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खूबसूरत से इरादों की बात करता है
वो पतझडों में गुलाबों की बात करता है
एक ऐसे दौर में जब नींद बहुत मुश्किल है
अजीब शख्स है ख्वाबों की बात करता है
उछाल करके कुछ मासूम से सवालों को
वो पत्थरों से जबाबों की बात करता है
वो चाहता है अंगूठे बचे रहें सबके
वो कापियों की किताबों की बात करता है
एक चिंगारी छिपाए है अपने सीने में
वो बार -बार मशालों की बात करता है . रचना -डॉ वशिष्ठ अनूप .
एक पल ही जियो ,फूल बन कर जियो ,
शूल बन कर ठहरना नहीं जिन्दगी ||
अर्चना की सजोये हुए अंजली ,
तुम किसी देवता से मिलो तो सही |
जिन्दगी की यहाँ अनगिनत डालियाँ ,
तुम किसी पर सुमन बन खिलो तो सही ||
एक पल ही जियो ,तुम सुरभि बन जियो ,
धूल बन कर उमड़ना नहीं जिन्दगी ||
तम -भरी वीथीयों के अधूरे सपन ,
कुमकुमी बांसुरी पर बजाते चलो |
रात रोये हुए फूल की आँख में ,
ज्योति की नव किरण तुम सजाते चलो ||
एक पल ही जियो प्रात बन कर जियों ,
रात बन कर उतरना नहीं जिन्दगी |
चेतना के किसी भी क्षितिज से उठो ,
याचना के नयन -कोर परसा करो |
जिस लहर पर उड़ो,जिस डगर पर बहो ,
कामना की सुधा -बूँद बरसा करो ||
एक पल ही जियो ,तुम जलद बन जियो ,
वज्र बन कर घहरना नहीं जिन्दगी |
वेदना की लहर में डुबोये न जो ,
धार में डूबते को किनारा बने ,
शोक जब श्लोक की पूनमी छावं में ,
पंथ -हारे हुए को किनारा बने ||
एक पल ही जियो ,गीत बन कर जियो ,
अश्रु बनकर बिखरना नहीं जिन्दगी |
काल के हाथ पर भाव की आरती ,
बन सदा स्नेह से लौ लगाते चलो ,
देह को ज्योति-मन्दिर बनाते चलो ,
साँस की हर लहर जगमगाते चलो ||
एक पल ही जियो ,दीप बन कर जियो ,
धूम बन कर घुमड़ना नहीं जिन्दगी |
(जौनपुर के प्रख्यात कवि " साहित्य वाचस्पति " श्री पाल सिंह " क्षेम " के द्वारा लिखी गयी यह रचना १९५५ से १९६७ के बीच कभी सृजित की गयी थी .इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि तत्कालीन दौर में तथा आज भी कविसम्मेलनों में श्रोताओं की सबसे पसंदीदा रचना हुआ करती है .)

हमारा देश भी कितनी विचित्रताओं ,लीलाओं और परम्पराओं के साथ जी रहा है .प्रगतिवादी विचार धारा के लोंगों को बकवास भले ही लगे लेकिन इस महान देश में बहुत ऐसे लोग हैं जिन्हें केवल श्रद्धा और विश्वास के अलावा और कुछ सोचनें के लिए नहीं है .आपको यह विचित्र किन्तु सत्य घटना से दो -चार कराता हूँ .हमारे जौनपुर जनपद में ही मई ग्राम पंचायत के अर्न्तगत एक अनोखा स्थान है ,वह है राउर बाबा की ऐतिहासिक सिद्ध पीठ , जहाँ केवल साल में एक बार लोग गंगा दशहरा के आस-पास ७ दिनों के लिए भारी संख्या में जुटते हैं ,पवित्र सरोवर की परिक्रमा करतें हैं (जिस सरोवर में मैंने कभी पानी नहीं देखा )और उद्देश्य केवल और केवल भूत -प्रेत से मुक्ति ।


राउर बाबा कौन थे ,इनकी ऐतिहासिकता क्या है ,मैं अभी तक पता नहीं कर पाया .कारण संभवतः यही है कि इसका कोई संकेतक साक्ष्य मुझे अभी तक प्राप्त नहीं है लेकिन यहाँ पर जुटने वाली भारी भीड़ बहुत कुछ कह जाती है .इस पूरे मेला परिसर में चाय -पान की दुकानों से ज्यादा ओझाओं और तांत्रिकों की दुकानें सजती हैं .भूत -प्रेत से मुक्ति पानें की आशा में आये हुए लोंगों से बात -चीत करनें पर पता चला कि यहाँ आने मात्र से भूत -पिशाच जल कर नष्ट हो जाते हैं।


राउर बाबा के समाधि के ऊपर पार्वती -सरस्वती की प्रतिमा है .बाबा की समाधि के पीछे उनकी पत्नी सती भुनगा की समाधि है .वही पर सटी हुई हनुमान जी की भी मूर्ति है .परिसर में श्री राम चन्द्र जी -लक्ष्मन-सीता जी की भी मूर्तियाँ हैं .जनश्रुति के अनुसार प्रभु श्री राम चन्द्र जी द्वारा सभी तीर्थों से लाये गए जल को इस सरोवर में डाला गया है इस लिए गंगा दशहरा के दिन इस पवित्र सरोवर का जल अमृत मय होता है .इस स्थान को "राम गया " भी कहा जाता है .कहा जाता है कि १५० वर्ष पूर्व मीरजापुर के हर सुख दास मोहता का पूरा परिवार प्लेग की बीमारी के चलते नष्ट हो गया था तब राउर बाबा की कृपा से ही उनका वंश आगे चल पाया ,अपनी मृत्यु के पूर्व हर सुख दास मोहता नें अपने परिवारी जनों को यह निर्देश दिया था कि प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को मेरे समस्त वंशज गंगा दशहरा के दिन बाबा के दरबार में आयेंगे .मैंने भी देखा कि उस परिवार के सभी सदस्य इस मेले में आये थे .खास बात यह है कि अब यह परिवार काफी बढ़ चुका है और देश के कई प्रान्तों में निवास कर रहा है लेकिन आस्था ऐसी कि सब के सब बाबा की समाधि की पूजा में लीन थे .इस मेले में आने वाले लोग स्थानीय कम होतें हैं लेकिन कोलकाता,मुंबई ,कटक ,भुवनेश्वर ,रायपुर और विजय नगर आदि स्थानों से काफी लोग इस मेले में आते हैं . एक सप्ताह तक चलनें वाले इस मेले में हर जगह केवल ओझाई और भूत -प्रेत के निवारण का ही चक्कर दिखाई पड़ता है .गंगा दशहरा कें दिन मेला अपनें चरम पर होता है फिर दो -तीन बाद तक समाप्त हो जाता है .और सबसे खास बात यह कि यह एक मामले में अनोखा है कि यहाँ पुरोहित का कार्य ब्राह्मण नहीं करते ,यहाँ पर पुरोहित परम्परागत रूप से एक परिवार का होता है जो कि पिछडी जाति (बिन्द )है .
यहाँ भूतों को उतरने की क्रिया देख कर मैं दंग हूँ .इस परिसर में कैमरा लेकर घूमना खतरे से खाली नहीं है .मेरे साथ एक सम्मानित हिन्दी दैनिक के पत्रकार ओंकार जी हैं उन्होंने सारी तस्वीरों को चुपके -चुपके लिया .कोई देख लेता तो मुसीबत थी ,तब भी हम लोग बेहतरीन दृश्यों को अपने कैमरे में कैद नहीं कर पाए .यह हमारे इक्कीसवीं सदी के भारत की तस्वीर है ऐसे में हम भाई जाकिर जी को क्या बताएं .अभी ज्ञान का सूरज लगता है लम्बा समय लेगा उदय होनें में ....