शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

तो कहाँ जायेंगे ये खरगोश , साँप और बिल्लियाँ ?

कल हमारे विश्वविद्यालय के एक सहयोगी शकुन-अपशकुन को लेकर मुझसे उलझ पडे . कारण यह था कि वे सुबह से ही परेशान थे ,किसी क्लास या ब्याख्यान में उनका मन नही लग रहा था .बार -बार कुरेदे जाने पर उन्होंने कहा कि आज रास्ते में आते समय बिल्ली ने उनका रास्ता काट दिया - देखिये शाम तक क्या होता है .मैंने कहा कि आप भी अजीब हैं ,दुनिया कहाँ से कहाँ पंहुच गयी, एक आप हैं कि अपनी केचुल छोड़ना ही नही चाहते , इस वैज्ञानिक युग में आप भी ......| फिर वे मुझे बताने लगे कि हम लोगों की सांस्कृतिक मान्यता के अनुसार यात्रा में खरगोश ,साँप और बिल्ली का पड़ना अशुभ माना जाता है .एक तो आज दिशा- शूल में एक रिश्तेदार के घर से सीधे विश्वविद्यालय आया और फिर रास्ते में बिल्ली ने रास्ता भी काट दिया . फिर उन्होंने दिशा -शूल को और परिभाषित किया -
सोम ,शनिश्चर ,पूरब न चालू ,
मंगल ,बुध उत्तर दिशि कालू ,
बेफय के दक्खिन जो जाय,
चार लात रस्ते में पाय .
मैंने कहा ये सब बकवास है ,आपकी कोई भी बात वैज्ञानिक मान्यताओ पर खरी नही उतरती ,लेकिन चलिए कुछ देर के लिए यदि हम आप की बात मान भी ले तो अब एक बात हमारी भी सुनिए - हमारे पंचांगों में राहु काल,भद्रा,मृत्युबान सहित कुल ३० मुहूर्त हैं ,आप उनमे से कितनो को आप जानते हैं और कितनों का पालन करते हैं ,इसके साथ ही दिन भर चौघडिया का मुहूर्त रहता है जो समय -समय पर बदलता रहता है .इसमे कई घातक योग होते हैं ,यदि आप यह सब मानते हैं तो आप को सब मानना चाहिए तथा इस हिसाब से महीने के १५ दिन आपको घर के अन्दर ही बंद रहना चाहिए .नौकरी को छोडिये क्या जरूरत है, जान है तो जहान है . मैंने कहा भइये जब से मानव ने जल,थल ,नभ पर कब्जा जमा लिया है तो ये जंगल और बागों में रहने वाले जीव कहाँ जायेंगे . इनका तो वैसे भी गुजारा मानवों के साथ ही प्रारम्भ से रहा है .खैर बहस अधूरी ही रही .उनको कही से तुरंत बुलावा आ गया .लेकिन एक बड़ा सवाल छोड़ गए कि यदि हम मनुष्य, आस -पास रहने वाले इन जीवों से इतना डरेंगें,नफरत करेंगें या फिर अपशकुन मानेंगे तो फिर कहाँ जायेंगे ये खरगोश , साँप और बिल्लियाँ ?

गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

नमन इंदिरा (३१ अक्टूबर ,शहादत दिवस पर विशेष )


स्व.श्रीमती इंदिरा गांधी की आज के दिन ही शहादत हुई थी.विरोध एवं समर्थन के कई एक मुद्दे हो सकते हैं परन्तु मै सदैव सकारात्मक पथ का अनुगामी रहा हूँ ,इस कारण से और वैसे भी स्व.श्रीमती इंदिरा गांधी एक ऐसी महान नेता थीं ,जिनका समकालीन अथवा प्रायः समकालीन कोई अन्य उदाहरन दिखाई नही देता .
स्व.श्रीमती गांधी का जन्म और लालन पालन उस दौर में हुआ था ,जब देश में स्वतन्र्ता आन्दोलन अपने पूरे उफान पर था ,वह भी एक ऐसा परिवार जिसके जीवन का प्रमुख उद्देश्य ही देश की आजादी थी. .शायद इसी लिए वह वज्र की बुनियाद ही थी कि हर मुसीबत तथा जीवन के प्रत्येक कठिन दौर में इंदिरा जी और मजबूत होकर उभरीं .बचपन से ही जो हौसला उन्हें विरासत में उन्हें मिला वह महाप्रयाण तक उनके साथ गया ,इंदिरा जी ने जो भी निर्णय जीवन में लिया उसे पूरी दृढ़ता के साथ निभाया भी .दबाव की राजनीति उन्हें कभी रास न आयी .उन्होंने देश को कई अग्नि परिक्छाओ के कठिन दौर से उबारा था . जैसा कि आप में से कई एक लोग जानते है कि उन्होंने नए इतिहास के साथ ही एक नए भूगोल को भी जन्म दिया था .
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य स्व .मोहन अवस्थी जी की इन पंक्तियों को मै आज स्व.श्रीमती गांधी जी के प्रति श्रद्धासुमन के लिए उपयुक्त पा रहा हूँ ,जो कि कवि ने कभी स्वतन्र्ता आन्दोलन में शहीदों के प्रति लिखा था ,जिसमे मजबूत संकल्प को नमन किया गया है ---
थे गरून् निर्बाध गति ,पूछो न उनके हौसले .
बिजलियाँ चुनकर ,बनाये थे उन्होंने घोसले .
देश के आगे ,उन्हें इस देह की परवा न थी .
रोग था ऐसा कहीं ,जिसकी कि प्राप्त दवा न थी .
फूल माला कर दिए ,जो दहकते अंगार थे .
गीत उनके एक थे ,वीभत्स के श्रृंगार के .
जो पहनते बिच्छुओं को,मान मोती की लड़ी.
सांप थे उनके लिए ,केवल टहलने की छड़ी.

लैप टॉप वाले ज्योतिषियों से दुखी हमारे गुरू जी .

आज कल इलेक्ट्रानिक मीडिया ,सामाजिक सरोकार को लेकर खूब सक्रिय हो गया है .एक ओर जहाँ इसी देश में चाँद छूने की जल्दी है वहीं हमारे मीडिया वाले मित्र नाग-नागिन ,भूत -प्रेत ,ग्रहपूजा(जो कि रोज किसी न किसी ग्रह का आगमन होता ही रहता है ) ,डाक बंगलो का रहस्य या फिर सूर्य या चंद्र ग्रहण ने आप के स्वास्थ ,पुत्र (पुत्री नही ),धन एवं ऐश्वर्य को कितना नुकसान पहुचाया है या फिर उसका क्या इलाज है . आदि आदि -इत्यादि दिन भर बताते रहते है . ये जब से लैप टॉप वाले ज्योतिषी आ गए है ,तबसे चैनल वाले मेरे मित्र भीबेहद सक्रिय हो गए है .मेरे गावं के पास ही एक ज्योतिष के प्रकांड विद्वान है .बयोवृध हैं एवं एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग में आचार्य भी रह चुके है .वे टेलीविजन के लैप टॉप वाले ज्योतिष भाइयो की रोज -रोज की भविष्यवानियों से काफी दुखी रहते है .उन्हें सबसे ज्यादा मलाल तो तब होता है जब उनके घर वाले यह कहते है की आप भी जल्द लैप-टॉप क्यो नही ले लेते .गुरु जी प्राचीन गुरुकुल परम्परा के ज्योतिषी है .वे विद्या दान को सबसे बड़ा दान समझते है.चाहे लाख रूपये का आफर दे दीजिये ,भविष्य वाणी करेंगे वही जो सही हो.वे चेहरा देख कर केवल फायदे वाली बात ही नही बताते बल्कि यह भी बताते है कि कोई चिंता की बात नही है ,आप को दवाई की जरूरत है ज्योतिषी की नही .अब उनके घर वाले उन्हें चकाचौंध वाली दुनिया में ले जाना चाहते , वह भी लैप -टॉप के साथ. उन्होंने मुझे अभी -अभी राय -मशविरा के लिए बुलाया था .मैंने कल तक के लिए समय लिया है .आप सभी मित्रो से मेरा निवेदन है की आप सब मुझे बताये कि मै उनको क्या उत्तर दूँ ? कि वे लैप -टॉप लेकर ज्योतिष की इस चकाचौंध भरी दुनिया में उतर जायें ?

बुधवार, 29 अक्तूबर 2008

आज अखबार नहीं आया है !

आज अखबार नही आए हैं बड़ा अनकुस लग रहा है .दरअसल अखबार हमारी दिनचर्या के अभिन्न अंग बन गए हैं .बिना उनके दिन कितना सूना सूना सा हो जाता है .दीवाली ही एकमात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें अखबार के कार्यालय भी खुले रहते है क्योंकि यह एक वाणिज्यिक कारोबार है और लक्ष्मी पूजक भला इस व्यवसाय को दिवाली की रात क्यों नहीं जगाना चाहेंगे -फलतः एक दिन बाद समाचार पत्रों के कार्यालय बंद रहते हैं -यानी कल अखबार छपे नहीं और आज बटे नहीं लिहाजा आज के सुबह की शुरुआत बड़ी बेमजा सी है .इन्टरनेट पर भी देशी समाचारों का टोटा है ।
हमलोग समाचारों के आदी हो चुके हैं -हर क्षण किसी न किसी स्कूप की बाट जोहते रहते हैं . वे लोग काफी राहत से हैं जिन्हें यह लत नहीं है -सबसे भले वे मूढ़ जिन्हें न व्यापहि जगत गति .आज वे मजे से हैं -उनके जीवन में आज कुछ भी अनचाहा सा नही है .उनकी दिनचर्या कोई नयी उदासी नही झेल रही है .शायद यह ब्लॉग जगत आज कुछ मुझे अखबार न होने की तसल्ली सा दे रहा है .यह कुछ समाचार पढने की प्रात- उद्विग्नता का शमन कर रहा है ,पर शायद यह एक नई लत लग रही है ,मगर यह भी ना उदास करने लगे इस संभावना से आशंकित भी हूँ -क्या हमें प्रौद्योगिकी पर इतना निर्भर होना चाहिए ?

कैसी रही साहित्यकारों की दिवाली !

http://manjulmanoj.blogspot.com/

आज ही अभी मेरी एक बुजुर्ग लेकिन सक्रिय साहित्यकार से दिवाली की शुभ कामना को लेकर वार्ता हुई .उन्होंने कहा कि मै कोई ब्यवसायी तो हू नही कि यह गुणा भाग कर सकू कि मेरी दिवाली पर क्या आय हुई .हाँ इतना जरुर है की एक त्यौहार के रूप में आनंद लिया गया.उन्होंने लगे हाथ अपनी पीड़ा भी बता दी की हम साहित्यकारों को कौन पूछ ही रहा है .उन्होंने मुझे बनारस के महाकवि स्वर्गीय चच्चा की कविता का भी स्मरण दिलाया जो कि आप सब के अवलोकनार्थ लिख दे रहा हूँ -
वैद्य
,हकीम , मुनीम ,महाजन ,साधु ,पुरोहित, पंडित पोंन्गा
लेखक लाख मरे बिनु अन्न चचा कविता करि का सुख भोगा .
पाप को पुण्य भलो की बुरो ,सुरलोक की रौरव कौन जमोगा
देश बरे कि बुताये पिया हरसाए हिया तुम होहु दरोगा !!
यह रचना आजादी के पहले की है .इतने सालो बाद भी हालात वहीं है.कैसी दिवाली और किसकी दिवाली .
आपकी प्रतिक्रिया के इन्तजार में सादर,

मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008

ब्लॉग का नामकरण !

मा पलायनम क्यों ?जीवन की विभीषिकाओं से जूझने का संकल्प इसके पीछे तो है ही मगर मेरे लिए आकर्षण का शब्द है मा -यानी संस्कृत साहित्य का एक आदि शब्द जो सहसा नकारात्मकता का बोध तो देता है पर इस शब्द के महात्म्य में गहरे जाने पर इसमे छिपी कारुणिकता और जिजीविषा का भी साक्षात्कार होता है ।
मा निषाद प्रतिष्टाम त्वमगमः शाश्वती समा
यत्क्रौंच मिथुनादेकं काम मोहितं
अनुष्टुप छंद का पहला ही शब्द मा है जो प्राणिमात्र की रक्षा के लिए उदबोधित हुआ और जिसमें आदि कवि की करुणा भी आप्लावित है .यह शब्द मानव जीजिविषा को भी इस अर्थ में प्रेरित करता है कि किन्ही भी विपरीत परिस्थितियों से हार मान कर हम अपने कर्तव्य पथ से च्युत नही होंगे -मा पलायनम बोले तो हार मत मानों संघर्षरत रहो .गीता का वह उदघोष तो आपको याद होगा ना -न दैन्यम न पलायनम ! जिसने अर्जुन को रणभूमि में टिके रहने का संबल दिया .
न पलायनम को थोडा परिमार्जित कर मैंने मा पलायनम कर दिया है और आमजन की पीडा के प्रति भी मैंने संवेदित करने की चेष्टा की हैं -भाषाविद और वैयाकरणीय आचार्यो से किंचित संकोच और क्षमा याचना के साथ !
इस चिट्ठे की विषयवस्तु स्वयम इसे परिभाषित करेगी -हिन्दी ब्लागजगत मेरे इस ब्लॉग को भी स्नेह देगी इसी आशा के साथ यह नामकरण पोस्ट ब्लॉगर मित्रों आपको ही समर्पित है -