बुधवार, 24 मार्च 2010

कुमारी का टोटा ....(एक माइक्रो पोस्ट)

धर्म से ओत-प्रोत हमारे इस महान देश की अजब परम्पराएँ और चलन हैं.साल भर हर मुद्दे पर जिनका निरादरकरो -उसी का एक दिन विधिवत पूजन-अर्चन और नमन. आज का दिन हम लोंगो की तरफ कुमारी कन्याओं कादिन होता है.श्री राम नवमी के दिन सुबह-सबेरे हमारी तरफ ही नहीं, मैं समझता हूँ पूरे हिन्दी भाषी राज्यों मेंकुमारी कन्याओं का विधिवत पूजन-अर्चन के साथ भोजन कराया जाता होगा .इधर साल दर साल मैं महसूस कररहा हूँ कि बालक -बालिका अनुपात स्पष्टतया दृष्टिगोचर भी होने लगा है.कई लोंगो से पूछनें पर पता चला कि कीसंख्या में हर जगह कुमारियाँ नहीं मिल पायीं.घर-घर पूजन -भोजन होना है ,मुहल्ले -बस्तियों में कई घर ऐसेमिल जायेंगे जहाँ कुमारी कन्याएं ही नहीं है ,तो ऐसे में कैसे हो घर-घर पूजन
ऐसा लगता है कि समाज की विकृत सोच- कन्या भ्रूण हत्या और पुत्रवान भव की परम्परा नें अब अपना रंगदिखाना शुरू कर दिया है .इस सोच नें सामाजिक ताने-बाने का कितना नुकसान किया इसका आकलन सहज नहींहै .काश आज के दिन जितना सम्मान पूजन हर घर इन कन्याओं का होता है वह साल के सभी दिनों में कायमरह जाए? यह सदविचार हर-एक के मन में हर दिन बना रह जाय?? आज के दिन शक्ति की अधिष्ठात्री से यही मेरी विनम्र प्रार्थना है........

शनिवार, 20 मार्च 2010

गौरैया आयी है .......


शहरों में,समाचार पत्रों में और ब्लागजगत में भी आज गौरैया चिंतन छाया रहा .घरों में फुदकने वाली गौरैया का आज दिन जो था .दिन-भर विश्वविद्यालय से लेकर शहर तक कि पर्यावरण विदों से मुलाकात हुई,इसी विषय पर बात हुई और अंततः कमोबेश बात इसी बात पर खत्म हुई कि विकास की सतत प्रक्रिया का नकारात्मक पक्ष ही इसके लिए जिम्मेदार है .
लेकिन एक राज की बात बताउं,मुझे अपने पर बड़ा गर्व भी हो रहा था वह इसलिए कि बचपन से अब तक, मेरे घर में एक साथ विभिन जगहों पर एक-दो-तीन नहीं बल्कि कई दर्जन गौरैया रह रहीं हैं.जब से जाननें-समझनें की समझ विकसित हुई तब से अपनी भोजन की थालियों के आस-पास उन्हें मंडराते देखा है. अभी -अभी शाम को मैंने इनकी गिनती की ,अभी भी ये १४ की संख्या में घर में हैं.हम सब के यहाँ परम्परा से, एक लोक मत इस चिड़िया को लेकर है वह यह कि -जिस घर में इनका वास होता है वहाँ बीमारी और दरिद्रता दोनों दूर-दूर तक नहीं आते और जब विपत्ति आनी होती है तो ये अपना बसेरा उस घर से छोड़ देती है .
अब नीचे देखिये मेरे घर में डेरा जमायी हुई इन गौरैया चिड़ियों को , घोसला के साथ , सचित्र झांकी ...................














बुधवार, 17 मार्च 2010

राजा श्री राम चन्द्र जी और उनके पांच हजार सैनिक ....


पिछले दिनों मैं अयोध्या में था और अपने प्रवास की बात कर रहा था .श्री राम जन्मभूमि परिसर में सुरक्षा के लिए लगभग पांच हजार जवान लगे हैं.श्री राम लला के दर्शन के दौरान मैंने अपनें साथ गये एक पत्रकार मित्र से कहा कि वाह ,क्या चाक-चौबंद व्यवस्था है,वाकई यहाँ तो परिंदा भी पर नहीं मार सकता.मेरे पत्रकार मित्र नें कहा कि कि अब राजा केलिए इतने सेवक-सैनिक तो रहेंगे ही.उनके कहने का अंदाज़ ऐसा था कि मुझे हंसी आ गयी .मैंने उनसे कहा कि यह आप क्या कह रहे हैं .उन्होंने कहा मैं सही कह रहा हूँ यहाँ सब के सब श्री राम लला की सेवा में ही तो है,अब राजा हैं तो सेवक होने चाहिए न.बिना सेवक के कैसा राजा।
मुझे कनक भवन में बहुत शांति मिली . इसी भवन में सीता जी निवास करती थी,जो कि रानी कैकेयी द्वारा उन्हें मुंह - दिखाई में दिया गया था.सुरक्षा कारणों के चलते अन्य
कहीं भी फोटोग्राफी की अनुमति नहीं थी,लेकिन कनकभवन में मौका मिला -कुछ चित्र हम ले आये--





सोमवार, 15 मार्च 2010

तमसा तट से............




इधर कई दिनों से मैं फैजाबाद एवं राजा श्री राम चन्द्र जी की नगरी अयोध्या में रहा .यह क्षेत्र तो वैसे हमारे प्रिय श्री अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी का है पर उनके इलाके की खबर मुझे देनी पड़ रही है . व्यस्तता इतनी थी कि ब्लाग जगत से न चाहते हुए भी दूर रहना पड़ा .यहाँ बाकी सब तो पूर्ववत ही लगा लेकिन तमसा नदी का हाल देख मन बहुत दुखी है, वह आज विलुप्त होने के कगार पर है और कोई उसकी सुधि लेने वाला नहीं है..मैं उसी तमसा की बात कर रहा हूँ जिसके तट पर कभी श्री राम चन्द्र जी नें एक रात बनवास प्रारंभ होने पर बिताई थी .इस नदी का उल्लेख गोस्वामी तुलसी दास जी नें श्री राम चरित मानस के अयोध्या काण्ड में दोहा संख्या ८४ में इस तरह दिया है-
बालक वृद्ध बिहाई गृह लगे लोग सब साथ|
तमसा तीर निवासु किय प्रथम दिवस रघुनाथ||
इस नदी की वेगवती धाराओं का उल्लेख श्री वाल्मीकि कृत रामायण के अयोध्याकाण्ड में पैतालिसवें और छियालिसवें सर्ग में भी पढने को मिलता है क़ि किस तरह नदी की तिरछी धारा राघव को बन गमन हेतु बाधा बन रही थी.
इन चित्रों में, इस विलुप्त होती ऐतिहासिक नदी का हाल देखिये.....










इस समय में ब्लाग जगत से दूरी के लिए अफ़सोस है,बस एक दो दिनों में फिर से नियमित हो पाउँगा ...
बाकी अयोध्या से कुछ और.. अगली पोस्ट में.......

सोमवार, 8 मार्च 2010

चैत मास की अमराई में चैता-चहका और चौताल.....


प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने और सुरुचिपूर्ण संगीत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हमारे घर पीढी दर पीढी से प्रतिवर्ष होली के आठवें दिन आयोजित किये जाने वाले लोक-संगीत समारोह "आठो -चैती " में इस चैत मास की अमराइयों में रविवार की देर रात तक लोक संगीत कारों की स्वर लहरियां गूंजती रहीं,लोग आनंदित होते रहे
इस संगीत समारोह में लोक संगीत की विलुप्त हो रही विधाओं -फगुआ,चहका,चैता,बेलवैया,उलारा,चौताल ,कहरवा,झूमर और देवी गीत का उत्क्रिस्ट प्रदर्शन दूर -दूर से आये हुए करीब पचासों कलाकारों द्वारा किया गया

इस विधा में प्रवीण हमारे जनपद के पुराने गवैया प्रज्ञा चक्षु बाबू बजरंगी सिंह और पंडित नागेश्वर चौबे नें अपनी प्रस्तुतियों से श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया
फागुन के दिन चार की, अब हम लोंगों के यहाँ से विदाई हुई है.पूरे पूर्वांचल में फाग गीतों का आयोजन चैत अष्टमी तक होता है फिर ढोल और ढोलकिया दोनों अगले बरस के इन्तजार में मौन हो जाते हैं
बचपन में जब से जानने की समझ विकसित हुई यह आयोजन देखता रहा हूँ,साल दर साल बीतते रहे ,परम्पराएँ अन्य स्थानों पर दम तोडती रहीं,कार्यक्रम समाप्त होते रहे लेकिन इन परम्पराओं को हम सब छोड़ पाए.हमारे यहाँ स्व. परदादा, स्व.दादा , स्व.पिता जी और फिर हम लोंगो तक यह सिलसिला बदस्तूर कायम है. हर वर्ष हमारे घर के सभी सदस्य और परम्परागत रूप से जितने भी परिवार ,गायक इस आयोजन से जुड़े है सब के सब इस निश्चित तिथि को बिना बुलाये ,बिना किसी निमंत्रण- मनुहार के अपनें आप उपस्थित होतें हैं , चाहे कितनी भी व्यस्तता क्यों हो , आयोजन वाले दिन अष्टमी को फिर हमारे घर पर ही, बड़े आम के बगीचे में, दाल-बाटी- चोखा के महाभोज के साथ ,अमराइयों की भीने सुगंध के बीच सभी लोक कलाकार, भारी भीड़ के साथ अपनी स्वर लहरियों से पूरा इलाका गुंजायमान करते है
इस आयोजन की कुछ झलकियाँ आपके लिए भी---
लोक कलाकारों का सम्मान अंगवस्त्रम के द्वारा ॥
फाग-गीत गायन के सम्राट प्रज्ञा चक्षु बाबू बजरंगी सिंह ,गायन मुद्रा में ।

इन्ही के स्वर में सुनिए एक विलुप्त फाग-गीत ...




और अब फाग-गीत अध्याय का समापन, नहीं- नहीं मध्यांतर हुआ ,अगले बरस फिर मिलेंगे फागुन में...
लिख दिया ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आये ..................




सोमवार, 1 मार्च 2010

फाग-५ -फागुन का चरम और चैत का आरम्भ ....

होली के हुडदंग के साथ आज फगुआ भी अपनें चरम पर पहुंच गया .आज से ही चैत मॉस का आरम्भ हो गया।
गांव में फाग गायकों की टोली अभी आठ दिन तक धमाल मचाती रहेगी,जिसे आठो चैता के नाम से जाना जाताहै।
आठो चैता के समापन के साथ ही फागुन के यह दिन चार बीत जायेंगे,फिर से अगले बरस आने के लिए
आज गांव में भी फाग गायन मंडली जगह -जगह जमीं और एक बैठकी सदा की तरह मेरे घर पर भी हुई
जिसमें गाँव के पारम्परिक गवैयों के साथ घर के सभी सदस्य सम्मिलित हुए ,कुछ बानगियाँ आपके लिए भी
पहली प्रस्तुति चैता की है जो कि चैत मॉस आरम्भ होने के स्वागत में गाया गया है .प्रस्तुत चैता एक विरहणी की पीड़ा को मुखर स्वर देता है,आमों में बौर गये हैं ,कोयल बोलनें लगी है ,सखी सहेलियाँ अपनें बच्चों से खेल रहीं हैं,उलाहना यह कि विरहणी का प्रियतम अभी भी उससे दूर है.विरह की यह मार्मिक पीड़ा इस गीत में कैसे भाव -बद्ध हुई है ,आनंद उठाइए----





दूसरी प्रस्तुत उलारा कही जाती है जो कि फाग गीत के अंत में प्रायः गाया जाता है ,इसमें हर्षो उल्लास के माहौल मेंनई नवेली के पाँव में पायल ,कमर की करधन ,नाक में पहनने वाली झुलनी आदि आभूषणों को परिवार मेंकौन-कौन नई नवेली के लिए बनवाता है ,इसका उल्लेख किया गया है-----







और अंत में संगीतकारों
,सुनवैयों और गवैयों के चतुर्दिक शुभ कामना से ओतप्रोत गीत ''सदा '' का भी आस्वादनकीजिये ------