कितना सही कहा गया है --कालों न यातो-वयमेव याता. अर्थात समय नहीं जाता हम लोग जाते हैं.यह जीवन कीसचाई है इससे हम मुह नहीं मोड़ सकते.इतनी खरी-खरी बात अभी नव वर्ष की पूर्व संध्या पर आयोजित एक पार्टी में अपने समय की एक मशहूर हस्ती नें, नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं सहित हम लोंगों के साथ कही.मुझे अचानक यह बात सुखद मौके पर बड़ी अटपटी सी लगी ,माहौल बोझिल लगनें लगा लेकिन बाद में मैंने सोचा तो लगा यार बात तो सौ टके की सही है.प्रतिवर्ष नव वर्ष का इन्तजार करते-करते हम यह नहीं सोचते कि हम कितनें बरस के हो गये.और हर साल हमे क्या दे रहा है केवल नई-नई चुनौतियाँ -नये -नये समीकरणों के साथ तालमेल,नई जिम्मेदारियां.यानि कि अब शंख वाले-पंख वाले दिन कहाँ गये.उन दिनों, कल की कभी चिंता नहीं होती थी,केवल और केवल चिंता यह होती थी कि नववर्ष की पूर्व संध्या और नव वर्ष का दिन कहाँ-किन मित्रों के साथ मनाना है.अब तो लगता है इतनी जल्दी-जल्दी क्यूँ आ रहा है यह नया साल.साल दर साल बीत रहे हैं और हम एक सुखमय समय की प्रतीक्षा में चुक रहे है जो मृगतृष्णा के रूप में है-नहीं मिल रही है.पार्टी में एक लगभग सत्तर बरसके एक बुजुर्ग साम्यवादी चिन्तक नें सालों-साल के पुरानें वर्षों का आकलन करते हुए कहा कि -खुदा तो मिलता है इंसान नहीं मिलता -ये चीज वो है कि देखी कहीं-कहीं मैंने। - ,यदि राष्ट्रीय परिदृश्य में देखा जाय तो भी लगता है कि इस वर्ष नें भी आम आदमी को खुशी कम- गम ज्यादे दिए.आने वाला साल क्या इसकी भरपाई कर पायेगा -ईश्वर से यही कामना है कि सबके लिए आने वाला कल-नव वर्ष, खुशियों की सौगात लेकर आये।
वर्ष नव-हर्ष नव -उत्कर्ष नव के उदघोष के साथ पंडित रूप नरायण त्रिपाठी जी की इन लाइनों को प्रस्तुत कर रहाहूँ---
मैं नया गीत लाया तुम्हारे लिए,
मैं नया मीत लाया तुम्हारे लिए,
साथियों चीर कर रात की कालिमा ,
मैं सुबह जीत लाया तुम्हारे लिए।
भोर की बांसुरी गीत छलका गयी,
जिन्दगी में नई जिन्दगी आ गयी,
फूल की डबडबाई हुई आँख में ,
रात के आंसुओं को हंसी आ गयी।
नव वर्ष आप सब को मंगल मय हो ,अभिमंत्रित शुभकामनाओं सहित ...
कौन........
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कौन रुसवाइयों के लिए ठहरता है ‘बवाल’ ?
मौत के वास्ते, दीदार से ही काम निकाल !!
*---बवाल*
10 वर्ष पहले