जी हाँ हमारी रेलगाडियों में यही हाल है .दो दशक पूर्व लिखी गई आदरणीय प्रदीप चौबे जी की हास्य कविता रेलमपेल तो आप को याद ही होगी कि किस तरह से वीरता के साथ रेल यात्रा की जा सकती है .कुछ ऐसा ही वाकया मेरे साथ भी पिछले पखवारे घटित हुआ .लगातार कई एक लम्बी ट्रेन यात्राओं ने मुझे इतना झेलाया कि मुंह से बरबस निकल पडा कि भई वाह ठेलमठेल.
इस ठेली -ठेला में आप अकेले नहीं है आप के साथ ही शामिल होंगे -मच्छर ,चूहे और काक्रोच .स्लीपर की बात छोडिये एसी वन ,टू तथा थ्री सभी में (शताब्दी और राजधानी को छोड़ कर) देश की लम्बी दौड़ की प्रमुख ट्रेनों में दिन हो या रात , आप पर मच्छरों , चूहों और काकरोचों का हमला हो सकता है ?यदि आप का पूर्वानुमान सही नहीं है तो ये सब आपको लम्बी यात्रा न करने की कसम दिलवा देंगे .चूहे महाशय आपके लगेज बैग की खुली जिप के जरिये आपके सामानों का आयात -निर्यात करेंगे ,काक्रोच आपके शरीर पर लाल-लाल चकत्ते देंगे जिसे खुजलाने में ही आप की यात्रा बीतेगी और मच्छर आप को डेंगू जैसी भयानक बीमारी की हर पल याद दिलाते रहेंगे जिससे आप का बी पी अपने आप लो हाई होता रहेगा . और यात्राओं के बाद आप निश्चित बीमार होंगे .इधर कुछ लम्बी यात्राओं में मैंने इसे स्वयं देखा और नजदीक से जाना।डिब्बे में हो रहे इन उपद्रवों के बारे में चलते -चलते आपको एक वाकया बताते चलें, मेरे सामने वाले सज्जन सुबह से ही काफी परेशान थे -मैंने कहा बंधु क्या हुआ है,उन्होंने कहा कि मेरे जूते का एक मोजा गायब है ,मै थोड़ा घबराया कि कही इस अमूल्य चीज को गायब होने का ताज मुझे न पहना दिया जाय लेकिन अगले पल उन्होंने कहा कि कोई सफाई वाला रात को तो नही आया था, मैंने राहत की साँस ली ,मैंने कहा नहीं ,क्यों ?उन्होंने कहा तब निश्चित रूप से किसी और ने मेरा मोजा ले लिया.मैंने कहा भइये ,अब सफाई वाले या फिर किसी और के सामाजिक स्तर पर थोड़ा ध्यान दीजिये कि इस हाई-टेक युग में कोई एक मोजे के लिए भारतीय दंड संहिता का अपमान क्यो करेगा ?खैर उसी शाम चूहे साहब के प्रगट होते ही इस राज का पर्दाफाश हो गया . मैंने कोच सहायक को बुलाया ,सारी वाक्यात को बताया .उसने कहा कि इन सब से आप सब स्वयं निपटिये ,इनसे पूरा रेल विभाग भी नहीं निपट पा रहा है .मैंने कहा और इन मच्छरों , काकरोचों के बारे में क्या ख्याल है ,उसने कहा कि महीने में दो तीन बार छिडकाव तो होतें है ,मैंने कहा भाई रोज क्यों नहीं -उसने कहा आप लोग बड़े साहब लोंगों से बात कीजिये .मै इसमे आपकी और मदत नही कर सकता .
सवाल यह है की क्या रेलवे अपने यात्रियों के सुख सुविधाओं का ध्यान दे पा रहा है ?बड़ी बड़ी बाते रेल मंत्री जी की तरफ़ से होंती हैं ,आंकडे बताते है की रेलवे फायदे में है तो क्या यात्रियों के हिस्से में कुछ न आएगा ?यात्रा में फझीहत ,भोजन की गिरावट ,क्या यही रेल यात्रिओं की नियति है ? तत्काल के नाम पर जो धन बटोरा जा रहा है उसके बाद भी कोच में और तंग हाली है ।पैर फैलाने को कौन कहे पैर और सिकुड़ रहा है .मैंने १९८५ में आदरणीय प्रदीप चौबे जी की हास्य कविता रेलमपेल
पढी थी ,लगता है देश मे इतनी प्रगति के बाद भी रेल यात्रायें नही बदलीं .जो हाल पहले जनरल बोगी का था आज वह स्लीपर तथा ए सी २- ३ का हो गया है. बढ़ती आबादी और घटते संसाधनों ने इस महान देश को भगवान भरोसे छोड़ दिया है ब्यवस्था सुधार के नाम लाख प्रवचन होता रहे ,बुद्धिजीवी लोग कितना ही प्रलाप क्यों न करे कुछ भी नही सुधरने वाला .केवल शब्दों का माया जाल और आंकडे बाजी ,यही यहाँ की नियति है . जैसे इस देश में गरीबी सुरसा के मुहं की तरह बढ़ती जा रही है और गरीबी हटाने के नाम पर गरीबों को ही मौके से हटा दिया जाता है .अब तो अब्यव्स्थाओं बात करना भी बेमानी है . मुझे प्रदीप चौबे जी की कविता आज भी पूरी तरह याद है आप को भी कुछ मजेदार लाइनों का स्मरण दिला दें,रचना १९८५ की, लेकिन हाल आज भी वही .-
भारतीय रेल की जनरल बोगी
पता नहीं
आपने भोगी
या नहीं भोगी
एक बार हमें करनी पडी यात्रा
स्टेशन पर देख कर
सवारियों की मात्रा
हमारे ,पसीने छूटने लगे ,
हम झोला उठा कर
घर की तरफ़ फूटने लगे
तभी एक कुली आया
मुस्करा कर बोला
अन्दर जाओगे
मैंने कहा पहुचाओगे ?
वो बोला
बड़े -बड़े पार्सल पहुचाये हैं
आपको भी पहुँचा दूँगा
मगर रूपये पूरे पचास लूँगा
हमने कहा पचास रूपैया ?
वो बोला हाँ भइया .
तभी गाडी ने सीटी दे दी
हम झोला उठा कर धाये
बड़ी मुश्किल से
डिब्बे के अन्दर घुस पाए
डिब्बे का दृश्य
और घमासान था
पूरा डिब्बा
अपने आप में हिन्दोस्तान था
लोग लेटे थे ,बैठे थे ,खड़े थे
जिनको कहीं जगह नही मिली
वे बर्थ के नीचे पड़े थे.
एक सज्जन
फर्श पर बैठे थे ,ऑंखें मूंदे
उनके सर पर
अचानक गिरीं पानी की बूंदे
वे सर उठा कर चिल्लाये ,कौन है -कौन है ?
बोलता क्यों नही
पानी गिरा कर मौन है
दीखता नहीं
नीचे तुम्हारा बाप बैठा है ?
ऊपर से आवाज आयी
छमा करना भाई ,
पानी नहीं है
हमारा छः महीने का
बच्चा लेटा है ,
कृपया माफ़ कर दीजिये
और आप अपना सर नीचे कर लीजिये
वरना ,बच्चे का क्या भरोसा ?
तभी डिब्बे में जोर का हल्ला हुआ
एक सज्जन चिल्लाये -
पकडो -पकडो जाने न पाए
हमने पुछा क्या हुआ -क्या हुआ
सज्जन रो कर बोले
हाय -हाय ,मेरा बटुआ
किसी ने भीड़ में मार दिया
पूरे तीन सौ से उतार दिया
टिकट भी उसी में था .....?
एक पड़ोसी बोला -
रहने दो -रहने दो
भूमिका मत बनाओ
टिकट न लिया हो तो हाँथ मिलाओ
हमने भी नहीं नहीं लिया है
आप इस कदर चिल्लायेंगे
तो आप के साथ
हम नहीं पकड लिए जायेंगे?
एक तो डब्लू .टी जा रहे हो
और सारी दुनिया को चोट्टा बता रहे हो?
अचानक गाडी
बड़े जोर से हिली
कोई खुशी के मारे चिल्लाया -
अरे चली ,चली
दूसरा बोला -जय बजरंगबली
तीसरा बोला -या अली
हमने कहा -
काहे के अली और काहे के बली ?
गाड़ी तो बगल वाली जा रही है
और तुमको
अपनी चलती नजर आ रही है ?
प्यारे
सब नजर का धोखा है
दरअसल यह रेलगाडी नहीं
हमारी जिंदगी है
और जिंदगी में धोखे के अलावां
और क्या होता है .