रविवार, 26 दिसंबर 2010

हम भ्रष्टन के और सब भ्रष्ट हमारे .......

काफी समय से इस अंतर्जाल पर कुछ लिख नहीं पाया-दूर रहा .ऐसा नहीं था कि मैं अपनें पसंदीदा पोस्ट्स या लेखकों को नहीं देखता या पढ़ता था -बस संशोधन यही था कि न तो उस पर अपनी टिप्पणी कर पाया और न ही अपने ब्लॉग पर नव लेखन .
यह बीत रहा साल तो घोटालों और महाभ्रष्टों की भेंट चढ़ गया. घोटालों और भ्रष्टों की कहानी राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया की सुर्ख़ियों में रही . कुछ ऐसी ही अकथ कहानी, भ्रष्टाचार की ,हमारे प्रदेश में भी रही जिसकी कहीं रही चर्चा भी नहीं हुई.साल के आख़री कई महीनें उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की भेंट चढ़ गये .जुलाई से शुरू हुई कहानी अभी ब्लाक प्रमुखों के चुनाव से पिछले २२ दिसम्बर को समाप्त हुई है .पहले दौर में प्रधानी-बी.डी.सी.सदस्यी ,जिला पंचायतसदस्यी,फिर जिला पंचायत अध्यक्ष और अंततः ब्लाक प्रमुखी.
सामाजिक परिवर्तन के नाम पर इन चुनावों में भ्रष्टाचार की जो गंगा बही है ,अफ़सोस है इसकी चर्चा मीडिया के राष्ट्रीय पन्नों पर तो छोड़िये ,आंचलिक पन्नों पर भी नहीं हुई. सीधे-सीधे लाखों रूपये एक-एक वोट पर खर्च किये गये ,जिसकी कहीं चर्चा तक नहीं हुई.देश का अपना सर्वप्रिय इलेक्ट्रानिक मीडिया भी जो सनसनीखेज खबरों को प्रस्तुत करनें में ही अपने समय को जाया करता है वह भी खरबों के इस खबर की अनदेखी कर गया .तो क्या अब यह मान लेना चाहिए की भ्रष्ट होना ही हम सब की नियति हो चली है??। ग्रामीण विकास से जुड़े इन चुनावों नें भ्रष्टाचार की जो प्रस्तुति दी है इससे यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन प्रदेशों में विकास के लिए आने वाले समय में क्या कुछ होंनें वाला है.इन पंचायत चुनावों में धन-बल-मुर्गा- दारू का जो दौर चला है वह वर्णनातीत है-अच्छे-अच्छों को पसीना गया.परिणामतः विकास के लिए जिन्हें होना चाहिए था वे नहीं हुए-जिन्हें नहीं होना चाहिए था वे छा गये. अब सब होंगे मालामाल और मतदाता -गरीब जनता होगी बेहाल.अफ़सोस जनक यह है कि मतदाताओं की कुम्भकर्णी निद्रा कबटूटेगी.जिला पंचायत , ब्लाक प्रमुख के चुनाव, निर्वाचित सदस्यों द्वारा किये जाते हैं -असली खेल यहीं से शुरू होता है .यदि भ्रष्टाचार पर कुछ अंकुश लगाना है तो इन चुनावों को भी सीधे जनता से जोड़ना होगा.इसका सबसेदुखद पहलू यह है कि भ्रष्टाचार की यह महामारी अब सीधे ग्रामीणों तक पहुचनें लगी है जो कि समाज और देश के लिए कत्तई शुभ संकेत नहीं है.अभी कुछ वर्षों पूर्व तक ऐसे लोग सामाजिक रूप से रोटी और बेटी दोनों रिश्तों से दूररखे जाते थे लेकिन अब ये सर्वप्रिय और सर्वमान्य हो चले हैं.वे लोग जो एक लम्बे समय से इन भ्रष्टाचारियों केविरुद्ध संघर्ष कर रहे थे वे अब नेपथ्य में हैं,बेचारे बन गये हैं.कविवर डॉ श्री पल सिंह क्षेम की इन लाइनों के साथअपनी पोस्ट समाप्त करता हूँ---
मन की गांठे बंधी पहले खोलो ,
प्यार से पहले मन को तो धो लो ,
देश को फूल देना कठिन है,
पहले आंगन में ही फूल बोलो ।
भाव मन के जो प्रतिकूल होंगे,
पथ में शूल ही शूल होंगे ,
देश को फूल तब दे सकोगे,
अपनें आंगन में जब फूल होंगे।


18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सटीक बीमारी पर सटीक विचार ... भ्रष्टाचार और घोटाले तो सुरसा के सामान बढ़ रहे हैं ... काफी दिनों बाद आपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा...आभार

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  2. देश को फूल तब दे सकोगे,
    अपनें आंगन में जब फूल होंगे।
    --------------------------
    एक से एक बड़े काण्ड पढ़ कर हम बहुत बड़े फूल बन रहे हैं। :-(

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  3. मैं तो बस इतना ही कहूंगा कि

    सारा जीवन अस्‍त-व्‍यस्‍त है

    जिसको देखो वही त्रस्‍त है ।

    जलती लू सी फिर उम्‍मीदें

    मगर सियासी हवा मस्‍त है ।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    विलायत क़ानून की पढाई के लिए

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  4. @ अफ़सोस है इसकी चर्चा मीडिया के राष्ट्रीय पन्नों पर तो छोड़िये ,आंचलिक पन्नों पर भी नहीं हुई. सीधे-सीधे लाखों रूपये एक-एक वोट पर खर्च किये गये ,जिसकी कहीं चर्चा तक नहीं हुई।

    लाखों रूपये पहुंचाने वाली बात मैने भी सुनी थी अपने परिजनों के जरिये.....आप की बात से सहमत हूँ कि भ्रष्ट होना अब धीरे धीरे नियति बन गई है।

    वो नेहरू ने क्या कहा था ....tryst with destiny.....नियति से साक्षात्कार....अब वही सब साक्षात सामने है :)

    इतने दिनों बाद देखकर अच्छा लगा ।

    आगे लेखन तनिक सटाये रहिये आप तो ढीले हो जाते हैं थोड़ा सा लिखकर :)

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  5. बहुत दिनो के बाद आपकी पोस्ट देखकर अच्छा लगा।
    यह पोस्ट भ्रस्टाचार के विरूद्ध तो है ही, मौन पर भी प्रश्न चिन्ही लगाती है। रोज-रोज की भ्रस्टाचार की खबरें पढ़कर, इसे ही नियति मान कर उकताए मन से एक बार लिखा था...

    काहे हौवा हक्का बक्का
    छाना राजा भांग मुनक्का
    भ्रस्टाचार में देश धंसल हौ
    देखा तेंदुलकर कs छक्का
    ..................

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  6. भ्रष्टाचार तभी खत्म होगा जब हम सब साफ़ होंगे, हम अपने काम निकलबाने के लिये तो सभी कुछ करते हे, रिशवत देते ओर लेते हे, वोट अपना बेच देते हे, या जात पात के नाम से या धर्म के नाम से या फ़िर डर से दे देते हे इन गुंडो मवालियो को या उन नेताओ को जिन्होने आज तक सिर्फ़ झुठे वादे ही किये हे, क्यो नही मिल कर सब अपने आधिकारो की मांग करते, अपने कर्म को सही रुप मे करे,कसम खाये कि ना रिसवत देगे ना ही लेगे, सूखी खा लेगे लेकिन गलत पेसो को हाथ नही लगाये गे, फ़िर देखे केसे आप से गलत लोग डरते हे.... तुम चलो जहान खुद आप के पीछे आयेगा, बहुत सुंदर कविता लगी ओर आप का लेख भी अति सुंदर. धन्यवाद

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  7. यह पोस्ट आज देखा ,अग्रीगेटरों के न होने से यह हो रहा है .....हाँ सही है ग्राम पंचायतों के भ्रष्टाचार पर जितना लिखा जाना चाहिए था उसे बहुत कम लिखा गया !

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  8. बहुत दिनों से आपकी पोस्‍ट का इंतजार था ..सुन्‍दर लेखन के लिये आभार ।

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  9. बड़े बड़े शहरों में बड़े बड़े घोटाले होते हैं । फिर छोटे छोटे शहरों के छोटे छोटे घोटालों की ओर किसका ध्यान जायेगा । अफ़सोस कि भृष्टाचार अब गाँव पंचायत के चुनावों में भी सर उठाने लगा है ।
    क्या प्रजातंत्र की हार है ये ?

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  10. अब तो भ्रष्टाचार आम ज़िंदगी जैसा ही लगता है ...किस किस की चर्चा सुनें ....

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  11. बहुत दिन बाद आये और क्या खूब आये।

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  12. आज की परिभाषाएं कुछ बदल रही हैं लगता है .. देखिये जरा


    रिश्वत ले कर काम करने वाला - ईमानदार
    रिश्वत ले कर भी काम न करने वाला - वो है बेईमान
    बिना रिश्वत के काम करने वाला - मूर्ख, उल्लू

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  13. मन की गांठे बंधी पहले खोलो ,
    प्यार से पहले मन को तो धो लो ,
    देश को फूल देना कठिन है,
    पहले आंगन में ही फूल बोलो ।
    भाव मन के जो प्रतिकूल होंगे,
    पथ में शूल ही शूल होंगे ,
    देश को फूल तब दे सकोगे,
    अपनें आंगन में जब फूल होंगे

    .
    बहुर खूब

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  14. एक आलसी की टिप्पणी:
    एक से एक बड़े काण्ड पढ़ कर हम बहुत बड़े फूल बन रहे हैं। :-(

    काहें हउव हक्का बक्का
    छानss राजा भाँग मुनक्का
    भ्रस्टाचार में देश धँसल हौ
    देखss तेंदुलकर कs छक्का

    tryst with destiny.....नियति से साक्षात्कार....अब वही सब साक्षात सामने है :)
    आगे लेखन तनिक सटाये रहिये आप तो ढीले हो जाते हैं थोड़ा सा लिखकर :)

    प्रभु जी न आयें यहाँ, नहीं तो कहेंगे कि 'किसी अच्छे ब्लागर की टिप्पणी पढ़ कर, अपनी टिप्पणी ठोक देने से काम चला जाता है!'

    लिखते रहिये महराज!

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  15. सुन्दर रचना
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

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  16. 'क्या भ्रष्ट होना ही हम सब की नियति हो चली है?
    सही प्रश्न उठाया है आप ने.
    उत्तर जानते हुए भी कोई स्पष्ट देना नहीं चाहेगा.देर सबेर ग्रामीण अंचलों तक इसे पहुंचना ही था सो पहुँच गया..जो कि एक अशुभ संकेत है .हर दिन एक नए घोटाले की खबर समाचारों में छाई रहती है.वैसे' इन खबरों 'का सामने न आने पर यही कहना है कि मिडिया भी अपनी मर्ज़ी मुताबिक ही तो खबरें दिखाता है.इस पार्टी उस पार्टी से प्रभावित ..
    -------------------------
    बहुत दिनों बाद[कई महीनो बाद ] आप को ब्लॉग लिखते देखना अच्छा लगा .
    -------------------------
    आने वाले नए साल के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ .

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आपकी टिप्पणियाँ मेरे ब्लॉग जीवन लिए प्राण वायु से कमतर नहीं ,आपका अग्रिम आभार एवं स्वागत !