बुधवार, 29 जुलाई 2009

आत्मा घर बदल रही होगी.

दीप की लौ मचल रही होगी
रूह करवट बदल रही होगी |
रात होगी तुम्हारी आंखों में
नींद बाहर टहल रही होगी ||

चैन सन्यास ले लिए होगा
पीर टाले न टल रही होगी |
तुम चिता देख कर न घबराओ
आत्मा घर बदल रही होगी||

जगमगाती है उनकी आँखे तो
रोशनी दिल में पल रही होगी |
यह जो खुशबू है ,फूल के तन से
जान उसकी निकल रही होगी ||

एक आवारा गूँज तो इनके
उनके सीने में ढल रही होगी
जिसको दो गज जमीन भी न मिली
वह जफर की गजल रही होगी ||

(जौनपुर के महाकवि स्व .पंडित रूप नारायण
त्रिपाठी जी की बहुप्रशंसित रचना )

सोमवार, 20 जुलाई 2009

हविष ही उपजायेंगे ||

बन हविष जल भी गये तो धूम हम बन जायेंगे
धूम से फ़िर मेघ बनकर,हविष ही उपजायेंगे ||

गोल है दुनिया की माफिक परिधि जीवन मृत्यु की
हैं चले जिस बिन्दु से हम ,फ़िर वहीं जायेंगे ||

"शून्य "ही कह लीजिये ,हमको कोई शिकवा नहीं
"अंक "में जुड़ते गये तो "लाख " हम बन जायेंगे||

फूल समझा ,चुन लिया -है आपसे गलती हुई
गंध वासंती हैं हम हर साँस में घुल जायेंगे ||

खूब हन कर मारिये ,है चोट से रिश्ता घना
ओखली के धान है ,उजले ही होते जायेंगे||

परवरिश अपनी सम्भाले आप "अपनों " के लिए
घास हैं अभिराज अपना वंश ख़ुद बो जायेंगे ||
रचना -अभिराज डॉ राजेंद्र मिश्र.

सोमवार, 13 जुलाई 2009

करनी हमारी -स्तुतिगान इन्द्र देव का .

(चित्र -साभार-गूगल )
आज -कल इन्द्रदेव का स्तुतिगान जगह -जगह पर हो रहा है ,क्या हिन्दू-मुस्लिम ,सिख -इसाई सब के सब इस मुद्दे पर एक हैं .इस मुद्दे पर तो भाषाई विवाद है और ही क्षेत्रीय .लेकिन असली बात मुझे समझ में यह नहीं रही है वह यह कि आज कल विद्वत समाज बारिश होने के कारण जो बता रहा है वह है पर्यावरण या ग्लोबल वार्मिंग, लेकिन सवाल यह है कि उसके असली करता -धर्ता तो हम लोग हैं फ़िर स्तुति गान इन्द्र देव का क्यों ?इसके लिए तो फूल -माला -लड्डू प्रसाद से हमारा अभिषेक हो चाहिए ,फ़िर यह सब इन्द्र देव का क्यों
एक लोकोक्ति हम लोंगों की तरफ है जिसे मैं बचपन से सुनता रहा हूँ कि -सबसे भले वे मूढ़ ,जिन्हें ब्यापहि जगति गति.अर्थात संसार में क्या हो रहा है जिसे उसका पता हो वह सबसे सुखी है. पर्यावरण की ऐसी तैसी हमने की ,कंक्रीट का जाल हमने बिछाया,असंतुलन पैदा करने वाली गैसों को हमने पर्यावरण में पहुचाया और लड्डू चढे इन्द्र पर .यह कैसा इन्साफ है.
घर -घर ,परिवार ,बाज़ार ,शहर- हर तरफ बारिश होने से त्राहिमाम की स्थिति है .बारिश के लिए कहीं महिलाएं
अपने कंधे पर हल लेकर चला रही है ,कहीं कुमारी कन्याएं बांस को पकड़ कर करुण क्रंदन कर रहीं है ,पूजा -पाठ और यज्ञ हो रहें है .तंत्र-मंत्र -टोटके हो रहें है ,गाँव में काल-कलौटी-उज्जर धोती पर छोटे-छोटे बच्चे जमीन में लोट रहें हैं,हम लोंगो की तरफ सोमवार को शिव -मन्दिरों पर शिवलिंग के अरघे का पानी बंद कर भगवान शिव को डुबो दिया जा रहा है कि जब साँस फूलेगी तब भोले भंडारी हम लोंगो की पीड़ा को समझ पानी बरसाएंगे.यह दुराग्रह,यह हठ है हम मानवों का . लेकिन यह कोई तो समझ पा रहा है और कोई ज्ञानी समझा पा रहा है कि हे भइया यह तो समस्या मानव जनित है भला इन्द्र या अन्य देव इसमें क्या करेंगे .यह तो वही हाल हुआ कि पूरे साल भर आप मस्ती करें -कभी पढे और सवा किलो के लडू की मनौती में ,लालच में ,बजरंग बली आपको पास करने के लिए सक्रिय हो जायें और आप सोते रहें-सोते रहें.
इस समस्या के लिए सबको जगाना होगा-समझाना होगा -यह हम सब के लिए चुनौती है ,पर्यावरण को बनाये रखने की चुनौती ,यह मानव जनित
समस्या है -हम मानव ही इसे सुलझाएंगे तो हे महाबाहु -हे धरती के देवताओं ,जागो और जगाओं लोंगों को ताकि हमारी आने वाली पीढी इसके लिए इन्द्र देव की आरती उतार कर फ़िर अपनें कर्तव्य की इतिश्री कर ले. फ़िर कहीं आने वाले कल में अचानक अँधेरा नहो जाए ,कहीं देर हो जाए --------- उत्तिष्ठ जागृत .........."
नहीं तो
---------
संभलोगे तो मिट जाओगे हिंदोस्ता वालों
,
तुम्हारी दास्ताँ भी होगी इन दास्तानों में.

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

एक अनुरोध .....


यह सितारों भरी रात फ़िर हो हो
आज है जो वही बात फ़िर हो हो
एक पल और ठहरो तुम्हे देख लूँ
कौन जाने मुलाकात फ़िर हो हो

हो गया जो अकस्मात फ़िर हो हो
हाथ में फूल सा हाथ फ़िर हो हो
तुम रुको इन क्षणों की खुशी चूम लूँ
क्या पता इस तरह साथ फ़िर हो हो

तुम रहो चांदनी का महल भी रहे
प्यार की यह नशीली गजल भी रहे
हाय,कोई भरोसा नहीं इस तरह
आज है जो वही बात कल भी रहे

चांदनी मिल गयी तो गगन भी मिले
प्यार जिससे मिला वह नयन भी मिले
और जिससे मिली खुशबुओं की लहर
यह जरूरी नहीं वह सुमन भी मिले

जब कभी हो मुलाकात मन से मिलें
रोशनी में धुले आचरण से मिले
दो क्षणों का मिलन भी बहुत है अगर
लोग उन्मुक्त अन्तः करण से मिले ||
(रचना-
अवधी एवं हिन्दी के कालजयी
लोक कवि स्व .पंडित रूपनारायण त्रिपाठी जी,
जौनपुर )











रविवार, 28 जून 2009

एक पसंदीदा गजल ...


खूबसूरत से इरादों की बात करता है
वो पतझडों में गुलाबों की बात करता है

एक ऐसे दौर में जब नींद बहुत मुश्किल है
अजीब शख्स है ख्वाबों की बात करता है

उछाल करके कुछ मासूम से सवालों को
वो पत्थरों से जबाबों की बात करता है

वो चाहता है अंगूठे बचे रहें सबके
वो कापियों की किताबों की बात करता है

एक चिंगारी छिपाए है अपने सीने में
वो बार -बार मशालों की बात करता है .

रचना -डॉ वशिष्ठ अनूप .

मंगलवार, 16 जून 2009

एक पल ही जियो ...


एक पल ही जियो ,फूल बन कर जियो ,
शूल बन कर ठहरना नहीं जिन्दगी ||
अर्चना की सजोये हुए अंजली ,
तुम किसी देवता से मिलो तो सही |
जिन्दगी की यहाँ अनगिनत डालियाँ ,
तुम किसी पर सुमन बन खिलो तो सही ||
एक पल ही जियो ,तुम सुरभि बन जियो ,
धूल बन कर उमड़ना नहीं जिन्दगी ||
तम -भरी वीथीयों के अधूरे सपन ,
कुमकुमी बांसुरी पर बजाते चलो |
रात रोये हुए फूल की आँख में ,
ज्योति की नव किरण तुम सजाते चलो ||
एक पल ही जियो प्रात बन कर जियों ,
रात बन कर उतरना नहीं जिन्दगी |
चेतना के किसी भी क्षितिज से उठो ,
याचना के नयन -कोर परसा करो |
जिस लहर पर उड़ो,जिस डगर पर बहो ,
कामना की सुधा -बूँद बरसा करो ||
एक पल ही जियो ,तुम जलद बन जियो ,
वज्र बन कर घहरना नहीं जिन्दगी |
वेदना की लहर में डुबोये न जो ,
धार में डूबते को किनारा बने ,
शोक जब श्लोक की पूनमी छावं में ,
पंथ -हारे हुए को किनारा बने ||
एक पल ही जियो ,गीत बन कर जियो ,
अश्रु बनकर बिखरना नहीं जिन्दगी |
काल के हाथ पर भाव की आरती ,
बन सदा स्नेह से लौ लगाते चलो ,
देह को ज्योति-मन्दिर बनाते चलो ,
साँस की हर लहर जगमगाते चलो ||
एक पल ही जियो ,दीप बन कर जियो ,
धूम बन कर घुमड़ना नहीं जिन्दगी |


(जौनपुर के प्रख्यात कवि " साहित्य वाचस्पति " श्री पाल सिंह " क्षेम " के द्वारा लिखी गयी यह रचना १९५५ से १९६७ के बीच कभी सृजित की गयी थी .इसकी लोकप्रियता का
आलम यह है कि तत्कालीन दौर में तथा आज भी कविसम्मेलनों में श्रोताओं की सबसे पसंदीदा रचना हुआ करती है .)

शुक्रवार, 12 जून 2009

एटम बम और सई नदी की पीड़ा .



अरे चौकिये नहीं ,मैं किसी आण्विक अस्त्र के बारे में बात नहीं कर रहा हूँ .हमारे जिला मुख्यालय से ५० किलोमीटर दूर एक बाज़ार है नाम है सुजानगंज .वहां की एक मिठाई बहुत प्रसिद्द है उसका नाम है एटम-बम .जो इस मिठाई के बारे में नही जानता वह बाज़ार में इस मिठाई का नाम सुन कर चौक जाता है .किसी भी मिठाई की दुकान पर जाइये तो वहाँ एटम बम -एटमबम ही सुनायी पड़ता है .एटम बम खायेंगे या कितने कीलो एटम बम दूँ यही आवाजें आती -जाती रहती हैं .इस मिठाई को देखने से यह राज - भोग का भ्रम पैदा करता है लेकिन यह राजभोग से थोड़ा अलग किस्म की मिठाई है औरशुद्ध गाय के छेने से बनने वाली इस मिठाई का वजन है लगभग १७० ग्राम प्रति .अच्छे -अच्छे लोग इसे एक बार में नहीं खा सकते . हालाँकि हम लोग तो बचपन से ही इसके बारे में परिचित हैं लेकिन दो दिन पहले यहीं एक बारात में मैं शामिल हुआ तो सोचा क्यों न आप सब को भी इससे परिचित कराता चलूं .





ताज़ा -ताज़ा एटम बम


सभी दुकानें एटम बम की

यह सज्जन कितना मगन हैं एटम बम खाने में

और अब दूसरी खबर देखिये - जो कि पर्यावरण प्रेमियों के लिए काफी दुखद है वह यह कि सई नदी की पीड़ा देखी नहीं जाती .इसी बाज़ार के पास से ही प्राचीन नदी "सई" गुजरती है जो कि पूरे क्षेत्र के लिए वरदान से कम नहीं है ,लेकिन वह वरदान अब अभिशाप होने जा रहा है .पूरी की पूरी नदी का पानी काला पड़ गया है .इंसानों की बात तो दूर जानवर भी आस-पास नहीं फटकते .मछलियाँ ही नहीं , नदी में कोई भी जलीय जीव नहीं दिखाई पड़ता है.यह नदी काफी प्राचीन है इसका उल्लेख गोस्वामी तुलसी दास जी नें अपने श्री राम चरित मानस में भी किया है ,जब भरत जी चित्रकूट से वापस आ रहे थे -
सई उतरि गोमती नहाए ,चौथे दिवस अवधपुर आये |
जनकु रहे पुर बासर चारी ,राज काज सब साज सम्भारी ||
(अयोध्या कांड, दोहा संख्या ३२१)







कई सामाजिक संगठन इस नदी में व्याप्त प्रदूषण के निवारण लिए संघर्ष कर रहें हैं पर कोई नहीं सुन रहा है .मुझे लगता है यह हालात तो वाकई चिंता जनक है लेकिन सरकारी महकमें को और जल प्रदूषण विभाग को यह भयावह हालात क्यों नहीं दिख रहा है .




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ये नदियाँ हमारी जिंदगानी हैं ,इनके बगैर हमारा भी कोई अस्तित्व न रहेगा .कौन हरेगा सई की पीडा को ? क्या इस दौर में फिर कोई भागीरथ पैदा होगा ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो कि मुझे कल से ही बेचैन किये हैं . गंगा के लिए तो आवाज़ उठाने वाले कई हैं ,इन नदियों के लिए आवाज़ कौन उठाएगा ?

शनिवार, 6 जून 2009

अनोखा है राउर बाबा क मेला .



हमारा देश भी कितनी विचित्रताओं ,लीलाओं और परम्पराओं के साथ जी रहा है .प्रगतिवादी विचार धारा के लोंगों को बकवास भले ही लगे लेकिन इस महान देश में बहुत ऐसे लोग हैं जिन्हें केवल श्रद्धा और विश्वास के अलावा और कुछ सोचनें के लिए नहीं है .आपको यह विचित्र किन्तु सत्य घटना से दो -चार कराता हूँ .हमारे जौनपुर जनपद में ही मई ग्राम पंचायत के अर्न्तगत एक अनोखा स्थान है ,वह है राउर बाबा की ऐतिहासिक सिद्ध पीठ , जहाँ केवल साल में एक बार लोग गंगा दशहरा के आस-पास दिनों के लिए भारी संख्या में जुटते हैं ,पवित्र सरोवर की परिक्रमा करतें हैं (जिस सरोवर में मैंने कभी पानी नहीं देखा )और उद्देश्य केवल और केवल भूत -प्रेत से मुक्ति











राउर बाबा कौन थे ,इनकी ऐतिहासिकता क्या है ,मैं अभी तक पता नहीं कर पाया .कारण संभवतः यही है कि इसका कोई संकेतक साक्ष्य मुझे अभी तक प्राप्त नहीं है लेकिन यहाँ पर जुटने वाली भारी भीड़ बहुत कुछ कह जाती है .इस पूरे मेला परिसर में चाय -पान की दुकानों से ज्यादा ओझाओं और तांत्रिकों की दुकानें सजती हैं .भूत -प्रेत से मुक्ति पानें की आशा में आये हुए लोंगों से बात -चीत करनें पर पता चला कि यहाँ आने मात्र से भूत -पिशाच जल कर नष्ट हो जाते हैं










राउर बाबा के समाधि के ऊपर पार्वती -सरस्वती की प्रतिमा है .बाबा की समाधि के पीछे उनकी पत्नी सती भुनगा की समाधि है .वही पर सटी हुई हनुमान जी की भी मूर्ति है .परिसर में श्री राम चन्द्र जी -लक्ष्मन-सीता जी की भी मूर्तियाँ हैं .जनश्रुति के अनुसार प्रभु श्री राम चन्द्र जी द्वारा सभी तीर्थों से लाये गए जल को इस सरोवर में डाला गया है इस लिए गंगा दशहरा के दिन इस पवित्र सरोवर का जल अमृत मय होता है .इस स्थान को "राम गया " भी कहा जाता है .कहा जाता है कि १५० वर्ष पूर्व मीरजापुर के
हर सुख दास मोहता का पूरा परिवार प्लेग की बीमारी के चलते नष्ट हो गया था तब राउर बाबा की कृपा से ही उनका वंश आगे चल पाया ,अपनी मृत्यु के पूर्व हर सुख दास मोहता नें अपने परिवारी जनों को यह निर्देश दिया था कि प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को मेरे समस्त वंशज गंगा दशहरा के दिन बाबा के दरबार में आयेंगे .मैंने भी देखा कि उस परिवार के सभी सदस्य इस मेले में आये थे .खास बात यह है कि अब यह परिवार काफी बढ़ चुका है और देश के कई प्रान्तों में निवास कर रहा है लेकिन आस्था ऐसी कि सब के सब बाबा की समाधि की पूजा में लीन थे .इस मेले में आने वाले लोग स्थानीय कम होतें हैं लेकिन कोलकाता,मुंबई ,कटक ,भुवनेश्वर ,रायपुर और विजय नगर आदि स्थानों से काफी लोग इस मेले में आते हैं . एक सप्ताह तक चलनें वाले इस मेले में हर जगह केवल ओझाई और भूत -प्रेत के निवारण का ही चक्कर दिखाई पड़ता है .गंगा दशहरा कें दिन मेला अपनें चरम पर होता है फिर दो -तीन बाद तक समाप्त हो जाता है .और सबसे खास बात यह कि यह एक मामले में अनोखा है कि यहाँ पुरोहित का कार्य ब्राह्मण नहीं करते ,यहाँ पर पुरोहित परम्परागत रूप से एक परिवार का होता है जो कि पिछडी जाति (बिन्द )है .यहाँ भूतों को उतरने की क्रिया देख कर मैं दंग हूँ .इस परिसर में कैमरा लेकर घूमना खतरे से खाली नहीं है .मेरे साथ एक सम्मानित हिन्दी दैनिक के पत्रकार ओंकार जी हैं उन्होंने सारी तस्वीरों को चुपके -चुपके लिया .कोई देख लेता तो मुसीबत थी ,तब भी हम लोग बेहतरीन दृश्यों को अपने कैमरे में कैद नहीं कर पाए .यह हमारे इक्कीसवीं सदी के भारत की तस्वीर है ऐसे में हम भाई जाकिर जी को क्या बताएं .अभी ज्ञान का सूरज लगता है लम्बा समय लेगा उदय होनें में ....