मंगलवार, 25 नवंबर 2008

मेरी पसंद के विविध मुक्तक (२)


नीर ही जब नमी से डरता हो
प्यार अपनी कमी से डरता हो ,
जिन्दगी कैसे मुस्कराए जब
आदमी ही आदमी से डरता हो |

पाप चलता है बन्दगी की तरह
आग चलती है चांदनी की तरह ,
हाय रे आज कल अँधेरा भी
बात करता है रोशनी की तरह |

गीत मिलती है बीन मिलती है
जिंदगी भी हसीन मिलती है,
अंत में हर किसी को मुश्किल से
सिर्फ़ दो गज जमीन मिलती है |

एक रंगीन गम सफर के लिए
लाख मायूसियाँ नजर के लिए ,
एक मुस्कान चंद लमहों की
दे गयी दर्द उम्र भर के लिए |

आँख नम हैं तो क्या हुआ आख़िर
मेरे आंसू तो मुस्कराते हैं ,
गीत मेरे चिराग में जलके
आँधियों में भी जगमगाते हैं |
(स्व.पंडित रूप नारायण त्रिपाठी )

सोमवार, 24 नवंबर 2008

कुछ मुक्तकें राजनीतिक आयाम पर


याचनाओं का यन्त्र लगता है
कामनाओं का मंत्र लगता है
तेरा वह राजतन्त्र का चेहरा
इन दिनों लोकतंत्र लगता है |

राजनीतिक भंवर में रहतें हैं
देखता हूँ अधर में रहतें हैं
एक दिन जो गगन में उड़ते थे
अब किराये के घर में रहते हैं |

जगमगाए महानगर लेकिन
गाँव घर की अजीब सूरत है
टिम टिमाते हुए चिरान्गों पर
आज भी रात की हुकूमत है |

चैन दूभर है क्या किया जाए
हल बदतर है क्या किया जाए
राजधानी में उनके कंधों पर
उनका बिस्तर है क्या किया जाए |

रात दिन जो तिजोरियां अपनी
आदमी के लहू से भरतें हैं
देवता उनकी वन्दनाओं को
जाने कैसे कबूल करतें हैं |

देखता हूँ मै जो अंधेरे में
लूट का इंतजाम करता है
फूल लेकर वही उजाले में
देवता को प्रणाम करता है |

और अन्तत :-
लोक संगीत का रवानी हूँ
रमता जोगी हूँ बहता पानी हूँ
तुमको सत्ता का रथ मुबारक हो
मैं तो पगडंडियों का प्राणी हूँ |

आज कल चुनावों के मौसम में इस सटीक रचना को मेरे साहित्यिक गुरु ,अवधी एवं हिन्दी के कालजयी लोक कवि स्व .रूपनारायण त्रिपाठी जी ने लिखा है जो आज भी कहीं न कहीं यथार्थ का बोध करातीं हैं उनके द्वारा जीवन के विविध रंगों पर लिखी गयी रचनाओं को ,समय -समय पर ब्लॉग के मित्रों के लिए मै प्रस्तुत करता रहूँगा .उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मालिक मुहम्मद जायसी पुरस्कार से सम्मानित स्व .त्रिपाठी जी अस्सी के दशक तक रास्ट्रीय स्तर पर होने वाले कवि सम्मेलनों में श्रोताओं की सर्वाधिक पसंद वाले कवि हुआ करते थे .

शुक्रवार, 21 नवंबर 2008

ये काल सर्प योग क्या है ?


ज्योतिष में असंख्य योग हैं | सभी योगों की मानव मात्र के बारे में अलग -अलग ब्याख्यायें हैं | मैं ज्योतिष का विद्यार्थी तो नही रहा परन्तु मै जहाँ रहा वहां संयोग से मेरे आसपास ज्योतिष का कोई न कोई विद्वान जरूर था , परिणामत: आस -पास के माहौल के चलते बहुत रूचि न होने के बावजूद भी ज्योतिष के बारे में जानना ,समझना और उसके बारे में सुनना मुझे बचपन से अच्छा लगाने लगा | .परन्तु जैसे -जैसे समझ विकसित होती गयी मेरी रुझान इसके वैज्ञानिक पछ की ओर होती गयी (जो कि आज कल इस विद्या के ब्याख्याता लोंगों में बहुत कम दिखती है ) | वैसे तो वराह मिहिर की ज्योतिष की पुस्तकों की अपने -अपने ढंग से नकल करके कालांतर में ज्योतिष पर प्रकाशित होने वाली सड़क छाप पुस्तकों ने गली -गली में ज्योतिषी पैदा कर दिए , इस महान विद्या के गणित पक्छ को दरकिनार करलोगों ने अपने -अपने ब्यावसायिक हितों को साधना शुरू कर दिया | तमाम कुकर्म करने वाले लोंगों ने भी कुछ विद्वानों को धन का प्रलोभन दे कर , ज्योतिष का सेंटर भी खोल दिया,यहाँ तक कि दारू का ब्यवसाय करने वाले लोग भी लोंगों का भविष्य मंगलमय करने लगे परन्तु इसके बाद भी कुछ ऐसे साधक ,चिन्तक और शोधार्थी हैं जोकि इस विद्या के उन्नयन ,वैज्ञानिक स्वरुप को जिन्दा रखने की कोशिश एवं प्रतिष्ठा के लिए अनवरत रूप से लगे हैं . .
इधर ३-४ दिनों से मै ज्योतिष के इसी प्रश्न को लेकर विद्वानों के बीच सक्रिय था कि ये काल सर्प दोष क्या है ? हालाँकि ये मेरे लिए नया नहीं था लेकिन मेरे एक प्रशासनिक सेवा के मित्र ने मुझे ३ दिन का समय दिया कि मैं पुरानें ज्योतिष के विद्वानों से वार्ता कर के उनको बताउं कि ये काल सर्प दोष क्या है ? क्या यह कोई भयावह योग है .क्योकि बाजार की किताबों में इसका तो बहुत भयावह वर्णन किया गया है(उनको किसी ने उनके परिवार के बारे में इस योग से जुडी भविष्यवाणी करके भयभीत कर दिया था ) ..मैंने उनको अपने अल्प ज्ञान से यह बताया कि ज्योतिष में वेली ,वसी ,उभयाचरी ,अनफा ,सुनफा ,दूर्धरा ,केमद्रुम ,विषयोग,चांडाल ,ग्रहण ,जैसे अनेक योग हैं ,उन्ही में से एक योग काल सर्प भी है .इसके लिए बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है |
लेकिन चलो अच्छा हुआ, भला इसी बहाने थोड़ा घूमा -फिरा गया नहीं तो ब्लॉग पर आने के बाद तो मेरा सामाजिक जीवन अवसान पर था | सुबह से शाम यूनिवर्सिटी और फिर इन्टरनेट | बाकी संसार में क्या हो रहा है, पता ही नहीं |
मुझे विद्वानों द्वारा बताया गया कि कुण्डली में राहु -केतु के बीच में जब सारे ग्रह स्थित हों तो काल सर्प योग बनता है और यदि एकाध ग्रह इनके बाहर हो तो भी आंशिक काल सर्प योग होता है | प्राचीन ग्रंथो में राहु को काल एवं केतु को सर्प माना गया है | ज्योतिषियों का मानना है की राहु और केतु के प्रभाव में रहने वाले लोग साँप से बहुत डरते भीं हैं यहाँ तक कि सपने तक में उनको सांप दिखाई पड़ते हैं | प्रमुख रूप से १२ तरह के कालसर्प योग प्रमुख माने गए हैं .जिसमे हैं -अनंत ,कुलिक, वासुकी,शंखपाल ,पदम,महापद्म ,तक्छक,कर्कोटक ,शंखनाद ,पातक,विषाक्त और शेषनाग | ज्योतिषियों के अनुसार जन्म कुण्डली में इस योग वाले ब्यक्ति सदैव ब्यथित रहतें हैं | जीवन में इन्हे कभी भी मनवांछित सफलता नहीं मिलती ,हमेशा उतार -चढाव से भरा जीवन रहता है | समस्याएं तब और भी बढ़ जातीं हैं जब जन्म कुण्डली में राहु की महादशा या अन्तर्दशा चल रही हो | हालाँकि इसमे भी आशा जनक पहलू यह भी है कि यदि आप की जन्म कुण्डली में पंचमहापुरुष ,मालब्या , रूचक , शशक ,भद्र ,बुधादित्य और लक्ष्मी जैसे शुभ फल देने वाले योग हों तो कालसर्प योग भंग हो जाता है | खैर ? यह सब समझने के बाद मैंने अपने मित्र को फ़ोन कर दी हुई समय सीमा के अन्दर ही बता दिया कि जिस किसी ने आप के मन में यह नया भय पैदा किया है उससे डरने की कोई जरूरत नहीं है | आपको इस योग के नकारात्मक पक्छ को ही बताया गया है जिसने आप को डरा दिया है | उन्होंने कहा कि जब से मेरे मन में यह शंका दी गयी तब से मुझे लूडो वाला साँप और सीढी का खेल दिखाई पड़ता है जिसमे कि ९९ पर फुश्ने के बाद भी १०० पर न पहुच कर सांप फिर 0 पर पहुंचा देता है | मैंने कहा कि आप परेशान न हों , आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि इसी जानकारी के क्रम में मुझे यह भी जानकारी हुई कि देश के ३ पूर्व प्रधानमंत्रियों आदरणीय पंडित जवाहरलाल नेहरू ,आदरणीय मोरार जी देसाई, आदरणीय चंद्रशेखर जी की जन्म पत्रियों में भी यह योग था और यही नहीं श्री राम कथाकार संत श्रद्धेय मुरारी बापू ,स्वर सम्राज्ञी लता जी समेत आचार्य रजनीश जी के भी जन्म कुण्डली में यह योग है लेकिन इसके बावजूद भी पुरी दुनिया ने इन सभी को जाना-पहचाना और ये सभी महारथी हैं ,इनकी यश कीर्ति के बारे में बताने की कोई जरूरत नहीं है | इसलिए इस योग से परेशान होने की जरूरत नहीं है बल्कि ऐसे महान हस्तियों से प्रेरणा लेने की जरूरत है किस हौसले के साथ ये सभी आदरणीय आगे बढे और अपने लछय को पूरी प्रतिष्ठा के साथ प्राप्त किए | खैर , चाहे जो भी हो लेकिन ये ३ दिन बहुत मजेदार रहे कई पुराने लोंगों से इस विषय पर बातें हुई -मुलाकात हुई .मैंने सोचा कि आप सभी ब्लॉग के मित्रों से भी यह प्रकरण क्यों न बांटा जाय.कुछ राय -सलाह -मशविरा और जिस किसी मित्र को इस बारे में और सटीक तथा सकारात्मक जानकारी होगी तो वह मेरे साथ बांटेगा ही........


सोमवार, 17 नवंबर 2008

ठेलमठेल

जी हाँ हमारी रेलगाडियों में यही हाल है .दो दशक पूर्व लिखी गई आदरणीय प्रदीप चौबे जी की हास्य कविता रेलमपेल तो आप को याद ही होगी कि किस तरह से वीरता के साथ रेल यात्रा की जा सकती है .कुछ ऐसा ही वाकया मेरे साथ भी पिछले पखवारे घटित हुआ .लगातार कई एक लम्बी ट्रेन यात्राओं ने मुझे इतना झेलाया कि मुंह से बरबस निकल पडा कि भई वाह ठेलमठेल.
इस ठेली -ठेला में आप अकेले नहीं है आप के साथ ही शामिल होंगे -मच्छर ,चूहे और काक्रोच .स्लीपर की बात छोडिये एसी वन ,टू तथा थ्री सभी में (शताब्दी और राजधानी को छोड़ कर) देश की लम्बी दौड़ की प्रमुख ट्रेनों में दिन हो या रात , आप पर मच्छरों , चूहों और काकरोचों का हमला हो सकता है ?यदि आप का पूर्वानुमान सही नहीं है तो ये सब आपको लम्बी यात्रा न करने की कसम दिलवा देंगे .चूहे महाशय आपके लगेज बैग की खुली जिप के जरिये आपके सामानों का आयात -निर्यात करेंगे ,काक्रोच आपके शरीर पर लाल-लाल चकत्ते देंगे जिसे खुजलाने में ही आप की यात्रा बीतेगी और मच्छर आप को डेंगू जैसी भयानक बीमारी की हर पल याद दिलाते रहेंगे जिससे आप का बी पी अपने आप लो हाई होता रहेगा . और यात्राओं के बाद आप निश्चित बीमार होंगे .इधर कुछ लम्बी यात्राओं में मैंने इसे स्वयं देखा और नजदीक से जाना।डिब्बे में हो रहे इन उपद्रवों के बारे में चलते -चलते आपको एक वाकया बताते चलें, मेरे सामने वाले सज्जन सुबह से ही काफी परेशान थे -मैंने कहा बंधु क्या हुआ है,उन्होंने कहा कि मेरे जूते का एक मोजा गायब है ,मै थोड़ा घबराया कि कही इस अमूल्य चीज को गायब होने का ताज मुझे न पहना दिया जाय लेकिन अगले पल उन्होंने कहा कि कोई सफाई वाला रात को तो नही आया था, मैंने राहत की साँस ली ,मैंने कहा नहीं ,क्यों ?उन्होंने कहा तब निश्चित रूप से किसी और ने मेरा मोजा ले लिया.मैंने कहा भइये ,अब सफाई वाले या फिर किसी और के सामाजिक स्तर पर थोड़ा ध्यान दीजिये कि इस हाई-टेक युग में कोई एक मोजे के लिए भारतीय दंड संहिता का अपमान क्यो करेगा ?खैर उसी शाम चूहे साहब के प्रगट होते ही इस राज का पर्दाफाश हो गया . मैंने कोच सहायक को बुलाया ,सारी वाक्यात को बताया .उसने कहा कि इन सब से आप सब स्वयं निपटिये ,इनसे पूरा रेल विभाग भी नहीं निपट पा रहा है .मैंने कहा और इन मच्छरों , काकरोचों के बारे में क्या ख्याल है ,उसने कहा कि महीने में दो तीन बार छिडकाव तो होतें है ,मैंने कहा भाई रोज क्यों नहीं -उसने कहा आप लोग बड़े साहब लोंगों से बात कीजिये .मै इसमे आपकी और मदत नही कर सकता .
सवाल यह है की क्या रेलवे अपने यात्रियों के सुख सुविधाओं का ध्यान दे पा रहा है ?बड़ी बड़ी बाते रेल मंत्री जी की तरफ़ से होंती हैं ,आंकडे बताते है की रेलवे फायदे में है तो क्या यात्रियों के हिस्से में कुछ न आएगा ?यात्रा में फझीहत ,भोजन की गिरावट ,क्या यही रेल यात्रिओं की नियति है ? तत्काल के नाम पर जो धन बटोरा जा रहा है उसके बाद भी कोच में और तंग हाली है ।पैर फैलाने को कौन कहे पैर और सिकुड़ रहा है .मैंने १९८५ में आदरणीय प्रदीप चौबे जी की हास्य कविता रेलमपेल
पढी थी ,लगता है देश मे इतनी प्रगति के बाद भी रेल यात्रायें नही बदलीं .जो हाल पहले जनरल बोगी का था आज वह स्लीपर तथा ए सी २- ३ का हो गया है. बढ़ती आबादी और घटते संसाधनों ने इस महान देश को भगवान भरोसे छोड़ दिया है ब्यवस्था सुधार के नाम लाख प्रवचन होता रहे ,बुद्धिजीवी लोग कितना ही प्रलाप क्यों न करे कुछ भी नही सुधरने वाला .केवल शब्दों का माया जाल और आंकडे बाजी ,यही यहाँ की नियति है . जैसे इस देश में गरीबी सुरसा के मुहं की तरह बढ़ती जा रही है और गरीबी हटाने के नाम पर गरीबों को ही मौके से हटा दिया जाता है .अब तो अब्यव्स्थाओं बात करना भी बेमानी है . मुझे प्रदीप चौबे जी की कविता आज भी पूरी तरह याद है आप को भी कुछ मजेदार लाइनों का स्मरण दिला दें,रचना १९८५ की, लेकिन हाल आज भी वही .-
भारतीय रेल की जनरल बोगी
पता नहीं
आपने भोगी
या नहीं भोगी
एक बार हमें करनी पडी यात्रा
स्टेशन पर देख कर
सवारियों की मात्रा
हमारे ,पसीने छूटने लगे ,
हम झोला उठा कर
घर की तरफ़ फूटने लगे
तभी एक कुली आया
मुस्करा कर बोला
अन्दर जाओगे
मैंने कहा पहुचाओगे ?
वो बोला
बड़े -बड़े पार्सल पहुचाये हैं
आपको भी पहुँचा दूँगा
मगर रूपये पूरे पचास लूँगा
हमने कहा पचास रूपैया ?
वो बोला हाँ भइया .
तभी गाडी ने सीटी दे दी
हम झोला उठा कर धाये
बड़ी मुश्किल से
डिब्बे के अन्दर घुस पाए
डिब्बे का दृश्य
और घमासान था
पूरा डिब्बा
अपने आप में हिन्दोस्तान था
लोग लेटे थे ,बैठे थे ,खड़े थे
जिनको कहीं जगह नही मिली
वे बर्थ के नीचे पड़े थे.
एक सज्जन
फर्श पर बैठे थे ,ऑंखें मूंदे
उनके सर पर
अचानक गिरीं पानी की बूंदे
वे सर उठा कर चिल्लाये ,कौन है -कौन है ?
बोलता क्यों नही
पानी गिरा कर मौन है
दीखता नहीं
नीचे तुम्हारा बाप बैठा है ?
ऊपर से आवाज आयी
छमा करना भाई ,
पानी नहीं है
हमारा छः महीने का
बच्चा लेटा है ,
कृपया माफ़ कर दीजिये
और आप अपना सर नीचे कर लीजिये
वरना ,बच्चे का क्या भरोसा ?
तभी डिब्बे में जोर का हल्ला हुआ
एक सज्जन चिल्लाये -
पकडो -पकडो जाने न पाए
हमने पुछा क्या हुआ -क्या हुआ
सज्जन रो कर बोले
हाय -हाय ,मेरा बटुआ
किसी ने भीड़ में मार दिया
पूरे तीन सौ से उतार दिया
टिकट भी उसी में था .....?
एक पड़ोसी बोला -
रहने दो -रहने दो
भूमिका मत बनाओ
टिकट न लिया हो तो हाँथ मिलाओ
हमने भी नहीं नहीं लिया है
आप इस कदर चिल्लायेंगे
तो आप के साथ
हम नहीं पकड लिए जायेंगे?
एक तो डब्लू .टी जा रहे हो
और सारी दुनिया को चोट्टा बता रहे हो?
अचानक गाडी
बड़े जोर से हिली
कोई खुशी के मारे चिल्लाया -
अरे चली ,चली
दूसरा बोला -जय बजरंगबली
तीसरा बोला -या अली
हमने कहा -
काहे के अली और काहे के बली ?
गाड़ी तो बगल वाली जा रही है
और तुमको
अपनी चलती नजर आ रही है ?
प्यारे
सब नजर का धोखा है
दरअसल यह रेलगाडी नहीं
हमारी जिंदगी है
और जिंदगी में धोखे के अलावां
और क्या होता है .

शनिवार, 1 नवंबर 2008

दो रचनाएं : एक पसंद की ,एक मेरी

१. कागज तेरा रंग फक क्यों हो गया ?
'शायर तेरे तेवर देखकर
'कागज ,तेरे गाल पर यह धब्बे कैसे हैं ?
'शायर मैं तेरे आंसूं पी न सका
'कागज !मैं तुमसे सच कहूँ..............
शायर मेरा दिल फट जायेगा '
फहमीदा रियाज़ , पाकिस्तान ८१(क्या तुम पूरा चाँद न देखोगे /प्रारम्भ )जनरल जियाउल हक के जमाने में निष्काषित भारत में रही पाकिस्तानी महिला कवयित्री .
२. तूँ न आये कोई गिला नही
मगर अपना हसीन ख्याल दे
मेरी शाम धुंध में कट गयी
मेरी रात को तो संवार दे
मेरे गम जो हैं ,वो रहेंगे भी
मेरी उम्र कम हो दुआ करो
अभी हूँ मै कल कभी ना रहूँ
मुझे लमहे भर का करार दे
नही शिकवा है इस बात का
तेरा साथ मुझको न मिल सका
मेरा ख्याल तेरे जेहन में है
बस इतना मुझको पयाम दे
(इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हॉस्टल में अध्ययन के दौरान १९८९ में मेरे द्वारा लिखी गयी रचना ,जो कि समकालीन कई पत्रिकाओं में प्रकाशित)
बस अब इसी के साथ ही अब ब्लॉग के सभी मित्रों और शुभचिंतको से विदाई ,एक पखवारे के लिए, जरूरी काम से आज ही दूर जाना पड़ रहा है वहाँ इन्टरनेट अभी नही पहुंचा है तो फिर मिलते हैं एक पखवारे बाद ,तब तक के लिए धन्यवाद और नमस्कार

चिट्ठा चर्चा: लौह पुरुष, लौह महिला से रीढ़हीन नेताओं तक

चिट्ठा चर्चा: लौह पुरुष, लौह महिला से रीढ़हीन नेताओं तक
आपके ने मुझ जैसे ब्लॉग के एक नवागंतुक की चर्चा की ,इसके लिए आप को धन्यवाद .

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

तो कहाँ जायेंगे ये खरगोश , साँप और बिल्लियाँ ?

कल हमारे विश्वविद्यालय के एक सहयोगी शकुन-अपशकुन को लेकर मुझसे उलझ पडे . कारण यह था कि वे सुबह से ही परेशान थे ,किसी क्लास या ब्याख्यान में उनका मन नही लग रहा था .बार -बार कुरेदे जाने पर उन्होंने कहा कि आज रास्ते में आते समय बिल्ली ने उनका रास्ता काट दिया - देखिये शाम तक क्या होता है .मैंने कहा कि आप भी अजीब हैं ,दुनिया कहाँ से कहाँ पंहुच गयी, एक आप हैं कि अपनी केचुल छोड़ना ही नही चाहते , इस वैज्ञानिक युग में आप भी ......| फिर वे मुझे बताने लगे कि हम लोगों की सांस्कृतिक मान्यता के अनुसार यात्रा में खरगोश ,साँप और बिल्ली का पड़ना अशुभ माना जाता है .एक तो आज दिशा- शूल में एक रिश्तेदार के घर से सीधे विश्वविद्यालय आया और फिर रास्ते में बिल्ली ने रास्ता भी काट दिया . फिर उन्होंने दिशा -शूल को और परिभाषित किया -
सोम ,शनिश्चर ,पूरब न चालू ,
मंगल ,बुध उत्तर दिशि कालू ,
बेफय के दक्खिन जो जाय,
चार लात रस्ते में पाय .
मैंने कहा ये सब बकवास है ,आपकी कोई भी बात वैज्ञानिक मान्यताओ पर खरी नही उतरती ,लेकिन चलिए कुछ देर के लिए यदि हम आप की बात मान भी ले तो अब एक बात हमारी भी सुनिए - हमारे पंचांगों में राहु काल,भद्रा,मृत्युबान सहित कुल ३० मुहूर्त हैं ,आप उनमे से कितनो को आप जानते हैं और कितनों का पालन करते हैं ,इसके साथ ही दिन भर चौघडिया का मुहूर्त रहता है जो समय -समय पर बदलता रहता है .इसमे कई घातक योग होते हैं ,यदि आप यह सब मानते हैं तो आप को सब मानना चाहिए तथा इस हिसाब से महीने के १५ दिन आपको घर के अन्दर ही बंद रहना चाहिए .नौकरी को छोडिये क्या जरूरत है, जान है तो जहान है . मैंने कहा भइये जब से मानव ने जल,थल ,नभ पर कब्जा जमा लिया है तो ये जंगल और बागों में रहने वाले जीव कहाँ जायेंगे . इनका तो वैसे भी गुजारा मानवों के साथ ही प्रारम्भ से रहा है .खैर बहस अधूरी ही रही .उनको कही से तुरंत बुलावा आ गया .लेकिन एक बड़ा सवाल छोड़ गए कि यदि हम मनुष्य, आस -पास रहने वाले इन जीवों से इतना डरेंगें,नफरत करेंगें या फिर अपशकुन मानेंगे तो फिर कहाँ जायेंगे ये खरगोश , साँप और बिल्लियाँ ?

गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

नमन इंदिरा (३१ अक्टूबर ,शहादत दिवस पर विशेष )


स्व.श्रीमती इंदिरा गांधी की आज के दिन ही शहादत हुई थी.विरोध एवं समर्थन के कई एक मुद्दे हो सकते हैं परन्तु मै सदैव सकारात्मक पथ का अनुगामी रहा हूँ ,इस कारण से और वैसे भी स्व.श्रीमती इंदिरा गांधी एक ऐसी महान नेता थीं ,जिनका समकालीन अथवा प्रायः समकालीन कोई अन्य उदाहरन दिखाई नही देता .
स्व.श्रीमती गांधी का जन्म और लालन पालन उस दौर में हुआ था ,जब देश में स्वतन्र्ता आन्दोलन अपने पूरे उफान पर था ,वह भी एक ऐसा परिवार जिसके जीवन का प्रमुख उद्देश्य ही देश की आजादी थी. .शायद इसी लिए वह वज्र की बुनियाद ही थी कि हर मुसीबत तथा जीवन के प्रत्येक कठिन दौर में इंदिरा जी और मजबूत होकर उभरीं .बचपन से ही जो हौसला उन्हें विरासत में उन्हें मिला वह महाप्रयाण तक उनके साथ गया ,इंदिरा जी ने जो भी निर्णय जीवन में लिया उसे पूरी दृढ़ता के साथ निभाया भी .दबाव की राजनीति उन्हें कभी रास न आयी .उन्होंने देश को कई अग्नि परिक्छाओ के कठिन दौर से उबारा था . जैसा कि आप में से कई एक लोग जानते है कि उन्होंने नए इतिहास के साथ ही एक नए भूगोल को भी जन्म दिया था .
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य स्व .मोहन अवस्थी जी की इन पंक्तियों को मै आज स्व.श्रीमती गांधी जी के प्रति श्रद्धासुमन के लिए उपयुक्त पा रहा हूँ ,जो कि कवि ने कभी स्वतन्र्ता आन्दोलन में शहीदों के प्रति लिखा था ,जिसमे मजबूत संकल्प को नमन किया गया है ---
थे गरून् निर्बाध गति ,पूछो न उनके हौसले .
बिजलियाँ चुनकर ,बनाये थे उन्होंने घोसले .
देश के आगे ,उन्हें इस देह की परवा न थी .
रोग था ऐसा कहीं ,जिसकी कि प्राप्त दवा न थी .
फूल माला कर दिए ,जो दहकते अंगार थे .
गीत उनके एक थे ,वीभत्स के श्रृंगार के .
जो पहनते बिच्छुओं को,मान मोती की लड़ी.
सांप थे उनके लिए ,केवल टहलने की छड़ी.

लैप टॉप वाले ज्योतिषियों से दुखी हमारे गुरू जी .

आज कल इलेक्ट्रानिक मीडिया ,सामाजिक सरोकार को लेकर खूब सक्रिय हो गया है .एक ओर जहाँ इसी देश में चाँद छूने की जल्दी है वहीं हमारे मीडिया वाले मित्र नाग-नागिन ,भूत -प्रेत ,ग्रहपूजा(जो कि रोज किसी न किसी ग्रह का आगमन होता ही रहता है ) ,डाक बंगलो का रहस्य या फिर सूर्य या चंद्र ग्रहण ने आप के स्वास्थ ,पुत्र (पुत्री नही ),धन एवं ऐश्वर्य को कितना नुकसान पहुचाया है या फिर उसका क्या इलाज है . आदि आदि -इत्यादि दिन भर बताते रहते है . ये जब से लैप टॉप वाले ज्योतिषी आ गए है ,तबसे चैनल वाले मेरे मित्र भीबेहद सक्रिय हो गए है .मेरे गावं के पास ही एक ज्योतिष के प्रकांड विद्वान है .बयोवृध हैं एवं एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग में आचार्य भी रह चुके है .वे टेलीविजन के लैप टॉप वाले ज्योतिष भाइयो की रोज -रोज की भविष्यवानियों से काफी दुखी रहते है .उन्हें सबसे ज्यादा मलाल तो तब होता है जब उनके घर वाले यह कहते है की आप भी जल्द लैप-टॉप क्यो नही ले लेते .गुरु जी प्राचीन गुरुकुल परम्परा के ज्योतिषी है .वे विद्या दान को सबसे बड़ा दान समझते है.चाहे लाख रूपये का आफर दे दीजिये ,भविष्य वाणी करेंगे वही जो सही हो.वे चेहरा देख कर केवल फायदे वाली बात ही नही बताते बल्कि यह भी बताते है कि कोई चिंता की बात नही है ,आप को दवाई की जरूरत है ज्योतिषी की नही .अब उनके घर वाले उन्हें चकाचौंध वाली दुनिया में ले जाना चाहते , वह भी लैप -टॉप के साथ. उन्होंने मुझे अभी -अभी राय -मशविरा के लिए बुलाया था .मैंने कल तक के लिए समय लिया है .आप सभी मित्रो से मेरा निवेदन है की आप सब मुझे बताये कि मै उनको क्या उत्तर दूँ ? कि वे लैप -टॉप लेकर ज्योतिष की इस चकाचौंध भरी दुनिया में उतर जायें ?

बुधवार, 29 अक्तूबर 2008

आज अखबार नहीं आया है !

आज अखबार नही आए हैं बड़ा अनकुस लग रहा है .दरअसल अखबार हमारी दिनचर्या के अभिन्न अंग बन गए हैं .बिना उनके दिन कितना सूना सूना सा हो जाता है .दीवाली ही एकमात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें अखबार के कार्यालय भी खुले रहते है क्योंकि यह एक वाणिज्यिक कारोबार है और लक्ष्मी पूजक भला इस व्यवसाय को दिवाली की रात क्यों नहीं जगाना चाहेंगे -फलतः एक दिन बाद समाचार पत्रों के कार्यालय बंद रहते हैं -यानी कल अखबार छपे नहीं और आज बटे नहीं लिहाजा आज के सुबह की शुरुआत बड़ी बेमजा सी है .इन्टरनेट पर भी देशी समाचारों का टोटा है ।
हमलोग समाचारों के आदी हो चुके हैं -हर क्षण किसी न किसी स्कूप की बाट जोहते रहते हैं . वे लोग काफी राहत से हैं जिन्हें यह लत नहीं है -सबसे भले वे मूढ़ जिन्हें न व्यापहि जगत गति .आज वे मजे से हैं -उनके जीवन में आज कुछ भी अनचाहा सा नही है .उनकी दिनचर्या कोई नयी उदासी नही झेल रही है .शायद यह ब्लॉग जगत आज कुछ मुझे अखबार न होने की तसल्ली सा दे रहा है .यह कुछ समाचार पढने की प्रात- उद्विग्नता का शमन कर रहा है ,पर शायद यह एक नई लत लग रही है ,मगर यह भी ना उदास करने लगे इस संभावना से आशंकित भी हूँ -क्या हमें प्रौद्योगिकी पर इतना निर्भर होना चाहिए ?

कैसी रही साहित्यकारों की दिवाली !

http://manjulmanoj.blogspot.com/

आज ही अभी मेरी एक बुजुर्ग लेकिन सक्रिय साहित्यकार से दिवाली की शुभ कामना को लेकर वार्ता हुई .उन्होंने कहा कि मै कोई ब्यवसायी तो हू नही कि यह गुणा भाग कर सकू कि मेरी दिवाली पर क्या आय हुई .हाँ इतना जरुर है की एक त्यौहार के रूप में आनंद लिया गया.उन्होंने लगे हाथ अपनी पीड़ा भी बता दी की हम साहित्यकारों को कौन पूछ ही रहा है .उन्होंने मुझे बनारस के महाकवि स्वर्गीय चच्चा की कविता का भी स्मरण दिलाया जो कि आप सब के अवलोकनार्थ लिख दे रहा हूँ -
वैद्य
,हकीम , मुनीम ,महाजन ,साधु ,पुरोहित, पंडित पोंन्गा
लेखक लाख मरे बिनु अन्न चचा कविता करि का सुख भोगा .
पाप को पुण्य भलो की बुरो ,सुरलोक की रौरव कौन जमोगा
देश बरे कि बुताये पिया हरसाए हिया तुम होहु दरोगा !!
यह रचना आजादी के पहले की है .इतने सालो बाद भी हालात वहीं है.कैसी दिवाली और किसकी दिवाली .
आपकी प्रतिक्रिया के इन्तजार में सादर,

मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008

ब्लॉग का नामकरण !

मा पलायनम क्यों ?जीवन की विभीषिकाओं से जूझने का संकल्प इसके पीछे तो है ही मगर मेरे लिए आकर्षण का शब्द है मा -यानी संस्कृत साहित्य का एक आदि शब्द जो सहसा नकारात्मकता का बोध तो देता है पर इस शब्द के महात्म्य में गहरे जाने पर इसमे छिपी कारुणिकता और जिजीविषा का भी साक्षात्कार होता है ।
मा निषाद प्रतिष्टाम त्वमगमः शाश्वती समा
यत्क्रौंच मिथुनादेकं काम मोहितं
अनुष्टुप छंद का पहला ही शब्द मा है जो प्राणिमात्र की रक्षा के लिए उदबोधित हुआ और जिसमें आदि कवि की करुणा भी आप्लावित है .यह शब्द मानव जीजिविषा को भी इस अर्थ में प्रेरित करता है कि किन्ही भी विपरीत परिस्थितियों से हार मान कर हम अपने कर्तव्य पथ से च्युत नही होंगे -मा पलायनम बोले तो हार मत मानों संघर्षरत रहो .गीता का वह उदघोष तो आपको याद होगा ना -न दैन्यम न पलायनम ! जिसने अर्जुन को रणभूमि में टिके रहने का संबल दिया .
न पलायनम को थोडा परिमार्जित कर मैंने मा पलायनम कर दिया है और आमजन की पीडा के प्रति भी मैंने संवेदित करने की चेष्टा की हैं -भाषाविद और वैयाकरणीय आचार्यो से किंचित संकोच और क्षमा याचना के साथ !
इस चिट्ठे की विषयवस्तु स्वयम इसे परिभाषित करेगी -हिन्दी ब्लागजगत मेरे इस ब्लॉग को भी स्नेह देगी इसी आशा के साथ यह नामकरण पोस्ट ब्लॉगर मित्रों आपको ही समर्पित है -