शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

कालो न यातो ......

कितना सही कहा गया है --कालों यातो-वयमेव याता. अर्थात समय नहीं जाता हम लोग जाते हैं.यह जीवन कीसचाई है इससे हम मुह नहीं मोड़ सकते.इतनी खरी-खरी बात अभी नव वर्ष की पूर्व संध्या पर आयोजित एक पार्टी में अपने समय की एक मशहूर हस्ती नें, नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं सहित हम लोंगों के साथ कही.मुझे अचानक यह बात सुखद मौके पर बड़ी अटपटी सी लगी ,माहौल बोझिल लगनें लगा लेकिन बाद में मैंने सोचा तो लगा यार बात तो सौ टके की सही है.प्रतिवर्ष नव वर्ष का इन्तजार करते-करते हम यह नहीं सोचते कि हम कितनें बरस के हो गये.और हर साल हमे क्या दे रहा है केवल नई-नई चुनौतियाँ -नये -नये समीकरणों के साथ तालमेल,नई जिम्मेदारियां.यानि कि अब शंख वाले-पंख वाले दिन कहाँ गये.उन दिनों, कल की कभी चिंता नहीं होती थी,केवल और केवल चिंता यह होती थी कि नववर्ष की पूर्व संध्या और नव वर्ष का दिन कहाँ-किन मित्रों के साथ मनाना है.अब तो लगता है इतनी जल्दी-जल्दी क्यूँ रहा है यह नया साल.साल दर साल बीत रहे हैं और हम एक सुखमय समय की प्रतीक्षा में चुक रहे है जो मृगतृष्णा के रूप में है-नहीं मिल रही है.पार्टी में एक लगभग सत्तर बरसके एक बुजुर्ग साम्यवादी चिन्तक नें सालों-साल के पुरानें वर्षों का आकलन करते हुए कहा कि -खुदा तो मिलता है इंसान नहीं मिलता -ये चीज वो है कि देखी कहीं-कहीं मैंने। - ,यदि राष्ट्रीय परिदृश्य में देखा जाय तो भी लगता है कि इस वर्ष नें भी आम आदमी को खुशी कम- गम ज्यादे दिए.आने वाला साल क्या इसकी भरपाई कर पायेगा -ईश्वर से यही कामना है कि सबके लिए आने वाला कल-नव वर्ष, खुशियों की सौगात लेकर आये
वर्ष नव-हर्ष नव -उत्कर्ष नव के उदघोष के साथ पंडित रूप नरायण त्रिपाठी जी की इन लाइनों को प्रस्तुत कर रहाहूँ---
मैं नया गीत लाया तुम्हारे लिए,
मैं नया मीत लाया तुम्हारे लिए,
साथियों चीर कर रात की कालिमा ,
मैं सुबह जीत लाया तुम्हारे लिए।

भोर की बांसुरी गीत छलका गयी,
जिन्दगी में नई जिन्दगी गयी,
फूल की डबडबाई हुई आँख में ,
रात के आंसुओं को हंसी गयी।


नव वर्ष आप सब को मंगल मय हो ,अभिमंत्रित शुभकामनाओं सहित ...



रविवार, 26 दिसंबर 2010

हम भ्रष्टन के और सब भ्रष्ट हमारे .......

काफी समय से इस अंतर्जाल पर कुछ लिख नहीं पाया-दूर रहा .ऐसा नहीं था कि मैं अपनें पसंदीदा पोस्ट्स या लेखकों को नहीं देखता या पढ़ता था -बस संशोधन यही था कि न तो उस पर अपनी टिप्पणी कर पाया और न ही अपने ब्लॉग पर नव लेखन .
यह बीत रहा साल तो घोटालों और महाभ्रष्टों की भेंट चढ़ गया. घोटालों और भ्रष्टों की कहानी राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया की सुर्ख़ियों में रही . कुछ ऐसी ही अकथ कहानी, भ्रष्टाचार की ,हमारे प्रदेश में भी रही जिसकी कहीं रही चर्चा भी नहीं हुई.साल के आख़री कई महीनें उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की भेंट चढ़ गये .जुलाई से शुरू हुई कहानी अभी ब्लाक प्रमुखों के चुनाव से पिछले २२ दिसम्बर को समाप्त हुई है .पहले दौर में प्रधानी-बी.डी.सी.सदस्यी ,जिला पंचायतसदस्यी,फिर जिला पंचायत अध्यक्ष और अंततः ब्लाक प्रमुखी.
सामाजिक परिवर्तन के नाम पर इन चुनावों में भ्रष्टाचार की जो गंगा बही है ,अफ़सोस है इसकी चर्चा मीडिया के राष्ट्रीय पन्नों पर तो छोड़िये ,आंचलिक पन्नों पर भी नहीं हुई. सीधे-सीधे लाखों रूपये एक-एक वोट पर खर्च किये गये ,जिसकी कहीं चर्चा तक नहीं हुई.देश का अपना सर्वप्रिय इलेक्ट्रानिक मीडिया भी जो सनसनीखेज खबरों को प्रस्तुत करनें में ही अपने समय को जाया करता है वह भी खरबों के इस खबर की अनदेखी कर गया .तो क्या अब यह मान लेना चाहिए की भ्रष्ट होना ही हम सब की नियति हो चली है??। ग्रामीण विकास से जुड़े इन चुनावों नें भ्रष्टाचार की जो प्रस्तुति दी है इससे यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन प्रदेशों में विकास के लिए आने वाले समय में क्या कुछ होंनें वाला है.इन पंचायत चुनावों में धन-बल-मुर्गा- दारू का जो दौर चला है वह वर्णनातीत है-अच्छे-अच्छों को पसीना गया.परिणामतः विकास के लिए जिन्हें होना चाहिए था वे नहीं हुए-जिन्हें नहीं होना चाहिए था वे छा गये. अब सब होंगे मालामाल और मतदाता -गरीब जनता होगी बेहाल.अफ़सोस जनक यह है कि मतदाताओं की कुम्भकर्णी निद्रा कबटूटेगी.जिला पंचायत , ब्लाक प्रमुख के चुनाव, निर्वाचित सदस्यों द्वारा किये जाते हैं -असली खेल यहीं से शुरू होता है .यदि भ्रष्टाचार पर कुछ अंकुश लगाना है तो इन चुनावों को भी सीधे जनता से जोड़ना होगा.इसका सबसेदुखद पहलू यह है कि भ्रष्टाचार की यह महामारी अब सीधे ग्रामीणों तक पहुचनें लगी है जो कि समाज और देश के लिए कत्तई शुभ संकेत नहीं है.अभी कुछ वर्षों पूर्व तक ऐसे लोग सामाजिक रूप से रोटी और बेटी दोनों रिश्तों से दूररखे जाते थे लेकिन अब ये सर्वप्रिय और सर्वमान्य हो चले हैं.वे लोग जो एक लम्बे समय से इन भ्रष्टाचारियों केविरुद्ध संघर्ष कर रहे थे वे अब नेपथ्य में हैं,बेचारे बन गये हैं.कविवर डॉ श्री पल सिंह क्षेम की इन लाइनों के साथअपनी पोस्ट समाप्त करता हूँ---
मन की गांठे बंधी पहले खोलो ,
प्यार से पहले मन को तो धो लो ,
देश को फूल देना कठिन है,
पहले आंगन में ही फूल बोलो ।
भाव मन के जो प्रतिकूल होंगे,
पथ में शूल ही शूल होंगे ,
देश को फूल तब दे सकोगे,
अपनें आंगन में जब फूल होंगे।