सीधा सीधा .

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  12. नेताओं के विभिन्न रूप का चित्रण करती, नेताओं के सच को बयां करती स्व . डॉ .राजेंद्र प्रसाद मिश्र की ये रचना अच्‍छी लगी..
    आभार प्रस्‍तुतीकरण के लिए।

    कभी सुना था, लोहा-लोहे को काटता है.
    जैसा करोगे, वैसा भरोगे,
    बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय

    शयद अब समय ने वैस प्रतिफल के नमूने प्रस्तुत करने शुरू कर दिए है........... जूतों- चप्पलों के मध्यम से, देखते रहिये अभी और कौन कौन से रंग देखने को मिलेंगे .................

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  13. काफी कुछ कह रही है ये लाइने लेकिन कौन समझाए इन लोगों को .............,..

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  14. मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

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  15. wah itni purani aur sundar kavita aapki wajah se padhne ko mili.sayad ye padh ke kisi gairatmand neta ka swabhiman jaag jaaye .bdhai sweekar kare sir

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  16. कभी हंस दिखे बगुला से लगे ,कभी कोकिल से कभी काग लगे थे |
    भाषण में रट्टू तोता लगे ,कभी बुलबुल से कभी गिद्ध लगे थे ||
    सोनपांखी दिखे चरखी से लगे ,कभी मोर दिखे कभी चील्ह लगे थे |
    कौन सी माया पढ़े हो लला ,उल्लू से दिखे पर बाज लगे थे ||

    नेताओं की बक्खियाँ उधेड़ती स्व. मिश्रजी की ये पंक्तियाँ पढ़वाने के लिए शुक्रिया ....!!

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  17. बहुत ही सुंदर,
    धन्यवाद........आपने अच्छी जानकारी दी है .....


    अन्दर तो छोडिये साब ...छत पर लेट कर भी कोई समाधान नही खोज पता । इसे जड़ता नही कहा जाए तो और क्या ?हालत तो ऐसी है की जब अपनी ही पीडाओं का पता नही तो दूसरों ......!
    अभी भी रोटी के संघर्ष को नही जान पाया । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......
    घर और मुल्क की गरीबी का कोई प्रभाव नही पड़ा । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......

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  18. बेहतरीन प्रस्तुति है भाई, वाह... बधाई...

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  19. नेताओं के विभिन्न रूप!बहुत ही सुंदर!
    हर सप्ताह रविवार को तीनों ब्लागों पर नई रचनाएं डाल रहा हूँ। हरेक पर आप के टिप्प्णी का इन्तज़ार है.....
    for ghazal ----- www.pbchaturvedi.blogspot.com
    for geet ---www.prasannavadanchaturvedi.blogspot.com
    for Romantic ghazal -- www.ghazalgeet.blogspot.com
    मुझे यकीन है आप के आने का...और यदि एक बार आप का आगमन हुआ फ़िर..आप तीनों ब्लागों पर बार -बार आयेंगे/आयेंगी..........मुझे यकीन है....

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  20. सोनपांखी दिखे चरखी से लगे ,कभी मोर दिखे कभी चील्ह लगे थे
    कौन सी माया पढ़े हो लला ,उल्लू से दिखे पर बाज लगे थे

    ये तो आज के नेता लीगों का चरित्र बयान कर दिया ............ क्या कहने हैं इस रचना के......बहुत खूब

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  21. स्‍व0 राजेन्‍द्र जी की कालजयी रचना पढ़वाने के लिए आभार।

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  22. param pujya guru ji vakai aap ne ye kavita prastut karke logo ka manoranjan karne ke sath hi netao ko naga bhi kiya.

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