गतांक से आगे ....
गुप्तकालीन भारत तक शिक्षा की प्रगति अबाध गति तक चलती रही .लौकिक साहित्य की सर्जना के लिए गुप्त काल स्मरणीय माना जाता है .शूद्रक का मृच्छ कटिक,कालिदास का अभिज्ञान शाकुंतलम ,अमर सिंह का अमरकोश इस काल की वे सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ थी ,जो की तत्कालीन भारत की समृद्ध शिक्षा व्यवस्था की ओर संकेत करती हैं हर्ष के बाद , सातवीं सदी से हिन्दी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ का प्रादुर्भाव तत्कालीन भारत की अनोखी घटना थी परन्तु शिक्षा के प्राचीन उद्देश्य एवं आदर्श तब तक बदलनें लगे थे .पूर्व मध्यकालीन भारत से होते हुए पूर्व मुग़ल कालीन भारत तक शिक्षा का पूर्व स्थापित स्वरुप लगभग कमजोर पड़ चुका था .मुगलकाल में शिक्षा का कोई पृथक विभाग नहीं था और न ही शिक्षा की कोई व्यवस्थित योजना ही तत्कालीन साक्ष्यों से परिलक्षित होती है . इस विचार को मानने में कोई विसंगति नहीं है की मुग़ल बादशाहों ने शिक्षा के महत्व को समझते हुए अपनें आपको शिक्षा से जोड़े रखा तथा अनेक विद्वानों को राजकीय संरक्षण भी प्रदान किया .परन्तु इस शासन सत्ता नें जन -सामान्य की शिक्षा की ओर कोई गंभीर पहल नहीं की फलतः शिक्षा का सम्बन्ध राजकीय शासन सत्ता धारकों से ज्यादा हो गया था .इस काल में जहाँ दिल्ली ,आगरा ,फतेहपुर सीकरी,लखनऊ ,अम्बाला ,ग्वालियर ,कश्मीर ,इलाहाबाद ,लाहौर ,स्यालकोट एवं जौनपुर मुस्लिम शिक्षा के महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित हुए वहीं बनारस ,मथुरा ,प्रयाग ,अयोध्या ,मिथिला ,श्रीनगर आदि हिन्दुओं के प्रमुख शिक्षा केंद्र के रूप में .
मुगलकालीन शिक्षा में स्त्रियों को उच्च शिक्षा की सुविधा सुलभ न थी ,केवल अपवाद स्वरुप उच्च घरानों की लड़कियों को ही उच्च शिक्षा प्राप्त थी .तकनीकी व ओद्योगिक शिक्षा के आभाव में कालान्तर में यह शिक्षा समय व समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति में प्रायः असफल ही साबित हुई .अठारहवीं से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी के बीच में भारतीय शिक्षा प्रणाली हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए ही निराशा जनक रही .ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रादुर्भाव नें भारतीय शिक्षा की प्राचीन पद्धति के उत्थान व प्रसार को व्यापक पैमानें पर प्रभावित किया .२ फरवरी १८३५ को तत्कालीन लोक शिक्षा समिति के कार्य परिषद के एक सदस्य लार्ड मैकाले नें भारतीय पारम्परिक शिक्षा को हतोत्साहित करते हुए कहा की "यूरोप के अच्छे पुस्तकालय की एक आलमारी का तख्ता भारत और अरब के समस्त साहित्य से अधिक मूल्यवान है ."यह भारत में अंगरेजी शिक्षा के प्रति पहला आधिकारिक प्रदर्शन था ,जिसे लार्ड विलियेम बैंटिंग की सरकार नें ७ मार्च ,१८३५ को अपनी मंजूरी देते हुए लागू कर दिया था .वस्तुतः मैकाले पद्धति भारत में उच्च वर्ग को अंगरेजी माध्यम से जोडनें का प्रयास था ,जिसमें निः संदेह जन साधारण को शिक्षा से वंचित करनें का आग्रह छिपा था .समय -समय पर पारित होते नियमों -उप नियमों की जंजीर में जकड़ी भारतीय शिक्षा प्रणाली अपनें मूल उद्देश्यों एवं आदर्शों से भटकती रही .
जारी ....................