बुधवार, 27 जनवरी 2010

अभी तक आदमी बनकर तुम्हे जीना नहीं आया..........

खुशी हद से बढ़ी तो गए मुस्कान को आंसू
कहीं कोई लुटा तो गये ईमान को आंसू
चढ़ाकर लूट की संपत्ति तुमनें जीत माँगी तो
पुजारी मुस्कराया गये भगवान को आंसू

पराई पीर का प्याला तुम्हे पीना नहीं आया
मनुजता का फटा आंचल तुम्हे सीना नहीं आया
भले ही तुम फरिश्तों की तरह बातें करो लेकिन
अभी तक आदमी बनकर तुम्हे जीना नहीं आया

तुम्हारे पास बल है बुद्धि है विद्वान भी हो तुम
इसे हम मान लेतें हैं बहुत धनवान भी हो तुम
विधाता वैभवों के तुम इसे भी मान लेते हम
मगर यह बात कैसे मान लें इंसान भी हो तुम

लगा ली गले से नफरत मुहब्बत तक नहीं पहुंचे
बसाया झूठ को दिल में सदाकत तक नहीं पहुंचे
सितारों तक तुम्हारा यह सफर किस काम का जब तुम
अँधेरे में सिसकती आदमियत तक नहीं पहुंचे
( रचना - स्व.पंडित रूप नारायण त्रिपाठी जी )






34 टिप्‍पणियां:

  1. लगा ली गले से नफरत मुहब्बत तक नहीं पहुंचे
    बसाया झूठ को दिल में सदाकत तक नहीं पहुंचे
    सितारों तक तुम्हारा यह सफर किस काम का जब तुम
    अँधेरे में सिसकती आदमियत तक नहीं पहुंचे ।
    बहुत सुन्दर कविता।स्व.पंडित रूप नारायण त्रिपाठी जी को शत शत नमन । आपका धन्यवाद उनकी ये रचना पढवाने के लिये

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  2. स्व.पंडित रूप नारायण त्रिपाठी जी कॊ उम्दा रचना प्रस्तुत करने का आभार! आनन्द आया!

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  3. कविता बहुत सुन्दर है, भाव, शब्द सौन्दर्य, शिल्प सभी तरह से. हो सके तो त्रिपाठी जी की कलम के कुछ और नगीने यहाँ रखिये.

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  4. स्व.पंडित रूप नारायण त्रिपाठी जी की यह रचना बहुत अच्‍छी लगी .. ऐसी अन्‍य रचनाओं का भी इंतजार रहेगा !!

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  5. स्व.पंडित रूप नारायण त्रिपाठी जी की ये अनुपम रचना प्रस्तुत करने पर आभार....
    regards

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  6. खुशी हद से बढ़ी तो आ गए मुस्कान को आंसू
    कहीं कोई लुटा तो आ गये ईमान को आंसू
    चढ़ाकर लूट की संपत्ति तुमनें जीत माँगी तो
    पुजारी मुस्कराया आ गये भगवान को आंसू ।

    स्व. त्रिपाठी जी की इस श्रेष्ट कृति को पढ़ाने के लिए आपका शुक्रिया !

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  7. यह रचना बहुत अच्‍छी लगी..त्रिपाठी जी की इस श्रेष्ट कृति को पढ़ाने के लिए आपका शुक्रिया

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  8. लगा ली गले से नफरत मुहब्बत तक नहीं पहुंचे
    बसाया झूठ को दिल में सदाकत तक नहीं पहुंचे
    सितारों तक तुम्हारा यह सफर किस काम का जब तुम
    अँधेरे में सिसकती आदमियत तक नहीं पहुंचे ।

    बहुत ही बढिया!!
    इस बहुमूल्य कृ्ति को प्रस्तुत करने के लिए आप धन्यवाद के पात्र है!

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  9. पराई पीर का प्याला तुम्हे पीना नहीं आया
    मनुजता का फटा आंचल तुम्हे सीना नहीं आया
    भले ही तुम फरिश्तों की तरह बातें करो लेकिन
    अभी तक आदमी बनकर तुम्हे जीना नहीं आया ...

    कविता का हर छन्द ग़ज़ब की रवानी और सच्चाई लिए है ....... शुक्रिया इस रचना को पढ़वाने के लिए .......

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  10. "पराई पीर का प्याला तुम्हे पीना नहीं आया
    मनुजता का फटा आंचल तुम्हे सीना नहीं आया
    भले ही तुम फरिश्तों की तरह बातें करो लेकिन
    अभी तक आदमी बनकर तुम्हे जीना नहीं आया।"

    मनोज जी रूप नारायण त्रिपाठी जी की ये रचना पढ़वाने के लिए आभार

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  11. इतनी बेहतरीन रचना पढवाने के लिये आभार.

    रामराम.

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  12. खुशी हद से बढ़ी तो आ गए मुस्कान को आंसू
    कहीं कोई लुटा तो आ गये ईमान को आंसू
    चढ़ाकर लूट की संपत्ति तुमनें जीत माँगी तो
    पुजारी मुस्कराया आ गये भगवान को आंसू ।
    बहुत अच्छी रचना. धन्यवाद

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  13. तुम्हारे पास बल है बुद्धि है विद्वान भी हो तुम
    इसे हम मान लेतें हैं बहुत धनवान भी हो तुम
    विधाता वैभवों के तुम इसे भी मान लेते हम
    मगर यह बात कैसे मान लें इंसान भी हो तुम।

    बिना इंसानियत के तो कंगाल ही रहते हैं।
    सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  14. ----------इतनी बेहतरीन रचना है कि आपको बार-बार प्रस्तुति हेतु धन्यवाद.
    क्या अच्छा होता कि इस रचना का आप सस्वर पाठ किये होते---------------

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  15. ताजा हवा के एक झोंके समान इस प्रस्तुति के लिये आभार!

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  16. स्व.पंडित रूप नारायण त्रिपाठी जी की यह रचना बहुत अच्‍छी लगी .. ऐसी अन्‍य रचनाओं का भी इंतजार रहेगा !

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  17. पराई पीर का प्याला तुम्हे पीना नहीं आया
    मनुजता का फटा आंचल तुम्हे सीना नहीं आया
    भले ही तुम फरिश्तों की तरह बातें करो लेकिन
    अभी तक आदमी बनकर तुम्हे जीना नहीं आया।

    कमाल की रचना है. आभार.

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  18. बड़ी ही प्यारी रचना है स्व.पंडित रूप नारायण त्रिपाठी जी की ..
    प्रवाह में भावों को भी साधना आसान नहीं होता ! .... आभार ,,,

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  19. क्या बात है जी। एकदम रच बस कर लिखा गया है। बहुत बढिया।

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  20. कविता पढवाने के लिये बहुत धन्यबाद

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  21. तुम्हारे पास बल है बुद्धि है विद्वान भी हो तुम
    इसे हम मान लेतें हैं बहुत धनवान भी हो तुम
    विधाता वैभवों के तुम इसे भी मान लेते हम
    मगर यह बात कैसे मान लें इंसान भी हो तुम।
    बहुत अच्छी लगी खासकर ये पंक्तियाँ! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है!

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  22. स्व.पंडित रूप नारायण त्रिपाठी की अद्भुत रचना।

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  23. भले ही तुम फरिश्तों की तरह बातें करो लेकिन
    अभी तक आदमी बनकर तुम्हे जीना नहीं आया।
    ...वाह! स्व० रूपनारायण त्रिपाठी जी ने कितनी बड़ी बात कितने सहज ढंग से लिखा है.
    ,,आभार.

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  24. 'पराई पीर का प्याला तुम्हे पीना नहीं आया
    मनुजता का फटा आंचल तुम्हे सीना नहीं आया
    भले ही तुम फरिश्तों की तरह बातें करो लेकिन
    अभी तक आदमी बनकर तुम्हे जीना नहीं आया।'

    अद्भुत !!

    स्व.रूपनारायण त्रिपाठी जी की इस बेहतरीन कृति को पढ़ाने के लिए आपका आभार.

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  25. पराई पीर का प्याला तुम्हे पीना नहीं आया
    मनुजता का फटा आंचल तुम्हे सीना नहीं आया
    भले ही तुम फरिश्तों की तरह बातें करो लेकिन
    अभी तक आदमी बनकर तुम्हे जीना नहीं आया।
    ...Behad sundar bhav.

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  26. bahut hi umda. Sir ek raaz ki baat, apk jo kavita post karte hain main uska printout lekar rakh leta hoon. Fir sathiyon ko sunata hoon.

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  27. लगा ली गले से नफरत मोहब्बत तक नहीं पहुंचे
    बसाया झूट को दिल में सदाकत तक नहीं पहुंचे
    सितारों तक तुम्हारा ये सफ़र किस काम का जब तुम
    अँधेरे में सिसकती आदमियत तक नहीं पहुंचे ।
    बेशक तुम्हे अभी तक आदमी बन कर जीना नहीं आया ............
    स्व० पंडित रूप नारायण त्रीपाठी जी को शत -शत नमन ............

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  28. लगा ली गले से नफरत मोहब्बत तक नहीं पहुंचे
    बसाया झूट को दिल में सदाकत तक नहीं पहुंचे !

    बेहतरीन शब्‍द रचना, प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  29. बहुत सुन्दर! इसे अपनी आवाज में भी पोस्ट/पॉडकास्ट करिये।

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  30. इस बेहतरीन रचना और रचनाकार की प्रशंसा के लिए हमारे पास शब्द नहीं हैं। कोटि-कोटि आभार।

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