शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

सर्प-दंश -जागरूकता

मंगलवार की शाम चार बजे खबर मिलती है कि मेरे पड़ोसी गांव बख्शा निवासी  पंडित लक्ष्मी उपाध्याय को सबेरे किसी विषधर सर्प  ने काट लिया,जिला अस्पताल में भर्ती हैं ,मुंह से झाग निकल रहा है और अब वे बचेंगे नहीं। अचानक इस खबर ने मुझे झकझोर दिया। श्री उपाध्याय जी की उम्र ६० के पास है ,वे आजीवन अविवाहित रहे। पंडिताई कर जीवन यापन करते हैं। लोक संगीत में सह गायकी के शौक़ीन,अलमस्त स्वभाव के व्यक्ति हैं।  रात को अपने बाग़   के पेड़ से गिरे आम को उन्होंने मड़हे में एक बोरे के नीचे रखा था। सबेरे जौनपुर कचहरी में उनका मुकदमा था। सो वही आम खाकर वह कचहरी जाना चाहते थे। तैयार होने के बाद ८ बजे जैसे ही   बोरे को हटाते हुए आम लेना चाहे ,पहले से ही बैठे करैत सांप ने उनकी अंगुली में डस लिया।  उनके पड़ोसी उन्हें लेकर पहले तुरंत जौनपुर शहर में झाड़  -फूंक और दवा  पिलाने ले गए। वहां   दवा पीने के बाद निश्चिंत मन से कचहरी गए। ११ बजे वहां उन्हें कुछ शारीरिक कष्ट शुरू हुआ तो तो लोग उन्हें जफराबाद ले गए किसी अन्य तथाकथित  सर्प  जानकार ने   उन्हें फिर दवा पिलाई । वही वे अचेत होने लगे तब लोग उनको लेकर २ बजे दिन में जिला अस्पतालपहुंचे। जिला अस्पताल के डाक़्टर ने उसी समय कहा कि आप अंतिम समय में ले आये हैं कुछ कहा नहीं जा सकता। यह सब सुन  मुझे अपने सूचना तंत्र पर बहुत अफ़सोस हुआ, मैंने तुरंत उनके परिजनों से संपर्क कर जनपद के विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ वी एस उपाध्याय के यहां तुरंत ले  आने को कहा। लेकिन उनके परिवारी जन यह मान चुके थे कि कहीं ले जाने से अब फायदा होने वाला नहीं है। वे लोग वही जमे रहे और अस्पताल  के डाक़्टर ने भी ६ बजे  बताया कि इनका बचना मुश्किल है,आप  १० मिनट  बाद घर ले जाएँ।   तभी उनकी कुशल-क्षेम जानने पहुंचे  बख्शा के पूर्व प्रमुख श्री पति उपाध्याय जी तुरंत  जबरदस्ती उन्हें  लेकर  डॉ वी एस उपाध्याय के यहां पहुंचे। रास्ते में ही डॉ वी एस उपाध्याय जी  को सूचित कर सारे प्रकरण से अवगत करा दिया । फिर शुरू हुई मौत से जंग। कुल २९ एंटी स्नेक सीरम  इंजेक्शन  लगने के बाद लक्ष्मी उपाध्याय जी की जान बची। २४ घण्टे बाद वे नार्मल हुए। अभी भी तीन दिन हो गए हैं  लेकिन उनकी पूरी आँखे नहीं खुल रही हैं। देर रात तक चली इस जीवन संग्राम का मैं चश्मदीद रहा हूँ , ईश्वर  करें  कोई भी कभी सर्प-दंश का शिकार न हो। पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो गया था। शरीर में यहां तक कि आँखों में भी कोई चेतना नहीं थी लेकिन सर्प-दंश के मामले में  व्यक्ति की श्रवण शक्ति चलती रहती है। कौन -आया कौन गया ,लोग आपस में क्या बात कर रही थे सब व्यक्ति सुनता है लेकिन अफ़सोस यह कि वो प्रत्युत्तर  नहीं दे सकता। मैंने  यह चमत्कार अपनी आँखों से  देखा,जिसे लोग मृत मान बैठे थे उस सर्प -दंश पीड़ित को कितने अथक प्रयास से डॉ साहब ने जीवन दिया। डॉ साहब ने बताया कि एकाध मिनट बाद यदि आप सब ले आते तो इनका बचना असम्भव था। 
सर्प -दंश के मामले में कभी भी झोला छाप  डाक़्टर ,ओझा-सोखा,जड़ी-बूटी पिलाने के चक्कर  में नहीं पड़ना चाहिए। और हाँ इस मामले में  सब चिकित्सक भी उपयोगी नहीं होते। इसलिए आप सभी इस सन्दर्भ में अपने जनपद /शहर के सर्प  विशेषज्ञ  चिकित्सक के बारे में जानकारी जरूर रखें जहां आपात स्थितियों में भूलों भटकों की मद्त हो सके। 



गुरुवार, 9 जनवरी 2014

आम आदमी तो बेचारा ही रहेगा.......

नई सुबह की गर्मजोशी से स्वागत करने की हम भारतीयों में बहुत पुरानी परम्परा रही है। जितनें भी प्राचीन  मनीषी,कवि  और विचारक रहे वे भी समय-समय पर इस बिंदु  पर जन मानस को आगाह भी करते रहे। आर्ष कवि कालिदास और भारत में द्वितीय नगरीकरण के जनक भगवान गौतम बुद्ध  जी को भी इस विषय में अपना मत देना पड़ा था। आप दोनों का मानना था कि प्रबुद्धजन परीक्षण के उपरान्त ही किसी बिंदु को ग्रहण करते हैं न कि  इसलिए कि  यह हर तरह से श्रेष्ठ  है। भारत में रचने -बसने वाली हर संस्कृति -धर्मं का स्वागत भी इसी तरह बहुत गर्मजोशी से हुआ परन्तु अंततः उनका क्या हश्र हुआ । कई धर्म -संस्कृति समेत बहुत सारे  पंथ और नीति -निर्देशक इस श्रेणी में आते हैं जिसका नामोल्लेख कर मैं एक नये विवाद को जन्म नहीं देना चाहता। यहाँ तक कि जब विदेशी आक्रान्ताओं नें भारत पर अपना कब्जा जमाना चाहा तो अपनी रणनीति के जरिये अपनी  सेनाओं के आगे बहुरुपियों की टोली को भूत-बेताल-राक्षस के वेश में जनता के सामनें प्रस्तुत करते चलते रहे और उनके स्वागत में हमारा जनमानस मारे  डर  के गाँव  के गाँव खाली करता रहा और अनेक अवसरों पर बिना युद्ध के ही भू -भाग पर उनका कब्ज़ा होता रहा। 
आज -कल देश की राजनीति में एक नई पार्टी की भी इसी तर्ज़ पर खूब चर्चा -स्वागत  है। वस्तुतः जहां तक मेरा मानना है यह भी तुरत -फुरत अल्प सेवाभाव भाव से सत्ता का मेवा प्राप्त करने का ही साधन ही  अंत में साबित होने वाला है। इस अभियान में कुछ एक शीर्षस्थ ही लोग हैं जिनमें समाज सेवा  और लोंगो के दर्द से लेना देना है बाकि तो उस नाम के  सहारे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की सिद्धि में ही लगे हैं। यह राजनीतिक दल लोंगों की अव्यक्त भावनाओं से जुड़ा है लेकिन आज-कल  वही लोग इस दल से लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए ज्यादा सक्रिय दिख  हैं जिन्हे लगता है कि दशक दो दशक नहीं बल्कि कुछ-एक महीनों  की ही समाज  सेवा में  सत्ता का अमृत मिलने वाला है। इस दल से जुड़े  सच्चे बन्दे तो अभी भी नेपथ्य में ही हैं। 
मैं पूर्वांचल के पिछड़े इलाके के एक गाँव में हूँ यहाँ तो अधिकांशतया राजनीति में वही सफल होता आया है जो जितना ज्यादा झूठ बोले और सब्ज़बाग दिखाए। हमारे यहाँ तो पिछले पंचायत चुनाव परधानी में भी उसी नें फतह हासिल की जिसने जितनी जिम्मेदारी से सबसे ज्यादा झूठे वायदे किये। सच्चे बन्दों के आंसुओं को भी देखने वाला कोई न था। …… आम आदमी तो बेचारा ही रहेगा। 
……… वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से ,
            मैं ऐतबार न करता तो और क्या करता।।

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

शुभ दीपावली ...


अपने सभी मित्रों, आदरणीय जनों को प्रकाश पर्व पर बहुत-बहुत शुभकामनायें..... शुभ दीपावली ..... जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल, उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले, लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी, निशा की गली में तिमिर राह भूले, खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग, ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। सृजन है अधूरा अगर विश्‍व भर में, कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी, मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी, कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी, चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही, भले ही दिवाली यहाँ रोज आए जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में, नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा, उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के, नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा, कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब, स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। ------ गोपालदास "नीरज"

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

क्या ऐसे ही हम 2020 तक महाशक्ति बनेंगे ? (३)

गतांक से आगे....
21 सितम्बर 1995 को देव प्रतिमाओं ने अपने भक्तजनों के हाथों दुग्धपान किया , पूरे देश की तत्कालीन मीडिया ने उसे खूब प्रचारित किया। कन्याकुमारी से काश्मीर तक केवल यही खबर तैर रही थी। देश में हाई एलर्ट की स्थिति थी,तब राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग,भारत सरकार, के वैज्ञानिक दल ने जिसमें डॉ मनोज पटैरिया भी शामिल थे, इस चमत्कार के सच को जनता के सामने रखा था। वैज्ञानिक दल का मानना था कि वास्तव में प्रत्येक द्रव का अपना पृष्ठ तनाव होता है,जो कि द्रव के भीतर अणुओं के आपसी आकर्षण बल पर निर्भर करता है और इसका आकर्षण बल उस ओर भी होता है, जिस पदार्थ के सम्पर्क में आता है। देव प्रतिमाओं के दूध पीने में भी ऐसा ही हुआ है। जैसे ही दूध संगमरमर पर सीमेंट या अन्य चीजों से बनी मूर्तियों के सम्पर्क में आया वह तुरन्त मूर्तियों के सतह पर विसरित हो गया,जिससे श्रद्धालुओं को लगता है कि चम्मच से मूर्ति ने दूध खींच लिया है जबकि हकीकत में दूध की पतली सी धार नीचे से निकलती रहती है जो कि लोग विश्वास के कारण देख नहीं पाते। जब दूध में रंग,रोली मिलाकर देखा जाय तो रंगीन धार स्पष्ट रूप से दिखाई देगी। इस में कोई वास्तविकता नहीं है यह वैज्ञानिक नियमों के अन्तर्गत सामान्य प्रक्रिया है जिसे अज्ञानता के चलते लोग चमत्कार का नाम दे रहे हैं।इसमें सबसे दःखद पहलू यह है कि इस बात को हम अभी भी भारतीय जनता तक नहीं पहुंचा पाये हैं। आश्चर्य है कि अभी भी हमारी भोली-भाली जनता अज्ञानता के मोहपाश में जकड़ी है। वह अपनी कुंभकर्णी निद्रा का त्याग ही नहीं कर पा रही है या फिर हम वास्तव में अपने वैज्ञानिक संदेशों एवं उपलब्धियों को उन तक पहुंचा नहीं पा रहे हैं।
इसके साथ ही एक और चमत्कार ने तो कुछ वर्ष पूर्व देश को और भी शर्मसार किया था। पेयजल का मुद्दा जन स्वास्थ से जुड़ा है। मुम्बई म्युनिसपल कारपोरेशन एवं अन्य सरकारी संगठनों द्वारा की गयी घोषणा के बाद कि माहिम के तट पर तथाकथित मीठा जल स्वास्थ के लिए हानिकारक है एवं उसे पीने से तबियत खराब हो सकती है,लेकिन लोग थे कि मानते ही नहीं थे, पिये ही जा रहे थे। निश्चित रूप से यह चमत्कार नहीं है वैज्ञानिकों ने इसकी पुष्टि कर दी कि यह बारिश का पानी हैं। संचार माध्यमों ने इसको अपनें तरीके से खूब प्रसारित भी किया . ऐसी अज्ञानता से देश अँधेरे में ही जायेगा. सवाल यह है कि हम दुनिया में अगली पंक्ति के नायक इसी अज्ञानता के बदौलत होगें। हमारी शिक्षा प्रणाली या फिर नेतृत्व देने वाले लोग , कौन इसका जवाब दे। महामहिम पूर्व राष्ट्रपति जी के 2020 तक महाशक्ति बनने के ख्वाब को हम क्या ऐसे ही पूरा करेंगे? जब तक विशाल आबादी वाले इस महान देश के जन-जन में वैज्ञानिक चेतना का समावेश नहीं होगा तब तक महाशक्ति बनने का दावा करना कितना बेमानी लगता है और जब हम 64 वर्ष बीतने के बाद भी तथाकथित जागरूकता और प्रगति की आकडे़बाजी में फॅसे है,भौतिक धरातल पर जागरूकता की यह हालत है तो कैसे भविष्य में त्वरित सुधार की उम्मीद कर सकते हैं। आजादी के वर्षो को गिनने से तो रिटायर होने का समय आता दिखता है,ज्ञान सीखने का नहीं। भविष्य की आहट बहुत भयावह है। यदि हमें दुनिया के देशों की कतार में आगे बैठना है तो ज्ञान की शक्ति चाहिए,वैज्ञानिक जागरूकता चाहिए न कि अन्ध विश्वास ।दुष्यंत कुमार जी की ये पंक्तिया सम्भवतःसटीक हैं कि-
कहाँ तो तय था चिरांगा हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।।

समाप्त.









गुरुवार, 15 सितंबर 2011

क्या ऐसे ही हम 2020 तक महाशक्ति बनेंगे ? (२)

गतांक से आगे...
मूल विज्ञान नीति 1958 में भारत के पहले प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू ने आम आदमी तक वैज्ञानिक मनोवृत्ति के प्रसार की पुरजोर वकालत की थी, किन्तु आज भी भारतीय परिप्रेक्ष्य में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं आया हैं। वर्तमान समय में जनमाध्यम (इलेक्ट्रानिक एवं प्रिण्ट मीडिया) वैज्ञानिक जागरूकता के नजरिये से अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं कर रहे हैं। दशकों पूर्व जन माध्यमों में लुप्त हो चुकी अवैज्ञानिक खबरें आज मीडिया की सुर्खियों में हैं। भूत-प्रेत,शकुन-अपशकुन,व्याह शादी में कुण्डली मिलान,रोग-व्याधियों का देवी-देवताओं से सम्बन्ध,ग्रह-नक्षत्रों के दुष्प्रभाव,तान्त्रिकों का महाजाल एवं अन्याय पुरातन अवैज्ञानिक धारणायें आज इन जन माध्यमों के जरिए अपनी पुनर्वापसी कर रही हैं.
आज इलेक्ट्रानिक मीडिया में देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठत चैनलों पर जो कि सबसे तेज होने का दावा कर रहे हैं,वे नाग-नागिन,भूत-प्रेत,डाक बंगलों का रहस्य,सूर्य-चन्द्रग्रहण को अनिष्टकारी बताते हुए या तमाम ऐसी अवैज्ञानिक खबरों को 24 घण्टे प्रसारित करते हैं जिनका कि सच से दूर तक वास्ता नहीं होता। परन्तु इन चैनलों के संवाददाता अपने सीधे प्रसारण में इस विश्वास के साथ बात करते हैं कि कैसे नाग के हत्यारे की फोटो नागिन की आँखों में चस्पा होती है,कैसे सूर्य-चन्द्रग्रहण अमुक राशि वाले व्यक्तिओं के लिए घातक होगा या फिर कैसे डायन भेष बदलकर गांवों में आ रही है एवं उससे बचने का क्या उपाय है? आदि-आदि। निश्चित रूप से विज्ञान विधि से अप्रशिक्षित ये संवाददाता इस तरह से जाने-अनजाने इस देश को अंधे युग की ओर ले जा रहे हैं। मीडिया में हाल के महीनों से अवैज्ञानिक खबरों को प्रदर्शित करने की जैसे होड़ लगी थी । वह भी ऐसी खबरें जिनका कि कोई वैज्ञानिक सच नहीं है। जैसे-’चीते की खाल बरामद-चार बन्दी’, (बताते चलें कि भारत के जंगलों में चीते के विलुप्त हुए कई दशक बीत चले हैं), ’अनिष्टकारी होगा सूर्यग्रहण’, ’पवित्र मरियम की मूर्ति से सुगंधित इत्र का स्राव’, ’माहिम (मुंबई) में चमत्कार से मीठा हुआ समुद्र का पानी’, ’राची में हनुमान की मूर्ति ने आँखें तरेंरीं’, ’गणेश जी ने पुनः शुरू किया दुग्ध पान’, ’घरों पर जो ओ३म् नहीं लिखेगा-डायन मार डालेगी’,’तंत्र-मंत्रों से इलाज कराइए’ एवं ’इच्छाधारी नागिन’ ने पांच बार डसा’आदि आदि।ऐसी खबरें समाज को किस ओर ले जा रही हैं, यह गम्भीर चिंतन का विषय है। कब तक हम ऐसे कृत्यों से अपने आपको एवं पूरे समाज को महिमा मंडित करने का दावा कर पूरे राष्ट्र को कलंकित करते रहेगें?

जारी......