
नाग-पञ्चमी (चन्दन चाचा के बाड़े में)
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बरसों पहले पाठ्य पुस्तक निगम की स्कूली शिक्षा की हिंदी बाल-भारती में एक
टंग-ट्विस्टर कविता हुआ करती थी। बच्चों और मास्साबों-बहनजियों को भी
पढने-पढ़ाने में...
8 घंटे पहले
बधाई ..
जवाब देंहटाएंcongrats!
जवाब देंहटाएंबधाई -जम्मैथा तो छा गया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन.....बहुत बहुत बधाई ....!!!!
जवाब देंहटाएंलो जम्मैथा खरबूजा आ गया .बधाई मिश्र जी
जवाब देंहटाएंजमैथा के खरबूज की खुशबू तो यहाँ तक आ रही है...
जवाब देंहटाएंबधाई!
जवाब देंहटाएंआप को आलेख सीधे अखबारों को भी प्रेषित करने चाहिए।
bahut bahut badhai...blog post ka samaachaar patra mein aanaa khushee kee baat hai..
जवाब देंहटाएंबधाई जी बधाई ..छा गये जी जमैथा के खरबूजे तो.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह !! बधाई !!
जवाब देंहटाएंbadhayi ho janaab
जवाब देंहटाएंवाकई अलबेला है "जमैथा का खरबूजा "। ये दिल्ली तक पहुंचेगा ,इसमे कोई शक नही था !!!
जवाब देंहटाएंवाकई कमाल का है जमैथा का खरबूज.....समाचार पात्र में भी आ गया..............बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मनोज जी सिर्फ पढ़वाने से काम नहीं चलेगा हमारे लिये तो भिजवाइये वर्ना रंग कैसे बदलेंगें भाई...
जवाब देंहटाएंBahut bahut badhai.
जवाब देंहटाएंजमैथा का खरबूज तो अब बहुत महंगा हो गया होगा आप के इस लेख ने उसे विशव मै प्रसिद्ध कर दिया, जल्द से दो चार खरबुजे अब भेज ही दो.
जवाब देंहटाएंपण्डितजी सर्वप्रथम तो २८ मई के खरबूजे वाले आलेख के लिए आपका बहुत बहुत आभार। जानकारियाँ अत्यंत रोचक थीं। बाद इसके अमर उजाला में लेख छपने की बहुत बहुत बधाई। प्रिंट मीडिया को भी अपना दोस्त बनाने का अब समय आ रहा है ऐसा लगता है। हम सबको मिलकर इस बारे में कुछ क़दम उठाने चाहिये शायद। आपकी क्या राय है सर ? अमर उजाला को हमारी ओर से धन्यवाद भी प्रेषित कीजिएगा। आपका मित्र।
जवाब देंहटाएंजमैथा के खरबूज की चर्चा तो सुनी थी पर आपने तो उसे विश्व-प्रसिद्ध बना दिया..बधाई !!
जवाब देंहटाएं_______________
विश्व पर्यावरण दिवस(५ जून) पर "शब्द-सृजन की ओर" पर मेरी कविता "ई- पार्क" का आनंद उठायें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ !!
bahut bahut badhaee
जवाब देंहटाएंbadhaayee is post ke prakashan par--
जवाब देंहटाएंवाह!
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