खुशी हद से बढ़ी तो आ गए मुस्कान को आंसू
कहीं कोई लुटा तो आ गये ईमान को आंसू
चढ़ाकर लूट की संपत्ति तुमनें जीत माँगी तो
पुजारी मुस्कराया आ गये भगवान को आंसू ।
पराई पीर का प्याला तुम्हे पीना नहीं आया
मनुजता का फटा आंचल तुम्हे सीना नहीं आया
भले ही तुम फरिश्तों की तरह बातें करो लेकिन
अभी तक आदमी बनकर तुम्हे जीना नहीं आया।
तुम्हारे पास बल है बुद्धि है विद्वान भी हो तुम
इसे हम मान लेतें हैं बहुत धनवान भी हो तुम
विधाता वैभवों के तुम इसे भी मान लेते हम
मगर यह बात कैसे मान लें इंसान भी हो तुम।
लगा ली गले से नफरत मुहब्बत तक नहीं पहुंचे
बसाया झूठ को दिल में सदाकत तक नहीं पहुंचे
सितारों तक तुम्हारा यह सफर किस काम का जब तुम
अँधेरे में सिसकती आदमियत तक नहीं पहुंचे ।
( रचना - स्व.पंडित रूप नारायण त्रिपाठी जी )
नाग-पञ्चमी (चन्दन चाचा के बाड़े में)
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बरसों पहले पाठ्य पुस्तक निगम की स्कूली शिक्षा की हिंदी बाल-भारती में एक
टंग-ट्विस्टर कविता हुआ करती थी। बच्चों और मास्साबों-बहनजियों को भी
पढने-पढ़ाने में...
1 महीना पहले